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'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि शी के शासन में चीन-तिब्बत वार्ता फिर से शुरू नहीं हुई'

निर्वासित तिब्बती संसद के उपाध्यक्ष आचार्य येशी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चीन के वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शासन में चीन-तिब्बत वार्ता फिर से शुरू नहीं हो सकी. उन्होंने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए यह बात कही. आचार्य येशी से बात की हैं ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता चंद्रकला चौधरी ने.

आचार्य येशी फुंटसोक
आचार्य येशी फुंटसोक
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Published : Jul 30, 2021, 1:40 AM IST

नई दिल्ली: निर्वासित तिब्बती संसद के उपाध्यक्ष आचार्य येशी फुंटसोक ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से तिब्बत चीन का हिस्सा नहीं था. आज से 62 वर्ष पहले चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था. तब से तिब्बत पूरी तरह से चीन के आधीन है.

ईटीवी भारत ने निर्वासित तिब्बती संसद के उपाध्यक्ष आचार्य येशी फुंटसोक से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि 1979 में चीनी नेता देंग शियाओ पिंग ने कहा था कि वे तिब्बत मुद्दे को हल करने के लिए तैयार हैं. तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा भी तिब्बत मुद्दे को बातचीत के जरिए सुलझाने के लिए तैयार हैं.

निर्वासित तिब्बती संसद के उपाध्यक्ष आचार्य येशी फुंटसोक से खास बातचीत.

उन्होंने कहा कि तिब्बती मुद्दों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र में भी वर्ष 1959-96 में पांच प्रस्ताव पारित किए जा चुके हैं. तिब्बती मुद्दों का अंतिम निर्णय केवल तिब्बती समुदाय के हाथ में है, जो स्वशासित और आत्मनिर्णय है और उस संकल्प को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाया गया है. इसलिए हम एक ही चीज यानी स्वशासित और आत्मनिर्णय मांग रहे हैं.

उन्होंने कहा कि 2009-2010 से दलाई लामा और चीन के बीच फिर से वार्ता शुरू होने वाली थी. इसके लिए दलाई लामा ने चीन नेता के प्रतिनिधियों से बीजिंग में भेंट भी की थी और ज्ञापन भी सौंपा था.

निर्वासित तिब्बती संसद के उपाध्यक्ष आचार्य येशी फुंटसोक से खास बातचीत.

हालांकि, चीन के सरकारी अधिकारियों और दलाई लामा या उनके प्रतिनिधियों के बीच वर्ष 2010 से कोई बातचीत नहीं हुई है.

उन्होंने कहा जब से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग बने, तब से आज तक चीन-तिब्बत वार्ता फिर से शुरू नहीं हो पाई है. यह एक गतिरोध की स्थिति है, लेकिन जब भी चीन पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का दबाव पड़ता है, तो वो हमेशा कहते हैं कि वे तिब्बत मुद्दे को सुलझाने के लिए तैयार हैं.

यह भी पढ़ें- ब्लिंकन की दलाई लामा के प्रतिनिधियों से भेंट क्या चीन को 'संदेश'

येशी फुंटसोक ने कहा कि इसलिए, हम इंतजार कर रहे हैं और अब यह चीनी नेताओं के हाथ में है, विशेष तौर पर शी जिनपिंग पोलित ब्यूरो के हाथ में है कि वे तिब्बती मुद्दे को हल करने के लिए कितना इच्छुक हैं. उन्होंने कहा कि अगर चीनियों को लगता है कि तिब्बत उनके लिए महत्वपूर्ण है तो उन्हें तिब्बत मुद्दे को सुलझाने के लिए आगे आना चाहिए.

येशी फुंटसोक ने कहा कि चीन को वैश्विक शक्ति बनने के लिए देश को न केवल तिब्बत मुद्दे को हल करने की जरूरत है, बल्कि चीन के 55 अल्पसंख्यक समुदाय के मुद्दे को भी सुलझाने की जरूरत है, जो वर्तमान चीनी कम्युनिस्ट शासन से पीड़ित है.

