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Patna Opposition Meeting : विपक्षी एकता में कई पेंच, हर किसी की अपनी राह, ऐसे में मोदी से कैसे करेंगे मुकाबला?

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Published : Jun 22, 2023, 9:17 PM IST

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट करने के प्रयास में लगे हुए हैं, लेकिन विपक्षी एकता में कई पेंच हैं. एक तरफ जो पार्टियां राज्यों में अपना वर्चस्व बनाने के लिए सिर फुटौव्वल कर रही हैं, क्या वे लोकसभा के लिए एक साथ एक मंच पर सहमत हो पाएंगी? पढ़ें इनसाइड स्टोरी

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देखें रिपोर्ट.

पटना: 23 जून की बैठक में मोदी बनाम ऑल की तस्वीर दिखेगी, लेकिन कई ऐसे सवाल हैं जिनका सामना विपक्षी एकता की मुहिम को करना होगा. विपक्षी एकता का चेहरा कौन?, क्या कोई साझा न्यूनतम कार्यक्रम होगा? क्या TMC, कांग्रेस, AAP और SP जैसे दल एक दूसरे से सामंजस्य बिठा सकेंगे? वहीं सीट शेयरिंग सबसे बड़ी चुनौती के बन सकती है. उससे भी बड़ी बात क्या कांग्रेस दूसरों को जगह देगी?

पढ़ें- Patna Opposition Meeting: ममता बनर्जी ने पैर छूकर लिया लालू का आशीर्वाद, बोलीं- BJP को हराने के लिए वो काफी तगड़े हैं

विपक्षी एकता का चेहरा कौन?: साल 2014 से ही देश में लोकसभा चुनाव मोदी के चेहरे के नाम पर जीता जाता रहा. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 282 सीटें और साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 303 सीटें जीतीं थी. 2019 में तो अकेले हिंदी पट्टी में मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने 50 फीसदी के करीब वोट शेयर के साथ 141 सीटें जीतीं थीं.

कांग्रेस पार्टी का भी अपना अलग एजेंडा है. कांग्रेस पार्टी जहां राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाना चाहती है तो वहीं दूसरी तरफ बंगाल के पंचायत चुनाव में हिंसा रोकने के एजेंडे पर बहस चाहती है. वहीं जदयू भी अपने एजेंडे पर काम कर रही है. नीतीश कुमार चाहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को हराने के लिए संपूर्ण विपक्ष को भाजपा के खिलाफ एक उम्मीदवार देना चाहिए.

ईटीवी भारत GFX.
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क्या कोई साझा न्यूनतम कार्यक्रम होगा? : राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने विपक्षी दलों की बैठक से पहले ही कहा था कि वे नरेंद्र मोदी सरकार का विकल्प प्रदान करने के लिए सभी विपक्षी दलों को न्यूनतम साझा कार्यक्रम के आधार पर एकता बनाने को राजी करेंगे. लेकिन अब इसपर भी सहमति बनती नहीं दिख रही है. बिहार सरकार के मंत्री विजय कुमार चौधरी ने साफ कर दिया है की ऐसा कोई कार्यक्रम करने का फिलहाल कोई फैसला नहीं लिया गया है.

अंतर्विरोध दूर करना आसान नहीं : विपक्षी दलों के बीच का अंतर्विरोध दूर करना आसान नहीं है. केंद्र द्वारा पारित अध्यादेश दिल्ली सरकार की अधिकांश शक्तियों को समाप्त कर रहा है. इस मसले पर आप पार्टी विपक्ष का साथ चाहती है. वहीं कांग्रेस इस मसले पर खुलकर कुछ भी कहने से बच रहा है. वहीं समाजवादी पार्टी, ममता की टीएमसी के बीच भी तालमेल बैठाना टेढ़ी खीर साबित होगी.

