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नेपाल के चीफ जस्टिस का इस्तीफे से इनकार, आखिर क्यों मचा है सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक 'बवाल' ?

नेपाल की मीडिया और लोग इन दिनों सुप्रीम चीफ जस्टिस का इस्तीफा मांग रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के जजों से लेकर वकील तक देश के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. लेकिन चीफ जस्टिस ने पद छोड़ने से साफ इनकार कर दिया है, जिससे नेपाल में न्यायिक संकट पैदा हो गया है. आखिर क्यों मांगा जा रहा है चीफ जस्टिस का इस्तीफा ? क्यों मचा है सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक बवाल ? जानने के लिए पढ़िये ईटीवी भारत एक्सप्लेनर (Etv bharat explainer)

चीफ जस्टिस
चीफ जस्टिस
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Published : Oct 28, 2021, 4:51 PM IST

हैदराबाद: पड़ोसी देश नेपाल में एक न्यायिक संकट पैदा हो गया है. देश के चीफ जस्टिस पर सरकार से साठगांठ के आरोप लग रहे हैं. जिसके बाद जज से लेकर वकीलों तक ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. नेपाल की न्याय व्यवस्था में ये विवाद इतना खुलकर सामने आ गया है कि चीफ जस्टिस के इस्तीफे की मांग हो रही है लेकिन चीफ जस्टिस इस्तीफा ना देने पर अड़े हुए हैं. आखिर नेपाल की न्यायपालिका में ये विवाद क्यों पैदा हुआ है ? इस पूरे मामले की हर बात जानने के लिए पढ़िये ईटीवी भारत एक्सप्लेनर (etv bharat explainer)

चीफ जस्टिस पर क्या आरोप है ?

चोलेंद्र शमशेर राणा (Cholendra Shumsher Rana) नेपाल के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हैं. इसी महीने 8 अक्टूबर को नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा (Sher Bahadur Deuba) ने पहला मंत्रिमंडल विस्तार किया. इस दौरान 19 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई थी. इन्हीं में से एक नाम गजेंद्र बहादुर हमाल का था, जो कि रिश्ते में चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा के साले हैं.

चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा का इस्तीफे से इनकार
चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा का इस्तीफे से इनकार

गजेंद्र बहादुर को सरकार में उद्योग, वाणिज्य एवं आपूर्ति मंत्री की जिम्मेदारी भी दे दी गई. लेकिन नेपाली मीडिया में कहा जाने लगा कि उन्हें ये पद चीफ जस्टिस की सिफारिश के बाद मिला है. जिसके बाद ये सारा विवाद खड़ा हो रहा है.

गजेद्र बहादुर ने 48 घंटे में दिया इस्तीफा

8 अक्टूबर 2021 को गजेंद्र बहादुर हमाल ने मंत्री पद की शपथ ली और मीडिया में सुर्खियां बटोरने के बाद विवाद बढ़ा तो 10 अक्टूबर 2021 को यानि महज 48 घंटे में इस्तीफा दे दिया. मीडिया से लेकर जनता तक आलोचनाओं का शिकार होने पर हमाल ने प्रधानमंत्री देउबा को इस्तीफा सौंपा और उन्होंने लगे हाथ स्वीकार भी कर लिया.

चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा (बाएं) पर अपने रिश्तेदार गजेंद्र बहादुर को मंत्री बनवाने का आरोप
चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा (बाएं) पर अपने रिश्तेदार गजेंद्र बहादुर को मंत्री बनवाने का आरोप

दरअसल गजेंद्र बहादुर ना तो संसद के उच्च सदन के सदस्य हैं और ना ही निचले सदन के, दरअसल नेपाल के संविधान में एक प्रावधान है कि कोई भी नागरिक भले वो सांसद ना हो, 6 महीने की अवधि के लिए मंत्रिमंडल का सदस्य बन सकता है. गजेंद्र हमाल ने कहा कि इस तरह की अटकलों के बीच मेरा मंत्री बने रहना उचित नहीं है.

सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक 'बवाल'

सरकार में मंत्रीपद दिलाने के लिए अपने रिश्तेदार की पैरवी करने के आरोप में चीफ जस्टिस सवालों के घेर पर आए तो वकीलों से लेकर जजों तक ने मुख्य न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मंगलवार 26 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के 20 में से 15 जजों ने राणा का इस्तीफा मांग लिया. इन सभी जजों के मुताबिक इस वक्त देश की न्यायपालिका की गरिमा और विश्वसनीयता को बचाने के लिए चीफ जस्टिस को इस्तीफा देना चाहिए.

