वाराणसी : सर्व विद्या की राजधानी कहे जाने वाले काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना हिंदी तिथि से (16 फरवरी) बसंत पंचमी के दिन 1916 में हुई थी. अंग्रेजी तिथि के हिसाब से चार फरवरी 1916 को इसकी आधारशिला रखी गई थी. 1360 एकड़ में फैला यह विश्वविद्यालय एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है. विश्वविद्यालय में छह संस्थान, 16 संकाय और 140 विभाग हैं. प्रत्येक वर्ष लगभग 35 हजार छात्र यहां पर अध्ययन ग्रहण करते हैं. लगभग 32 देशों के छात्र-छात्राएं यहां पर आते हैं. गर्ल्स, बॉयज हॉस्टल मिलाकर कुल 74 हॉस्टल हैं, इसीलिए एशिया का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय कहा जाता है. आज (मंगलवार) विश्वविद्यालय अपने 105 वर्ष पूर्ण कर चुका है.
विश्वविद्यालय की स्थापना में इनका रहा मुख्य योगदान
विश्वविद्यालय आंदोलनकारियों का रहा गढ़
आंदोलनकारी अपनी बात को पूरे देश में कहने के लिए बनारस आते थे. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रावासों में चंद्रशेखर आजाद, राजेंद्र लाहिड़ी, ऐसे तमाम क्रांतिकारी आश्रय लेटेस्ट है और देश की आजादी के लिए योजना बनाते थे. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉक्टर एनी बेसेंट, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी,सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह जय प्रकाश नारायण, कमलापति त्रिपाठी, गोविंद मालवीय, आचार्य नरेंद्र देव, भगवान दास, जगजीवन राम, सुंदर दास, चंद्रशेखर आजाद, आचार्य रामदेव शुक्ल ऐसे महान लोग थे, जिनका बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से संबंध था.
वेद से लेकर चिकित्सा विज्ञान तक की दी जाती है शिक्षा
बीएचयू विश्व का ऐसा विश्वविद्यालय है, जहां विज्ञान के साथ-साथ वेद और शास्त्र ज्योतिष की शिक्षा भी दी जाती है. संगीत एवं मंच कला संकाय शिक्षा ग्रहण करने वाले बहुत से छात्र विश्व पटल पर बीएचयू को आज भी प्रदर्शित कर रहे हैं. विज्ञान के क्षेत्र में बिच्छू लगातार नए अनुसंधान कर रहा है. खास बात यह है कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रांगण में श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर स्थापित है. इसको नया विश्वनाथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि इसकी गुम्मद, दिल्ली के कुतुब मीनार से भी ऊंची है.
भारत रत्न का बड़ा सम्मान
महान चिंतक, देशभक्त, पत्रकार, अधिवक्ता और शिक्षाविद पंडित मदन मोहन मालवीय को भारत सरकार ने वर्ष 2014 में भारत में देने की घोषणा की. यहां के लोगों ने कहा कि आपसे भारत रत्न का सम्मान और बढ़ गया. चार फरवरी 1916 में विश्वविद्यालय की स्थापना जिस स्थान पर की गई, वह शिलापट्ट आज भी मौजूद है. उसके साथ ही वहां पर एक मां सरस्वती का मंदिर है. प्रत्येक वर्ष बसंत पंचमी के दिन यहां पर विशेष प्रकार का अनुष्ठान किया जाता है. इस महान विश्वविद्यालय के स्थापना स्थल पर लोग सिर नवाते हैं.
पढ़ें : सर्व सिद्धिदायी अबूझ योग से बेहद खास है बसंत पंचमी
बीएचयू को एक मॉडल के रूप में मानना चाहिए
बीएचयू के प्रोफेसर राकेश भटनागर ने बताया कि बीएचयू के 105 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं. 105 साल पहले ऐसी सोच रखना, मुझे लगता है महामना अपने समय से बहुत आगे सोचते थे. उन्होंने कहा कि जब हमारा देश आजाद हुआ, तब बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी को एक मॉडल मानना चाहिए था. इस विश्वविद्यालय में कोई ऐसी शिक्षा नहीं है, जो यहां पर छात्रों को नहीं दी जाती है. हिंदुस्तान के किसी भी विश्वविद्यालय में ऐसा नहीं है. इसके लिए हम सभी लोग महामनाजी को श्रद्धांजलि देते हैं. महामना की उस सोच से हम इतने बड़े विश्वविद्यालय में काम कर रहे हैं.
महान आत्मा ने किया भिक्षाटन
प्रोफेसर भटनागर ने कहा कि एक महान आत्मा ने साधारण लोगों से, बड़े लोगों से, राजा-महाराजा सबसे दान लेकर के इतना बड़ा विश्वविद्यालय बनाया. आज के समय में ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता है. इतनी बड़ी यूनिवर्सिटी दान से बनाई गई है. उन्होंने कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि मैं यहां पर आकर अपनी सेवा दे रहा हूं. महामना के सपनों को साकार करने के लिए यहां के वर्तमान समय में कार्य कर रहे हैं. इस विश्वविद्यालय को और ऊंचाइयों पर पहुंचाया जाएगा.
अंतर्मन शुद्ध करने की पाठशाला
प्रोफेसर विजय नाथ मिश्र ने बताया कि विश्वविद्यालय पढ़ाई लिखाई से लेकर के एक चारित्रिक और व्यक्तित्व शैक्षणिक और अंतर मन को शुद्ध करने का स्थान है. उन्होंने कहा कि जब भारत गुलाम था, परतंत्र था, उस कठिन दौर में महामना ने यह संकल्प लिया और उसको शुरू किया. उन्होंने कहा, हम सभी को इस बात का गर्व है, जो कुछ भी महामना के बगिया ने हम लोगों को दिया है, इसके बदले नई भारत के लिए हमें भी अपना सर्वोच्च योगदान देना चाहिए.