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उत्तरकाशी सुरंग हादसे को लेकर प. बंगाल के खदान में फंसे पीड़ितों ने अपने अनुभव साझा किए

उत्तरकाशी सुरंग हादसे की तरह पश्चिम बंगाल में 13 नवंबर 1989 को आसनसोल की महाबीर खदान में एक भयानक दुर्घटना घटी. इस हादसे में बचे मजूदरों और बचाव दल के सदस्यों ने अपने अनुभव साझा किए. Uttarkashi tunnel collapse- Mahabir mine Victim share experiences

Victim and rescuer 34 years ago share experiences as efforts on to save 41 people trapped in Uttarkashi tunnel collapse
उत्तरकाशी सुरंग हादसे को लेकर प. बंगाल के खदान में फंसे पीड़ितों ने अपने अनुभव साझा किए
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 23, 2023, 1:25 PM IST

आसनसोल: उत्तरकाशी सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बचाने की जद्दोजहद जारी है. यहां पहुंच रही खबरों के मुताबिक बचावकर्मी फंसे हुए श्रमिकों के बेहद करीब पहुंच गए हैं. पूरा देश सुरक्षित बचाव की उम्मीद कर रहा है. पश्चिम बंगाल के आसनसोल में बोरहोल ड्रिलिंग कंपनी के प्राधिकारी ने महावीर खदान में फंसे श्रमिकों को बचाने के अपने भयावह अनुभव को साझा किया. ऐसी ही गंभीर स्थिति में फंसे आसनसोल के रानीगंज के महाबीर खदान में फंसे एक मजदूर ने भी अपनी भयावह यादें साझा कीं.

पश्चिम बंगाल में 13 नवंबर 1989 को आसनसोल की महाबीर खदान में एक भयानक दुर्घटना घटी. पास की एक खाली पड़ी खदान में बाढ़ आ गई और पानी महाबीर खदान में घुस गया और 65 श्रमिक फंस गए. लगभग तीन दिनों के कठिन प्रयासों के बाद अंततः जमीन के ऊपर एक बोरहोल ड्रिल करके और कैप्सूल डालकर उन्हें बचाया गया. उत्तरकाशी में भी सुरंग ढहने से 41 मजदूर इसी तरह फंसे हुए हैं. फिलहाल सुरंग में गड्ढा खोदकर और पाइप डालकर बचाव कार्य जारी है.
आसनसोल की एक निजी संस्था की खनन सहयोगी कंपनी ने महाबीर खदान में श्रमिकों को बचाने के लिए बोरहोल खोदा. इस रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए कंपनी के प्रमुख संजय बंसल से पहले ही संपर्क किया जा चुका है. उन्हें तैयार रहने को कहा गया है. हालांकि संजय बंसल ने कहा कि वे जमीन के ऊपर से गड्ढा खोदकर मजदूरों को बचा सकते हैं. ऐसे में उन्हें पहाड़ों के उस दुर्गम स्थान पर ले जाना पड़ता है और मशीन लगाने की जगह की व्यवस्था करनी पड़ती है.

इस बीच सुरंग के किनारे पाइप डालकर मजदूरों को बचाने की प्रक्रिया चल रही है. संजय बंसल ने अपने अनुभव में कहा, 'जिस तरह से काम चल रहा है, उम्मीद है कि मजदूरों को बचाया जा सकेगा. उस सुरंग की मिट्टी कमजोर है जिससे वह ढह गया. छेद का निर्माण सावधानी से करना चाहिए ताकि मिट्टी दोबारा न गिरे और छेद को ढक न सके. लेकिन उम्मीद है कि पाइप को छेद के साथ ले जाया जा रहा है. इससे श्रमिकों को निकालने में सुविधा होगी.' वहीं, महाबीर खदान में फंसे 65 मजदूरों में शामिल जगदीश कन्हार अभी भी जीवित हैं. वह बिहार में रहता है. उनका आसनसोल में भी एक घर है.

ये भी पढ़ें- उत्तराखंड सुरंग हादसा से 34 साल पुरानी प. बंगाल की घटना की यादें ताजा हुई

जगदीश कन्हार ने कहा, 'हम खदान में फंस गए थे लेकिन जब हमने लोगों से संपर्क किया, तो हमारी हिम्मत बढ़ गई. हमें जीवित रहने की उम्मीद फिर से जगी. यहां तक कि उत्तरकाशी में फंसे लोगों से भी संपर्क किया गया है.' इसलिए जब संपर्क किया गया, तो वे निश्चित रूप से बच जाएंगे. मैंने सुना है कि उन तक खाना और पानी पहुंच गया है. इसी तरह हमारे लिए खाना और पानी भेजा गया. इसलिए अभी हमें साहस के साथ धैर्य से बैठना होगा. निश्चय ही वे बच जायेंगे. मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं. वे जल्द से जल्द अपने परिवार के पास लौट आएं. ठीक वैसे ही जैसे हम वापस लौटने में सफल रहे.'

