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निर्वाचित व्यक्तियों द्वारा भूमि हथियाना लोकतंत्र के लिए खतरा : मद्रास उच्च न्यायालय

मद्रास उच्च न्यायालय ने हाल ही में निर्वाचित व्यक्तियों द्वारा भूमि हथियाने के खिलाफ कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि इस तरह की गतिविधियां लोकतंत्र के लिए खतरा हैं.

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Published : Sep 25, 2021, 4:05 PM IST

चेन्नई : मद्रास हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में भूमि हथियाने जैसी अवैध गतिविधियों में शामिल निर्वाचित व्यक्तियों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए. यह लोकतंत्र के लिए खतरे के समान है.

अदालत ने कहा कि इस तरह की जमीन हथियाना न केवल खतरनाक है बल्कि लोकतंत्र के लिए भी खतरा है. यही कारण है कि संवैधानिक न्यायालयों ने बार-बार जोर देकर कहा है कि गंभीर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

न्यायमूर्ति एसएम सुब्रमण्यम ने आगे टिप्पणी की कि कार्यकारी, निर्वाचित व्यक्तियों और अन्य अधिकारियों को दी गई शक्ति तलवार की तरह है. उन्होंने कहा कि ऐसे व्यक्तियों से सावधानीपूर्वक, कर्तव्यपरायण और अत्यधिक जिम्मेदारी और जवाबदेही के साथ कार्य करने की उम्मीद की जाती है.

इस न्यायालय का सुविचारित मत है कि भूमि हथियाने की गतिविधियों में शामिल निर्वाचित व्यक्ति भूमि हड़पने वालों की तुलना में कहीं अधिक गंभीर हैं, जो सामान्य नागरिक हैं. इस प्रकार ऐसे भूमि हथियाने वाले, जिन्हें राजनीतिक आत्मीयता मिली है, उन पर बिना किसी नरमी के मुकदमा चलाया जाना चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि यदि इस तरह की अवैध गतिविधियां निर्वाचित व्यक्तियों या अधिकारियों द्वारा की जाती हैं, तो निर्दयतापूर्वक मुकदमा चलाया जाना चाहिए. आदेश में कहा गया है जब ऐसी शक्तियों का दुरुपयोग किया जाता है, तो वे लोगों की इच्छा के विरुद्ध काम करते हैं, इसलिए बिना समय गंवाए कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए.

न्यायाधीश ने कहा कि दुर्भाग्य से राजनीतिक दलों या सत्ता में बैठे व्यक्तियों के खिलाफ भूमि हड़पने के बड़े पैमाने पर आरोप हैं. उन्होंने कहा कि अधिकारियों द्वारा नहीं बल्कि इलाके के लोगों द्वारा इनका पता लगाया जाता है.

न्यायाधीश ने चिंता व्यक्त की, कि आम नागरिक राजनीतिक रूप से संपन्न लोगों के खिलाफ आपत्तियां उठाने में असमर्थ हैं. इसलिए कोर्ट ने अधिकारियों से इस मुद्दे पर गुमनाम शिकायतों की भी जांच करने का आग्रह किया. डर के कारण ऐसे कई मामले सरकार के संज्ञान में नहीं लाए जाते हैं.

इन परिस्थितियों में सच का पता लगाने के लिए सरकार द्वारा गुमनाम पत्रों के माध्यम से सूचनाओं की भी जांच की जानी चाहिए. ऐसी परिस्थितियों में आम नागरिक की मानसिकता पर विचार किया जाना चाहिए.

न्यायाधीश ने कहा कि पुलिस, राजस्व विभाग या अन्य विभागों के कुछ अधिकारी सक्रिय रूप से या निष्क्रिय रूप से राजनीतिक दलों से संबंधित भूमि हथियाने वालों के साथ मिलीभगत करते हैं. उन्होंने जोर देकर कहा कि वर्दीधारी सेवाओं (पुलिस) की महिमा को बिना किसी समझौता के बनाए रखा जाना चाहिए.

