ETV Bharat / bharat

Kargil Diwas : पाकिस्तानी चौकियां रेत की भांति चूर-चूर हो गईं, डर के मारे क्लिंटन के पास पहुंच गए थे नवाज शरीफ

करगिल युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों के आक्रमण के आगे पाकिस्तानी चौकियां चूर-चूर हो गईं. पाकिस्तानी सैनिक इधर-उधर चूहे की भांति भाग रहे थे. जब भी ऊंचाई से भारतीय जेट विमान गुजरता था, पाकिस्तानी सैनिकों की धड़कनें बढ़ जाती थीं. करगिल युद्ध में क्या हुआ और पाकिस्तानी सैनिक किस तरह वहां से भागे, आइए पढ़ते हैं पूरी स्टोरी.

kargil divas
करगिल दिवस
author img

By

Published : Jul 26, 2023, 7:09 PM IST

Updated : Jul 26, 2023, 9:43 PM IST

नई दिल्ली : 26 जुलाई का दिन पाकिस्तान कभी नहीं भूल पाएगा. आज ही के दिन हमारे भारतीय वीर जवानों ने करगिल की पहाड़ियों पर जो करिश्मा दिखाया था, उससे पूरी दुनिया अचंभित रह गई थी. पाकिस्तानी सैनिक पूरी दुनिया के सामने शर्मसार हो गया. भारतीय सैनिकों ने 16 हजार फीट की ऊंचाई पर बैठे दुश्मनों को एक-एक कर धाराशायी कर दिया और वहां पर विजयी विश्व तिरंगा लहरा दिया. युद्ध करीब तीन महीने तक चला था. इस दिन को पूरा देश करगिल विजय दिवस के रूप में याद करता है.

भारत ने 'ऑपरेशन विजय' चलाकर पाकिस्तानी सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. किस तरह से करगिल का मामला शुरू हुआ, आइए इस पर एक नजर डालते हैं.

  • 'सर-ज़मीन-ए-हिंद पर फिर खौफ का साया ना हो, एक भी कतरा लहू का जो बहा ज़ाया ना हो' 🇮🇳

    भारतीय सशस्त्र बलों के अद्भुत पराक्रम, उत्कृष्ट रण-कौशल और अटूट कर्तव्यनिष्ठा के महान प्रतीक #KargilVijayDiwas पर कारगिल से दुश्मनों को खदेड़कर पुन: तिरंगा 🇮🇳 लहराने वाले वीर जवानों को सादर नमन! pic.twitter.com/FT8v2VESPR

    — पीआईबी हिंदी (@PIBHindi) July 26, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

दरअसल, 1999 के मई महीने में पाकिस्तानी सैनिकों ने करगिल में घुसपैठ की कोशिश की थी. उनकी योजना लंबे समय से चल रही थी. कायर पाकिस्तानी सैनिकों ने मुजाहिदीनों को आगे कर अपना अभियान चलाया और बाद में खुद सामने आ गए. करगिल लद्दाख में है.

घुसपैठ को लेकर पहली सूचना तीन मई 1999 को मिली थी. लद्दाख में भेड़ चराने वाले गड़ेरिये ने इस घुसपैठ के बारे में सेना को सूचना दी थी. इसके बाद इस सूचना का विश्लेषण किया गया और आठ मई को भारत ने 'ऑपरेशन विजय' का अभियान शुरू किया. हालांकि, उस समय तक किसी को भी अंदाजा नहीं था कि यह अभियान कब तक चलेगा.

भारतीय वायु सेना ने थल सेना की मदद के लिए हवाई कार्रवाई की. एयरफोर्स ने 'ऑपरेशन सफेद सागर' की शुरुआत की. सबसे पहला हमला 26 मई 1999 को किया गया. मई महीने में सेना ने जितने भी अभियान चलाए थे, उसकी गति थोड़ी धीमी थी.

पाकिस्तानी सैनिकों ने मुजाहिदीनों की मदद से यह घुसपैठ की थी. ऊंचाई पर पोजिशन लेने से उन्हें लगा था कि वे भारतीय सैनिकों को पीछे धकेल देंगे. पाकिस्तानी सैनिकों ने बर्फ की आड़ में वहां पर बंकर बना लिए थे. हथियार, गोला-बारूद और रॉकेट जमा कर लिए गए थे. वहां के दृश्य ये गवाह दे रहे थे कि पाकिस्तानी सैनिकों ने बड़ी योजना बनाकर इस अभियान को अंजाम दिया था.

