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92 साल में पीएचडी की मानद उपाधि, महाराष्ट्र के गांधीवादी की प्रेरक यात्रा - 92 साल के लालसाहेब बाबर को पीएचडी की मानद उपाधि

महाराष्ट्र के एक शख्स को 92 साल की उम्र में पीएचडी की मानद उपाधि से नवाजा गया है. पढ़िए 92 साल के लालसाहेब बाबर ने ऐसा क्या किया कि कॉमनवेल्थ वोकेशनल यूनिवर्सिटी ने उन्हें मानद उपाधि दी.

Lalasaheb Babar
लालसाहेब बाबर
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Published : Feb 19, 2022, 7:06 PM IST

सोलापुर (महाराष्ट्र) : पंढरपुर के लालसाहेब बाबर के जीवन का हैरतअंगेज सफर जिसमें 92 साल की उम्र में पीएचडी की मानद उपाधि मिलना किसी सपने जैसा ही है. ये संभव हुआ उनकी लगन के कारण. संगोला तालुका के सोनंद गांव के रहने वाले लालसाहेब ने शिक्षा क्षेत्र में सेवाएं दीं. उसके बाद उन्होंने समर्पित होकर सामाजिक कार्यों को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया.

कॉमनवेल्थ वोकेशनल यूनिवर्सिटी (Commonwealth Vocational University) ने उन्हें पीएचडी की मानद उपाधि से सम्मानित किया है. वह युवाओं के लिए आइकॉन बन गए हैं जो कठिनाइयों के कारण शिक्षा से वंचित हैं. सोलापुर जिले के सांगोला तालुका के एक छोटे से गांव सोनंद में 92 वर्षीय दादा लालसाहेब बाबर अपने परिवार के साथ रहते हैं. उनके परिवार के सभी सदस्य उच्च शिक्षित हैं. लालसाहेब बाबर का जन्म 1 जनवरी 1930 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था. पिता ग्वालियर के सिंधिया राजघराने में बड़े औहदे पर थे इसलिए उन्होंने बचपन में शाही परिवार का अनुभव किया.

बाद में उनकी शिक्षा सोनन्द के एक स्कूल में हुई. लालासाहेब बाबर बचपन से ही शिक्षा के महत्व को जानते थे. उसी से उन्होंने अपना जीवन गांधीवादी विचारधारा को समर्पित कर दिया. अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, लालसाहेब बाबर ने 1946 से 1947 तक एक प्राथमिक शिक्षक के रूप में अपनी सेवा शुरू की. शिक्षण करियर की शुरुआत मानेगांव के एक नए स्कूल से हुई. उन्होंने खुद को सामाजिक कार्यों के लिए समर्पित करने के लिए 1950 में अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश किया और सोनन्द गांव के सरपंच बने. उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं को उठाया.

गांव में विभिन्न गतिविधियां
1952 में सोनन्द ग्राम पंचायत में तांतमुक्ति गांव अभियान योजना लागू की गई (तंतमुक्ति गांव अभियान योजना का अर्थ है बिना झगड़े वाला गांव). उन्होंने कई अदालती मामलों और थाने की शिकायतों को गांव में निपटाने की कोशिश की. गांवों में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए उन्होंने गांव में सुरक्षा बल का गठन कर गांव को निडर बनाने का प्रयास किया.

उन्होंने गाडगे बाबा के गांव को स्वच्छ रखने के विचार को फैलाया और प्रचारित किया और गांव को साफ और सुंदर रखने की कोशिश की. ग्राम पंचायत की सीमा के भीतर छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी छात्रों को प्राथमिक शिक्षा देने पर जोर दिया. सभी शिक्षित युवाओं को प्राथमिक शिक्षकों के रूप में भर्ती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. सत्तर के दशक में लालसाहेब बाबर ने अपने जिले की कई सामाजिक समितियों में लगन से काम किया.