नेपाल की बार एसोसिएशन ने भी चीफ जस्टिस के खिलाफ खोला है मोर्चा
नेपाल की बार एसोसिएशन ने भी चीफ जस्टिस के खिलाफ खोला है मोर्चा

इन जजों के अलावा सुप्रीम कोर्ट के वकीलों के एक वर्ग ने भी चीफ जस्टिस के इस्तीफे की मांग की है जबकि कई वकीलों ने न्यायालय का बहिष्कार करने का फैसला किया है. मीडिया पर ये मामला खूब सुर्खियां बटोर रहा है और कई आम लोग भी चीफ जस्टिस पर उठ रहे सवालों को लेकर सड़कों पर भी उतर आए और उनके इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. नेपाल बार एसोसिएशन ने तो यहां तक चेतावनी दी है कि अगर चीफ जस्टिस स्वेच्छा से पद नहीं छोड़ते तो राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन होगा.

चीफ जस्टिस का पद छोड़ने से इनकार

नेपाल का ये न्यायिक संकट एक कदम और आगे तब बढ़ गया जब चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा ने अपने पद से इस्तीफा देने से साफ इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के 15 जजों के साथ बैठक के दौरान राणा ने कहा कि वो सिर्फ इसलिये इस्तीफा नहीं देंगे कि मीडिया और सड़कों पर उतरे लोग उनके पद छोड़ने की मांग कर रहे हैं. राणा ने कहा कि मैं संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करूंगा लेकिन किसी दबाव में पद नहीं छोड़ूंगा. उन्होंने खुद पर लगे हर आरोपों को भी खारिज किया है.

नेपाल के सुप्रीम कोर्ट में कामकाज पर पड़ा असर
नेपाल के सुप्रीम कोर्ट में कामकाज पर पड़ा असर

सुप्रीम कोर्ट के प्रवक्ता बाबूराम दहल ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, "चीफ़ जस्टिस ने अन्य जजों से कहा है कि वे पद छोड़ने के बजाय संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करना अधिक पसंद करेंगे. मैं किस दबाव में पद नहीं छोड़ूंगा. लेकिन अगर ज़रूरत पड़ी तो मैं क़ानूनी प्रक्रिया का पालन करूंगा."

सुप्रीम कोर्ट में 3 दिन से कामकाज ठप

मीडिया से लेकर सड़कों तक चीफ जस्टिस को पद से हटाने की मांग उठ रही है लेकिन चीफ जस्टिस पद से ना हटने पर अड़े हैं. वहीं इस पूरी विवाद के कारण देश के सुप्रीम कोर्ट का कामकाज बीते तीन दिनों से ठप पड़ा है. कई जज चीफ जस्टिस के खिलाफ खड़े हैं तो कई वकीलों ने कामकाज ठप रखने का ऐलान किया है जिसका सीधा असर उच्चतम न्यायालय के नियमित कामकाज पर पड़ा है और कई मामलों की तय तिथि पर सुनवाई नहीं हो पा रही है.

न्यायपालिका के विवाद पर विधायिका की चुप्पी

नेपाल में मंत्रिमंडल विस्तार के बाद से ही करीब बीते 3 हफ्तों से ये मुद्दा मीडिया में छाया हुआ है और बीते कुछ दिनों से चीफ जस्टिस के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं और जजों से लेकर वकीलों ने भी हल्ला बोल दिया है. लेकिन न्यायपालिका में उपजे इस पूरे बवाल पर विधायिका ने मौन धारण किया हुआ है. इस मामले पर ना तो प्रधानमंत्री देउबा कुछ बोल रहे हैं और ना ही उनके मंत्री. इस पूरे मामले पर बयान सिर्फ न्यायपालिका से जुड़े लोगों के ही आ रहे हैं.

