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MP Assembly Elections : एमपी में भाजपा ने अपनाया नया फॉर्मूला, जानिए क्यों उतारे मंत्री और सांसद - madhya pradesh assembly election

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी ने नया फॉर्मूला अपनाया है. पार्टी सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने का संदेश दे रही है. जितने धड़े थे उनमें से ज्यादातर को चुनावी मैदान में उतार कर पार्टी ने सुपर सेवन के हाथ में सारा दारोमदार सौंप दिया है. पार्टी इस चुनाव में मात्र शिवराज या फिर शिवराज मामा के नाम को आगे नही बढ़ाएगी, बल्कि एंटी इनकंबेंसी की काट ढूंढते हुए पूरे चुनाव की कमान कई नेताओं के हाथ में थमा दी है. ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की रिपोर्ट.

BJP
भाजपा ने एमपी में उतारे सांसद मंत्री
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 26, 2023, 6:58 PM IST

खास रिपोर्ट

नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) मध्य प्रदेश में अब तक कुल 230 सीटों में से 78 सीटों पर उम्मीदवारों का एलान कर चुकी है. सोमवार को जारी की गई बीजेपी उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट में शामिल दिग्गजों के नाम को लेकर पूरे राज्य में हलचल हो गई है.

दरअसल बीजेपी ने तीन केंद्रीय मंत्रियों के अलावा चार सांसदों को भी चुनाव मैदान में उतारा है, जिसकी कल्पना भी राज्य की इकाई ने नहीं की थी. इनमें से कुछ तो अपने बेटे या रिश्तेदारों के लिए टिकट की मांग कर रहे थे, जबकि पार्टी ने परिवारवाद से दूरी बनाते हुए खुद इन केंद्रीय नेताओं को ही चुनाव की कमान थमा दी.

हालांकि, इस कदम को कांग्रेस, बीजेपी की तरफ से डर कर उठाया गया कदम मान रही हैं. लेकिन अंदरखाने पार्टी उन क्षेत्रों में जनाधार बढ़ाने की कवायद में हैं जहां 2018 में पार्टी कमजोर रह गई थी. ये चंबल के क्षेत्र और कुछ ऐसा इलाका रहा जिनमें मजबूत पकड़ वाले नेताओं को जो अब केंद्र की राजनीति में लगे थे उन्हें वापस भेजकर पार्टी ने सभी को चौंका दिया है. साथ ही ये भी संदेश देने की कोशिश की गई है कि उनके पास एक नहीं सीएम के कई उम्मीदवार हैं. वहीं दूसरी तरफ पार्टी ने एक फॉर्मूला और भी रखा है कि एक परिवार से पार्टी एक ही व्यक्ति को टिकट देगी ताकि चुनावी मैदान में विपक्षी पार्टियों पर वो परिवारवाद का भी आरोप लगा पाए.

बीजेपी को लगता है कि सासंद अगर विधानसभा का चुनाव लड़ते हैं तो उनकी लोकसभा सीट के अंदर आने वाली सभी 7-8 सीटों पर पार्टी की जीत का माहौल बन सकता है. पार्टी ने इन केंद्रीय नेताओं को ये संदेश देकर ही भेजा है कि उन्हें हर हाल में पार्टी को अपनी सीटों पर जीत दिलवानी है.

नरेंद्र सिंह तोमर : अब यदि क्रमवार देखा जाए तो पार्टी की परफॉमेंस 2018 में चंबल क्षेत्र में ठीक नहीं रही थी. नरेंद्र सिंह तोमर का इस क्षेत्र में दबदबा है, वो केंद्रीय मंत्री भी हैं और पार्टी के पुराने नेता और राज्य में अध्यक्ष पद पर भी रहे हैं. साथ ही पार्टी ने उन्हें मध्य प्रदेश चुनाव समिति प्रबंधन का संयोजक भी बनाया है.

प्रहलाद सिंह पटेल : इसी तरह के केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल, ओबीसी नेता हैं. वह पार्टी में छात्र संघ की राजनीति से सक्रिय हैं हालांकि बीच में इन्होंने उमा भारती के साथ पार्टी छोड़ी भी थी लेकिन फिर वापस आ गए थे.

फग्गन सिंह कुलस्ते : इसी तरह फग्गन सिंह कुलस्ते, जो आदिवासी नेता हैं. मध्य प्रदेश में आदिवासियों के लिए 47सीटें आरक्षित हैं और सौ से ज्यादा आदिवासी बहुल सीटें हैं. ऐसे में ये नेता चुनाव परिणाम पर असर डाल सकते हैं.

गणेश सिंह पटेल : इसी तरह गणेश सिंह पटेल जो ओबीसी नेता हैं और 2004 से लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं. उन्होंने कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह के परिवार का वर्चस्व भी इस इलाके से खत्म किया है.