पढ़ें- कमल हासन को ओडिशा संस्करण में मिली डॉक्टरेट की मानद उपाधि

राजनीति के साथ-साथ वे सामाजिक कार्यों के प्रति कटिबद्ध थे और विकास के कई कार्यों को ग्रामीण क्षेत्रों तक ले गए. 92 साल की उम्र में भी लालसाहेब बाबरे में समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जोश दिखता है. यही वजह है कि उनके सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक कार्यों के लिए कॉमनवेल्थ वोकेशनल यूनिवर्सिटी ने डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया. एक शिक्षक के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों से शुरू होकर पीएचडी का उनका सफर अद्भुत है.

सोलापुर (महाराष्ट्र) : पंढरपुर के लालसाहेब बाबर के जीवन का हैरतअंगेज सफर जिसमें 92 साल की उम्र में पीएचडी की मानद उपाधि मिलना किसी सपने जैसा ही है. ये संभव हुआ उनकी लगन के कारण. संगोला तालुका के सोनंद गांव के रहने वाले लालसाहेब ने शिक्षा क्षेत्र में सेवाएं दीं. उसके बाद उन्होंने समर्पित होकर सामाजिक कार्यों को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया.

कॉमनवेल्थ वोकेशनल यूनिवर्सिटी (Commonwealth Vocational University) ने उन्हें पीएचडी की मानद उपाधि से सम्मानित किया है. वह युवाओं के लिए आइकॉन बन गए हैं जो कठिनाइयों के कारण शिक्षा से वंचित हैं. सोलापुर जिले के सांगोला तालुका के एक छोटे से गांव सोनंद में 92 वर्षीय दादा लालसाहेब बाबर अपने परिवार के साथ रहते हैं. उनके परिवार के सभी सदस्य उच्च शिक्षित हैं. लालसाहेब बाबर का जन्म 1 जनवरी 1930 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था. पिता ग्वालियर के सिंधिया राजघराने में बड़े औहदे पर थे इसलिए उन्होंने बचपन में शाही परिवार का अनुभव किया.

बाद में उनकी शिक्षा सोनन्द के एक स्कूल में हुई. लालासाहेब बाबर बचपन से ही शिक्षा के महत्व को जानते थे. उसी से उन्होंने अपना जीवन गांधीवादी विचारधारा को समर्पित कर दिया. अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, लालसाहेब बाबर ने 1946 से 1947 तक एक प्राथमिक शिक्षक के रूप में अपनी सेवा शुरू की. शिक्षण करियर की शुरुआत मानेगांव के एक नए स्कूल से हुई. उन्होंने खुद को सामाजिक कार्यों के लिए समर्पित करने के लिए 1950 में अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश किया और सोनन्द गांव के सरपंच बने. उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं को उठाया.

गांव में विभिन्न गतिविधियां
1952 में सोनन्द ग्राम पंचायत में तांतमुक्ति गांव अभियान योजना लागू की गई (तंतमुक्ति गांव अभियान योजना का अर्थ है बिना झगड़े वाला गांव). उन्होंने कई अदालती मामलों और थाने की शिकायतों को गांव में निपटाने की कोशिश की. गांवों में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए उन्होंने गांव में सुरक्षा बल का गठन कर गांव को निडर बनाने का प्रयास किया.

उन्होंने गाडगे बाबा के गांव को स्वच्छ रखने के विचार को फैलाया और प्रचारित किया और गांव को साफ और सुंदर रखने की कोशिश की. ग्राम पंचायत की सीमा के भीतर छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी छात्रों को प्राथमिक शिक्षा देने पर जोर दिया. सभी शिक्षित युवाओं को प्राथमिक शिक्षकों के रूप में भर्ती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. सत्तर के दशक में लालसाहेब बाबर ने अपने जिले की कई सामाजिक समितियों में लगन से काम किया.

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राजनीति के साथ-साथ वे सामाजिक कार्यों के प्रति कटिबद्ध थे और विकास के कई कार्यों को ग्रामीण क्षेत्रों तक ले गए. 92 साल की उम्र में भी लालसाहेब बाबरे में समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जोश दिखता है. यही वजह है कि उनके सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक कार्यों के लिए कॉमनवेल्थ वोकेशनल यूनिवर्सिटी ने डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया. एक शिक्षक के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों से शुरू होकर पीएचडी का उनका सफर अद्भुत है.

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