कुल्लू: अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा 2022 (international kullu dussehra 2022) को लेकर तैयारियां जोरों पर चल रही हैं. जिला कुल्लू के मुख्यालय ढालपुर में 5 अक्टूबर से अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा मनाया जा रहा है और करीब साढ़े तीन सौ साल से यह उत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है. सप्ताह भर चलना वाला ये उत्सव इसलिए अनूठा है क्योंकि जब देश के बाकी हिस्सों में दशहरा उत्सव समाप्त हो जाता है तब इसका आयोजन किया जाता है. कहा जाता है कि इस अद्भुत पर्व में स्वर्ग से धरती पर देवी-देवता आते हैं और लोगों की उत्सव को लेकर अटूट आस्था जुड़ी हुई है. ये इसी से देखा जा सकता है कि कैसे देवताओं को लेकर लोग मीलों पैदल कुल्लू दशहरा में पहुंचते हैं. खास बात यह है कोरोना के बाद एक बार फिर से कुल्लू दशहरा उत्सव अपने पुराने रंग में नजर आएगा. इस साल पीएम मोदी भी कुल्लू दशहरा में शामिल होने आ रहे हैं. इस उत्सव को लेकर सुरक्षे के कड़े इंतजाम किए गए हैं.
उत्सव से पहले देवी हिडिंबा देती हैं विशेष संकेत: देवी देवताओं के महाकुंभ के नाम से मशहूर दशहरे का आगाज बीज पूजा और देवी हिडिंबा, बिजली महादेव और माता भेखली का इशारा मिलने के बाद ही होता है. उसके बाद भगवान रघुनाथ जी की पालकी निकाली जाती है. भगवान रघुनाथ की पालकी और रथयात्रा निकलने के दौरान यहां पुलिस नहीं बल्कि उनके आगे चलने वाले देवता (धूमल नाग) ट्रैफिक का नियंत्रण करते हैं. कुल्लू दशहरा का वास्तविक नाम विजयादशमी से जोड़ा जाता है.
भगवान रघुनाथ का देवभूमि कुल्लू से विशेष नाता: आयोध्या से कुल्लू लाए गए भगवान रघुनाथ जी का देवभूमि कुल्लू से भी अटूट व गहरा नाता है. कुल्लू दशहरा का इतिहास साढ़े तीन सौ वर्ष से अधिक पुराना है. दशहरा के आयोजन के पीछे भी एक रोचक घटना का वर्णन मिलता है. इसका आयोजन 17वीं सदी में कुल्लू के राजा जगत सिंह के शासनकाल में आरंभ हुआ. राजा जगत सिंह ने वर्ष 1637 से 1662 ईसवी तक शासन किया. उस समय कुल्लू रियासत की राजधानी नग्गर हुआ करती थी.
1660 में कुल्लू में स्थापित की थीं मूर्तियां: 1653 में रघुनाथ जी की प्रतिमा को मणिकर्ण मंदिर में रखा गया और वर्ष 1660 में इसे पूरे विधि-विधान से कुल्लू के रघुनाथ मंदिर में स्थापित किया गया. राजा ने अपना सारा राज-पाट भगवान रघुनाथ जी के नाम कर दिया तथा स्वयं उनके छड़ीबदार बने. कुल्लू के 365 देवी-देवताओं ने भी श्री रघुनाथ जी को अपना इष्ट मान लिया. इससे राजा को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल गई और फिर दशहरा उत्सव मनाने की परंपरा शुरू हुई. श्री रघुनाथ जी के सम्मान में ही राजा जगत सिंह ने वर्ष 1660 में कुल्लू में दशहरे की परंपरा आरंभ की. आज भी यह परंपरा जीवित है.
