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विधान परिषद के गठन की क्या है प्रक्रिया, जानें - process of constitution of legislative council

ममता सरकार ने प. बंगाल में विधान परिषद के गठन के लिए विधानसभा से प्रस्ताव पारित किया है. हालांकि, जब तक लोकसभा और राज्य सभा से इस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिल जाती है, तब तक इसका गठन संभव नहीं हो सकेगा. क्या मोदी सरकार इस प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान करेगी, कहना मुश्किल है. ओडिशा, राजस्थान और असम की ओर से पहले ही ऐसा प्रस्ताव भेजा जा चुका है, लेकिन अभी तक उसे मंजूरी नहीं मिली है. अभी छह राज्यों में विधान परिषद की व्यवस्था है.

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Published : Jul 6, 2021, 6:49 PM IST

Updated : Jul 6, 2021, 7:27 PM IST

हैदराबाद : पश्चिम बंगाल में विधान परिषद के गठन को मंजूरी मिल गई है. विधानसभा में इसके समर्थन में 196 मत पड़े. संविधान की धारा 169 के तहत राज्य में विधान परिषद का गठन किया जा सकता है. हालांकि, इस पर अमल तभी हो सकेगा, जब इसे संसद की दोनों सदनों से मंजूरी मिल जाए. यानी इसे लोकसभा और राज्यसभा दोनों से मंजूरी लेनी होगी.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा के दौरान ही विधान परिषद के गठन का वादा किया था. आपको बता दें कि बंगाल विधानसभा में कुल 294 सीटें हैं. इसलिए विधान परिषद में सीटों की संख्या विधानसभा में कुल सीटों की संख्या का एक तिहाई हो सकती है. यह संख्या 98 होती है.

दिलचस्प ये है कि प. बंगाल में विधान परिषद की व्यवस्था पहले थी. लेकिन 21 मार्च 1969 को इसे खत्म कर दिया गया था.

भारत के छह राज्यों में द्विसदनात्मक व्यवस्था है. यानी इन राज्यों में विधानसभा के साथ विधान परिषद भी काम करती है. द्विसदन वाले राज्य हैं- उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र. ओडिशा, राजस्थान और असम ने राज्य में विधान परिषद लाने के लिए प्रस्ताव पारित किया है. लेकिन उसे अभी तक ऊपर से मंजूरी नहीं मिली है.

कैसे होता है विधान परिषद का गठन और विघटन

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत राज्य विधान परिषद बना भी सकते हैं और खत्म भी कर सकते हैं. राज्य से विधान परिषद का गठन और खत्म करने के लिए विधानसभा में विशेष प्रस्ताव लाया जाता है. विशेष प्रस्ताव का मतलब है कि कुल सदस्यों के दो तिहाई मतों से यह प्रस्ताव हो. इसके बाद यह प्रस्ताव संसद के पास जाता है. वहां पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी की जरूरत होती है. यदि इस प्रस्ताव पर राष्ट्रपति की मुहर लग जाती है, तो यह प्रस्ताव पास हो जाता है.

विधान परिषद के लिए सदस्यों का चुनाव

विधान परिषद के एक तिहाई सदस्य राज्य के विधानसभा सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं. अन्य एक तिहाई सदस्य एक विशेष निर्वाचक मंडल द्वारा निर्वाचित होते हैं, जिसमें नगर पालिकाओं, जिला बोर्डों और अन्य स्थानीय निकायों के सदस्य शामिल होते हैं.

इसके अलावा सदस्यों के बारहवें (1/12) भाग का निर्वाचन शिक्षकों के निर्वाचक मंडल द्वारा और एक अन्य बारहवें भाग का निर्वाचन पंजीकृत ऐसे स्नातकों के निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जिन्हें स्नातक पास किए हुए तीन वर्ष हो गए हों. शेष सदस्यों को विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट सेवाओं के लिए राज्यपाल द्वारा मनोनीत किया जाता है.

विधान परिषद के सदस्यों का कार्यकाल

अनुच्छेद 171 के अनुसार विधान परिषद के सदस्यों की संख्या राज्य के विधानसभा सदस्यों की कुल संख्या के एक तिहाई (1/3) से अधिक और 40 से कम नहीं होना चाहिए. विधान परिषद के सदस्यों का कार्यकाल भी राज्यसभा सांसदों की तरह छह वर्ष का होता है. विधान परिषद के एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष में कार्यनिवृत्त हो जाते हैं. विधान परिषद का सदस्य बनने के लिए कम-कम से 30 वर्ष आयु होना जरूरी है.

राज्यों में विधान परिषद की कितनी सीटें

भारत में आबादी के हिसाब से सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश है और इस राज्य में ही सबसे ज्यादा विधानसभा सीटें भी हैं. इस राज्य के विधान परिषद सदस्यों की संख्या 100 है. इसके बाद बिहार में 96, कर्नाटक में 75, महाराष्ट्र में 78, आंध्र प्रदेश में 58 और तेलंगाना में 40 सदस्य हैं.

विधान परिषद से जुड़े कुछ तथ्य

विधान परिषद का अध्यक्ष सभापति होता है, लेकिन यह राज्यसभा की तरह चुना नहीं जाता है, बल्कि विधान परिषद के किसी एक सदस्य को सभापति के लिए चुन लिया जाता है. विधान परिषद के सदस्य राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग नहीं ले सकते. विधान परिषद वित्त विधेयक को 14 दिन से ज्यादा नहीं रोक सकती. यदि रोकती है तो वह अपने आप पास हो जाता है. विधान परिषद किसी भी विधेयक को चार माह से ज्यादा नहीं रोक सकती है. जम्मू-कश्मीर एक ऐसा राज्य था, जहां विधान परिषद में 36 सदस्य थे. यह राज्य के संविधान 50 के तहत था. फिलहाल जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बन गया है और वहां से विधान परिषद खत्म हो गया है.

