हैदराबाद : मौजूदा दौर में दुनिया के सामने सबसे बड़ा संकट जलवायु परिवर्तन को माना जाता है. लेकिन विकास की दौड़ में अंधाधुंध भागती दुनिया ने जैसे पर्यावरण पर असर डाला है उसी तरह इंसान के लालच ने नशे के जाल को इतना फैला दिया है कि दुनिया के कई देशों में युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही है. युवाओं की नसों में घुलता ये ज़हर एक पूरी पीढ़ी को निगलने पर आमादा है. नशे का ये कारोबार युवाओं को तो बर्बाद कर ही रहा है इसकी तस्करी को लेकर क्राइम का बढ़ता ग्राफ भी चिंता का विषय है. जिसे देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इसके प्रति जागरुकता अभियान चलाया है.
26 जून की अहमियत
हर साल 26 जून को नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. यह दिन नशीली दवाओं के दुरुपयोग को समाप्त करने और उनकी अवैध तस्करी को रोकने के प्रति समर्पित है. 7 दिसंबर, 1987 को संकल्प 42/112 को अपनाते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 26 जून को नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया. इस दिन को एक संकल्प के रूप में प्रचारित किया गया है नशे के फैलते जाल के खिलाफ ताकि नशा मुक्त समाज के प्रति जागरुकता को बढ़ाया जा सके.
2021 की थीम
हर साल इस दिन के लिए एक थीम होती है, इस साल इसकी थीम ''ड्रग्स पर तथ्य साझा कर जीवन बचाएं'' हैं. इस बार सबूतों के आधार पर नशे के खिलाफ जागरुकता बढ़ाने के महत्व पर जोर दिया गया है. जिसका उद्देशय नशे के बढ़ते जाल को रोकने में आने वाली चुनौतियों को सूचनाओं के आदान-प्रदान से सामना करना है.
यूएनओडीसी (United Nations Office on Drugs and Crime) वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2020 के अनुसार, 2018 में विश्व स्तर पर 269 मिलियन लोगों ने ड्रग्स का इस्तेमाल किया, जो कि 2009 की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक है और यह अनुमान लगाया गया है कि 35 मिलियन लोग नशीली दवाओं के उपयोग संबंधी विकारों से पीड़ित हैं.
इस दिन का महत्व
नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस के जरिये दुनिया भर के लोगों खासकर बच्चों और युवाओं में जिम्मेदारी की भावना पैदा करना है. दुनिया भर में स्कूल, कॉलेज, दफ्तर और सार्वजनिक क्षेत्रों में नशे के खिलाफ जागरुकता पैदा करना है. जागरुकता फैलाने के लिए इस दिन कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न शाखाएं जैसे नशीली दवाओं के दुरुपयोग विरोधी शाखा , ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (यूएनओडीसी) के जरिये जागरुकता फैलाने का काम करता है. इसके अलावा नशीली दवाओं या नशे के कारोबार को बढ़ावा देने से बचने की सलाह देता है. इसके साथ ही कानूनी मान्यता प्राप्त दवा कारोबार की आड़ में नशीली दवाओं की तस्करी जैसे मामलों से भी मुकाबला करता है.
UNODC वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2021
महामारी के दौर में लगे लॉकडाउन का असर नशे के कारोबार पर भी पड़ा. कारोबार भले कम हुआ हो लेकिन इस दौर में जोखिम बढ़ गया क्योंकि युवा भांग का सेवन करने लगे क्योंकि वो नशीली दवाओं या अन्य ड्रग के मुकाबले इसके खतरे को कम आंकते हैं
-ड्रग्स एंड क्राइम (यूएनओडीसी) पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय द्वारा जारी 2021 की विश्व ड्रग रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले वर्ष दुनिया भर में लगभग 275 मिलियन लोगों ने ड्रग्स का इस्तेमाल किया, जबकि 36 मिलियन से अधिक लोग नशीली दवाओं के उपयोग विकारों से पीड़ित थे।
-रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि पिछले 24 सालों में दुनिया के कुछ हिस्सों में भांग की प्रबलता चार गुना तक बढ़ गई है. कैनेबिस को आमतौर पर स्वास्थ्य के लिये नुक़सानदेह माना जाता है, विशेष रूप से इसका लम्बे समय तक सेवन करने वाले लोगों के लिये.
