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तेल की बढ़ती कीमतों और महंगाई पर चुप्पी, क्या बदल गया भाजपा का एजेंडा ?

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Published : Oct 20, 2021, 10:24 PM IST

महंगाई और 'तेल के खेल' के बीच लगता है भाजपा सरकार की प्राथमिकताएं भी बदलती जा रहीं हैं. पहले जहां भाजपा को मध्यम वर्ग की राजनीतिक पार्टी का दर्जा दिया जाता रहा था इसमें अब काफी बदलाव आ चुका है. आम आदमी महंगाई से परेशान है लेकिन सरकार राष्ट्रवाद और जातिगत व्यवस्था में ही उलझी हुई है. महंगाई जैसे मुद्दे अब गौण हो चुके हैं और भाजपा जाति और संप्रदाय के नाम पर एक बार फिर वोट मांगने को तैयार है. आखिर महंगाई भाजपा के लिए परेशानी का विषय क्यों नहीं है ? जानते हैं वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की इस रिपोर्ट में.

महंगाई की मार
महंगाई की मार

नई दिल्ली : देश में आए दिन बढ़ती पेट्रोल-डीजल की कीमतें (Rising petrol and diesel prices) रिकॉर्ड तोड़ रही हैं. आम आदमी हर रोज बढ़ रही महंगाई (Inflation) से बेहाल है. विपक्ष में रहकर महंगाई और आम आदमी के लिए आवाज उठाने वाली भाजपा लोगों पर बढ़ते बोझ को लेकर खामोश है.
देखा जाए तो पहले भारतीय जनता पार्टी की नीतियां कहीं ना कहीं मध्यमवर्ग (मिडिल क्लास) को ध्यान में रखकर ही बनाई जाती रही हैं, लेकिन मोदी टू की सरकार में 2019 के बाद से आम आदमी की आम सोच पर राष्ट्रवाद को थोप दिया गया है. माहौल ऐसा बनाने की कोशिश की जा रही है कि जो सरकार से सहमत नहीं है वह राष्ट्रवादी नहीं है और सरकार की यह सोच कहीं ना कहीं सफल होती भी नजर आ रही है. महंगाई पर राष्ट्रवाद भारी पड़ता नजर आ रहा है. आम आदमी महंगाई से परेशान है वहीं दूसरी तरफ सरकार हर दूसरे दिन तेल के बढ़ते हुए दाम को लेकर तरह-तरह के बयान तो दे रही है लेकिन कोई तथ्यात्मक कदम नहीं उठाया जा रहा है.

तेल की कीमतों को समझने की जरूरत
वर्तमान में बात करें तो पेट्रोल की कीमत इस समय देश में अधिकतम ₹113 प्रति लीटर है. जिस पेट्रोल पर एक व्यक्ति ₹113 प्रति लीटर खर्च कर रहा है उसकी वास्तविक कीमत या यूं कहें की बेस प्राइस ₹41 के करीब है. जी हां यह बात आपको शायद सोच में डाल देगी लेकिन इसे विस्तार से समझने की जरूरत है. भारत में कच्चे तेल को विदेश से समुद्र के रास्ते लाया जाता है, उस पर टैक्स लगता है मात्र 36 पैसे प्रति लीटर. इसके अलावा इसमें डीलर का मुनाफा ₹4 के बराबर होता है. अगर इस पर लगने वाले सारे टैक्स और मुनाफे को जोड़ भी दें तो भी तेल अधिक से अधिक ₹45 में मिल सकता है.

अब यह जानने की जरूरत है कि आखिर आम आदमी तक महंगा तेल क्यों पहुंच रहा है. केंद्र सरकार ने जो उत्पाद शुल्क यानी टैक्स लगाया है वह वर्तमान में लगभग ₹ 33 है यानी कि यदि एक व्यक्ति 1 लीटर तेल खरीदता है तो वह सरकार के खाते में ₹35 डाल रहा है. यही नहीं केंद्र के बाद राज्य सरकार भी तेल पर वैल्यू ऐडेड टैक्स यानी वेट के रूप में टैक्स वसूल रही है जिससे तेल पर भारी टैक्स की वजह से इसकी कीमत बहुत अधिक हो जाती है. यानी जिस तेल की वास्तविक वैल्यू लगभग ₹41 है उसके आम आदमी ₹113 तक दे रहा है. विपक्ष के तमाम आरोपों के बाद भी सरकार इसकी कटौती के लिए अभी तक कोई बड़ा कदम नहीं उठा रही है.