ये भी पढ़ें : पश्चिम बंगाल विधान परिषद का प्रस्ताव पारित, 196 विधायकों ने किया समर्थन

हैदराबाद : पश्चिम बंगाल में विधान परिषद के गठन को मंजूरी मिल गई है. विधानसभा में इसके समर्थन में 196 मत पड़े. संविधान की धारा 169 के तहत राज्य में विधान परिषद का गठन किया जा सकता है. हालांकि, इस पर अमल तभी हो सकेगा, जब इसे संसद की दोनों सदनों से मंजूरी मिल जाए. यानी इसे लोकसभा और राज्यसभा दोनों से मंजूरी लेनी होगी.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विधानसभा के दौरान ही विधान परिषद के गठन का वादा किया था. आपको बता दें कि बंगाल विधानसभा में कुल 294 सीटें हैं. इसलिए विधान परिषद में सीटों की संख्या विधानसभा में कुल सीटों की संख्या का एक तिहाई हो सकती है. यह संख्या 98 होती है.

दिलचस्प ये है कि प. बंगाल में विधान परिषद की व्यवस्था पहले थी. लेकिन 21 मार्च 1969 को इसे खत्म कर दिया गया था.

भारत के छह राज्यों में द्विसदनात्मक व्यवस्था है. यानी इन राज्यों में विधानसभा के साथ विधान परिषद भी काम करती है. द्विसदन वाले राज्य हैं- उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र. ओडिशा, राजस्थान और असम ने राज्य में विधान परिषद लाने के लिए प्रस्ताव पारित किया है. लेकिन उसे अभी तक ऊपर से मंजूरी नहीं मिली है.

कैसे होता है विधान परिषद का गठन और विघटन

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 169 के तहत राज्य विधान परिषद बना भी सकते हैं और खत्म भी कर सकते हैं. राज्य से विधान परिषद का गठन और खत्म करने के लिए विधानसभा में विशेष प्रस्ताव लाया जाता है. विशेष प्रस्ताव का मतलब है कि कुल सदस्यों के दो तिहाई मतों से यह प्रस्ताव हो. इसके बाद यह प्रस्ताव संसद के पास जाता है. वहां पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी की जरूरत होती है. यदि इस प्रस्ताव पर राष्ट्रपति की मुहर लग जाती है, तो यह प्रस्ताव पास हो जाता है.

विधान परिषद के लिए सदस्यों का चुनाव

विधान परिषद के एक तिहाई सदस्य राज्य के विधानसभा सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं. अन्य एक तिहाई सदस्य एक विशेष निर्वाचक मंडल द्वारा निर्वाचित होते हैं, जिसमें नगर पालिकाओं, जिला बोर्डों और अन्य स्थानीय निकायों के सदस्य शामिल होते हैं.

इसके अलावा सदस्यों के बारहवें (1/12) भाग का निर्वाचन शिक्षकों के निर्वाचक मंडल द्वारा और एक अन्य बारहवें भाग का निर्वाचन पंजीकृत ऐसे स्नातकों के निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है, जिन्हें स्नातक पास किए हुए तीन वर्ष हो गए हों. शेष सदस्यों को विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट सेवाओं के लिए राज्यपाल द्वारा मनोनीत किया जाता है.

विधान परिषद के सदस्यों का कार्यकाल

अनुच्छेद 171 के अनुसार विधान परिषद के सदस्यों की संख्या राज्य के विधानसभा सदस्यों की कुल संख्या के एक तिहाई (1/3) से अधिक और 40 से कम नहीं होना चाहिए. विधान परिषद के सदस्यों का कार्यकाल भी राज्यसभा सांसदों की तरह छह वर्ष का होता है. विधान परिषद के एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष में कार्यनिवृत्त हो जाते हैं. विधान परिषद का सदस्य बनने के लिए कम-कम से 30 वर्ष आयु होना जरूरी है.

राज्यों में विधान परिषद की कितनी सीटें

भारत में आबादी के हिसाब से सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश है और इस राज्य में ही सबसे ज्यादा विधानसभा सीटें भी हैं. इस राज्य के विधान परिषद सदस्यों की संख्या 100 है. इसके बाद बिहार में 96, कर्नाटक में 75, महाराष्ट्र में 78, आंध्र प्रदेश में 58 और तेलंगाना में 40 सदस्य हैं.

विधान परिषद से जुड़े कुछ तथ्य

विधान परिषद का अध्यक्ष सभापति होता है, लेकिन यह राज्यसभा की तरह चुना नहीं जाता है, बल्कि विधान परिषद के किसी एक सदस्य को सभापति के लिए चुन लिया जाता है. विधान परिषद के सदस्य राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग नहीं ले सकते. विधान परिषद वित्त विधेयक को 14 दिन से ज्यादा नहीं रोक सकती. यदि रोकती है तो वह अपने आप पास हो जाता है. विधान परिषद किसी भी विधेयक को चार माह से ज्यादा नहीं रोक सकती है. जम्मू-कश्मीर एक ऐसा राज्य था, जहां विधान परिषद में 36 सदस्य थे. यह राज्य के संविधान 50 के तहत था. फिलहाल जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बन गया है और वहां से विधान परिषद खत्म हो गया है.

ये भी पढ़ें : पश्चिम बंगाल विधान परिषद का प्रस्ताव पारित, 196 विधायकों ने किया समर्थन

Last Updated : Jul 6, 2021, 7:27 PM IST
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