भोपाल। बीजेपी ने दिग्गजों को विधानसभा के मैदान में उतार दिया. हैरान करने वाली बात सिर्फ इतनी नहीं है. इतिहास अभी और बनेंगे. 2023 का ये पहला विधानसभा चुनाव होगा. जिसमें युवा मोर्चा के जमाने के चार दिग्गज दोस्त एक साथ विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाएंगे. केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, शिवराज सिंह चौहान, प्रहलाद पटेल और कैलाश विजयवर्गीय इन चारों ने बीजेपी में राजनीति की शुरुआत युवा मोर्चे से एक साथ ही की थी. जिसमें नरेन्द्र सिंह तोमर और शिवराज सिंह चौहान ने तो सियासी संघर्ष के सुख-दुख भी साथ साझा किए हैं. खास बात ये भी है कि एक साथ बीजेपी का भविष्य बने इन नेताओं का राजनीतिक भविष्य भी ये चुनाव तय करेगा.
साथ-साथ सियासी सीढ़ी चढ़े दोस्तों का भविष्य दांव पर: 2023 का विधानसभा चुनाव कई मायनों में एतिहासिक होने वाला है. पहला इतिहास तो यही है कि बीजेपी ने 80-90 के दशक के चार नेता जिन्होंने बीजेपी के युवा मोर्चा से अपनी राजनीति की शुरुआत की. उन्हें एक साथ विधानसभा चुनाव में उतार दिया है. नरेन्द्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, शिवराज सिंह चौहान और प्रहलाद पटेल इनकी बीजेपी में एंट्री युवा मोर्चा के जरिए हुई. पार्टी मे पहला पद युवा मोर्चे में ही मिला. इनमें से नरेंद्र सिंह तोमर और शिवराज सिंह चौहान जो कि राजनीति से इतर भी करीबी मित्र हैं. युवा मोर्चे के अध्यक्ष के पद तक भी पहुंचे. सियासत में ये चारों नेता समकालीन हैं. एक साथ ही इन नेताओं ने राजनीति की सीढ़ियां चढ़ी और इत्तेफाक देखिए कि पार्टी में राष्ट्रीय स्तर के नेता बन जाने के बाद चुनाव लड़ाने की हैसियत में आ जाने के बाद अब ये चारों नेता खुद विधायक के पद के लिए चुनाव लड़ेंगे.
राजनीति में साथ-साथ बढ़े, अब क्या एक दूसरे के लिए चुनौती: इन चारों दिग्गज नेताओं ने एमपी की जमीन से उठकर राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी-अपनी लकीर खींची है. नरेन्द्र सिंह तोमर केन्द्रीय कृषि मंत्री के साथ मोदी सरकार के लिए संकट बने किसान आदोलन पर विराम लगाने के रणनीतिकार माने गए. कैलाश विजयवर्गीय को पार्टी ने पश्चिम बंगाल की जवाबदारी देकर भेजा था. प्रहलाद पटेल भी केन्द्रीय मंत्री होने के साथ पार्टी के उन दिग्गज नेताओं में शुमार हैं. जिन्हें पार्टी समय-समय पर चुनाव के समय दूसरे राज्यों में इस्तेमाल करती रही है. वहीं शिवराज सिंह चौहान पार्टी के अकेले ऐसे मुख्यमंत्री हैं. जिन्होंने लगातार जीत का ना सिर्फ रिकार्ड बनाया, बल्कि उनके राज्य में बनाई उनकी योजनाएं दूसरे राज्यों में भी लागू की गई. इसमे दो राय नहीं कि समकालीन रहे इन नेताओं ने बीजेपी में लंबी लकीर खींची है. लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि केन्द्रीय राजनीति में कदम बढ़ा लेने के बावजूद इनकी निगाह एमपी पर ही लगी रही.
क्या कहते हैं वरिष्ठ पत्रकार: वरिष्ठ पत्रकार पवन देवलिया बताते हैं "यूं देखिए तो इन्होंने चुनावी राजनीति में भी कदम आगे पीछे ही बढ़ाए हैं. सबसे पहले 1989 में प्रहलाद पटेल सांसद बने. 1990 में शिवराज सिंह चौहान और कैलाश विजयवर्गीय ने विधानसभा का चुनाव जीता और पहली बार विधायक बने. जबकि नरेन्द्र सिंह तोमर ने 1993 में चुनाव जीता और विधायक बने. शिवराज सिंह चौहान और नरेन्द्र सिंह तोमर दोनों युवा मोर्चे में प्रदेशाध्यक्ष रह चुके हैं. शिवराज सिंह चौहान और कैलाश विजयवर्गीय ने 2008 का चुनाव एक साथ लड़ा था. फिर 2013 का चुनाव भी साथ लड़ा. तोमर ने 1993, 1998 और 2003 में लगातार विधानसभा का चुनाव लड़ा. लेकिन 2009 में वे सांसद बन गए."
क्या दोस्त बनेंगे सियासत में स्पीड ब्रेकर: वरिष्ठ पत्रकार पवन देवलिया कहते हैं "राजनीति इसी का नाम है. बीजेपी में युवा मोर्चा यानि यूथ विंग के जमाने से साथ-साथ बढ़े ये नेता आज चुनावी मैदान में एक साथ नहीं हैं. प्रहलाद पटेल का नाम भी सीएम इन वेटिंग के तौर पर सियासी गलियारे में तैरता रहा है. जाहिर है कि बीजेपी अगर बहुमत में आती है, ये चुनाव जीतते हैं, तो ये इस दौड़ में ये दोस्त एक दूसरे के लिए स्पीड ब्रेकर बनेंगे.