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Karnataka Assembly Election 2023 : कर्नाटक में भाजपा ने कैसे बनाई अपनी राह, एक नजर

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Published : Apr 3, 2023, 6:36 PM IST

कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी की राह आसान नहीं रही है. लंबे संघर्ष के बाद पार्टी ने कर्नाटक को दक्षिण के द्वार के रूप में प्रोजेक्ट किया. बीएस येदियुरप्पा जैसे नेता की बदौलत पार्टी ने बड़ी सफलता हासिल की है. आइए जानते हैं आखिर भाजपा ने कर्नाटक में किस तरह से अपनी राह बनाई है.

operation lotus
ऑपरेशन लोटस

बेंगलुरु : कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी 1983 से ही प्रयासरत है. उसे पहली सफलता उसी साल मिली थी, लेकिन सत्ता तक पहुंचने में 24 साल लग गए. वैसे भाजपा ने कर्नाटक में अपनी सरकार जरूर बनाई, लेकिन आज तक उसे चुनाव में बहुमत नहीं मिला. उसने दो-दो बार ऑपरेशन लोटस के जरिए अपनी सरकार बनाई. आइए जानते हैं पार्टी ने किस कदर कर्नाटक में अपनी सफलता के झंडे गाड़े हैं.

1983 से लेकर 1994 तक कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी को गंभीरता से नहीं लिया जाता था. 1994 में पहली बार भाजपा को 40 सीटें मिलीं. कांग्रेस को 34 सीटें मिलीं. जनता दल को 115 सीटें मिलीं और इसने अपनी सरकार बनाई. भाजपा को विपक्षी दल का दर्जा मिल गया. यह पार्टी के लिए बड़ी सफलता थी. कम के कम पार्टी विपक्षी दल का दर्जा तो हासिल कर पाई. इसके बाद 1999 में भाजपा को 44 सीटें मिलीं.

2004 भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण साल रहा. पार्टी को 79 सीटें मिलीं और वह राज्य की सबसे बड़ी पार्टी हो गई. इस साल किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला. ऐसी स्थिति में कांग्रेस और जेडीएस ने गठबंधन कर लिया. कांग्रेस नेता धर्म सिंह मुख्यमंत्री बने. जेडीएस नेता सिद्धारमैया उप मुख्यमंत्री बने. पर दो साल बाद ही सिद्धारमैया ने सरकार से इस्तीफा दे दिया. वे अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए.

सरकार को लेकर असमंजस की स्थिति बनी रही. तभी भाजपा और जेडीएस ने समझौता कर लिया. समझौते के तहत जेडीएस नेता एचडीकुमार स्वामी मुख्यमंत्री बने. बीएस येदियुरप्पा उस समय भाजपा के नेता थे. एक साल बाद अक्टूबर 2007 में येदियुरप्पा को सीएम बनना था. पर, कुमारस्वामी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया. भाजपा सत्ता में तो जरूर थी, लेकिन वह निर्णायक स्थिति में नहीं थी. कुमारस्वामी के इनकार करने के बाद भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया, और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. नवंबर 2007 में बीएस येदियुरप्पा को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया.

अगले साल 2008 में चुनाव हुए. भाजपा को 110 सीटें मिलीं. यह बहुमत से तीन कम थी. पार्टी ने किसी तरह विधायकों का प्रबंध कर सरकार बना ली. एक बार फिर से बीएस येदियुरप्पा ही सीएम बने. येदियुरप्पा ने उसके बाद ऑपरेशन लोटस का कमाल दिखाया. कांग्रेस और जेडीएस के 14 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया.

हालांकि, कुछ समय बाद ही कर्नाटक लोकायुक्त संतोष हेगड़े के फैसले के बाद येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा. अवैध खनन की एक रिपोर्ट में उनका नाम आया था. भाजपा ने सदानंद गौड़ा को सीएम बनाया. लेकिन वे भी लंबे समय तक सीएम नहीं रहे, उसके बाद पार्टी ने जगदीश शेट्टार को सीएम बनाया. येदियुरप्पा इस फैसले से नाखुश थे. उन्होंने भाजपा छोड़कर अपनी नई पार्टी कर्नाटक जनता पार्टी बना ली. 2013 के विधानसभा चुनाव में चौंकाने वाले परिणाम आए.

कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिल गया. कांग्रेस ने सिद्धारमैया को सीएम बनाया. इधर भाजपा की स्थिति बहुत ही खराब हो गई. पार्टी 40 सीटों पर सिमट गई. पार्टी को सबसे अधिक नुकसान येदियुरप्पा की वजह से लगा. केजपा को करीब 10 फीसदी वोट मिले, इसने भाजपा के उम्मीदवारों को कई जगहों पर हराने में बड़ी भूमिका निभाई. यहां तक कि विपक्षी दल का दर्जा भी जेडीएस को मिला, न कि भाजपा को.

इसके अगले साल 2014 में भाजपा ने बीएस येदियुरप्पा को फिर से साथ कर लिया. 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 104 सीटें मिलीं. येदियुरप्पा फिर से सीएम बने. लेकिन विधानसभा में बहुमत साबित करने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद जेडीएस और कांग्रेस ने गठबंधन कर अपनी सरकार बनाई. मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी बने. 2019 में भाजपा ने फिर से ऑपरेशन लोटस को अंजाम दिया. कांग्रेस और जेडीएस के 17 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया. 15 सीटों पर उपचुनाव हुए और उनमें से 12 सीटें भाजपा को मिलीं. दो सीटों पर चुनाव रोक दिया गया था. मस्की और आरआर नगर सीट. अब एक बार फिर से येदियुरप्पा को पार्टी ने इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया. बसवराज बोम्मई सीएम बने. पर, चुनाव से ठीक पहले पार्टी को यह असहसास हो गया कि जब तक येदियुरप्पा को फ्रंट पर नहीं रखेंगे, चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. पार्टी ने उन्हें फिर से आगे किया है.

