जोधपुर : पूर्व मंत्री महिपाल मदेरणा (Mahipal Maderna) का रविवार को निधन हो गया. उनके जोधपुर (Jodhpur) स्थित आवास पर बड़ी संख्या में लोग अपनी संवेदनाएं जाहिर करने पहुंच रहे हैं. मानस पटल पर कई स्मृतियां उभर कर आ रही हैं. सब दिवंगत नेता से जुड़े किस्से कहानियों में दिलचस्पी दिखा रहा है. सवाल कई कौंध रहे हैं. पूछा जा रहा है कि आखिर महिपाल मदेरणा की राजनीति पर फुलस्टॉप लगा कैसे?
पिता की विरासत को बढ़ाया
दिग्गज नेता परसराम मदेरणा मारवाड़ में जाटों के बड़े नेता माने जाते थे. उनके ही पुत्र थे महिपाल मदेरणा. जन्म से ही खुद को राजनीतिक उतार चढ़ाव के बीच पाया. पिता ने अपनी सीट छोड़ी तो बेटे ने साल 2003 में भोपालगढ़ विधानसभा सीट से किस्मत आजमाई. आशा के अनुरूप जीत हासिल की और पहली बार विधायक बने. इससे पहले जिला प्रमुख रहे थे.
मजबूरी में मिली थी कैबिनेट में जगह
2008 में जब वे (Mahipal Maderna) दोबारा विधायक बने और कांग्रेस की सरकार आई तो सबकी निगाहें उन पर ही थी. सवाल था कि क्या अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) उन्हें मंत्री बनाएंगे? क्योंकि उससे पहले जब परसराम मदेरणा (Parsaram Maderna) 1998 में CM बनने ही वाले थे लेकिन अशोक गहलोत के हाथों में सत्ता चली गई. उसके बाद से ही गहलोत पर मारवाड़ जाट विरोधी का ठप्पा लग गया. परसराम मदेरणा के सीएम नहीं बनने से गहलोत के खिलाफ जाटों ने कई मोर्चे भी खोले थे. 2008 में दूसरी बार अशोक गहलोत (CM Gehlot) CM बनने जा रहे थे तब यह मान लिया गया था कि महिपाल मदेरणा को कैबिनेट में जगह नही मिलेगी. लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप से उन्हें केबिनेट मंत्री (Cabinet) बनाकर राजी किया गया.
मारवाड़ की राजनीति और मदेरणा परिवार
दरअसल मारवाड़ की राजनीति में मदेरणा परिवार का हमेशा दबदबा रहा है. खासकर जाट राजनीति में तो परसराम मदेरणा ही सर्वे सर्वा थे. परसराम मदेरणा 9 बार विधायक बने लेकिन जब उनका मुख्यमंत्री बनने का नंबर आया तो अशोक गहलोत बाजी मार ले गए. तब उन्हें विधानसभा अध्यक्ष बनाकर संतुष्ट किया गया. उसके बाद ही जाट गहलोत को विरोधी मानने लगे. उसके बाद परसराम मदेरणा ने चुनाव नहीं लड़ा और 2004 में उनका निधन हो गया.
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धारा प्रवाह अंग्रेजी से सब थे कायल
मदेरणा विधानसभा में बहुत कम बोलते थे. लेकिन जब भी बोलते थे तो उनकी धाराप्रवाह अंग्रेजी और विषय पर पकड़ सबको आश्चर्यचकित करती थी. 2004 में परसराम मदेरणा का निधन हो गया. उसके बाद महिपाल मदेरणा (Mahipal Maderna) ने ओसियां विधानसभा से चुनाव लड़ा और विधानसभा पहुंचे. उनके चुनाव जीतने के साथ ही मंत्री बनने को लेकर कयास शुरू हो गए थे. एक धारणा बन गई थी कि गहलोत उन्हें मंत्री नहीं बनाएंगे. लेकिन अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने तो उन्हें सीधे कैबिनेट में जगह दी गई और जल संसाधन मंत्री (Water Resource Minister) बनाया गया.
तब यह बात सामने आई कि कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप से उन्हें गहलोत (Gehlot) को मंत्री बनाना पड़ा. लेकिन दुर्भाग्य से महिपाल मदेरणा (Mahipal Maderna) अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और 2011 में राजस्थान की राजनीति में आये भंवरी देवी हत्या (Bhanwari Devi Hatya) नाम के बवंडर ने महिपाल मदेरणा का राजनीतिक करियर खत्म कर दिया.
ऐसे हुआ राजनीतिक करियर खत्म
वर्ष 2011 में महिपाल मदेरणा पर भंवरी देवी (Bhanwri Devi) के लापता होने से संबंधित मामले में शामिल होने का आरोप लगाया गया था.1 सितंबर 2011 को भंवरी देवी लापता हो गई थी उसके बाद उनके पति अमरचंद (Amarchand Nat) ने आरोप लगाया था कि महिपाल मदेरणा के आदेश पर उनका अपहरण किया गया था. इसके बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने 26 अक्टूबर 2011 को महिपाल मदेरणा को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था.
उसके बाद सीबीआई (CBI) ने महिपाल मदेरणा को 3 दिसंबर को गिरफ्तार किया था और पूछताछ की थी. भंवरी मामले में 9 वर्षों तक जेल में रहने के बाद हाल ही में महिपाल मदेरणा को अदालत से जमानत भी मिली थी. हालांकि इससे पहले वे स्वास्थ्य कारणों के चलते उपचार के लिए जमानत पर चल रहे थे.
इस चुनाव में भी गहलोत खेमे को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी ऐसा माना जा रहा था कि अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के निकट बद्रीराम जाखड़ की बेटी जिला प्रमुख बन जायेंगी, लेकिन अंततः पार्टी को लीला मदेरणा को ही अपना प्रत्याशी घोषित करना पड़ा.