हैदराबाद : हम नए साल का स्वागत करने वाले हैं . इसके साथ ही हम चालू फाइनेंशल ईयर 2021-22 के अंतिम तिमाही में एंट्री कर रहे हैं. यह वही समय है जब हम अपने इनकम टैक्स का बोझ कम करने के लिए उपायों की तलाश कर सकते हैं. फाइनेंशल एक्सपर्ट का मानना है कि हमें आखिरी मिनट में जल्दबाजी से बचने के लिए जल्द से जल्द निवेश के फैसले लेने चाहिए.
अभी अधिकतर टैक्स पेयर आयकर रिटर्न (ITR) दाखिल करने से पहले अपने टैक्स और क्लेम का हिसाब-किताब लगाने में व्यस्त होंगे. जबकि सरकार आपकी आय और अन्य स्रोतों से आय से टैक्स लेती है. सरकार उन लोगों को टैक्स में छूट का लाभ भी देती है, जो फॉर्म दाखिल कर लोन और इनवेस्टमेंट का दावा करते हैं. प्रत्येक सैलरी वाले व्यक्ति को अपने उस वेतन पर टैक्स का भुगतान करना होता है, जो वह अपने नियोक्ता से प्राप्त करता है. आपका नियोक्ता आपकी सैलरी में मिलने वाली रकम से टैक्स काटने के लिए बाध्य है. हालांकि लोगों को यह हमेशा सलाह दी जाती है कि वह फाइनेंशल ईयर के अंतिम समय में टैक्स बचाने की स्कीम में नहीं उलझें बल्कि समय से पहले टैक्स सेविंग्स स्कीम का विकल्प चुनें.
अधिकतम टैक्स बेनिफिट ( maximum tax benefit) क्लेम करने का सबसे अच्छा समय फाइनेंशल ईयर की शुरूआत है. ऐसा इसलिए है क्योंकि जल्दी निवेश शुरू करने से हमें अधिक लाभ मिलने में मदद मिलेगी और बाद में टैक्स का बोझ भी कम होगा.
वित्तीय वर्ष 31 मार्च, 2022 को समाप्त होगा. अभी यह मानकर निवेश के फैसले लेते में सुस्ती नहीं दिखाएं कि आपके पास तीन और महीने हैं. दिन बहुत तेजी से गुजरते हैं. अगर आप डेडलाइन के भीतर टैक्स सेविंग्स इन्वेस्टमेंट नहीं करते हैं तो इनकम टैक्स देने के लिए तैयारी कर लें.
हमें अपनी इनकम के हिसाब इन्वेस्टमेंट की प्लानिंग करनी चाहिए. यदि हमें अपनी इनकम के बारे में जानकारी नहीं है तो अपने नियोक्ता या ऑफिस से जानकारी लेनी चाहिए. यह जानना जरूरी है कि फाइनैंशियल ईयर में हमारी इनकम कितनी रही और हमें कितना इनकम टैक्स जमा करना है? हमने पहले कितना भुगतान किया है और कितना बाकी है. इसे हमें यह भी अंदाजा हो जाएगा कि हम किन सेक्शन के तहत कर टैक्स में छूट पा सकते हैं.
तो चलिए हम निवेश की तैयारी करते हैं
पहले हमें यह जानना होगा कि किस सेक्शन के तहत कितनी टैक्स छूट मिल सकती है. सेक्शन 80 सी (Section 80C ) के तहत 1,50,000 रुपये तक की लिमिट है. इसके तहत हम ईपीएफ, पीपीएफ, जीवन बीमा पॉलिसियों, होम लोन, बच्चों के ट्यूशन फीस, फिक्स डिपॉजिट, एनएससी, किसान विकास पत्र और सुकन्या समृद्धि योजना में निवेश दिखाकर टैक्स रिबेट हासिल कर सकते हैं. इसके बाद भी यदि आप गैप को भरने में असमर्थ हैं तो आपके लिए और भी ऑप्शन है. आप 80डी के तहत भी टैक्स में छूट हासिल कर सकते हैं. सेक्शन 80डी के तहत हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में 25000 रुपये तक की छूट मिलती है. माता-पिता के नाम पर ली गई पॉलिसी पर 25,000 रुपये तक की छूट है. यदि माता-पिता सीनियर सिटिजन हैं तो छूट की सीमा 50,000 रुपये तक है. इसके साथ 5,000 रुपये मेडिकल जांच के लिए दिखाए जा सकते हैं. सभी उपलब्ध छूटों का उपयोग कर आप टैक्स का बोझ कम कर सकते हैं.
होम और एजुकेशन लोन : अगर हम आपके बच्चों के लिए एजुकेशन लोन लेते हैं तो उस पर चुकाए गए ब्याज की धारा 80 के तहत हमें पूरी छूट मिल सकती है. यदि आप लोन पर ब्याज का भुगतान नहीं करते हैं, तो वित्तीय वर्ष के अंत तक भुगतान करने का प्रयास करें. होम लोन पर चुकाए गए ब्याज पर आपको 2,00,000 रुपये तक की छूट मिलती है.
लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन ( Long-term capital gain) : मान लीजिए कि आप एक साल से अधिक समय तक इक्विटी निवेश बेचकर एक फाइनेंशियल ईयर में एक लाख रुपये से अधिक का लाभ कमाते हैं. मगर आपको इस अतिरिक्त राशि पर 10 फीसदी टैक्स देना होगा. आप एक वित्तीय वर्ष में उन लॉन्ग टर्म शेयरों को बेचकर एक लाख रुपये से अधिक का लाभ कमाते हैं तो अगले ही दिन आप ऐसे शेयर खरीद लें. इससे टैक्स का बोझ कुछ हद तक कम होने हो सकता है. हालांकि इसका हिसाब-किताब जटिल है, इसलिए विशेषज्ञ की सलाह लेना बेहतर है.
लक्ष्य हासिल करने के लिए करें समीक्षा : सिर्फ टैक्स सेविंग के लिए इन्वेस्टमेंट करने का विचार सही नहीं है. हमें अपने फाइनैंशियल गोल निर्धारित करना चाहिए और उसी के अनुसार अपने निवेश की योजना बनानी होगी. टैक्स सेविंग्स का मकसद अतिरिक्त लाभ होना चाहिए. इसलिए अपने इन्वेस्टमेंट की समीक्षा करें और टैक्स में छूट का आकलन कर नए विकल्पों में निवेश करें.
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