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पति-पत्नी के झाड़ू के कारोबार से आत्मनिर्भर बन रहीं महिलाएं, थोड़ी पूंजी से की शुरुआत, अब दे रहे रोजगार - मेरठ दंपत्ति का झाड़ू कारोबार

मेरठ में पति-पत्नी के झाड़ू के कारोबार (Meerut Broom Business Employment) से महिलाएं रोजगार पा रहीं हैं. थोड़ी पूंजी से इस कारोबार की शुरुआत हुई थी. अब इससे कई महिलाएं जुड़ चुकी हैं.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 15, 2023, 9:14 PM IST

बेरोजगार महिलाओं को गांव में ही रोजगार मिल रहा है.

मेरठ : जिले के कीनानगर गांव के रहने वाले दंपत्ति का झाड़ू का कारोबार कई महिलाओं को संबल बना रहा है. गांव की महिलाएं भी इससे जुड़कर तरक्की की राह पर निकल पड़ी हैं. इस कारोबार की शुरुआत बेहद कम पूंजी में की गई थी. अब यह काम चल निकला है. कारोबारी दंपत्ति खुद तो कमाई कर ही रहे हैं, गांव के बेरोजगार लोगों को भी इससे जोड़ रहे हैं. दंपत्ति का यह स्टार्टअप इलाके में चर्चा का विषय बना हुआ है.

झाड़ू बनाकर महिलाएं घर खर्च में सहयोग कर रहीं हैं.
झाड़ू बनाकर महिलाएं घर खर्च में सहयोग कर रहीं हैं.

प्रशिक्षण लेकर शुरू किया काम : कीनानगर गांव के अजीत और उनकी पत्नी शिल्पा ने झाड़ू बनाने का काम शुरू किया है. झाडू निर्माता और समूह संचालिका शिल्पा ने बताया कि केनरा आरसेटी की ओर से प्रशिक्षण संस्थान (Rural Self Employment Training Institute ) से ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने झाडू बनाने काम शुरू किया. घर के एक कमरे में बैठकर करीब दस हजार रुपये की पूंजी लगाकर यह काम शुरू किया. पहले खुद झाड़ू बनाकर उसे बेचने लगे. वक्त के साथ-साथ खपत बढ़ती गई तो गांव की महिलाओं को भी इससे जोड़ना शुरू किया. गांव की आठ से 10 महिलाएं भी झाड़ू बनाने के काम में लगी हैं. इसके जरिए वे भी आत्मनिर्भर बन रहीं हैं.

गांव की कई महिलाएं इस काम से जुड़ी हुईं हैं.
गांव की कई महिलाएं इस काम से जुड़ी हुईं हैं.

खपत बढ़ने पर महिलाओं को भी जोड़ा : अजित ने बताया कि उनकी पत्नी शिल्पा पढ़ी लिखी हैं. वह कुछ करना चाहती थीं. मैं खुद प्राइवेट नौकरी कर रहा था. इसी से घर का खर्च चलता था. प्रशिक्षण के बाद इरादा बना लिया कि अब झाड़ू बनाने का काम ही करना है. गांव की महिलाओं को रोजगार भी देना है. पहले हम लोग खुद झाड़ू बनाते, और इसे बेचते भी थे. बाद में खपत बढ़ने पर गांव की महिलाओं को भी इससे जोड़ दिया गया. महिलाओं को प्रति झाड़ू दो रुपये भुगतान किया जाता है. बाजार में इन्हें बेचा जाता है. झाडू तैयार करने के लिए कच्चा माल दिल्ली और पश्चिम बंगाल से आता है.

महिलाओं को प्रति  झाड़ू दो रुपये की होती है आमदनी.
महिलाओं को प्रति झाड़ू दो रुपये की होती है आमदनी.

6 तरह की झाडू तैयार कर रहीं महिलाएं : शिल्पा ने बताया कि गांव की महिलाओं को झाड़ू से रोजगार मिला है. महिलाएं खुद कमाकर घर के खर्च में सहयोग कर रहीं हैं. झाड़ू बनाने वाली पिंकी कहती हैं कि वे हर दिन लगभग दो सौ झाडू बना लेती हैं. इससे उनका समय भी कट जाता है और इनसे मिले रुपये से वह अपनी जरूरतें पूरी करती हैं. अर्चना कहती हैं कि उन्हें गांव में ही काम मिल गया है. पति की कमाई कम थी लेकिन अब घर का गुजारा अच्छे से हो रहा है. गुड्डी कहती हैं कि परिजन भी काम करने से मना नहीं करते. आरसेटी के समन्वयक रमेश जोशी ने बताया कि महिलाएं 6 तरह की झाडू तैयार कर रहीं हैं.