पुलिस विभाग में अनुशासन धीरे-धीरे बिगड़ रहा है, जो न केवल दिखाई दे रहा है, बल्कि बड़े पैमाने पर जनता द्वारा अनुभव किया जा रहा है. इस प्रकार ऐसी वर्दीधारी सेवाओं में दक्षता स्तर में सुधार के लिए कार्य अनुशासन की बहाली और कार्य आवंटन की तर्कसंगतता सबसे महत्वपूर्ण है.

अदालत एक याचिका पर विचार कर रही थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि एक पंचायत अध्यक्ष और कुछ वार्ड सदस्यों ने राजनीतिक और बाहुबल का उपयोग करके सार्वजनिक धन को लूट लिया और सरकारी भूमि पर कब्जा कर लिया.

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने इन आरोपों को जनहित में उठाया था जिसका कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि अधिकारी जवाब देने में विफल रहे. इस पृष्ठभूमि में याचिकाकर्ता ने आगे शिकायत की है कि उसकी पानी की आपूर्ति गलत धारणा पर काट दी गई थी कि उसने बिजली की मोटर का उपयोग करके मुख्य लाइन से सीधे पानी का दोहन किया है. अन्य प्रार्थनाओं के अलावा याचिकाकर्ता ने अपने द्वारा झेली गई मानसिक पीड़ा के लिए मुआवजे के आदेश की भी मांग की है.

सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि याचिकाकर्ता की जलापूर्ति बहाल कर दी गई है. अदालत ने कहा कि इस मामले में आरोप और जवाबी आरोप शामिल हैं, जिसमें याचिकाकर्ता के खिलाफ पानी के अवैध दोहन के आरोप भी शामिल हैं.

कोर्ट ने आरोप को गंभीरता से लिया और कहा कि पानी के अवैध दोहन, किसी भी परिस्थिति में अधिकारियों द्वारा अनुमति नहीं दी जाती है. यह बड़े पैमाने पर समाज के खिलाफ अपराध है. जल ही जीवन है. उस इलाके के घरों में पानी का समान वितरण महत्वपूर्ण है और कोई भी अवैध रूप से पानी का दोहन कर रहा है.

यह भी पढ़ें-Madras HC ने मंदिरों में तमिल में मंत्रोच्चारण को प्रतिबंधित करने की याचिका की खारिज

अदालत ने अंततः गांव के अधिकारियों के खिलाफ भूमि हड़पने के आरोपों के साथ-साथ याचिकाकर्ता द्वारा अवैध रूप से पानी के दोहन के आरोपों की जांच करने का निर्देश देते हुए याचिका का निपटारा किया.

चेन्नई : मद्रास हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में भूमि हथियाने जैसी अवैध गतिविधियों में शामिल निर्वाचित व्यक्तियों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए. यह लोकतंत्र के लिए खतरे के समान है.

अदालत ने कहा कि इस तरह की जमीन हथियाना न केवल खतरनाक है बल्कि लोकतंत्र के लिए भी खतरा है. यही कारण है कि संवैधानिक न्यायालयों ने बार-बार जोर देकर कहा है कि गंभीर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

न्यायमूर्ति एसएम सुब्रमण्यम ने आगे टिप्पणी की कि कार्यकारी, निर्वाचित व्यक्तियों और अन्य अधिकारियों को दी गई शक्ति तलवार की तरह है. उन्होंने कहा कि ऐसे व्यक्तियों से सावधानीपूर्वक, कर्तव्यपरायण और अत्यधिक जिम्मेदारी और जवाबदेही के साथ कार्य करने की उम्मीद की जाती है.

इस न्यायालय का सुविचारित मत है कि भूमि हथियाने की गतिविधियों में शामिल निर्वाचित व्यक्ति भूमि हड़पने वालों की तुलना में कहीं अधिक गंभीर हैं, जो सामान्य नागरिक हैं. इस प्रकार ऐसे भूमि हथियाने वाले, जिन्हें राजनीतिक आत्मीयता मिली है, उन पर बिना किसी नरमी के मुकदमा चलाया जाना चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि यदि इस तरह की अवैध गतिविधियां निर्वाचित व्यक्तियों या अधिकारियों द्वारा की जाती हैं, तो निर्दयतापूर्वक मुकदमा चलाया जाना चाहिए. आदेश में कहा गया है जब ऐसी शक्तियों का दुरुपयोग किया जाता है, तो वे लोगों की इच्छा के विरुद्ध काम करते हैं, इसलिए बिना समय गंवाए कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए.

