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MP Assembly Election 2023: अलग है एमपी की इस सीट का इतिहास, 43 सालों में महज 1 बार रिपीट हुआ विधायक

मध्यप्रदेश में कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. वैसे तो कांग्रेस-बीजेपी दोनों ही पार्टियां हर विधानसभा क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं और जीत पक्की करने कोई कसर नहीं छोड़ रहे. ऐसे में एमपी की एक विधानसभा सीट ऐसी भी है, जिसका अपना अलग इतिहास है. इस सीट पर महज 43 सालों में एक बार ही विधायक रिपीट हुआ है.

MP Assembly Election 2023
सीट का सत्य
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Published : Jul 26, 2023, 9:42 PM IST

Updated : Jul 26, 2023, 10:08 PM IST

सज्जन सिंह वर्मा का दावा

भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी और कांग्रेस एक-एक सीट का आंकलन करने और इनको लेकर रणनीति बनाने में जुटी है. इन सीटों में एक विधानसभा सीट ऐसी भी है, जिसमें पिछले 43 सालों में सिर्फ एक बार ही विधायक रिपीट हो सका है. बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले मालवा क्षेत्र की यह विधानसभा सीट खाचरौद-नागदा है. जहां हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नागदा को जिला बनाने का ऐलान किया है. हालांकि कांग्रेस इसे सिर्फ चुनावी स्टंट बता रही है. कांग्रेस दावा कर रही है कि इस बार फिर कांग्रेस जीतकर आएगी.

रोचक रहा है खाचरौद-नागदा का चुनावी इतिहास: बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन जिले में सात विधानसभा सीटें आती हैं. इसमें महिदपुर, तराना, घटिया, उज्जैन उत्तर, उज्जैन दक्षिण, बड़नगर और नागदा-खाचरौद शामिल हैं. इसमें से नागदा-खाचरौद में आने वाले नागदा को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने प्रदेश का 54वां जिला बनाने का ऐलान किया है. हालांकि साल चुनावी है, इसलिए सीएम के ऐलान के साथ कांग्रेस एक्टिव हो गई है. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि पहले भी नागदा को जिला बनाने का तीन बार ऐलान हो चुका है, लेकिन इस दिशा में काम आगे बढ़ा था कमलनाथ की सरकार में. दरअसल नागदा-खाचरौद विधानसभा प्रदेश की सबसे चुनौतीपूर्ण सीट मानी जाती है, क्योंकि बीजेपी-कांग्रेस के नेता लाख जतन करें, यहां के मतदाता दूसरी बार विधायक को रिपीट नहीं करते. इसलिए इस सीट पर कोई भी पार्टी अपने दबदबे का दावा नहीं कर पाती.

43 साल में सिर्फ एक बार रिपीट हुआ विधायक: उज्जैन जिले की खाचरौद-नादगा विधानसभा क्षेत्र में पहली बार 1962 में चुनाव हुआ था. पहला चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर भैरव भारतीय ने कांग्रेस के विश्वनाथ को शिकस्त दी थी. उन्होंने अपना चुनाव 10 हजार 782 वोटों से जीता था. इसके बाद से इस सीट पर 13 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिसमें से कांग्रेस 5 बार और बीजेपी 7 बार और एक बार निर्दलीय के खाते में यह सीट जा चुकी है, लेकिन इस सीट की सबसे खास बात यह है कि इस विधानसभा के मतदाता कमोवेश हर चुनाव में अपना जनप्रतिनिधि बदल लेते हैं. पिछले 43 सालों के इतिहास में 9 विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक विधायक ही दूसरी बार रिपीट हो सका है.

  1. जनसंघ से जनता पार्टी की यात्रा तय कर भारतीय जनता पार्टी बनने के बाद 1980 के विधानसभा चुनाव में इस विधानसभा सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार पुरूषोत्तम राव विपट ने 3291 वोटों के मार्जिन से कांग्रेस के अभय सिंह को हराया था, लेकिन वे अपनी जीत का सिलसिला कायम नहीं रख सके. क्षेत्र में जनाधार घटने के बाद पार्टी ने 1985 के विधानसभा चुनाव में उनके स्थान पर लाल सिंह राणावत को चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन वे कांग्रेस के उम्मीदवार रणछोड़लाल अंजना से 3828 वोटों से चुनाव हार गए.
  2. 1990 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से फिर दोनों ही पार्टियों ने अपने उम्मीदवार बदले, लेकिन वे स्थानीय मतदाताओं के मन को न बदल सके. मतदाताओं ने कांग्रेस उम्मीदवार बालेश्वर दयाल जायसवाल के मुकाबले बीजेपी उम्मीदवार लाल सिंह पर ज्यादा भरोसा जताया. बीजेपी 10 हजार 355 वोटों के मार्जिन से जीती.
  3. 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में इस सीट पर फिर मतदाताओं ने इतिहास दोहराया. यहां बीजेपी के लाल सिंह राणावत 5644 वोटों से से कांग्रेस के दिलीप सिंह गुर्जर से हार गए.