आसनसोल: उत्तरकाशी सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बचाने की जद्दोजहद जारी है. यहां पहुंच रही खबरों के मुताबिक बचावकर्मी फंसे हुए श्रमिकों के बेहद करीब पहुंच गए हैं. पूरा देश सुरक्षित बचाव की उम्मीद कर रहा है. पश्चिम बंगाल के आसनसोल में बोरहोल ड्रिलिंग कंपनी के प्राधिकारी ने महावीर खदान में फंसे श्रमिकों को बचाने के अपने भयावह अनुभव को साझा किया. ऐसी ही गंभीर स्थिति में फंसे आसनसोल के रानीगंज के महाबीर खदान में फंसे एक मजदूर ने भी अपनी भयावह यादें साझा कीं.

पश्चिम बंगाल में 13 नवंबर 1989 को आसनसोल की महाबीर खदान में एक भयानक दुर्घटना घटी. पास की एक खाली पड़ी खदान में बाढ़ आ गई और पानी महाबीर खदान में घुस गया और 65 श्रमिक फंस गए. लगभग तीन दिनों के कठिन प्रयासों के बाद अंततः जमीन के ऊपर एक बोरहोल ड्रिल करके और कैप्सूल डालकर उन्हें बचाया गया. उत्तरकाशी में भी सुरंग ढहने से 41 मजदूर इसी तरह फंसे हुए हैं. फिलहाल सुरंग में गड्ढा खोदकर और पाइप डालकर बचाव कार्य जारी है.
आसनसोल की एक निजी संस्था की खनन सहयोगी कंपनी ने महाबीर खदान में श्रमिकों को बचाने के लिए बोरहोल खोदा. इस रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए कंपनी के प्रमुख संजय बंसल से पहले ही संपर्क किया जा चुका है. उन्हें तैयार रहने को कहा गया है. हालांकि संजय बंसल ने कहा कि वे जमीन के ऊपर से गड्ढा खोदकर मजदूरों को बचा सकते हैं. ऐसे में उन्हें पहाड़ों के उस दुर्गम स्थान पर ले जाना पड़ता है और मशीन लगाने की जगह की व्यवस्था करनी पड़ती है.

इस बीच सुरंग के किनारे पाइप डालकर मजदूरों को बचाने की प्रक्रिया चल रही है. संजय बंसल ने अपने अनुभव में कहा, 'जिस तरह से काम चल रहा है, उम्मीद है कि मजदूरों को बचाया जा सकेगा. उस सुरंग की मिट्टी कमजोर है जिससे वह ढह गया. छेद का निर्माण सावधानी से करना चाहिए ताकि मिट्टी दोबारा न गिरे और छेद को ढक न सके. लेकिन उम्मीद है कि पाइप को छेद के साथ ले जाया जा रहा है. इससे श्रमिकों को निकालने में सुविधा होगी.' वहीं, महाबीर खदान में फंसे 65 मजदूरों में शामिल जगदीश कन्हार अभी भी जीवित हैं. वह बिहार में रहता है. उनका आसनसोल में भी एक घर है.

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जगदीश कन्हार ने कहा, 'हम खदान में फंस गए थे लेकिन जब हमने लोगों से संपर्क किया, तो हमारी हिम्मत बढ़ गई. हमें जीवित रहने की उम्मीद फिर से जगी. यहां तक कि उत्तरकाशी में फंसे लोगों से भी संपर्क किया गया है.' इसलिए जब संपर्क किया गया, तो वे निश्चित रूप से बच जाएंगे. मैंने सुना है कि उन तक खाना और पानी पहुंच गया है. इसी तरह हमारे लिए खाना और पानी भेजा गया. इसलिए अभी हमें साहस के साथ धैर्य से बैठना होगा. निश्चय ही वे बच जायेंगे. मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं. वे जल्द से जल्द अपने परिवार के पास लौट आएं. ठीक वैसे ही जैसे हम वापस लौटने में सफल रहे.'

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