प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा समेत तमाम नेताओं ने मामले पर साधी चुप्पी
प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा समेत तमाम नेताओं ने मामले पर साधी चुप्पी

प्रधानमंत्री देउबा पर भी उठ रहे हैं सवाल

नेपाल के इस न्यायिक संकट में भले नेताओं ने चुप्पी साधी हो लेकिन जानकार मानते हैं कि ये चुप्पी अपनी छवि और कुर्सी बचाने के लिए है. क्योंकि चीफ जस्टिस पर अपने रिश्तेदार को मंत्री बनवाने के जो आरोप लग रहे हैं उसके दूसरे सिरे पर सरकार के मुखिया यानि प्रधानमंत्री देउबा हैं. ऐसे में इस विवाद की लपटें उनतक भी पहुंच सकती हैं.

इस पूरे मामले में चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा को भले कुछ जजों का साथ मिल रहा हो लेकिन ज्यादातर उनके खिलाफ ही हैं. वहीं नेपाल के सुप्रीम कोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की कहती हैं कि राणा के साथ प्रधानमंत्री देउबा को भी इस मामले में सजा मिलनी चाहिए क्योंकि उन्होंने ही हमाल को मंत्रिमंडल में जगह दी थी.

देउबा ने 13 जुलाई को प्रधानमंत्री का पद संभाला था, देउबा की सरकार पांच दलों के गठबंधन के सहारे चल रही है. मंत्रीपदों के लिए खींचतान की वजह से ही नई सरकार बनने के तीन महीने बाद ये विस्तार हो पाया. इससे पहले देऊबा सरकार में प्रधानमंत्री को मिलाकर सिर्फ 6 मंत्री थे. 17 कैबिनेट और 2 राज्य मंत्रियों को शपथ दिलाई गई. संविधान के मुताबिक मंत्रिमंडल में अधिकतम 25 मंत्री ही शामिल हो सकते हैं. लेकिन इन्हीं में से चीफ जस्टिस के रिश्तेदार को मंत्रीपद की शपथ दिलाकर पूरी सरकार और न्यायपालिका सवालों के कटघरे में खड़ी है.

पीएम शेर बहादुर देउबा (1) पर गजेंद्र बहादुर (2) को मंत्री बनाने पर उठ रहे सवाल
पीएम शेर बहादुर देउबा (1) पर गजेंद्र बहादुर (2) को मंत्री बनाने पर उठ रहे सवाल

नेपाल में चीफ जस्टिस को हटाने की प्रक्रिया

अब जब ये साफ हो गया है कि चीफ जस्टिस राणा अपना पद स्वेच्छा से नहीं छोड़ेंगे, तो तय है कि उन्हें अब महाभियोग के जरिये ही हटाया जा सकता है. वो खुद इस संसदीय प्रक्रिया की पैरवी करते हुए गेंद विधायिका के पाले में डाल चुके हैं. नेपाल के नेताओं ने इस पूरे मामले पर भले चुप्पी साधी हो लेकिन महाभियोग का फैसला संसद को करना होता है, कुछ ऐसा ही नियम भारत में भी है.

नेपाल के संविधान के मुताबिक, चीफ जस्टिस पर महाभियोग चलाने के लिए 25 प्रतिशत सांसदों को प्रस्ताव लाना पड़ेगा. वहीं, इस प्रस्ताव पर संसद के दो तिहाई बहुमत की भी जरूरत होगी. यानि संसद के 25 फीसदी सदस्यों की सहमति से चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है और अगर ये प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत से पारित होता है तो चीफ जस्टिस को पद से हटाया जा सकता है.

क्या होता है महाभियोग ?

महाभियोग वो प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है और इसी की मांग नेपाल में हो रही है. इस प्रक्रिया में संसद की भूमिका होती है. भारत के संविधान में भी कुछ इसी तरह का प्रावधान है. हालांकि अभी तक नेपाल में किसी भी जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव नहीं लाया गया है.

चीफ जस्टिस के खिलाफ पहले भी सड़क पर उतरे थे लोग
चीफ जस्टिस के खिलाफ पहले भी सड़क पर उतरे थे लोग

भारत के संविधान में इसका ज़िक्र संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में मिलता है. महाभियोग प्रस्ताव सिर्फ़ तब लाया जा सकता है जब संविधान का उल्लंघन, दुर्व्यवहार या अक्षमता साबित हो गए हों. नियमों के मुताबिक़, महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है. लोकसभा में इसे पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के दस्तखत और राज्यसभा में लाने के लिए 50 सांसदों के दस्तखत जरूरी होते हैं. इसके बाद उस सदन के स्पीकर या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकर कर लें तो तीन सदस्यों की एक समिति बनाकर आरोपों की जांच करवाई जाती है.

