● 55% ने इसे जातीय संघर्ष माना, सिर्फ 29% ने इसे कानून व्यवस्था का मुद्दा बताया
● 50% ने माना कि राज्य द्वारा उठाए गए कदम नाकाफी, 57% केंद्र के प्रयासों से संतुष्ट
● भाजपा के समर्थक और अधिकांश तटस्थ राजनीतिक लोग मणिपुर मुद्दे को लेकर बीजेपी के साथ
● मुद्दा जोर-शोर से उठाने के बावजूद INC+ का ज्यादा असर नहीं, उसके समर्थकों में से सिर्फ 36% ने कानून व्यवस्था का मुद्दा माना, जबकि 40% ने जातीय संघर्ष कहा
● CATI का उपयोग करके 22 राज्यों से 9679 नमूने एकत्र किए गए
सर्वे की अग्रणी कंपनी पोलस्टर्स इंडिया द्वारा मणिपुर की स्थिति पर किए गए एक सर्वे में आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए हैं, जो इस मसले पर बनाई गई धारणा और ज़मीनी वास्तविकता के बीच अंतर को स्पष्ट करते हैं। सर्वेक्षण में पाया गया कि एक भारी बहुमत मणिपुर को जातीय संघर्ष के रूप में अधिक देखता है और कानून- व्यवस्था की समस्या के रूप में कम। सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश लोगों ने इस समस्या के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया, जबकि केंद्र सरकार को लेकर उनका मानना था कि उसकी इस मामले में अधिक भूमिका नहीं है। ये नतीजे काफी दिलचस्प हैं, क्योंकि विपक्षी सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मौजूदा स्थिति का आंकलन करने के लिए मणिपुर का दौरा कर राज्य की बिगड़ती स्थिति के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहा है।
राज्य में मई के शुरुआत में शुरू हुई हिंसा में कई लोग मारे गए। ऐसे में सवाल था कि इस हिंसा का प्राथमिक कारण क्या है? सर्वेक्षण इस प्रश्न का बेहद स्पष्ट उत्तर देता है। सर्वेक्षण में शामिल 55% लोगों ने इसे मैतेयी और कूकी के बीच एक जातीय संघर्ष के रूप में देखा, जबकि केवल 29% ने इसे कानून-व्यवस्था की समस्या के रूप में देखा। वहीं, 16% का इस मामले पर कोई स्पष्ट नजरिया नहीं था। सर्वे से यह संकेत मिलता है कि केंद्र सरकार के खिलाफ विपक्ष के हमले का बेहद सीमित प्रभाव है। अधिकांश उत्तरदाताओं ने इसे केवल राज्य का मुद्दा माना है और इस स्थिति के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। सर्वेक्षण में लगभग आधे उत्तरदाताओं का मानना था कि राज्य सरकार ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं। इसके विपरीत, 34% उत्तरदाताओं ने कहा कि राज्य सरकार ने जिस तरह से स्थिति को संभाला है, उससे वे संतुष्ट हैं।
दिलचस्प बात यह है कि केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर बहुमत का समर्थन मिला। लगभग 57% उत्तरदाताओं का मानना है कि केंद्र सरकार ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त प्रयास किए हैं। केवल एक चौथाई (1/4) उत्तरदाताओं का मानना था कि केंद्र सरकार और अधिक कोशिश कर सकती थी, जबकि 18% उत्तरदाताओं का इस मामले पर कोई स्पष्ट दृष्टिकोण नहीं था।
सर्वेक्षण में पार्टी लाइन पर भी लोगों का मत जानने की कोशिश की गई। इस दौरान मणिपुर के मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस (सहयोगियों समेत) के समर्थकों का मूड जानने की कवायद की गई। सर्वे में मालूम हुआ कि 70% भाजपा समर्थक मणिपुर को एक जातीय संघर्ष के रूप में देखते हैं, जबकि जो लोग कांग्रेस (और उसके सहयोगियों) का समर्थन करते हैं, वे इस मुद्दे पर विभाजित हैं। 40% कांग्रेस+ समर्थकों का मानना है कि मणिपुर विवाद जातीय संघर्ष की देन है, जबकि 36% इसे कानून और व्यवस्था की समस्या के रूप में देखते हैं। सर्वेक्षण में राजनीतिक रूप से तटस्थ लोगों से भी संपर्क किया गया। राजनीतिक तटस्थ लोग, जो खुद को किसी भी राजनीतिक दल के समर्थक के रूप में नहीं देखते हैं, इस मुद्दे पर भाजपा की ओर अधिक झुकते पाए गए। 51% राजनीतिक तटस्थ लोगों का मानना है कि मणिपुर एक जातीय संघर्ष है, जबकि 31% इसे कानून और व्यवस्था की समस्या मानते हैं। कांग्रेस गठबंधन से अलग दूसरे दलों का समर्थन करने वाले 44% लोग इसे एक जातीय संघर्ष के तौर पर देखते हैं, जबकि ऐसे 41% लोगों का मानना है कि यह कानून और व्यवस्था की समस्या है।
डिस्क्लेमर:
वर्तमान सर्वेक्षण के निष्कर्ष और अनुमान पोल्स्टर्स इंडियाज़ के सर्वेक्षण पर आधारित हैं, जो 22 से 27 जुलाई के बीच किया गया था, जिसमें 9,679 वयस्क उत्तरदाताओं (18+) को शामिल किया गया था। ये सर्वे 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सीएटीआई सिस्टम के जरिए रैडम नंबर विधि से किया गया। मार्जिन ऑफ इरर मैक्रो स्तर पर +/- 3% और माइक्रो स्तर पर +/- 5% है।
पोलस्टर्स इंडिया के बारे में—
पोलस्टर्स इंडिया भारत की सबसे तेजी से बढ़ती डेटा इंटेलिजेंस परामर्श एजेंसी है, जो डेटा संचालित निर्णय लेने में विश्वास रखती है। कंपनी की उपस्थिति पूरे भारत में है और इसने लगभग सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के घरों तक पहुंच बनाई है। इसके ग्राहकों में भारत के कुछ अग्रणी व्यावसायिक समूह, उद्योग निकाय, सामाजिक संगठन और सार्वजनिक संघ शामिल हैं।
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