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एलजीबीटीक्यू समुदाय एससी, एसटी, ओबीसी जैसे आरक्षण का हकदार नहीं है: पूर्व सीजेआई यूयू ललित

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By ANI

Published : Jan 12, 2024, 7:22 AM IST

Reservation For LGBTQ community : भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई), न्यायमूर्ति यूयू ललित ने बताया कि कैसे कई ऐतिहासिक घटनाओं और लोगों के साथ-साथ शीर्ष अदालत के कुछ ऐतिहासिक फैसले और संसद के समय पर हस्तक्षेप ने भारतीय संविधान में समाज के वंचित वर्गों के लिए आरक्षण को आकार दिया और विकसित भी किया. उन्होंने एलजीबीटीक्यू समूदाय को मिलने वाले आरक्षण से संबंधित प्रश्नों का भी जवाब दिया.

LGBTQ community
भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई), न्यायमूर्ति यूयू ललित

गोवा: भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई), न्यायमूर्ति यूयू ललित ने गुरुवार को कहा कि एलजीबीटीक्यू (समलैंगिक, समलैंगिक, उभयलिंगी, ट्रांसजेंडर और समलैंगिक) समुदाय 'अलग से' संवैधानिक आरक्षण का दावा करने का हकदार नहीं है. संवैधानिक आरक्षण से उनका आशय उस व्यवस्था के तहत आरक्षण दिये जाने से है जिसके तहत अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को आरक्षण दिया जाता है.

एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, एक कार्यक्रम में बोलते हुए, पूर्व सीजेआई ने कहा कि समुदाय 'महिलाओं और विकलांग लोगों की तरह आरक्षण की स्थिति का दावा कर सकता है. न्यायमूर्ति ललित, जो नवंबर 2022 में 49वें सीजेआई के रूप में सेवानिवृत्त हुए. वह गोवा में इंडिया इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लीगल एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईयूएलईआर) में सकारात्मक कार्रवाई और भारत के संविधान पर एक विशेष व्याख्यान देने के बाद सवालों का जवाब दे रहे थे. .

उनसे पूछा गया था कि क्या एलजीबीटीक्यू समुदाय कभी संवैधानिक आरक्षण के दायरे में आएगा. जस्टिस ललित ने कहा कि सैद्धांतिक रूप से हां. लेकिन अगर इसपर विचार किया जाये तो हम पायेंगे कि एससी, एसटी या ओबीसी जैसे समुदाय में किसी जन्म उसके नियंत्रण में नहीं होता जबकि यौन रुझान के बारे में यही बात नहीं कही जा सकती.

उन्होंने कहा कि एलजीबीटीक्यू समूदाय से होने का अर्थ यह नहीं होगा कि मैं अपने जन्म के कारण किसी अधिकार से वंचित रह जाऊं. जैसा कि अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के साथ हो सकता है. यौन रुझान मेरी अपनी पसंद है. इसे जन्म की दुर्घटना के रूप में मुझ पर थोपा नहीं गया है. ऐसा नहीं होगा कि मेरे यौन रुझान के कारण नहीं कि मैं किसी चीज़ से वंचित रह जाऊं.

पूर्व सीजेआई बार काउंसिल ऑफ इंडिया ट्रस्ट की ओर से संचालित इंटरनेशनल लॉ स्कूल के प्रधान निदेशक भी हैं. उन्होंने कहा कि ऐसा व्यक्ति जो जन्म से ही तीसरे लिंग का हो उसके मामले में यह जन्म की दुर्घटना का मामला है. लेकिन अधिकांश एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए यौन रुझान उनकी अपनी पसंद का मामला है.

उन्होंने इसे एक विकल्प के रूप में अपनाया है. फिर भी, मुझे नहीं लगता कि इस विचार का (आरक्षण देने का) खंडन होगा. शायद भविष्य में वे भी कुछ हद तक आरक्षण व्यवस्था का हिस्सा बन सकते हैं.

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एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, एक कार्यक्रम में बोलते हुए, पूर्व सीजेआई ने कहा कि समुदाय 'महिलाओं और विकलांग लोगों की तरह आरक्षण की स्थिति का दावा कर सकता है. न्यायमूर्ति ललित, जो नवंबर 2022 में 49वें सीजेआई के रूप में सेवानिवृत्त हुए. वह गोवा में इंडिया इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लीगल एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईयूएलईआर) में सकारात्मक कार्रवाई और भारत के संविधान पर एक विशेष व्याख्यान देने के बाद सवालों का जवाब दे रहे थे. .

उनसे पूछा गया था कि क्या एलजीबीटीक्यू समुदाय कभी संवैधानिक आरक्षण के दायरे में आएगा. जस्टिस ललित ने कहा कि सैद्धांतिक रूप से हां. लेकिन अगर इसपर विचार किया जाये तो हम पायेंगे कि एससी, एसटी या ओबीसी जैसे समुदाय में किसी जन्म उसके नियंत्रण में नहीं होता जबकि यौन रुझान के बारे में यही बात नहीं कही जा सकती.

उन्होंने कहा कि एलजीबीटीक्यू समूदाय से होने का अर्थ यह नहीं होगा कि मैं अपने जन्म के कारण किसी अधिकार से वंचित रह जाऊं. जैसा कि अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के साथ हो सकता है. यौन रुझान मेरी अपनी पसंद है. इसे जन्म की दुर्घटना के रूप में मुझ पर थोपा नहीं गया है. ऐसा नहीं होगा कि मेरे यौन रुझान के कारण नहीं कि मैं किसी चीज़ से वंचित रह जाऊं.

पूर्व सीजेआई बार काउंसिल ऑफ इंडिया ट्रस्ट की ओर से संचालित इंटरनेशनल लॉ स्कूल के प्रधान निदेशक भी हैं. उन्होंने कहा कि ऐसा व्यक्ति जो जन्म से ही तीसरे लिंग का हो उसके मामले में यह जन्म की दुर्घटना का मामला है. लेकिन अधिकांश एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए यौन रुझान उनकी अपनी पसंद का मामला है.

उन्होंने इसे एक विकल्प के रूप में अपनाया है. फिर भी, मुझे नहीं लगता कि इस विचार का (आरक्षण देने का) खंडन होगा. शायद भविष्य में वे भी कुछ हद तक आरक्षण व्यवस्था का हिस्सा बन सकते हैं.

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