ये भी पढ़ें : BJP eyes SC voters in Karnataka: कर्नाटक में भाजपा ने खड़गे की खोजी 'काट', दलित वोट में लगाएगी 'सेंध'

बेंगलुरु : कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी 1983 से ही प्रयासरत है. उसे पहली सफलता उसी साल मिली थी, लेकिन सत्ता तक पहुंचने में 24 साल लग गए. वैसे भाजपा ने कर्नाटक में अपनी सरकार जरूर बनाई, लेकिन आज तक उसे चुनाव में बहुमत नहीं मिला. उसने दो-दो बार ऑपरेशन लोटस के जरिए अपनी सरकार बनाई. आइए जानते हैं पार्टी ने किस कदर कर्नाटक में अपनी सफलता के झंडे गाड़े हैं.

1983 से लेकर 1994 तक कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी को गंभीरता से नहीं लिया जाता था. 1994 में पहली बार भाजपा को 40 सीटें मिलीं. कांग्रेस को 34 सीटें मिलीं. जनता दल को 115 सीटें मिलीं और इसने अपनी सरकार बनाई. भाजपा को विपक्षी दल का दर्जा मिल गया. यह पार्टी के लिए बड़ी सफलता थी. कम के कम पार्टी विपक्षी दल का दर्जा तो हासिल कर पाई. इसके बाद 1999 में भाजपा को 44 सीटें मिलीं.

2004 भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण साल रहा. पार्टी को 79 सीटें मिलीं और वह राज्य की सबसे बड़ी पार्टी हो गई. इस साल किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला. ऐसी स्थिति में कांग्रेस और जेडीएस ने गठबंधन कर लिया. कांग्रेस नेता धर्म सिंह मुख्यमंत्री बने. जेडीएस नेता सिद्धारमैया उप मुख्यमंत्री बने. पर दो साल बाद ही सिद्धारमैया ने सरकार से इस्तीफा दे दिया. वे अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए.

सरकार को लेकर असमंजस की स्थिति बनी रही. तभी भाजपा और जेडीएस ने समझौता कर लिया. समझौते के तहत जेडीएस नेता एचडीकुमार स्वामी मुख्यमंत्री बने. बीएस येदियुरप्पा उस समय भाजपा के नेता थे. एक साल बाद अक्टूबर 2007 में येदियुरप्पा को सीएम बनना था. पर, कुमारस्वामी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया. भाजपा सत्ता में तो जरूर थी, लेकिन वह निर्णायक स्थिति में नहीं थी. कुमारस्वामी के इनकार करने के बाद भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया, और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. नवंबर 2007 में बीएस येदियुरप्पा को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया.

अगले साल 2008 में चुनाव हुए. भाजपा को 110 सीटें मिलीं. यह बहुमत से तीन कम थी. पार्टी ने किसी तरह विधायकों का प्रबंध कर सरकार बना ली. एक बार फिर से बीएस येदियुरप्पा ही सीएम बने. येदियुरप्पा ने उसके बाद ऑपरेशन लोटस का कमाल दिखाया. कांग्रेस और जेडीएस के 14 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया.

हालांकि, कुछ समय बाद ही कर्नाटक लोकायुक्त संतोष हेगड़े के फैसले के बाद येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा. अवैध खनन की एक रिपोर्ट में उनका नाम आया था. भाजपा ने सदानंद गौड़ा को सीएम बनाया. लेकिन वे भी लंबे समय तक सीएम नहीं रहे, उसके बाद पार्टी ने जगदीश शेट्टार को सीएम बनाया. येदियुरप्पा इस फैसले से नाखुश थे. उन्होंने भाजपा छोड़कर अपनी नई पार्टी कर्नाटक जनता पार्टी बना ली. 2013 के विधानसभा चुनाव में चौंकाने वाले परिणाम आए.

कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिल गया. कांग्रेस ने सिद्धारमैया को सीएम बनाया. इधर भाजपा की स्थिति बहुत ही खराब हो गई. पार्टी 40 सीटों पर सिमट गई. पार्टी को सबसे अधिक नुकसान येदियुरप्पा की वजह से लगा. केजपा को करीब 10 फीसदी वोट मिले, इसने भाजपा के उम्मीदवारों को कई जगहों पर हराने में बड़ी भूमिका निभाई. यहां तक कि विपक्षी दल का दर्जा भी जेडीएस को मिला, न कि भाजपा को.

इसके अगले साल 2014 में भाजपा ने बीएस येदियुरप्पा को फिर से साथ कर लिया. 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 104 सीटें मिलीं. येदियुरप्पा फिर से सीएम बने. लेकिन विधानसभा में बहुमत साबित करने से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद जेडीएस और कांग्रेस ने गठबंधन कर अपनी सरकार बनाई. मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी बने. 2019 में भाजपा ने फिर से ऑपरेशन लोटस को अंजाम दिया. कांग्रेस और जेडीएस के 17 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया. 15 सीटों पर उपचुनाव हुए और उनमें से 12 सीटें भाजपा को मिलीं. दो सीटों पर चुनाव रोक दिया गया था. मस्की और आरआर नगर सीट. अब एक बार फिर से येदियुरप्पा को पार्टी ने इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया. बसवराज बोम्मई सीएम बने. पर, चुनाव से ठीक पहले पार्टी को यह असहसास हो गया कि जब तक येदियुरप्पा को फ्रंट पर नहीं रखेंगे, चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. पार्टी ने उन्हें फिर से आगे किया है.

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