उन्होंने कहा कि अब, शिनजियांग मुद्दे को भी उजागर किया जा रहा है. कभी मंचूरियन चीन पर शासन करते थे, लेकिन अब वे लगभग विलुप्त हो चुके हैं. इसलिए, तिब्बती संस्कृति, परंपरा, विरासत और भाषा को संरक्षित करने के लिए हम तिब्बती मुद्दे को हल करने के लिए कह रहे हैं.

नई दिल्ली: निर्वासित तिब्बती संसद के उपाध्यक्ष आचार्य येशी फुंटसोक ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से तिब्बत चीन का हिस्सा नहीं था. आज से 62 वर्ष पहले चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था. तब से तिब्बत पूरी तरह से चीन के आधीन है.

ईटीवी भारत ने निर्वासित तिब्बती संसद के उपाध्यक्ष आचार्य येशी फुंटसोक से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने कहा कि 1979 में चीनी नेता देंग शियाओ पिंग ने कहा था कि वे तिब्बत मुद्दे को हल करने के लिए तैयार हैं. तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा भी तिब्बत मुद्दे को बातचीत के जरिए सुलझाने के लिए तैयार हैं.

निर्वासित तिब्बती संसद के उपाध्यक्ष आचार्य येशी फुंटसोक से खास बातचीत.

उन्होंने कहा कि तिब्बती मुद्दों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र में भी वर्ष 1959-96 में पांच प्रस्ताव पारित किए जा चुके हैं. तिब्बती मुद्दों का अंतिम निर्णय केवल तिब्बती समुदाय के हाथ में है, जो स्वशासित और आत्मनिर्णय है और उस संकल्प को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाया गया है. इसलिए हम एक ही चीज यानी स्वशासित और आत्मनिर्णय मांग रहे हैं.

उन्होंने कहा कि 2009-2010 से दलाई लामा और चीन के बीच फिर से वार्ता शुरू होने वाली थी. इसके लिए दलाई लामा ने चीन नेता के प्रतिनिधियों से बीजिंग में भेंट भी की थी और ज्ञापन भी सौंपा था.

निर्वासित तिब्बती संसद के उपाध्यक्ष आचार्य येशी फुंटसोक से खास बातचीत.

हालांकि, चीन के सरकारी अधिकारियों और दलाई लामा या उनके प्रतिनिधियों के बीच वर्ष 2010 से कोई बातचीत नहीं हुई है.

उन्होंने कहा जब से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग बने, तब से आज तक चीन-तिब्बत वार्ता फिर से शुरू नहीं हो पाई है. यह एक गतिरोध की स्थिति है, लेकिन जब भी चीन पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का दबाव पड़ता है, तो वो हमेशा कहते हैं कि वे तिब्बत मुद्दे को सुलझाने के लिए तैयार हैं.

यह भी पढ़ें- ब्लिंकन की दलाई लामा के प्रतिनिधियों से भेंट क्या चीन को 'संदेश'

येशी फुंटसोक ने कहा कि इसलिए, हम इंतजार कर रहे हैं और अब यह चीनी नेताओं के हाथ में है, विशेष तौर पर शी जिनपिंग पोलित ब्यूरो के हाथ में है कि वे तिब्बती मुद्दे को हल करने के लिए कितना इच्छुक हैं. उन्होंने कहा कि अगर चीनियों को लगता है कि तिब्बत उनके लिए महत्वपूर्ण है तो उन्हें तिब्बत मुद्दे को सुलझाने के लिए आगे आना चाहिए.

येशी फुंटसोक ने कहा कि चीन को वैश्विक शक्ति बनने के लिए देश को न केवल तिब्बत मुद्दे को हल करने की जरूरत है, बल्कि चीन के 55 अल्पसंख्यक समुदाय के मुद्दे को भी सुलझाने की जरूरत है, जो वर्तमान चीनी कम्युनिस्ट शासन से पीड़ित है.

उन्होंने कहा कि अब, शिनजियांग मुद्दे को भी उजागर किया जा रहा है. कभी मंचूरियन चीन पर शासन करते थे, लेकिन अब वे लगभग विलुप्त हो चुके हैं. इसलिए, तिब्बती संस्कृति, परंपरा, विरासत और भाषा को संरक्षित करने के लिए हम तिब्बती मुद्दे को हल करने के लिए कह रहे हैं.

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