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बेरोजगार महिलाओं को गांव में ही रोजगार मिल रहा है.

मेरठ : जिले के कीनानगर गांव के रहने वाले दंपत्ति का झाड़ू का कारोबार कई महिलाओं को संबल बना रहा है. गांव की महिलाएं भी इससे जुड़कर तरक्की की राह पर निकल पड़ी हैं. इस कारोबार की शुरुआत बेहद कम पूंजी में की गई थी. अब यह काम चल निकला है. कारोबारी दंपत्ति खुद तो कमाई कर ही रहे हैं, गांव के बेरोजगार लोगों को भी इससे जोड़ रहे हैं. दंपत्ति का यह स्टार्टअप इलाके में चर्चा का विषय बना हुआ है.

झाड़ू बनाकर महिलाएं घर खर्च में सहयोग कर रहीं हैं.
झाड़ू बनाकर महिलाएं घर खर्च में सहयोग कर रहीं हैं.

प्रशिक्षण लेकर शुरू किया काम : कीनानगर गांव के अजीत और उनकी पत्नी शिल्पा ने झाड़ू बनाने का काम शुरू किया है. झाडू निर्माता और समूह संचालिका शिल्पा ने बताया कि केनरा आरसेटी की ओर से प्रशिक्षण संस्थान (Rural Self Employment Training Institute ) से ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने झाडू बनाने काम शुरू किया. घर के एक कमरे में बैठकर करीब दस हजार रुपये की पूंजी लगाकर यह काम शुरू किया. पहले खुद झाड़ू बनाकर उसे बेचने लगे. वक्त के साथ-साथ खपत बढ़ती गई तो गांव की महिलाओं को भी इससे जोड़ना शुरू किया. गांव की आठ से 10 महिलाएं भी झाड़ू बनाने के काम में लगी हैं. इसके जरिए वे भी आत्मनिर्भर बन रहीं हैं.

गांव की कई महिलाएं इस काम से जुड़ी हुईं हैं.
गांव की कई महिलाएं इस काम से जुड़ी हुईं हैं.

खपत बढ़ने पर महिलाओं को भी जोड़ा : अजित ने बताया कि उनकी पत्नी शिल्पा पढ़ी लिखी हैं. वह कुछ करना चाहती थीं. मैं खुद प्राइवेट नौकरी कर रहा था. इसी से घर का खर्च चलता था. प्रशिक्षण के बाद इरादा बना लिया कि अब झाड़ू बनाने का काम ही करना है. गांव की महिलाओं को रोजगार भी देना है. पहले हम लोग खुद झाड़ू बनाते, और इसे बेचते भी थे. बाद में खपत बढ़ने पर गांव की महिलाओं को भी इससे जोड़ दिया गया. महिलाओं को प्रति झाड़ू दो रुपये भुगतान किया जाता है. बाजार में इन्हें बेचा जाता है. झाडू तैयार करने के लिए कच्चा माल दिल्ली और पश्चिम बंगाल से आता है.

महिलाओं को प्रति  झाड़ू दो रुपये की होती है आमदनी.
महिलाओं को प्रति झाड़ू दो रुपये की होती है आमदनी.

6 तरह की झाडू तैयार कर रहीं महिलाएं : शिल्पा ने बताया कि गांव की महिलाओं को झाड़ू से रोजगार मिला है. महिलाएं खुद कमाकर घर के खर्च में सहयोग कर रहीं हैं. झाड़ू बनाने वाली पिंकी कहती हैं कि वे हर दिन लगभग दो सौ झाडू बना लेती हैं. इससे उनका समय भी कट जाता है और इनसे मिले रुपये से वह अपनी जरूरतें पूरी करती हैं. अर्चना कहती हैं कि उन्हें गांव में ही काम मिल गया है. पति की कमाई कम थी लेकिन अब घर का गुजारा अच्छे से हो रहा है. गुड्डी कहती हैं कि परिजन भी काम करने से मना नहीं करते. आरसेटी के समन्वयक रमेश जोशी ने बताया कि महिलाएं 6 तरह की झाडू तैयार कर रहीं हैं.

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