क्या सहयोगी दल एक दूसरे से सामंजस्य बिठा सकेंगे: विपक्षी एकता को लेकर दलों की बैठक अभी तो पहला कदम मात्र है. TMC, कांग्रेस, AAP और SP जैसे दल एक दूसरे से सामंजस्य बिठा सकेंगे, इसकी उम्मीद कम ही है. इन सभी पार्टियों का इतिहास या तो एक दूसरे के खिलाफ लड़ने का रहा है या गठबंधन का बुरा अनुभव झेल चुके हैं. उदाहरण के लिए पिछले साल ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक संयुक्त उम्मीदवार पर आम सहमति के लिए विपक्षी दलों की बैठक बुलाई थी, लेकिन कांग्रेस से समर्थन नहीं मिला. वहीं आप पार्टी काफी हद तक कांग्रेस के वोट अपने खाते में लाकर ही पहचान बना सकी है. इधर अखिलेश यादव की भी कांग्रेस के साथ गठबंधन के अनुभव ठीक नहीं रहे हैं.

क्या सीट शेयरिंग बनेगी सबसे बड़ी चुनौती? : TMC और AAP के साथ कांग्रेस के रिश्तों के इतिहास को देखें तो दिल्ली और पश्चिम बंगाल में विपक्षी एकता किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. साथ ही झारखंड, केरल और यूपी जैसे राज्यों में सीट बंटवारे का मामला फंस सकता है. इसपर भी माथापच्ची काफी होगी. इन राज्यों में कुल 130 सीटें हैं.

नवीन पटनायक और केसीआर ने बनायी दूरी : इसके अलावा ओडिशा और तेलंगाना जैसे राज्यों में तो स्थिति स्पष्ट ही नहीं है. इन दोनों राज्यों के सीएम ने कांग्रेस और नीतीश से दूरी बना ली है. इन राज्यों में बीजेपी भी अपनी पकड़ मजबूत होने नहीं देगी.

वहीं लोकसभा सीटों की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश में 80 सीटें, महाराष्ट्र में 48 सीट, बंगाल में 42, बिहार में 40, तमिलनाडु में 39, पंजाब में 13, केरल में 20, हरियाणा में 10, झारखंड में 14, दिल्ली में 7, जम्मू कश्मीर में 5 सीटें हैं. वहीं इन राज्यों में बीजेपी प्लस के पास कुल 162 सीटें हैं. यहां यह बताना भी जरूरी है कि 2019 लोकसभा चुनाव में बिहार में जेडीयू, पंजाब में अकाली दल और महाराष्ट्र में शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था.

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क्या कांग्रेस दूसरों को जगह देगी? : अब सवाल ये भी है कि क्या कांग्रेस दूसरी पार्टियों को जगह देगी? कांग्रेस और बीजेपी दो पार्टियां बड़ी पार्टी के रूप में मानी जाती है. कांग्रेस अपने सामने बीजेपी को ही मानती है. कर्नाटक में मिली जीत के बाद कांग्रेस की यह धारणा और प्रबल हो चुकी है. वहीं दूसरी पार्टियों को एक साथ लाने में नीतीश एड़ी चोटी का जोर लगा रहे है.

राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने कहा है कि 'अरविंद केजरीवाल ने संविधान का मसला उठाया है. इस पर विचार करने की जरूरत है. जहां तक प्रधानमंत्री पद का सवाल है तो क्या एच डी देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल और चौधरी चरण सिंह का नाम पहले आया था. चुनाव के बाद हम लोग प्रधानमंत्री का चेहरा तय कर लेंगे.'

"महागठबंधन में कोई विवाद नहीं है. जब नेता एक मंच पर बैठेंगे तब तमाम मुद्दों पर चर्चा होगी और एजेंडा भी तय कर लिया जाएगा."- राजेश राठौर,मुख्य प्रवक्ता, कांग्रेस पार्टी

"विपक्षी खेमे के ज्यादातर नेता अपने अपने एजेंडे पर काम कर रहे हैं. राष्ट्रीय जनता दल नेता बताते हैं कि नीतीश कुमार राष्ट्रीय फलक पर जाएं और राज्य की जिम्मेदारी उन्हें दी जाए तो नीतीश कुमार अपने लिए राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका चाहते हैं. महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि बैठक के दौरान किन एजेंडे पर सहमति बनेगी. क्या कोई सर्व सम्मत राय निकलकर सामने आएगी?"- डॉ संजय कुमार,राजनीतिक विश्लेषक

देखें रिपोर्ट.