पहले भी विवादों में रहे हैं चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा

1) डीआईजी दोस्त की सजा की थी माफ

बीते साल अपनी पत्नी की हत्या के दोषी डीआईजी की सजा माफ करने को लेकर चोलेंद्र शमशेर राण विवादों में आए थे. दरअसल साल 2012 में पत्नी की गला दबाकर हत्या के बाद शव जलाने और फिर जले हुए शव के टुकड़े मिट्टी में दबाने के आरोप में डीआईजी रंजन कोइराला को गिरफ्तार किया गया था. दोषी साबित होने पर डीआईजी रंजन कोइराला को निचली अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी, हाईकोर्ट ने भी सजा को बरकरार रखा, लेकिन साल 2020 में चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा ने दोषी डीआईजी की बाकी सजा माफ करते हुए रिहा कर दिया था. बताया जाता है कि डीआईजी रंजन कोइराला चीफ जस्टिस राणा के दोस्त हैं. जिसके बाद लोगों ने चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग चलाने की मांग की थी.

पहले भी विवादों में रहे हैं चीफ जस्टिस
पहले भी विवादों में रहे हैं चीफ जस्टिस

2) भंग संसद को बहाल कर देउबा को पीएम बनाने का आदेश

इस साल 22 मई को पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली की सिफारिश पर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने संसद भंग कर दी थी और चुनाव करवाने ऐलान करते हुए, मतदान की तारीखों की घोषणा भी कर दी थी. राष्ट्रपति के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 30 से ज्यादा याचिकाएं दायर हो गईं. विपक्षी दलों की तरफ से दायर ऐसी ही एक याचिका के में संसद को बहाल करने और कांग्रेस अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री बनाने की मांग की गई थी.

चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा की अगुवाई वाली बेंच ने 12 जुलाई को आदेश दिया कि शेर बहादुर देउबा को दो दिन के भीतर प्रधानमंत्री बनाया जाए, साथ ही भंग पड़ी संसद को बहाल करने का भी आदेश दे दिया था. इस फैसले ने भी उन्हें सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया था.

ये भी पढ़ें: चीन का नया सीमा कानून भारत के लिए कितना बड़ा खतरा है ?

ये भी पढ़ें: कोविड के चंद मामलों ने क्यों बढ़ाई चीन की चिंता ? क्या दुनिया के लिए नए खतरे की घंटी है ?

हैदराबाद: पड़ोसी देश नेपाल में एक न्यायिक संकट पैदा हो गया है. देश के चीफ जस्टिस पर सरकार से साठगांठ के आरोप लग रहे हैं. जिसके बाद जज से लेकर वकीलों तक ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. नेपाल की न्याय व्यवस्था में ये विवाद इतना खुलकर सामने आ गया है कि चीफ जस्टिस के इस्तीफे की मांग हो रही है लेकिन चीफ जस्टिस इस्तीफा ना देने पर अड़े हुए हैं. आखिर नेपाल की न्यायपालिका में ये विवाद क्यों पैदा हुआ है ? इस पूरे मामले की हर बात जानने के लिए पढ़िये ईटीवी भारत एक्सप्लेनर (etv bharat explainer)

चीफ जस्टिस पर क्या आरोप है ?

चोलेंद्र शमशेर राणा (Cholendra Shumsher Rana) नेपाल के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हैं. इसी महीने 8 अक्टूबर को नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा (Sher Bahadur Deuba) ने पहला मंत्रिमंडल विस्तार किया. इस दौरान 19 मंत्रियों को शपथ दिलाई गई थी. इन्हीं में से एक नाम गजेंद्र बहादुर हमाल का था, जो कि रिश्ते में चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा के साले हैं.

चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा का इस्तीफे से इनकार
चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा का इस्तीफे से इनकार

गजेंद्र बहादुर को सरकार में उद्योग, वाणिज्य एवं आपूर्ति मंत्री की जिम्मेदारी भी दे दी गई. लेकिन नेपाली मीडिया में कहा जाने लगा कि उन्हें ये पद चीफ जस्टिस की सिफारिश के बाद मिला है. जिसके बाद ये सारा विवाद खड़ा हो रहा है.

