बेंगलुरु: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे साफ हो चुके हैं और इन नतीजों के अनुसार कांग्रेस पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाती हुई दिख रही है. चुनावों को लेकर सभी पार्टियों ने जोरदार प्रचार अभियान चलाया. प्रचार अभियान के दौरान नेताओं द्वारा एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी जारी रहा. कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और स्टार प्रचारकों ने पूरे जोर-शोर से मतदाताओं को आकर्षित करने का प्रयास किया, लेकिन देखने को मिल रहा है जनता ने बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है.
कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई समेत कई दिग्गज नेताओं ने प्रचार अभियान की कमान संभाली, लेकिन इसके बावजूद पार्टी को यहां हार का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन यहां पर सवाल यह उठता है कि राज्य में भारतीय जनता पार्टी की हार के प्रमुख कारण क्या रहे. तो चलिए आपको बताते हैं कि आखिर कर्नाटक में बीजेपी को हार का सामना क्यों करना पड़ रहा है.
1. भ्रष्टाचार का मुद्दा रहा सबसे ऊपर: कर्नाटक में बीजेपी की हार का सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार रहा, जिसे कांग्रेस ने पहले से ही जनता के सामने रखा हुआ था. कांग्रेस लगातार कर्नाटक सरकार को 40 प्रतिशत की सरकार के तौर पर जनता के सामने पेश कर रही थी. लंबे समय पहले उठाया गया, यह मुद्दा काफी बड़ा हो गया और इसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा है. बड़ी बात यह भी रही कि भ्रष्टाचार के मामले में एस ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा भी देना पड़ा और एक बीजेपी विधायक को जेल भी जाना पड़ा था.
2. केंद्रीय नेतृत्व के सहारे लड़ा पूरा चुनाव: राज्य में चुनाव प्रचार के लिए कर्नाटक बीजेपी ने केंद्रीय नेतृत्व के नेताओं जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा पर ज्यादा भरोसा जताया. सबसे बड़ा खामिया पार्टी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे रखकर चुनाव लड़ने से उठाना पड़ा. उसका कारण यह रहा कि कर्नाटक की जनता पीएम मोदी के साथ खुद को जोड़ नहीं पाई. इसके अलावा राज्य के नेतृत्व ने जनता के सामने मजबूत चेहरा भी पेश नहीं किया. भले ही सीएम पद पर बसवराज बोम्मई बैठे थे, लेकिन राज्य में उनका प्रधान मजबूत नहीं था. जबकि कांग्रेस के डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया पार्टी के मजबूत चेहरा रहे.
3. जातिगत समीकरण में बीजेपी हुई फेल: कर्नाटक में भाजपा की हार का एक कारण जातिकरण समीकरण भी रहा, जो पार्टी पूरी तरह से बैठा नहीं पाई. यहां का लिंगायत समुदाय बीजेपी का कोर मतदाता है, लेकिन इसके बाद भी वह उन्हें अपने पाले में नहीं खींच पाई. इसके अलावा बीजेपी दलित, आदिवासी, ओबीसी और वोक्कालिंगा समाज को भी लुभाने में नाकाम साबित हुई. मुस्लिम समुदाय के आरक्षण को खत्म करने का मुद्दा भी बीजेपी के गले की फांस बन गया और कांग्रेस ने इसका फायदा उठाकर मुस्लिम को अपने पाले में खींच लिया. इसके अलावा कांग्रेस ने लिंगायत वोट बैंक में भी सेंधमारी की.
4. धार्मिक ध्रुवीकरण हुआ फेल: भरतीय जनता पार्टी पिछले करीब एक साल से राज्य में हलाला और हिजाब का मुद्दा उठाए हुई थी. इसके अलावा कांग्रेस के घोषणा पत्र में बजरंग दल को बैन करने के वादे को बीजेपी ने बजरंगबली से जोड़ दिया और इस मुद्दे को भगवान के अपमान के साथ जोड़ दिया. बीजेपी के नेताओं ने यहां जमकर हिंदुत्व का मुद्दा उठाया, लेकिन उनका यह दांव यहां काम नहीं आया.
5. राज्य के नेताओं को किनारे करना पड़ा मंहगा: कर्नाटक में बीजेपी का चेहरा रहे दिग्गज नेताओं को केंद्रीय नेतृत्व ने इस चुनाव में साइड लाइन कर दिया. राज्य में बीजेपी को खड़ा करने में पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा की बेहद अहम भूमिका रही है, लेकिन पार्टी ने उनसे पूरी तरह से किनारा कर लिया. इसके अलावा पार्टी के पूर्व दिग्गज नेता जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सादवी का पार्टी ने टिकट काटा, जिसके बाद दोनों नेताओं ने कांग्रेस से हाथ मिला लिया. बीजेपी का सबसे बड़ा वोट बैंक रहे लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े नेताओं के तौर पर येदियुरप्पा, सादवी और शेट्टार को जाना जाता है.