जब एक विधायक दूसरी बार जीता: उज्जैन जिले की खाचरौद-नादगा विधानसभा सीट पर पिछला चुनाव कांग्रेस के दिलीप सिंह गुर्जर ने 5117 वोटों से जीता था. उन्होंने बीजेपी के दिलीप सिंह शेखावत को हराया था. कांग्रेस उम्मीदवार दिलीप सिंह गुर्जर ही ऐसे उम्मीदवार रहे, जिन्होंने पिछले 43 सालों में लगातार दूसरी बात मतदाताओं के दिलों को जीतने में सफलता हासिल की. उन्होंने 2003 विधानसभा चुनाव के बाद 2008 के विधानसभा चुनाव में भी जीत दर्ज की थी. हालांकि 2013 के विधानसभा चुनाव में दिलीप सिंह गुर्जर बीजेपी के दिलीप सिंह शेखावत से 16115 वोटों से चुनाव हार गए थे.

सीट पर कब्जे के लिए कोशिश: उधर खाचरौद नागदा विधानसभा सीट पर अपना कब्जा करने के लिए बीजेपी-कांग्रेस अभी से कोशिश में जुट गई है. नागदा को जिला बनाने की मांग को लेकर सीएम शिवराज ने हाल में अपने दौरे के दौरान दोहराया है, हालांकि कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा कहते हैं कि "जिस तरह संत रविदास के मंदिर की शिवराज घोषणा कर चुके हैं, उसी तरह उज्जैन जिले के नागदा को वहीं की सभाओं में सीएम शिवराज घोषणा करके आए हैं. वे एक बार फिर लॉलीपॉप दे रहे हैं कि इससे जनता के वोट लें, लेकिन जिला बन भी जाएगा, तब भी वहां की जनता कांग्रेस के उम्मीदवार को ही जिताएगी."

MP Assembly Election 2023
चुनावी आंकड़ों पर नजर

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MP Assembly Election 2023
चुनावी आंकड़ों पर नजर

1980 से पहले के चुनावी आंकड़ों पर नजर:

1977 विधानसभा चुनाव

जनता पार्टी, पुरूषोत्तम राव विपट- 25666

कांग्रेस, बालेश्वर दयाल जायसवाल - 18431

मार्जिन - 7235

1972 विधानसभा चुनाव

भारतीय जनसंघ, वीरेन्द्र सिंह - 23363

कांग्रेस, राजेन्द्र जैन - 22327

मार्जिन - 1245

1967 विधानसभा चुनाव

भारतीय, जनसंघ, वीरेन्द्र सिंह - 28363

कांग्रेस, कुरैशी - 11903

मार्जिन - 16460

1962 विधानसभा चुनाव

निर्दलीय, भैरव भारतीय - 18091

कांग्रेस,विश्वनाथ- 7309

मार्जिन-10782

सज्जन सिंह वर्मा का दावा

भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी और कांग्रेस एक-एक सीट का आंकलन करने और इनको लेकर रणनीति बनाने में जुटी है. इन सीटों में एक विधानसभा सीट ऐसी भी है, जिसमें पिछले 43 सालों में सिर्फ एक बार ही विधायक रिपीट हो सका है. बीजेपी का गढ़ माने जाने वाले मालवा क्षेत्र की यह विधानसभा सीट खाचरौद-नागदा है. जहां हाल ही में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नागदा को जिला बनाने का ऐलान किया है. हालांकि कांग्रेस इसे सिर्फ चुनावी स्टंट बता रही है. कांग्रेस दावा कर रही है कि इस बार फिर कांग्रेस जीतकर आएगी.

रोचक रहा है खाचरौद-नागदा का चुनावी इतिहास: बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन जिले में सात विधानसभा सीटें आती हैं. इसमें महिदपुर, तराना, घटिया, उज्जैन उत्तर, उज्जैन दक्षिण, बड़नगर और नागदा-खाचरौद शामिल हैं. इसमें से नागदा-खाचरौद में आने वाले नागदा को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने प्रदेश का 54वां जिला बनाने का ऐलान किया है. हालांकि साल चुनावी है, इसलिए सीएम के ऐलान के साथ कांग्रेस एक्टिव हो गई है. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि पहले भी नागदा को जिला बनाने का तीन बार ऐलान हो चुका है, लेकिन इस दिशा में काम आगे बढ़ा था कमलनाथ की सरकार में. दरअसल नागदा-खाचरौद विधानसभा प्रदेश की सबसे चुनौतीपूर्ण सीट मानी जाती है, क्योंकि बीजेपी-कांग्रेस के नेता लाख जतन करें, यहां के मतदाता दूसरी बार विधायक को रिपीट नहीं करते. इसलिए इस सीट पर कोई भी पार्टी अपने दबदबे का दावा नहीं कर पाती.