  • 1999 :: PM Atal Bihari Vajpayee Went to Lahore In Bus and Few Months After That Kargil War Happened pic.twitter.com/27jcOjzue5

    — indianhistorypics (@IndiaHistorypic) July 26, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस युद्ध में करीब ढाई लाख गोले और रॉकेट दागे गए. कुछ रिपोर्ट में बताया गया है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किसी एक युद्ध में सबसे अधिक बम और गोले छोड़े गए, तो यह करगिल का युद्ध था.

दरअसल, पाकिस्तानी सैनिकों की योजना भारत के रणनीतिक प्वाइंट सियाचिन पर चढ़ाई करने की थी. पाकिस्तानियों की योजना करगिल के बाद सियाचिन को मिलाने की थी. सियाचिन की ग्लेशियर तक पहुंचने के लिए एनएच-वन का सहारा लिया जाता है. पाकिस्तानी सैनिकों की योजना उस पर कब्जा करने की थी. यदि पाकिस्तानियों का इस पर कब्जा हो जाता, तो लद्दाख की ओर जाने वाले रास्ते पर भी पाकिस्तानी सैनिक हावी हो जाते.

  • #KargilVijayDiwas2023 | On July 26 every year, Kargil Vijay Diwas is observed in India to honour the troops who gave their lives in the Kargil War. The stories of their bravery, courage, and passion are larger than life. Here is a special feature on the sacrifices made by our… pic.twitter.com/58qGtETVPG

    — DD News (@DDNewslive) July 26, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने बाद में एक इंटरव्यू में जिक्र किया था कि सियाचिन पर कब्जा उनका मकसद था. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पाकिस्तान के इस घुसपैठ की जैसे ही जानकारी मिली, उन्होंने तुरंत पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को फोन घुमाया. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नवाज शरीफ ने घटना की जानकारी होने से ही इनकार कर दिया. उन्होंने वाजपेयी को बताया कि वह परवेज मुशर्रफ से बात करेंगे, उसके बाद ही कुछ कह पाएंगे.

उस समय तक पाकिस्तानियों ने लेह-करगिल सड़क पर कब्जा कर लिया था. यह भारतीय सैनिकों के लिए बड़ी चुनौती थी. लेकिन जून मीहने में जब भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई शुरू की, तो पाकिस्तानियों को अंदाजा लग गया था कि वे ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सकते हैं. भारत के आठवीं डिवीजन ने पाकिस्तानी सैनिकों को गर्दा कर दिया. जून के महीने में भारतीय सैनिकों ने तोलोलिंग पर जीत हासिल कर ली थी. इस युद्ध में यह एक निर्णायक मोड़ था. इसे खुद पाकिस्तानियों ने भी स्वीकार किया था.

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक यह लड़ाई करीब सौ किलोमीटर के दायरे में लड़ी गई थी. उस समय की सबसे बड़ी चुनौती थी ऊंचाई पर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों पर निशाना साधना. सैन्य मामलों के जानकार बताते हैं कि ऊंचाई पर बैठे किसी भी एक सैनिक को हटाने के लिए आपको 27 गुना अधिक फोर्स की तैनाती करनी होती है. अब आप अंदाजा लगाइए कि यह युद्ध कितना कठिन था और हमारे वीर पराक्रमियों ने कितना साहस का परिचय दिया होगा.

उस समय के तत्कालीन वायु सेना अध्यक्ष ने वाजपेयी सरकार से एलओसी क्रॉस करने की भी इजाजत मांगी थी, ताकि पूरे पाकिस्तान को सबक सिखाया जा सके. यह एक राजनीतिक निर्णय था और वाजपेयी सरकार ने इसे करगिल तक ही सीमित रखा. हमारे दो जेट विमान और एक हेलिकॉप्टर को पाकिस्तानियों ने गिरा दिया था.

लेकिन जिस तरह का जवाब भारतीय सैनिकों ने दिया, ऐसा कहा जाता है कि पाकिस्तानी चौकी रेत की भांति चूर-चूर हो गए. उनकी बंदूकें छड़ी की तरह नजर आने लगी. जैसे ही वायुसेना का जेट विमान ऊपर से गुजरता था, पाकिस्तानी सैनिकों की धड़कने बढ़ जाती थीं. वे इधर-उधर भागने लगते थे.

पाकिस्तानी सैनिकों का यह हाल देखकर नवाज शरीफ भागे-भागे उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के पास गए. वह जाकर गिड़गिड़ाया. जिस समय पाकिस्तानियों की अमेरिका से बातचीत चल रही थी, उसी दौरान भारत ने टाइगर हिल्स पर कब्जा जमाकर पूरा खेल खत्म कर दिया.

