नई दिल्ली : प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ (D Y Chandrachud) ने इस बात पर अफसोस जताया है कि विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समितियों में सभी भारतीय मध्यस्थों में से 10 प्रतिशत से भी कम महिलाएं हैं और इस स्थिति को 'विविधता का विरोधाभास' करार दिया.
प्रधान न्यायाधीश गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय व्यापार विधि आयोग (यूएनसीआईटीआरएएल) दक्षिण एशिया सम्मेलन, 2023 के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इस तथ्य की सराहना की कि अब विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थ संस्थानों ने 'क्षेत्रीय रूप से मध्यस्थों की विविध समितियां तैयार की हैं.'
उन्होंने कहा, 'हालांकि, इन समितियों लैंगिक ढांचे को नजरअंदाज करना मुश्किल है. हम उस चीज का सामना कर रहे हैं जिसे विविधता का विरोधाभास कहा जाता है यानी हमारे घोषित उद्देश्यों और वास्तविक नियुक्तियों के बीच मेल नहीं है. विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थागत समितियों में सभी भारतीय मध्यस्थों में से 10 प्रतिशत से भी कम महिलाएं हैं.'
उन्होंने लैंगिक विविधता पर एक रिपोर्ट का हवाला दिया और कहा कि इससे पता चला है कि 'अनजान पूर्वाग्रह' इस लैंगिक असमानता में योगदान दे रहे हैं. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि देशों को अन्य देशों और वहां के लोगों, व्यवसायों तथा कानूनी प्रणालियों की सफलताओं और जिन कठिनाइयों का उन्हें सामना करना पड़ा है, उनसे सीखना चाहिए.
उन्होंने कहा, 'इस सम्मेलन में यह और भी अधिक संभव है क्योंकि दक्षिण एशियाई देशों में बहुत कुछ समान है - हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक व्यवस्था में कई समानताएं निस्संदेह हमारी व्यावसायिक प्रथाओं और कानूनी प्रणालियों में व्याप्त हैं. खासकर डिजिटल युग में... हमारी अर्थव्यवस्थाएं भी आपस में जुड़ी हुई हैं.'
उन्होंने न्यायिक शिक्षा और अनुसंधान में सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए पिछले सप्ताह भारत और सिंगापुर के बीच हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारे कानूनी ढांचे को डिजिटल अर्थव्यवस्था के विस्तार के साथ विकसित होना चाहिए.
(पीटीआई-भाषा)