राकेश सिंह : वहीं, राकेश सिंह जो जबलपुर के पश्चिमी विधानसभा से सांसद हैं. यहां बीजेपी पिछले दो चुनाव से हार रही है. राकेश सिंह राज्य में कई पदों पर भी रह चुके हैं. इसी तरह होशंगाबाद से सांसद उदय प्रताप सिंह हैं. वह कांग्रेस से राहुल गांधी से बगावत कर बीजेपी में आए थे. वहीं सांसद रीति पाठक सामान्य कैटेगरी से आती हैं. उन्हें सौम्य चेहरा माना जाता रहा है लेकिन राज्य की तेजतर्रार नेताओं में से एक हैं.

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नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) मध्य प्रदेश में अब तक कुल 230 सीटों में से 78 सीटों पर उम्मीदवारों का एलान कर चुकी है. सोमवार को जारी की गई बीजेपी उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट में शामिल दिग्गजों के नाम को लेकर पूरे राज्य में हलचल हो गई है.

दरअसल बीजेपी ने तीन केंद्रीय मंत्रियों के अलावा चार सांसदों को भी चुनाव मैदान में उतारा है, जिसकी कल्पना भी राज्य की इकाई ने नहीं की थी. इनमें से कुछ तो अपने बेटे या रिश्तेदारों के लिए टिकट की मांग कर रहे थे, जबकि पार्टी ने परिवारवाद से दूरी बनाते हुए खुद इन केंद्रीय नेताओं को ही चुनाव की कमान थमा दी.

हालांकि, इस कदम को कांग्रेस, बीजेपी की तरफ से डर कर उठाया गया कदम मान रही हैं. लेकिन अंदरखाने पार्टी उन क्षेत्रों में जनाधार बढ़ाने की कवायद में हैं जहां 2018 में पार्टी कमजोर रह गई थी. ये चंबल के क्षेत्र और कुछ ऐसा इलाका रहा जिनमें मजबूत पकड़ वाले नेताओं को जो अब केंद्र की राजनीति में लगे थे उन्हें वापस भेजकर पार्टी ने सभी को चौंका दिया है. साथ ही ये भी संदेश देने की कोशिश की गई है कि उनके पास एक नहीं सीएम के कई उम्मीदवार हैं. वहीं दूसरी तरफ पार्टी ने एक फॉर्मूला और भी रखा है कि एक परिवार से पार्टी एक ही व्यक्ति को टिकट देगी ताकि चुनावी मैदान में विपक्षी पार्टियों पर वो परिवारवाद का भी आरोप लगा पाए.

बीजेपी को लगता है कि सासंद अगर विधानसभा का चुनाव लड़ते हैं तो उनकी लोकसभा सीट के अंदर आने वाली सभी 7-8 सीटों पर पार्टी की जीत का माहौल बन सकता है. पार्टी ने इन केंद्रीय नेताओं को ये संदेश देकर ही भेजा है कि उन्हें हर हाल में पार्टी को अपनी सीटों पर जीत दिलवानी है.

नरेंद्र सिंह तोमर : अब यदि क्रमवार देखा जाए तो पार्टी की परफॉमेंस 2018 में चंबल क्षेत्र में ठीक नहीं रही थी. नरेंद्र सिंह तोमर का इस क्षेत्र में दबदबा है, वो केंद्रीय मंत्री भी हैं और पार्टी के पुराने नेता और राज्य में अध्यक्ष पद पर भी रहे हैं. साथ ही पार्टी ने उन्हें मध्य प्रदेश चुनाव समिति प्रबंधन का संयोजक भी बनाया है.

प्रहलाद सिंह पटेल : इसी तरह के केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल, ओबीसी नेता हैं. वह पार्टी में छात्र संघ की राजनीति से सक्रिय हैं हालांकि बीच में इन्होंने उमा भारती के साथ पार्टी छोड़ी भी थी लेकिन फिर वापस आ गए थे.

फग्गन सिंह कुलस्ते : इसी तरह फग्गन सिंह कुलस्ते, जो आदिवासी नेता हैं. मध्य प्रदेश में आदिवासियों के लिए 47सीटें आरक्षित हैं और सौ से ज्यादा आदिवासी बहुल सीटें हैं. ऐसे में ये नेता चुनाव परिणाम पर असर डाल सकते हैं.

गणेश सिंह पटेल : इसी तरह गणेश सिंह पटेल जो ओबीसी नेता हैं और 2004 से लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं. उन्होंने कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह के परिवार का वर्चस्व भी इस इलाके से खत्म किया है.

राकेश सिंह : वहीं, राकेश सिंह जो जबलपुर के पश्चिमी विधानसभा से सांसद हैं. यहां बीजेपी पिछले दो चुनाव से हार रही है. राकेश सिंह राज्य में कई पदों पर भी रह चुके हैं. इसी तरह होशंगाबाद से सांसद उदय प्रताप सिंह हैं. वह कांग्रेस से राहुल गांधी से बगावत कर बीजेपी में आए थे. वहीं सांसद रीति पाठक सामान्य कैटेगरी से आती हैं. उन्हें सौम्य चेहरा माना जाता रहा है लेकिन राज्य की तेजतर्रार नेताओं में से एक हैं.

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