इस युद्ध में हमारे 527 जवान शहीद हुए और 1363 जवान घायल हुए थे. पाकिस्तान के 700 से अधिक सैनिक मारे गए थे. करगिल दिवस पर हमारा मुख्य समारोह द्रास सेक्टर में मनाया जाता है.

ये भी पढ़ें : Kargil Vijay Diwas 2023: ग्रेनेड के साथ खाई गोलियां, फिर भी नहीं टूटा हौसला, Tiger Hills पर उत्तराखंड के लाल ने दिखाया कमाल

नई दिल्ली : 26 जुलाई का दिन पाकिस्तान कभी नहीं भूल पाएगा. आज ही के दिन हमारे भारतीय वीर जवानों ने करगिल की पहाड़ियों पर जो करिश्मा दिखाया था, उससे पूरी दुनिया अचंभित रह गई थी. पाकिस्तानी सैनिक पूरी दुनिया के सामने शर्मसार हो गया. भारतीय सैनिकों ने 16 हजार फीट की ऊंचाई पर बैठे दुश्मनों को एक-एक कर धाराशायी कर दिया और वहां पर विजयी विश्व तिरंगा लहरा दिया. युद्ध करीब तीन महीने तक चला था. इस दिन को पूरा देश करगिल विजय दिवस के रूप में याद करता है.

भारत ने 'ऑपरेशन विजय' चलाकर पाकिस्तानी सैनिकों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. किस तरह से करगिल का मामला शुरू हुआ, आइए इस पर एक नजर डालते हैं.

  • 'सर-ज़मीन-ए-हिंद पर फिर खौफ का साया ना हो, एक भी कतरा लहू का जो बहा ज़ाया ना हो' 🇮🇳

    भारतीय सशस्त्र बलों के अद्भुत पराक्रम, उत्कृष्ट रण-कौशल और अटूट कर्तव्यनिष्ठा के महान प्रतीक #KargilVijayDiwas पर कारगिल से दुश्मनों को खदेड़कर पुन: तिरंगा 🇮🇳 लहराने वाले वीर जवानों को सादर नमन! pic.twitter.com/FT8v2VESPR

    — पीआईबी हिंदी (@PIBHindi) July 26, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

दरअसल, 1999 के मई महीने में पाकिस्तानी सैनिकों ने करगिल में घुसपैठ की कोशिश की थी. उनकी योजना लंबे समय से चल रही थी. कायर पाकिस्तानी सैनिकों ने मुजाहिदीनों को आगे कर अपना अभियान चलाया और बाद में खुद सामने आ गए. करगिल लद्दाख में है.

घुसपैठ को लेकर पहली सूचना तीन मई 1999 को मिली थी. लद्दाख में भेड़ चराने वाले गड़ेरिये ने इस घुसपैठ के बारे में सेना को सूचना दी थी. इसके बाद इस सूचना का विश्लेषण किया गया और आठ मई को भारत ने 'ऑपरेशन विजय' का अभियान शुरू किया. हालांकि, उस समय तक किसी को भी अंदाजा नहीं था कि यह अभियान कब तक चलेगा.

भारतीय वायु सेना ने थल सेना की मदद के लिए हवाई कार्रवाई की. एयरफोर्स ने 'ऑपरेशन सफेद सागर' की शुरुआत की. सबसे पहला हमला 26 मई 1999 को किया गया. मई महीने में सेना ने जितने भी अभियान चलाए थे, उसकी गति थोड़ी धीमी थी.

पाकिस्तानी सैनिकों ने मुजाहिदीनों की मदद से यह घुसपैठ की थी. ऊंचाई पर पोजिशन लेने से उन्हें लगा था कि वे भारतीय सैनिकों को पीछे धकेल देंगे. पाकिस्तानी सैनिकों ने बर्फ की आड़ में वहां पर बंकर बना लिए थे. हथियार, गोला-बारूद और रॉकेट जमा कर लिए गए थे. वहां के दृश्य ये गवाह दे रहे थे कि पाकिस्तानी सैनिकों ने बड़ी योजना बनाकर इस अभियान को अंजाम दिया था.

  • 1999 :: PM Atal Bihari Vajpayee Went to Lahore In Bus and Few Months After That Kargil War Happened pic.twitter.com/27jcOjzue5

    — indianhistorypics (@IndiaHistorypic) July 26, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस युद्ध में करीब ढाई लाख गोले और रॉकेट दागे गए. कुछ रिपोर्ट में बताया गया है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किसी एक युद्ध में सबसे अधिक बम और गोले छोड़े गए, तो यह करगिल का युद्ध था.