पटना: 23 जून की बैठक में मोदी बनाम ऑल की तस्वीर दिखेगी, लेकिन कई ऐसे सवाल हैं जिनका सामना विपक्षी एकता की मुहिम को करना होगा. विपक्षी एकता का चेहरा कौन?, क्या कोई साझा न्यूनतम कार्यक्रम होगा? क्या TMC, कांग्रेस, AAP और SP जैसे दल एक दूसरे से सामंजस्य बिठा सकेंगे? वहीं सीट शेयरिंग सबसे बड़ी चुनौती के बन सकती है. उससे भी बड़ी बात क्या कांग्रेस दूसरों को जगह देगी?

पढ़ें- Patna Opposition Meeting: ममता बनर्जी ने पैर छूकर लिया लालू का आशीर्वाद, बोलीं- BJP को हराने के लिए वो काफी तगड़े हैं

विपक्षी एकता का चेहरा कौन?: साल 2014 से ही देश में लोकसभा चुनाव मोदी के चेहरे के नाम पर जीता जाता रहा. 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 282 सीटें और साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 303 सीटें जीतीं थी. 2019 में तो अकेले हिंदी पट्टी में मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने 50 फीसदी के करीब वोट शेयर के साथ 141 सीटें जीतीं थीं.

कांग्रेस पार्टी का भी अपना अलग एजेंडा है. कांग्रेस पार्टी जहां राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाना चाहती है तो वहीं दूसरी तरफ बंगाल के पंचायत चुनाव में हिंसा रोकने के एजेंडे पर बहस चाहती है. वहीं जदयू भी अपने एजेंडे पर काम कर रही है. नीतीश कुमार चाहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को हराने के लिए संपूर्ण विपक्ष को भाजपा के खिलाफ एक उम्मीदवार देना चाहिए.

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क्या कोई साझा न्यूनतम कार्यक्रम होगा? : राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने विपक्षी दलों की बैठक से पहले ही कहा था कि वे नरेंद्र मोदी सरकार का विकल्प प्रदान करने के लिए सभी विपक्षी दलों को न्यूनतम साझा कार्यक्रम के आधार पर एकता बनाने को राजी करेंगे. लेकिन अब इसपर भी सहमति बनती नहीं दिख रही है. बिहार सरकार के मंत्री विजय कुमार चौधरी ने साफ कर दिया है की ऐसा कोई कार्यक्रम करने का फिलहाल कोई फैसला नहीं लिया गया है.

अंतर्विरोध दूर करना आसान नहीं : विपक्षी दलों के बीच का अंतर्विरोध दूर करना आसान नहीं है. केंद्र द्वारा पारित अध्यादेश दिल्ली सरकार की अधिकांश शक्तियों को समाप्त कर रहा है. इस मसले पर आप पार्टी विपक्ष का साथ चाहती है. वहीं कांग्रेस इस मसले पर खुलकर कुछ भी कहने से बच रहा है. वहीं समाजवादी पार्टी, ममता की टीएमसी के बीच भी तालमेल बैठाना टेढ़ी खीर साबित होगी.

क्या सहयोगी दल एक दूसरे से सामंजस्य बिठा सकेंगे: विपक्षी एकता को लेकर दलों की बैठक अभी तो पहला कदम मात्र है. TMC, कांग्रेस, AAP और SP जैसे दल एक दूसरे से सामंजस्य बिठा सकेंगे, इसकी उम्मीद कम ही है. इन सभी पार्टियों का इतिहास या तो एक दूसरे के खिलाफ लड़ने का रहा है या गठबंधन का बुरा अनुभव झेल चुके हैं. उदाहरण के लिए पिछले साल ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक संयुक्त उम्मीदवार पर आम सहमति के लिए विपक्षी दलों की बैठक बुलाई थी, लेकिन कांग्रेस से समर्थन नहीं मिला. वहीं आप पार्टी काफी हद तक कांग्रेस के वोट अपने खाते में लाकर ही पहचान बना सकी है. इधर अखिलेश यादव की भी कांग्रेस के साथ गठबंधन के अनुभव ठीक नहीं रहे हैं.