गजेद्र बहादुर ने 48 घंटे में दिया इस्तीफा

8 अक्टूबर 2021 को गजेंद्र बहादुर हमाल ने मंत्री पद की शपथ ली और मीडिया में सुर्खियां बटोरने के बाद विवाद बढ़ा तो 10 अक्टूबर 2021 को यानि महज 48 घंटे में इस्तीफा दे दिया. मीडिया से लेकर जनता तक आलोचनाओं का शिकार होने पर हमाल ने प्रधानमंत्री देउबा को इस्तीफा सौंपा और उन्होंने लगे हाथ स्वीकार भी कर लिया.

चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा (बाएं) पर अपने रिश्तेदार गजेंद्र बहादुर को मंत्री बनवाने का आरोप
चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा (बाएं) पर अपने रिश्तेदार गजेंद्र बहादुर को मंत्री बनवाने का आरोप

दरअसल गजेंद्र बहादुर ना तो संसद के उच्च सदन के सदस्य हैं और ना ही निचले सदन के, दरअसल नेपाल के संविधान में एक प्रावधान है कि कोई भी नागरिक भले वो सांसद ना हो, 6 महीने की अवधि के लिए मंत्रिमंडल का सदस्य बन सकता है. गजेंद्र हमाल ने कहा कि इस तरह की अटकलों के बीच मेरा मंत्री बने रहना उचित नहीं है.

सड़क से सुप्रीम कोर्ट तक 'बवाल'

सरकार में मंत्रीपद दिलाने के लिए अपने रिश्तेदार की पैरवी करने के आरोप में चीफ जस्टिस सवालों के घेर पर आए तो वकीलों से लेकर जजों तक ने मुख्य न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मंगलवार 26 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के 20 में से 15 जजों ने राणा का इस्तीफा मांग लिया. इन सभी जजों के मुताबिक इस वक्त देश की न्यायपालिका की गरिमा और विश्वसनीयता को बचाने के लिए चीफ जस्टिस को इस्तीफा देना चाहिए.

नेपाल की बार एसोसिएशन ने भी चीफ जस्टिस के खिलाफ खोला है मोर्चा
नेपाल की बार एसोसिएशन ने भी चीफ जस्टिस के खिलाफ खोला है मोर्चा

इन जजों के अलावा सुप्रीम कोर्ट के वकीलों के एक वर्ग ने भी चीफ जस्टिस के इस्तीफे की मांग की है जबकि कई वकीलों ने न्यायालय का बहिष्कार करने का फैसला किया है. मीडिया पर ये मामला खूब सुर्खियां बटोर रहा है और कई आम लोग भी चीफ जस्टिस पर उठ रहे सवालों को लेकर सड़कों पर भी उतर आए और उनके इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. नेपाल बार एसोसिएशन ने तो यहां तक चेतावनी दी है कि अगर चीफ जस्टिस स्वेच्छा से पद नहीं छोड़ते तो राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन होगा.

चीफ जस्टिस का पद छोड़ने से इनकार

नेपाल का ये न्यायिक संकट एक कदम और आगे तब बढ़ गया जब चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा ने अपने पद से इस्तीफा देने से साफ इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के 15 जजों के साथ बैठक के दौरान राणा ने कहा कि वो सिर्फ इसलिये इस्तीफा नहीं देंगे कि मीडिया और सड़कों पर उतरे लोग उनके पद छोड़ने की मांग कर रहे हैं. राणा ने कहा कि मैं संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करूंगा लेकिन किसी दबाव में पद नहीं छोड़ूंगा. उन्होंने खुद पर लगे हर आरोपों को भी खारिज किया है.

नेपाल के सुप्रीम कोर्ट में कामकाज पर पड़ा असर
नेपाल के सुप्रीम कोर्ट में कामकाज पर पड़ा असर

सुप्रीम कोर्ट के प्रवक्ता बाबूराम दहल ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, "चीफ़ जस्टिस ने अन्य जजों से कहा है कि वे पद छोड़ने के बजाय संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करना अधिक पसंद करेंगे. मैं किस दबाव में पद नहीं छोड़ूंगा. लेकिन अगर ज़रूरत पड़ी तो मैं क़ानूनी प्रक्रिया का पालन करूंगा."

