लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सत्र अदालत द्वारा दोष सिद्ध ठहराते हुए, पांच साल के कारावास की सजा पाए अभियुक्त को बरी कर दिया है. न्यायालय ने कहा कि 'मामले में पीड़िता की गवाही विश्वसनीय नहीं है तथा वह स्वयं अभियुक्त, अपीलार्थी के साथ सम्बंध बनाने के लिए राजी थी.' यह निर्णय न्यायमूर्ति करूणेश सिंह पवार की एकल पीठ ने लल्ला की अपील पर पारित किया.
गोसाईगंज थाने में लिखाई थी मामले की एफआईआर : पीड़िता के पिता ने वर्ष 1997 में लखनऊ के गोसाईगंज थाने में मामले की एफआईआर लिखाई थी. अभियुक्त पर आरोप था कि वह वादी की बेटी को भगा ले गया व उसके साथ जबरन शारीरिक सम्बंध बनाए. मामले में सत्र अदालत द्वारा अपीलार्थी को दोष सिद्ध करार देते हुए, पांच साल कारावास की सजा व पांच हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी. न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि 'पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से अधिक थी और वर्ष 1997 में सहमति से सम्बंध की उम्र सीमा 16 वर्ष ही थी. न्यायालय ने दो गवाहों के बयानों को भी उद्धत किया, जिसमें पीड़िता द्वारा अभियुक्त के साथ अपनी मर्जी से जाने की बात कही गई थी.
पीड़िता के बयानों में काफी विरोधाभाष : न्यायालय ने कहा कि साक्ष्यों से स्पष्ट है कि पीड़िता अपनी मर्जी से अभियुक्त के साथ गई थी, मेडिकल रिपोर्ट से भी अभियोजन के केस का समर्थन नहीं होता है. न्यायालय ने कहा कि अभियोजन संदेह से परे अपना आरोप सिद्ध करने में असफल रहा. न्यायालय ने यह भी पाया कि पीड़िता के बयानों में काफी विरोधाभाष है. न्यायालय ने पाया कि अपीलार्थी की ओर से उसकी अपील पर बहस के लिए अधिवक्ता के न उपस्थित होने पर उसके खिलाफ एनबीडब्ल्यू जारी करते हुए, उसे जेल भेज दिया गया था. न्यायालय ने सम्बंधित जेल अधीक्षक को अपीलार्थी को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है.
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