क्या सीट शेयरिंग बनेगी सबसे बड़ी चुनौती? : TMC और AAP के साथ कांग्रेस के रिश्तों के इतिहास को देखें तो दिल्ली और पश्चिम बंगाल में विपक्षी एकता किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. साथ ही झारखंड, केरल और यूपी जैसे राज्यों में सीट बंटवारे का मामला फंस सकता है. इसपर भी माथापच्ची काफी होगी. इन राज्यों में कुल 130 सीटें हैं.

नवीन पटनायक और केसीआर ने बनायी दूरी : इसके अलावा ओडिशा और तेलंगाना जैसे राज्यों में तो स्थिति स्पष्ट ही नहीं है. इन दोनों राज्यों के सीएम ने कांग्रेस और नीतीश से दूरी बना ली है. इन राज्यों में बीजेपी भी अपनी पकड़ मजबूत होने नहीं देगी.

वहीं लोकसभा सीटों की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश में 80 सीटें, महाराष्ट्र में 48 सीट, बंगाल में 42, बिहार में 40, तमिलनाडु में 39, पंजाब में 13, केरल में 20, हरियाणा में 10, झारखंड में 14, दिल्ली में 7, जम्मू कश्मीर में 5 सीटें हैं. वहीं इन राज्यों में बीजेपी प्लस के पास कुल 162 सीटें हैं. यहां यह बताना भी जरूरी है कि 2019 लोकसभा चुनाव में बिहार में जेडीयू, पंजाब में अकाली दल और महाराष्ट्र में शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX.

क्या कांग्रेस दूसरों को जगह देगी? : अब सवाल ये भी है कि क्या कांग्रेस दूसरी पार्टियों को जगह देगी? कांग्रेस और बीजेपी दो पार्टियां बड़ी पार्टी के रूप में मानी जाती है. कांग्रेस अपने सामने बीजेपी को ही मानती है. कर्नाटक में मिली जीत के बाद कांग्रेस की यह धारणा और प्रबल हो चुकी है. वहीं दूसरी पार्टियों को एक साथ लाने में नीतीश एड़ी चोटी का जोर लगा रहे है.

राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने कहा है कि 'अरविंद केजरीवाल ने संविधान का मसला उठाया है. इस पर विचार करने की जरूरत है. जहां तक प्रधानमंत्री पद का सवाल है तो क्या एच डी देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल और चौधरी चरण सिंह का नाम पहले आया था. चुनाव के बाद हम लोग प्रधानमंत्री का चेहरा तय कर लेंगे.'

"महागठबंधन में कोई विवाद नहीं है. जब नेता एक मंच पर बैठेंगे तब तमाम मुद्दों पर चर्चा होगी और एजेंडा भी तय कर लिया जाएगा."- राजेश राठौर,मुख्य प्रवक्ता, कांग्रेस पार्टी

"विपक्षी खेमे के ज्यादातर नेता अपने अपने एजेंडे पर काम कर रहे हैं. राष्ट्रीय जनता दल नेता बताते हैं कि नीतीश कुमार राष्ट्रीय फलक पर जाएं और राज्य की जिम्मेदारी उन्हें दी जाए तो नीतीश कुमार अपने लिए राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका चाहते हैं. महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि बैठक के दौरान किन एजेंडे पर सहमति बनेगी. क्या कोई सर्व सम्मत राय निकलकर सामने आएगी?"- डॉ संजय कुमार,राजनीतिक विश्लेषक

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