नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को व्यवस्था दी कि वह जीवनसाथियों के बीच आई दरार भर नहीं पाने के आधार पर किसी शादी को खत्म कर सकता है. न्यायमूर्ति एस के कौल की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत पूरा न्याय करने का अधिकार है. संविधान का अनुच्छेद 142 शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित किसी मामले में 'संपूर्ण न्याय' करने के लिए उसके आदेशों के क्रियान्वयन से संबंधित है. पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति ए एस ओका, न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी भी शामिल हैं.
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पीठ ने कहा कि हमने व्यवस्था दी है कि इस अदालत के लिए किसी शादीशुदा रिश्ते में आई दरार के भर नहीं पाने के आधार पर उसे खत्म करना संभव है. न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उसके अधिकारों के प्रयोग से संबंधित कई याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया. इससे पहले न्यायमूर्ति एसके कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति एएस ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 29 सितंबर 2022 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
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न्यायालय ने अपना आदेश सुरक्षित रखते हुए कहा था कि सामाजिक बदलाव होने में 'थोड़ा वक्त' लगता है और कभी-कभी कानून लाना आसान होता है, लेकिन इसके साथ बदलने के लिए समाज को मनाना मुश्किल होता है. शीर्ष न्यायालय ने भारत में विवाह में परिवार के बड़ी भूमिका निभाने की बात स्वीकार की थी. संविधान का अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित किसी विषय में पूर्ण न्याय करने के लिए शीर्ष न्यायालय के आदेशों को लागू किये जाने से संबद्ध है.
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शीर्ष न्यायालय इस विषय पर भी विचार कर रहा है कि अनुच्छेद 142 के तहत प्रदत्त उसकी असीम शक्तियां क्या किसी भी तरह से एक ऐसी परिस्थिति में बाधित होती हैं, जब अदालत के अनुसार विवाह विच्छेद तो हो जाता है लेकिन एक पक्ष तलाक का प्रतिरोध करता है. यहां दो सवाल उठते हैं जो पूर्व में संविधान पीठ के पास भेजे गये थे, इसमें यह शामिल है कि क्या अनुच्छेद 142 के तहत उच्चतम न्यायालय द्वारा इस तरह के अधिकार क्षेत्र का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए, या इस तरह के कार्य को प्रत्येक मामले में तथ्यों के आधार पर निर्धारित करने के लिए छोड़ देना चाहिए.
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(पीटीआई-भाषा)