न्यायाधीश ने कहा कि दुर्भाग्य से राजनीतिक दलों या सत्ता में बैठे व्यक्तियों के खिलाफ भूमि हड़पने के बड़े पैमाने पर आरोप हैं. उन्होंने कहा कि अधिकारियों द्वारा नहीं बल्कि इलाके के लोगों द्वारा इनका पता लगाया जाता है.

न्यायाधीश ने चिंता व्यक्त की, कि आम नागरिक राजनीतिक रूप से संपन्न लोगों के खिलाफ आपत्तियां उठाने में असमर्थ हैं. इसलिए कोर्ट ने अधिकारियों से इस मुद्दे पर गुमनाम शिकायतों की भी जांच करने का आग्रह किया. डर के कारण ऐसे कई मामले सरकार के संज्ञान में नहीं लाए जाते हैं.

इन परिस्थितियों में सच का पता लगाने के लिए सरकार द्वारा गुमनाम पत्रों के माध्यम से सूचनाओं की भी जांच की जानी चाहिए. ऐसी परिस्थितियों में आम नागरिक की मानसिकता पर विचार किया जाना चाहिए.

न्यायाधीश ने कहा कि पुलिस, राजस्व विभाग या अन्य विभागों के कुछ अधिकारी सक्रिय रूप से या निष्क्रिय रूप से राजनीतिक दलों से संबंधित भूमि हथियाने वालों के साथ मिलीभगत करते हैं. उन्होंने जोर देकर कहा कि वर्दीधारी सेवाओं (पुलिस) की महिमा को बिना किसी समझौता के बनाए रखा जाना चाहिए.

पुलिस विभाग में अनुशासन धीरे-धीरे बिगड़ रहा है, जो न केवल दिखाई दे रहा है, बल्कि बड़े पैमाने पर जनता द्वारा अनुभव किया जा रहा है. इस प्रकार ऐसी वर्दीधारी सेवाओं में दक्षता स्तर में सुधार के लिए कार्य अनुशासन की बहाली और कार्य आवंटन की तर्कसंगतता सबसे महत्वपूर्ण है.

अदालत एक याचिका पर विचार कर रही थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि एक पंचायत अध्यक्ष और कुछ वार्ड सदस्यों ने राजनीतिक और बाहुबल का उपयोग करके सार्वजनिक धन को लूट लिया और सरकारी भूमि पर कब्जा कर लिया.

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने इन आरोपों को जनहित में उठाया था जिसका कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि अधिकारी जवाब देने में विफल रहे. इस पृष्ठभूमि में याचिकाकर्ता ने आगे शिकायत की है कि उसकी पानी की आपूर्ति गलत धारणा पर काट दी गई थी कि उसने बिजली की मोटर का उपयोग करके मुख्य लाइन से सीधे पानी का दोहन किया है. अन्य प्रार्थनाओं के अलावा याचिकाकर्ता ने अपने द्वारा झेली गई मानसिक पीड़ा के लिए मुआवजे के आदेश की भी मांग की है.

सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि याचिकाकर्ता की जलापूर्ति बहाल कर दी गई है. अदालत ने कहा कि इस मामले में आरोप और जवाबी आरोप शामिल हैं, जिसमें याचिकाकर्ता के खिलाफ पानी के अवैध दोहन के आरोप भी शामिल हैं.

कोर्ट ने आरोप को गंभीरता से लिया और कहा कि पानी के अवैध दोहन, किसी भी परिस्थिति में अधिकारियों द्वारा अनुमति नहीं दी जाती है. यह बड़े पैमाने पर समाज के खिलाफ अपराध है. जल ही जीवन है. उस इलाके के घरों में पानी का समान वितरण महत्वपूर्ण है और कोई भी अवैध रूप से पानी का दोहन कर रहा है.

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अदालत ने अंततः गांव के अधिकारियों के खिलाफ भूमि हड़पने के आरोपों के साथ-साथ याचिकाकर्ता द्वारा अवैध रूप से पानी के दोहन के आरोपों की जांच करने का निर्देश देते हुए याचिका का निपटारा किया.

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