पढ़ें- महंगाई की मार आम जनता पर : थाली से गायब हाे रही हरी सब्जियां

अभी तक मिडिल क्लास को नजर में रखकर जो मोदी सरकार 2014 से 2019 तक फैसले लेती आई थी, 2019 से कहीं ना कहीं महंगाई उसके लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं रह गया है. इससे ऐसा लगता है कि सरकार राष्ट्रवाद के नाम पर महंगाई के मुद्दे को भी नजरअंदाज करने को तैयार है और इस मुद्दे पर जनता भी जेब ढीली करने में बहुत ज्यादा गुरेज नहीं कर रही. आइए जानते हैं कि बढ़ती महंगाई के बावजूद भी इस वही भाजपा सरकार और वही नेता जो यूपीए सरकार में सड़क पर उतर जाया करते थे आज उस पर बोलने से क्यों कतराने लगते हैं.
चुनाव में जातियों की राजनीति हावी
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं भाजपा की एक कोशिश है कि हर एक वर्ग को जातियों में तोड़कर उस पर अपनी राजनीतिक सियासत की जाए और इसमें कहीं ना कहीं भाजपा का एजेंडा सफल भी साबित होता नजर आ रहा है. उत्तर प्रदेश में ही यदि देखें तो भाजपा अब मिडिल क्लास के लिए बात नहीं कर रही. चुनाव नजदीक आने के साथ ही किसान को भी जातियों में तोड़ने की कोशिश की जा रही है. मध्यम वर्ग एक बड़ा वोट बैंक था उसे भी जातियों में तोड़ दिया गया है. अलग-अलग जातियों के लिए भाजपा ही नहीं सभी दल अलग-अलग सम्मेलन कर रहे हैं. यानी कि मिडिल क्लास जिसके वोट के लिए सरकार महंगाई पर कंट्रोल किया करती थी वह अब जातियों में टूट गई है. किस जाति के लिए सरकार ने क्या किया यह तमाम मुद्दे यूपी के चुनाव में एजेंडे के तौर पर तैयार किए जा रहे हैं और इन सब के बीच महंगाई जैसा मुद्दा इस बार के चुनाव में लगभग गौण हो चुका है और महंगाई अब सरकार के लिए भी टेंशन का विषय नहीं रह गई है.

तेल की कीमतों के सवाल पर चुप्पी
भाजपा के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता ने नाम न लेने की शर्त पर कहा कि सिर्फ भाजपा के लिए ही नही बल्कि बाकी पार्टियों के लिए भी अब महंगाई कोई बड़ा मुद्दा नहीं रह गया है. उन्होंने यह दावा किया कि मोदी सरकार में महंगाई शुरू से नियंत्रण में है. तेल की कीमत पर सवाल पूछे जाने पर पार्टी के नेता ने चुप्पी साध ली. उनका कहना था जहां तक संभव होता है सरकार समय-समय पर कोशिश करती रहती है.

पढ़ें- पूरे देश में पेट्रोल और डीजल के दामों ने लगाया शतक, CNG ने भी दिया झटका

इस सवाल पर कि भारतीय जनता पार्टी के लिए मध्यमवर्ग हमेशा से एक बड़ा वोट बैंक रहा था आखिर पार्टी इसकी अवहेलना क्यों कर रही? उनका कहना है समय के साथ न सिर्फ भाजपा बल्कि सभी पार्टियों का एजेंडा बदलता रहता है. जहां तक सवाल मध्यम वर्ग का है मन पार्टी किसी भी वर्ग को वोट बैंक के तौर पर नहीं देती. सरकार जिन भी योजनाओं का सूत्रपात कर रही है वह तमाम वर्गों के लिए है.

पढ़ें- फिर बढ़े पेट्रोल डीजल के दाम, वाहनों की टंकी फुल नहीं करवा रहे हैं लोग

नई दिल्ली : देश में आए दिन बढ़ती पेट्रोल-डीजल की कीमतें (Rising petrol and diesel prices) रिकॉर्ड तोड़ रही हैं. आम आदमी हर रोज बढ़ रही महंगाई (Inflation) से बेहाल है. विपक्ष में रहकर महंगाई और आम आदमी के लिए आवाज उठाने वाली भाजपा लोगों पर बढ़ते बोझ को लेकर खामोश है.
देखा जाए तो पहले भारतीय जनता पार्टी की नीतियां कहीं ना कहीं मध्यमवर्ग (मिडिल क्लास) को ध्यान में रखकर ही बनाई जाती रही हैं, लेकिन मोदी टू की सरकार में 2019 के बाद से आम आदमी की आम सोच पर राष्ट्रवाद को थोप दिया गया है. माहौल ऐसा बनाने की कोशिश की जा रही है कि जो सरकार से सहमत नहीं है वह राष्ट्रवादी नहीं है और सरकार की यह सोच कहीं ना कहीं सफल होती भी नजर आ रही है. महंगाई पर राष्ट्रवाद भारी पड़ता नजर आ रहा है. आम आदमी महंगाई से परेशान है वहीं दूसरी तरफ सरकार हर दूसरे दिन तेल के बढ़ते हुए दाम को लेकर तरह-तरह के बयान तो दे रही है लेकिन कोई तथ्यात्मक कदम नहीं उठाया जा रहा है.

तेल की कीमतों को समझने की जरूरत
वर्तमान में बात करें तो पेट्रोल की कीमत इस समय देश में अधिकतम ₹113 प्रति लीटर है. जिस पेट्रोल पर एक व्यक्ति ₹113 प्रति लीटर खर्च कर रहा है उसकी वास्तविक कीमत या यूं कहें की बेस प्राइस ₹41 के करीब है. जी हां यह बात आपको शायद सोच में डाल देगी लेकिन इसे विस्तार से समझने की जरूरत है. भारत में कच्चे तेल को विदेश से समुद्र के रास्ते लाया जाता है, उस पर टैक्स लगता है मात्र 36 पैसे प्रति लीटर. इसके अलावा इसमें डीलर का मुनाफा ₹4 के बराबर होता है. अगर इस पर लगने वाले सारे टैक्स और मुनाफे को जोड़ भी दें तो भी तेल अधिक से अधिक ₹45 में मिल सकता है.

