इंदौर : मालवा रियासत की महारानी लोकमाता अहिल्या बाई होलकर (Ahilya bai Holkar) को अंचल के विकास और संपन्नता का प्रतीक माना जाता है. अब उन्हीं के नाम से विकसित की गई गेहूं की एक वैरायटी इंदौर समेत प्रदेशभर के लोगों का पोषण भी करेगी. हाल ही में इंदौर स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Agricultural Research Center Indore) में गेहूं (Wheat) की ऐसी किस्म विकसित की गई है जिसमें अब तक विकसित की गई गेहूं की तमाम किस्मों से ज्यादा पोषक तत्व मौजूद हैं. अब गेहूं के इस किस्म को प्रदेशभर में बुवाई के लिए प्रमोट किया जा रहा है.
देश में खाद्यान्न उत्पादन में लगातार वृद्धि के लिए जारी प्रयासों के मद्देनजर इंदौर स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Agricultural Research Center Indore) ने हाल ही में पूसा अहिल्या (hi1634) और पूसा वाणी (hi 1633) नामक गेहूं की ऐसी दो किस्में तैयार की हैं, जिनकी पोषण वैल्यू अब तक बाजार में उपलब्ध गेहूं की तमाम किस्मों से ज्यादा है.
यही वजह है कि हाल ही में केंद्र के कृषि मंत्रालय (Ministry of Agriculture) द्वारा गेहूं की इन किस्मों को बायोफोर्टीफाइड वैरायटी (Biofortified Variety) के नाम से देशभर में प्रमोट किया जा रहा है. हाल ही में गेहूं की जो 17 वैरायटी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लांच की गई हैं उनमें मध्यप्रदेश की यह दोनों वैरायटी भी शामिल है जिसे अब प्रदेश के किसानों को बोवनी के लिए दिया जा रहा है.
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यह है पोषण की दर
पूसा अहिल्या (Pusa Ahilya) और पूसा वाणी (Pusa Vani) वैरायटी की खासियत यह है कि इस गेहूं की फसल प्रति हेक्टेयर में 65 से 70 क्विंटल का उत्पादन देती है. इसके अलावा इस गेहूं को सीजन के बाद भी आसानी से बोया जा सकता है. औसत पानी की आवश्यकता वाली गेहूं की इस किस्म को फिलहाल पोषण के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है. इंदौर के कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक पूसा अहिल्या वैरायटी में प्रोटीन 12% (12% Protein) से ज्यादा है जबकि आयरन और जिंक की मात्रा 40 पीपीएम से भी ज्यादा है. लिहाजा इसी गेहूं से अब बच्चों के लिए पोषाण आहार भी तैयार किए जाने की प्लानिंग है.
लगातार बढ़ रहा है उत्पादन
फिलहाल मध्यप्रदेश में 1,29,28,000 मीट्रिक टन तक गेहूं का उत्पादन हो रहा है इसकी वजह इंदौर के कृषि अनुसंधान केंद्र में विकसित गेहूं की नई वैरायटी हैं, जिनमें पूसा मंगल, पूसा अनमोल और पूसा तेजस हैं जिनसे प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में करीब 70 क्विंटल गेहूं की उपज हो रही है, जबकि 2011-12 में गेहूं की पुरानी वैरायटियों की बोवनी के कारण प्रदेश में उत्पादन की दर करीब 12 मिलियन टन थी, जो 2021-22 में 18 से 19 मिलियन टन हो चुकी है.
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इंदौर कृषि अनुसंधान केन्द्र ने विकसित की गई कई किस्में
इंदौर स्थित केंद्र से फिलहाल जिस गेहूं की वैरायटी को प्रमोट किया जा रहा है उसमें पूर्णा वैरायटी शामिल है, जिससे 65 से 70 क्विंटल गेहूं का उत्पादन होता है. इसके अलावा पूसा ज्वाला कम पानी वाला गेहूं है हालांकि इसकी उपज प्रति हेक्टेयर 35 से 50 क्विंटल ही है, लिहाजा अंचल के किसान अब पुराने दौर के ड्यू राम और कटिया मालवीय गेहूं के स्थान पर नई गेहूं की किस्मों को प्राथमिकता दे रहे हैं.
दोनों किस्मों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी ज्यादा
पूसा अहिल्या और पूसा वाणी गेहूं की वैरायटी में भूरा रतुआ रोग नहीं लगता, इसके अलावा इसमें करनाल बंट रोग को लेकर भी प्रतिरोधक क्षमता है. इन वैरायटी का दाना बड़ा होकर कठोर चमकदार एवं प्रोटीन युक्त है, जिसकी चपाती गुणवत्ता पूर्ण होती है, पूसा वाणी वैरायटी भी काले और भूरे रतुआ रोग से पूरी तरह प्रतिरोधी है. इन फसलों में कीट का प्रकोप भी नहीं है.