राजपरिवार के सदस्य होते हैं भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार: देश की आजादी के बाद भले ही रियासतें समाप्त हो गई हो, लेकिन कुल्लू घाटी में आज भी राज परिवार का महत्व बरकरार है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण यहां का कुल्लू दशहरा है, जिसमें भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार राजपरिवार के सदस्य होते हैं और उन्हीं के द्वारा उत्सव के सभी आयोजन किए जाते हैं. वर्तमान में महेश्वर सिंह छड़ीबरदार हैं, जिन्हें स्थानीय लोग आज भी राजा साहब कहकर ही संबोधित करते हैं. 1921-1960 तक भगवंत सिंह गद्दी पर बैठे, जिनके बाद महेंद्र सिंह और अब उनके पुत्र महेश्वर सिंह उत्तराधिकारी हैं. दशहरा उत्सव के पहले दिन रघुनाथपुर से जब भगवान रघुनाथ की शोभायात्रा निकलती है तो सबसे आगे पालकी में भगवान रघुनाथ जी आते हैं और उसके बाद मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह और उनके साथ उनका परिवार चलता है.
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा को लेकर क्या है मान्यता: मान्यता है कि राजा जगत सिंह के शासनकाल में मणिकर्ण घाटी के गांव टिप्परी में एक गरीब ब्राह्मण दुर्गादत्त रहता था. उस गरीब ब्राह्मण ने राजा जगत सिंह की किसी गलतफहमी के कारण आत्मदाह कर लिया. गरीब ब्राह्मण के इस आत्मदाह का दोष राजा जगत सिंह को लगा. इससे राजा जगत सिंह को भारी ग्लानि हुई और इस दोष के कारण राजा को एक असाध्य रोग भी हो गया था.
असाध्य रोग से ग्रसित राजा जगत सिंह को झीड़ी के एक पयोहारी बाबा किशन दास ने सलाह दी कि वह अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर से भगवान राम चंद्र, माता सीता और रामभक्त हनुमान की मूर्ति लाएं. इन मूर्तियों को कुल्लू के मंदिर में स्थापित करके अपना राज-पाठ भगवान रघुनाथ को सौंप दें तो उन्हें ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति मिल जाएगी. इसके बाद राजा जगत सिंह ने श्री रघुनाथ जी की प्रतिमा लाने के लिए बाबा किशनदास के चेले दामोदर दास को अयोध्या भेजा था.
बताया जाता है कि बड़े जतन से जब मूर्ति को चुराकर हरिद्वार पहुंचे तो वहां उन्हें पकड़ लिया गया. उस समय ऐसा करिश्मा हुआ कि जब आयोध्या के पंडित मूर्ति को वापस ले जाने लगे तो वह इतनी भारी हो गई कि कइयों के उठाने से नहीं उठी और जब यहां के पंडित दामोदर ने उठाया तो मूर्ति फूल के समान हल्की हो गई. ऐसे में पूरे प्रकरण को स्वयं भगवान रघुनाथ की लीला जानकार अयोध्या वालों ने मूर्ति को कुल्लू लाने दिया.
सबसे पहले इस मूर्ति का पड़ाव मंडी-कुल्लू की सीमा पर मकराहड़ में हुआ. कुछ वर्ष यहां पर दशहरा उत्सव यहां पर मनाया गया. इसके बाद मूर्ति को मणिकर्ण के मंदिर में स्थापित किया गया, जहां भी कुछ वर्ष उत्सव मनाया गया, इसके बाद नग्गर के ठावा में मूर्ति रखी गई, वहां भी दशहरा मनाया गया. बाद में रघुनाथ की मूर्ति को कुल्लू में स्थापित किया गया और उनके आगमन में राजा जगत सिंह ने यहां के सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, जिन्होंने भगवान रघुनाथ को सबसे बड़ा मान लिया.
साथ ही राजा ने भी अपना राजपाठ त्याग कर भगवान को अर्पण कर दिए और स्वयं उनके मुख्य सेवक बन गए, यह परंपरा आज भी कायम है, जिसमें राज परिवार का सदस्य रघुनाथ जी का छड़ीबरदार होता है. इसके बाद से ही देव मिलन का प्रतीक देवमहाकुंभ दशहरा उत्सव आरंभ हुआ. जिसमें प्राचीन काल से लेकर ही घाटी के सैकड़ों देवी-देवता आकर रघुनाथ के दरबार में हाजिरी भरने लगे. पुराने समय से ही अठारह करडू की सौह ढालपुर मैदान में दशहरा अपनी विशिष्ट परंपरा के साथ मनाया जाता है. माना जाता है कि ये मूर्तियां त्रेता युग में भगवान श्रीराम के अश्वमेघ यज्ञ के दौरान बनाई गई थीं.