अब यह जानने की जरूरत है कि आखिर आम आदमी तक महंगा तेल क्यों पहुंच रहा है. केंद्र सरकार ने जो उत्पाद शुल्क यानी टैक्स लगाया है वह वर्तमान में लगभग ₹ 33 है यानी कि यदि एक व्यक्ति 1 लीटर तेल खरीदता है तो वह सरकार के खाते में ₹35 डाल रहा है. यही नहीं केंद्र के बाद राज्य सरकार भी तेल पर वैल्यू ऐडेड टैक्स यानी वेट के रूप में टैक्स वसूल रही है जिससे तेल पर भारी टैक्स की वजह से इसकी कीमत बहुत अधिक हो जाती है. यानी जिस तेल की वास्तविक वैल्यू लगभग ₹41 है उसके आम आदमी ₹113 तक दे रहा है. विपक्ष के तमाम आरोपों के बाद भी सरकार इसकी कटौती के लिए अभी तक कोई बड़ा कदम नहीं उठा रही है.

पढ़ें- महंगाई की मार आम जनता पर : थाली से गायब हाे रही हरी सब्जियां

अभी तक मिडिल क्लास को नजर में रखकर जो मोदी सरकार 2014 से 2019 तक फैसले लेती आई थी, 2019 से कहीं ना कहीं महंगाई उसके लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं रह गया है. इससे ऐसा लगता है कि सरकार राष्ट्रवाद के नाम पर महंगाई के मुद्दे को भी नजरअंदाज करने को तैयार है और इस मुद्दे पर जनता भी जेब ढीली करने में बहुत ज्यादा गुरेज नहीं कर रही. आइए जानते हैं कि बढ़ती महंगाई के बावजूद भी इस वही भाजपा सरकार और वही नेता जो यूपीए सरकार में सड़क पर उतर जाया करते थे आज उस पर बोलने से क्यों कतराने लगते हैं.
चुनाव में जातियों की राजनीति हावी
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं भाजपा की एक कोशिश है कि हर एक वर्ग को जातियों में तोड़कर उस पर अपनी राजनीतिक सियासत की जाए और इसमें कहीं ना कहीं भाजपा का एजेंडा सफल भी साबित होता नजर आ रहा है. उत्तर प्रदेश में ही यदि देखें तो भाजपा अब मिडिल क्लास के लिए बात नहीं कर रही. चुनाव नजदीक आने के साथ ही किसान को भी जातियों में तोड़ने की कोशिश की जा रही है. मध्यम वर्ग एक बड़ा वोट बैंक था उसे भी जातियों में तोड़ दिया गया है. अलग-अलग जातियों के लिए भाजपा ही नहीं सभी दल अलग-अलग सम्मेलन कर रहे हैं. यानी कि मिडिल क्लास जिसके वोट के लिए सरकार महंगाई पर कंट्रोल किया करती थी वह अब जातियों में टूट गई है. किस जाति के लिए सरकार ने क्या किया यह तमाम मुद्दे यूपी के चुनाव में एजेंडे के तौर पर तैयार किए जा रहे हैं और इन सब के बीच महंगाई जैसा मुद्दा इस बार के चुनाव में लगभग गौण हो चुका है और महंगाई अब सरकार के लिए भी टेंशन का विषय नहीं रह गई है.

तेल की कीमतों के सवाल पर चुप्पी
भाजपा के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता ने नाम न लेने की शर्त पर कहा कि सिर्फ भाजपा के लिए ही नही बल्कि बाकी पार्टियों के लिए भी अब महंगाई कोई बड़ा मुद्दा नहीं रह गया है. उन्होंने यह दावा किया कि मोदी सरकार में महंगाई शुरू से नियंत्रण में है. तेल की कीमत पर सवाल पूछे जाने पर पार्टी के नेता ने चुप्पी साध ली. उनका कहना था जहां तक संभव होता है सरकार समय-समय पर कोशिश करती रहती है.

पढ़ें- पूरे देश में पेट्रोल और डीजल के दामों ने लगाया शतक, CNG ने भी दिया झटका

इस सवाल पर कि भारतीय जनता पार्टी के लिए मध्यमवर्ग हमेशा से एक बड़ा वोट बैंक रहा था आखिर पार्टी इसकी अवहेलना क्यों कर रही? उनका कहना है समय के साथ न सिर्फ भाजपा बल्कि सभी पार्टियों का एजेंडा बदलता रहता है. जहां तक सवाल मध्यम वर्ग का है मन पार्टी किसी भी वर्ग को वोट बैंक के तौर पर नहीं देती. सरकार जिन भी योजनाओं का सूत्रपात कर रही है वह तमाम वर्गों के लिए है.

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