सुप्रीम कोर्ट में 3 दिन से कामकाज ठप

मीडिया से लेकर सड़कों तक चीफ जस्टिस को पद से हटाने की मांग उठ रही है लेकिन चीफ जस्टिस पद से ना हटने पर अड़े हैं. वहीं इस पूरी विवाद के कारण देश के सुप्रीम कोर्ट का कामकाज बीते तीन दिनों से ठप पड़ा है. कई जज चीफ जस्टिस के खिलाफ खड़े हैं तो कई वकीलों ने कामकाज ठप रखने का ऐलान किया है जिसका सीधा असर उच्चतम न्यायालय के नियमित कामकाज पर पड़ा है और कई मामलों की तय तिथि पर सुनवाई नहीं हो पा रही है.

न्यायपालिका के विवाद पर विधायिका की चुप्पी

नेपाल में मंत्रिमंडल विस्तार के बाद से ही करीब बीते 3 हफ्तों से ये मुद्दा मीडिया में छाया हुआ है और बीते कुछ दिनों से चीफ जस्टिस के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं और जजों से लेकर वकीलों ने भी हल्ला बोल दिया है. लेकिन न्यायपालिका में उपजे इस पूरे बवाल पर विधायिका ने मौन धारण किया हुआ है. इस मामले पर ना तो प्रधानमंत्री देउबा कुछ बोल रहे हैं और ना ही उनके मंत्री. इस पूरे मामले पर बयान सिर्फ न्यायपालिका से जुड़े लोगों के ही आ रहे हैं.

प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा समेत तमाम नेताओं ने मामले पर साधी चुप्पी
प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा समेत तमाम नेताओं ने मामले पर साधी चुप्पी

प्रधानमंत्री देउबा पर भी उठ रहे हैं सवाल

नेपाल के इस न्यायिक संकट में भले नेताओं ने चुप्पी साधी हो लेकिन जानकार मानते हैं कि ये चुप्पी अपनी छवि और कुर्सी बचाने के लिए है. क्योंकि चीफ जस्टिस पर अपने रिश्तेदार को मंत्री बनवाने के जो आरोप लग रहे हैं उसके दूसरे सिरे पर सरकार के मुखिया यानि प्रधानमंत्री देउबा हैं. ऐसे में इस विवाद की लपटें उनतक भी पहुंच सकती हैं.

इस पूरे मामले में चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा को भले कुछ जजों का साथ मिल रहा हो लेकिन ज्यादातर उनके खिलाफ ही हैं. वहीं नेपाल के सुप्रीम कोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की कहती हैं कि राणा के साथ प्रधानमंत्री देउबा को भी इस मामले में सजा मिलनी चाहिए क्योंकि उन्होंने ही हमाल को मंत्रिमंडल में जगह दी थी.

देउबा ने 13 जुलाई को प्रधानमंत्री का पद संभाला था, देउबा की सरकार पांच दलों के गठबंधन के सहारे चल रही है. मंत्रीपदों के लिए खींचतान की वजह से ही नई सरकार बनने के तीन महीने बाद ये विस्तार हो पाया. इससे पहले देऊबा सरकार में प्रधानमंत्री को मिलाकर सिर्फ 6 मंत्री थे. 17 कैबिनेट और 2 राज्य मंत्रियों को शपथ दिलाई गई. संविधान के मुताबिक मंत्रिमंडल में अधिकतम 25 मंत्री ही शामिल हो सकते हैं. लेकिन इन्हीं में से चीफ जस्टिस के रिश्तेदार को मंत्रीपद की शपथ दिलाकर पूरी सरकार और न्यायपालिका सवालों के कटघरे में खड़ी है.

पीएम शेर बहादुर देउबा (1) पर गजेंद्र बहादुर (2) को मंत्री बनाने पर उठ रहे सवाल
पीएम शेर बहादुर देउबा (1) पर गजेंद्र बहादुर (2) को मंत्री बनाने पर उठ रहे सवाल

नेपाल में चीफ जस्टिस को हटाने की प्रक्रिया

अब जब ये साफ हो गया है कि चीफ जस्टिस राणा अपना पद स्वेच्छा से नहीं छोड़ेंगे, तो तय है कि उन्हें अब महाभियोग के जरिये ही हटाया जा सकता है. वो खुद इस संसदीय प्रक्रिया की पैरवी करते हुए गेंद विधायिका के पाले में डाल चुके हैं. नेपाल के नेताओं ने इस पूरे मामले पर भले चुप्पी साधी हो लेकिन महाभियोग का फैसला संसद को करना होता है, कुछ ऐसा ही नियम भारत में भी है.

