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एजी ने SC से कहा- राजनेताओं, न्यायाधीशों को विवेकाधीन भूमि आवंटन रोकने के लिए कानून की आवश्यकता

शहरी क्षेत्रों में भूमि आवंटन में विवेकाधीन कोटा रोकने के लिए कानून बनाया जाना चाहिए. अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में यह बात कही. जानिए क्या है मामला.

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Published : Feb 16, 2022, 8:57 PM IST

नई दिल्ली : अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि शहरी क्षेत्रों में भूमि आवंटन में विवेकाधीन कोटा रोकने के लिए कानून बनाया जाना चाहिए (discretionary quota in land allotments in urban areas). उन्होंने कहा कि राजनेताओं के साथ-साथ उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के भूमि आवंटन में विवेकाधीन कोटे पर वैधानिक प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. एजी ने कहा कि केवल भारत का नागरिक, जो संबंधित शहरी क्षेत्र में पैदा हुआ या अधिवासित हो ऐसी भूमि प्राप्त करने के लिए पात्र होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि पात्र व्यक्तियों की योग्यता और भूमि आवंटन के लिए पात्र व्यक्तियों की श्रेणियां स्पष्ट रूप से क़ानून में बताई जानी चाहिए. वेणुगोपाल ने सुझाव दिया कि जरूरतमंद और गरीबों के लिए विवेकाधीन भूमि आवंटन नीति को जारी रखा जाना चाहिए. हालांकि, अन्य सभी श्रेणियों के लिए जमीन की कीमत बाजार मूल्य के अनुसार और घर के निर्माण की वास्तविक लागत संबंधित सरकार द्वारा निर्धारित की जानी चाहिए.

उन्होंने कहा, 'भूमि आवंटन राज्य विधानसभाओं द्वारा विधिवत पारित एक वैधानिक अधिनियम के माध्यम से किया जाना चाहिए, न कि कार्यकारी नीति/दिशानिर्देशों द्वारा. दरअसल मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और हेमा कोहली की पीठ ने 8 फरवरी को अटॉर्नी जनरल से देश भर में हाउसिंग सोसाइटियों को भूमि आवंटन को विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश प्रस्तुत करने के लिए कहा था.

तेलंगाना का मुद्दा
मामला आवासीय परियोजनाओं के लिए भूमि आवंटन के संबंध में राज्यों द्वारा तैयार की गई नीतियों की वैधता, औचित्य का पता लगाने और उसी के बारे में एक समान नीति की संभावना तलाशने से संबंधित है. यह मुद्दा आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा दायर एक अपील में सामने आया था, जिसे बाद में तेलंगाना सरकार देख रही है.

दरअसल हैदराबाद के मामले में उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ के खिलाफ अपील की गई है, जिसमें हाउसिंग सोसाइटियों को आवासीय भूखंडों का आवंटन खारिज कर दिया था. इससे पहले 2008 में उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम सीमा के भीतर स्थित भूमि को विभिन्न सोसाइटियों को हस्तांतरित करने को चुनौती दी गई थी. जमीन विधायकों, सांसदों, आईएएस, आईपीएस, आईआरएस अधिकारियों सहित विभिन्न सोसाइटियों को हस्तांतरित करने को चुनौती दी गई थी.

पढ़ें- सौरव गांगुली का जमीन आवंटन रद्द, HC ने कहा- कोई नहीं कर सकता कानून से ऊपर होने का दावा

पढ़ें- जिंदल भूमि आवंटन मामला : सीएम येदियुरप्पा को लीगल नोटिस

(PTI)

नई दिल्ली : अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि शहरी क्षेत्रों में भूमि आवंटन में विवेकाधीन कोटा रोकने के लिए कानून बनाया जाना चाहिए (discretionary quota in land allotments in urban areas). उन्होंने कहा कि राजनेताओं के साथ-साथ उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के भूमि आवंटन में विवेकाधीन कोटे पर वैधानिक प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए. एजी ने कहा कि केवल भारत का नागरिक, जो संबंधित शहरी क्षेत्र में पैदा हुआ या अधिवासित हो ऐसी भूमि प्राप्त करने के लिए पात्र होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि पात्र व्यक्तियों की योग्यता और भूमि आवंटन के लिए पात्र व्यक्तियों की श्रेणियां स्पष्ट रूप से क़ानून में बताई जानी चाहिए. वेणुगोपाल ने सुझाव दिया कि जरूरतमंद और गरीबों के लिए विवेकाधीन भूमि आवंटन नीति को जारी रखा जाना चाहिए. हालांकि, अन्य सभी श्रेणियों के लिए जमीन की कीमत बाजार मूल्य के अनुसार और घर के निर्माण की वास्तविक लागत संबंधित सरकार द्वारा निर्धारित की जानी चाहिए.

उन्होंने कहा, 'भूमि आवंटन राज्य विधानसभाओं द्वारा विधिवत पारित एक वैधानिक अधिनियम के माध्यम से किया जाना चाहिए, न कि कार्यकारी नीति/दिशानिर्देशों द्वारा. दरअसल मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और हेमा कोहली की पीठ ने 8 फरवरी को अटॉर्नी जनरल से देश भर में हाउसिंग सोसाइटियों को भूमि आवंटन को विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश प्रस्तुत करने के लिए कहा था.

तेलंगाना का मुद्दा
मामला आवासीय परियोजनाओं के लिए भूमि आवंटन के संबंध में राज्यों द्वारा तैयार की गई नीतियों की वैधता, औचित्य का पता लगाने और उसी के बारे में एक समान नीति की संभावना तलाशने से संबंधित है. यह मुद्दा आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा दायर एक अपील में सामने आया था, जिसे बाद में तेलंगाना सरकार देख रही है.

दरअसल हैदराबाद के मामले में उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ के खिलाफ अपील की गई है, जिसमें हाउसिंग सोसाइटियों को आवासीय भूखंडों का आवंटन खारिज कर दिया था. इससे पहले 2008 में उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम सीमा के भीतर स्थित भूमि को विभिन्न सोसाइटियों को हस्तांतरित करने को चुनौती दी गई थी. जमीन विधायकों, सांसदों, आईएएस, आईपीएस, आईआरएस अधिकारियों सहित विभिन्न सोसाइटियों को हस्तांतरित करने को चुनौती दी गई थी.

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