भगवान रघुनाथ की रथयात्रा में शामिल होंगे पीएम मोदी: अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव (international kullu dussehra) में जिला कुल्लू के विभिन्न इलाकों से देवी देवता अपने सैकड़ों हारियानों के साथ भाग लेते हैं. पहले दिन भगवान रघुनाथ की रथयात्रा का आयोजन किया जाता है, जिसमें सैकड़ों देवी देवता भगवान रघुनाथ के आगे शीश नवाते हैं. रथयात्रा में भी हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं. इस दौरान रथयात्रा को देखने के लिए देश-विदेश से भी शोधार्थी यहां पहुंचते हैं और अब की बार देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भगवान रघुनाथ की रथयात्रा में विशेष रूप से शामिल (PM Modi in kullu dussehra festival) होंगे. वहीं, 7 दिनों तक यहां पर देव संस्कृति का भी पालन किया जाएगा और देवी-देवताओं के दर्शनों के लिए देशभर से श्रद्धालु ढालपुर मैदान पहुंचेंगे.
दशहरा उत्सव में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन: अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव (kullu dussehra festival) के 7 दिनों तक कला केंद्र में सांस्कृतिक संध्या का भी आयोजन किया जाएगा. जिसमें देश विदेश के कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे. इसके अलावा दशहरे के तीसरे दिन महा नाटी का भी आयोजन किया जाएगा. जिसमें जिला कुल्लू के विभिन्न इलाकों से हजारों की संख्या में महिलाएं कुलवी नाटी का प्रदर्शन करेंगी और कुल्लूवी संस्कृति को भी दर्शाया जाएगा. वहीं, दशहरा उत्सव को खास बनाने के लिए भी समिति के द्वारा विभिन्न प्रकार के आयोजन रखे गए हैं और यहां पर बाहरी राज्यों से भी व्यापारी आकर बाजार सजाएंगे.
दशहरा उत्सव में एक हजार जवान रहेंगे तैनात, 150 CCTV कैमरे से निगरानी: सुरक्षा की दृष्टि से कुल्लू प्रशासन ने भी काम करना शुरू कर दिया है. इस उत्सव के दौरान शहर में 1000 जवान सुरक्षा की दृष्टि से तैनात रहेंगे. इसके अलावा 150 सीसीटीवी कैमरे की भी मदद ली जाएगी. इन कैमरों में कैद किसी भी तरह की संदिग्ध गतिविधि पर पुलिस तुरंत कार्रवाई करेगी. ढालपुर मैदान में पहले से ही 100 सीसीटीवी कैमरे स्थापित किए गए हैं. इस बार दशहरा उत्सव को लेकर 50 नए कैमरे लगाए जाएंगे. दशहरा उत्सव खत्म होने के बाद अस्थायी तौर पर फिट किए गए कैमरों को हटा दिया जाएगा.
24 घंटे पुलिस के जवान रहेंगे तैनात: ढालपुर मैदान में जगह-जगह देवी व देवताओं के अस्थायी शिविरों के आसपास भी दिन और रात को पुलिस का पहरा रहेगा. इसके अलावा सरवरी, गांधीनगर की तरफ भी सीसीटीवी कैमरों के जरिए हर आने-जाने वाले वाहन और व्यक्ति सहित अन्य गतिविधियों पर नजर (meeting regarding International Kullu Dussehra) रहेगी. रामशीला, बजौरा चेकपोस्ट में हर आने जाने वालों की होगी जांच की जाएगी, ताकि दशहरा उत्सव में किसी प्रकार की अड़चन पैदा न हो. वहीं, अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव को देखते हुए पुलिस अधीक्षक गुरदेव शर्मा जल्द पुलिस के सभी अधिकारियों के साथ बैठक करेंगे. इसमें पूरी रूपरेखा तैयार की जाएगी. दशहरा उत्सव के शुरू होने से लेकर समापन तक योजना तैयार की जाएगी. लोगों को परेशानी ना हो इस पर भी कार्य किया जाएगा.
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