नेपाल के संविधान के मुताबिक, चीफ जस्टिस पर महाभियोग चलाने के लिए 25 प्रतिशत सांसदों को प्रस्ताव लाना पड़ेगा. वहीं, इस प्रस्ताव पर संसद के दो तिहाई बहुमत की भी जरूरत होगी. यानि संसद के 25 फीसदी सदस्यों की सहमति से चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है और अगर ये प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत से पारित होता है तो चीफ जस्टिस को पद से हटाया जा सकता है.

क्या होता है महाभियोग ?

महाभियोग वो प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों को हटाने के लिए किया जाता है और इसी की मांग नेपाल में हो रही है. इस प्रक्रिया में संसद की भूमिका होती है. भारत के संविधान में भी कुछ इसी तरह का प्रावधान है. हालांकि अभी तक नेपाल में किसी भी जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव नहीं लाया गया है.

चीफ जस्टिस के खिलाफ पहले भी सड़क पर उतरे थे लोग
चीफ जस्टिस के खिलाफ पहले भी सड़क पर उतरे थे लोग

भारत के संविधान में इसका ज़िक्र संविधान के अनुच्छेद 61, 124 (4), (5), 217 और 218 में मिलता है. महाभियोग प्रस्ताव सिर्फ़ तब लाया जा सकता है जब संविधान का उल्लंघन, दुर्व्यवहार या अक्षमता साबित हो गए हों. नियमों के मुताबिक़, महाभियोग प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है. लोकसभा में इसे पेश करने के लिए कम से कम 100 सांसदों के दस्तखत और राज्यसभा में लाने के लिए 50 सांसदों के दस्तखत जरूरी होते हैं. इसके बाद उस सदन के स्पीकर या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकर कर लें तो तीन सदस्यों की एक समिति बनाकर आरोपों की जांच करवाई जाती है.

पहले भी विवादों में रहे हैं चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा

1) डीआईजी दोस्त की सजा की थी माफ

बीते साल अपनी पत्नी की हत्या के दोषी डीआईजी की सजा माफ करने को लेकर चोलेंद्र शमशेर राण विवादों में आए थे. दरअसल साल 2012 में पत्नी की गला दबाकर हत्या के बाद शव जलाने और फिर जले हुए शव के टुकड़े मिट्टी में दबाने के आरोप में डीआईजी रंजन कोइराला को गिरफ्तार किया गया था. दोषी साबित होने पर डीआईजी रंजन कोइराला को निचली अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी, हाईकोर्ट ने भी सजा को बरकरार रखा, लेकिन साल 2020 में चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा ने दोषी डीआईजी की बाकी सजा माफ करते हुए रिहा कर दिया था. बताया जाता है कि डीआईजी रंजन कोइराला चीफ जस्टिस राणा के दोस्त हैं. जिसके बाद लोगों ने चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग चलाने की मांग की थी.

पहले भी विवादों में रहे हैं चीफ जस्टिस
पहले भी विवादों में रहे हैं चीफ जस्टिस

2) भंग संसद को बहाल कर देउबा को पीएम बनाने का आदेश

इस साल 22 मई को पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली की सिफारिश पर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने संसद भंग कर दी थी और चुनाव करवाने ऐलान करते हुए, मतदान की तारीखों की घोषणा भी कर दी थी. राष्ट्रपति के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 30 से ज्यादा याचिकाएं दायर हो गईं. विपक्षी दलों की तरफ से दायर ऐसी ही एक याचिका के में संसद को बहाल करने और कांग्रेस अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री बनाने की मांग की गई थी.

चीफ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राणा की अगुवाई वाली बेंच ने 12 जुलाई को आदेश दिया कि शेर बहादुर देउबा को दो दिन के भीतर प्रधानमंत्री बनाया जाए, साथ ही भंग पड़ी संसद को बहाल करने का भी आदेश दे दिया था. इस फैसले ने भी उन्हें सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया था.

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