43 साल में सिर्फ एक बार रिपीट हुआ विधायक: उज्जैन जिले की खाचरौद-नादगा विधानसभा क्षेत्र में पहली बार 1962 में चुनाव हुआ था. पहला चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर भैरव भारतीय ने कांग्रेस के विश्वनाथ को शिकस्त दी थी. उन्होंने अपना चुनाव 10 हजार 782 वोटों से जीता था. इसके बाद से इस सीट पर 13 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिसमें से कांग्रेस 5 बार और बीजेपी 7 बार और एक बार निर्दलीय के खाते में यह सीट जा चुकी है, लेकिन इस सीट की सबसे खास बात यह है कि इस विधानसभा के मतदाता कमोवेश हर चुनाव में अपना जनप्रतिनिधि बदल लेते हैं. पिछले 43 सालों के इतिहास में 9 विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक विधायक ही दूसरी बार रिपीट हो सका है.

  1. जनसंघ से जनता पार्टी की यात्रा तय कर भारतीय जनता पार्टी बनने के बाद 1980 के विधानसभा चुनाव में इस विधानसभा सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार पुरूषोत्तम राव विपट ने 3291 वोटों के मार्जिन से कांग्रेस के अभय सिंह को हराया था, लेकिन वे अपनी जीत का सिलसिला कायम नहीं रख सके. क्षेत्र में जनाधार घटने के बाद पार्टी ने 1985 के विधानसभा चुनाव में उनके स्थान पर लाल सिंह राणावत को चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन वे कांग्रेस के उम्मीदवार रणछोड़लाल अंजना से 3828 वोटों से चुनाव हार गए.
  2. 1990 के विधानसभा चुनाव में इस सीट से फिर दोनों ही पार्टियों ने अपने उम्मीदवार बदले, लेकिन वे स्थानीय मतदाताओं के मन को न बदल सके. मतदाताओं ने कांग्रेस उम्मीदवार बालेश्वर दयाल जायसवाल के मुकाबले बीजेपी उम्मीदवार लाल सिंह पर ज्यादा भरोसा जताया. बीजेपी 10 हजार 355 वोटों के मार्जिन से जीती.
  3. 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में इस सीट पर फिर मतदाताओं ने इतिहास दोहराया. यहां बीजेपी के लाल सिंह राणावत 5644 वोटों से से कांग्रेस के दिलीप सिंह गुर्जर से हार गए.

जब एक विधायक दूसरी बार जीता: उज्जैन जिले की खाचरौद-नादगा विधानसभा सीट पर पिछला चुनाव कांग्रेस के दिलीप सिंह गुर्जर ने 5117 वोटों से जीता था. उन्होंने बीजेपी के दिलीप सिंह शेखावत को हराया था. कांग्रेस उम्मीदवार दिलीप सिंह गुर्जर ही ऐसे उम्मीदवार रहे, जिन्होंने पिछले 43 सालों में लगातार दूसरी बात मतदाताओं के दिलों को जीतने में सफलता हासिल की. उन्होंने 2003 विधानसभा चुनाव के बाद 2008 के विधानसभा चुनाव में भी जीत दर्ज की थी. हालांकि 2013 के विधानसभा चुनाव में दिलीप सिंह गुर्जर बीजेपी के दिलीप सिंह शेखावत से 16115 वोटों से चुनाव हार गए थे.

सीट पर कब्जे के लिए कोशिश: उधर खाचरौद नागदा विधानसभा सीट पर अपना कब्जा करने के लिए बीजेपी-कांग्रेस अभी से कोशिश में जुट गई है. नागदा को जिला बनाने की मांग को लेकर सीएम शिवराज ने हाल में अपने दौरे के दौरान दोहराया है, हालांकि कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा कहते हैं कि "जिस तरह संत रविदास के मंदिर की शिवराज घोषणा कर चुके हैं, उसी तरह उज्जैन जिले के नागदा को वहीं की सभाओं में सीएम शिवराज घोषणा करके आए हैं. वे एक बार फिर लॉलीपॉप दे रहे हैं कि इससे जनता के वोट लें, लेकिन जिला बन भी जाएगा, तब भी वहां की जनता कांग्रेस के उम्मीदवार को ही जिताएगी."

MP Assembly Election 2023
चुनावी आंकड़ों पर नजर

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MP Assembly Election 2023
चुनावी आंकड़ों पर नजर

1980 से पहले के चुनावी आंकड़ों पर नजर:

1977 विधानसभा चुनाव

जनता पार्टी, पुरूषोत्तम राव विपट- 25666

कांग्रेस, बालेश्वर दयाल जायसवाल - 18431

मार्जिन - 7235

1972 विधानसभा चुनाव

भारतीय जनसंघ, वीरेन्द्र सिंह - 23363

कांग्रेस, राजेन्द्र जैन - 22327

मार्जिन - 1245

1967 विधानसभा चुनाव

भारतीय, जनसंघ, वीरेन्द्र सिंह - 28363

कांग्रेस, कुरैशी - 11903

मार्जिन - 16460

1962 विधानसभा चुनाव

निर्दलीय, भैरव भारतीय - 18091

कांग्रेस,विश्वनाथ- 7309

मार्जिन-10782

Last Updated : Jul 26, 2023, 10:08 PM IST
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