दरअसल, पाकिस्तानी सैनिकों की योजना भारत के रणनीतिक प्वाइंट सियाचिन पर चढ़ाई करने की थी. पाकिस्तानियों की योजना करगिल के बाद सियाचिन को मिलाने की थी. सियाचिन की ग्लेशियर तक पहुंचने के लिए एनएच-वन का सहारा लिया जाता है. पाकिस्तानी सैनिकों की योजना उस पर कब्जा करने की थी. यदि पाकिस्तानियों का इस पर कब्जा हो जाता, तो लद्दाख की ओर जाने वाले रास्ते पर भी पाकिस्तानी सैनिक हावी हो जाते.

  • #KargilVijayDiwas2023 | On July 26 every year, Kargil Vijay Diwas is observed in India to honour the troops who gave their lives in the Kargil War. The stories of their bravery, courage, and passion are larger than life. Here is a special feature on the sacrifices made by our… pic.twitter.com/58qGtETVPG

    — DD News (@DDNewslive) July 26, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने बाद में एक इंटरव्यू में जिक्र किया था कि सियाचिन पर कब्जा उनका मकसद था. भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पाकिस्तान के इस घुसपैठ की जैसे ही जानकारी मिली, उन्होंने तुरंत पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को फोन घुमाया. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नवाज शरीफ ने घटना की जानकारी होने से ही इनकार कर दिया. उन्होंने वाजपेयी को बताया कि वह परवेज मुशर्रफ से बात करेंगे, उसके बाद ही कुछ कह पाएंगे.

उस समय तक पाकिस्तानियों ने लेह-करगिल सड़क पर कब्जा कर लिया था. यह भारतीय सैनिकों के लिए बड़ी चुनौती थी. लेकिन जून मीहने में जब भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई शुरू की, तो पाकिस्तानियों को अंदाजा लग गया था कि वे ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सकते हैं. भारत के आठवीं डिवीजन ने पाकिस्तानी सैनिकों को गर्दा कर दिया. जून के महीने में भारतीय सैनिकों ने तोलोलिंग पर जीत हासिल कर ली थी. इस युद्ध में यह एक निर्णायक मोड़ था. इसे खुद पाकिस्तानियों ने भी स्वीकार किया था.

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक यह लड़ाई करीब सौ किलोमीटर के दायरे में लड़ी गई थी. उस समय की सबसे बड़ी चुनौती थी ऊंचाई पर बैठे पाकिस्तानी सैनिकों पर निशाना साधना. सैन्य मामलों के जानकार बताते हैं कि ऊंचाई पर बैठे किसी भी एक सैनिक को हटाने के लिए आपको 27 गुना अधिक फोर्स की तैनाती करनी होती है. अब आप अंदाजा लगाइए कि यह युद्ध कितना कठिन था और हमारे वीर पराक्रमियों ने कितना साहस का परिचय दिया होगा.

उस समय के तत्कालीन वायु सेना अध्यक्ष ने वाजपेयी सरकार से एलओसी क्रॉस करने की भी इजाजत मांगी थी, ताकि पूरे पाकिस्तान को सबक सिखाया जा सके. यह एक राजनीतिक निर्णय था और वाजपेयी सरकार ने इसे करगिल तक ही सीमित रखा. हमारे दो जेट विमान और एक हेलिकॉप्टर को पाकिस्तानियों ने गिरा दिया था.

लेकिन जिस तरह का जवाब भारतीय सैनिकों ने दिया, ऐसा कहा जाता है कि पाकिस्तानी चौकी रेत की भांति चूर-चूर हो गए. उनकी बंदूकें छड़ी की तरह नजर आने लगी. जैसे ही वायुसेना का जेट विमान ऊपर से गुजरता था, पाकिस्तानी सैनिकों की धड़कने बढ़ जाती थीं. वे इधर-उधर भागने लगते थे.

पाकिस्तानी सैनिकों का यह हाल देखकर नवाज शरीफ भागे-भागे उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के पास गए. वह जाकर गिड़गिड़ाया. जिस समय पाकिस्तानियों की अमेरिका से बातचीत चल रही थी, उसी दौरान भारत ने टाइगर हिल्स पर कब्जा जमाकर पूरा खेल खत्म कर दिया.

इस युद्ध में हमारे 527 जवान शहीद हुए और 1363 जवान घायल हुए थे. पाकिस्तान के 700 से अधिक सैनिक मारे गए थे. करगिल दिवस पर हमारा मुख्य समारोह द्रास सेक्टर में मनाया जाता है.

ये भी पढ़ें : Kargil Vijay Diwas 2023: ग्रेनेड के साथ खाई गोलियां, फिर भी नहीं टूटा हौसला, Tiger Hills पर उत्तराखंड के लाल ने दिखाया कमाल

Last Updated : Jul 26, 2023, 9:43 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.