- इस मादक पदार्थ को हानिकारक मानने वाले किशोरों की संख्या में 40 फ़ीसदी तक की कमी दर्ज की गई है. बहुत से देशों में महामारी के दौरान कैनेबिस (भांग) के इस्तेमाल में वृद्धि होने की बात सामने आई है.
-नवीनतम वैश्विक अनुमानों के अनुसार, 15 से 64 वर्ष की आयु के लगभग 5.5 प्रतिशत लोगों ने पिछले एक साल में कम से कम एक बार नशीली दवाओं का उपयोग किया है जबकि 36.3 मिलियन लोग या दवाओं का उपयोग करने वाले लोगों की कुल संख्या का 13 प्रतिशत, मादक द्रव्यों के सेवन संबंधी विकारों से ग्रस्त हैं.
- विश्व स्तर पर, अनुमान है कि 11 मिलियन से अधिक लोग इंजेक्शन के जरिये ड्रग्स लेते हैं. जिनमें से आधे लोग हेपेटाइटिस सी के साथ जी रहे हैं.
नशे के कारोबार पर कोविड-19 का असर
नशे के कारोबार पर कोविड-19 का असर कितना हुआ इसका अभी तक पूरी तरह से पता नहीं चल पाया है. लेकिन विश्लेषण से पता चलता है कि महामारी ने आर्थिक मोर्चो की मुश्किलों को बढ़ाया है जिससे अवैध नशे की खेती पर असर पड़ने की संभावना तो है लेकिन ये स्थिति ग्रामीण इलाकों में अधिक से अधिक लोगों को नशे के सेवन की ओर धकेल सकती है.
नई रिपोर्ट से पता चलता है कि महामारी की शुरुआत में सामने आई परेशानियों के बाद नशे का काला कारोबार फिर से शुरू हुआ. रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश देशों ने महामारी के दौरान भांग के उपयोग में इजाफा हुआ. 77 देशों में स्वास्थ्य के पेशे से जुड़े लोगों के सर्वेक्षण में, 42 प्रतिशत ने कहा कि भांग का उपयोग बढ़ गया है. इसी अवधि में फार्मास्युटिकल दवाओं के गैर-चिकित्सा उपयोग में भी वृद्धि देखी गई है.
नशे का कारोबार और भारत
भारत में भी नशे का जाल लगातार फैलता जा रहा है, कुछ राज्यों में तो मानो रोजाना ही इस काले कारोबार से जुड़े तस्करों की गिरफ्तारी और नशे की खेप पकड़ी जाती है. भारत में हेरोइन, अफीम, भांग, कोकीन जैसे नशीले पदार्थों की अवैध तस्करी होती है.
भारत में नशीली दवाओं का दुरुपयोग
-अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) द्वारा किए गए सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि देश में लगभग 8,50,000 इंजेक्शन के जरिये ड्रग्स लेते हैं, करीब 4,60,000 बच्चों और 18 लाख व्यस्क सूंघकर नशीली दवाओं का सेवन करते हैं.
-नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर और एम्स ने पाया कि भारत अवैध नशे के एक प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित हो गया है. भारत में, लगभग 2.8 प्रतिशत आबादी (3.1 करोड़) भांग का सेवन करने वाले और लगभग 1.08 करोड़ इसका इस्तेमाल दर्द दूर करने वाली या शांति देने वाली दवाओं के रूप में करते हैं. लगभग 80 प्रतिशत मौतें समय से पहले हो जाती हैं, जो बताता है कि अवैध नशे के सेवन का जोखिम कितना बड़ा है.
-'ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 2017' के डेटा से पता चलता है कि अवैध ड्रग्स ने उस साल दुनिया भर में लगभग 7.5 लाख लोगों की जान ली, इसमें भारत का आंकड़ा 22,000 था.
-भारत ने 2018 में लगभग 2.3 करोड़ लोग अफीम का सेवन करते थे जो बीते 14 सालों में पांच गुना अधिक था. उस साल हेरोइन की खपत में सबसे ज्यादा इजाफा दर्ज किया गया.
-2004 में, अफीम का सेवन करने वालों (20,000) की संख्या हेरोइन (9,000) की तुलना में दोगुने से अधिक थी. लगभग 12 साल बाद, रुझान उलट गया, और हेरोइन का नशा करने वालों की तादाद 2.5 लाख तक पहुंच गई, जो अफीम का सेवन करने वालों के मुकाबले लगभग दोगुनी थी.
-सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत में अफीम के उपयोग की व्यापकता वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक है.
-नशे की बुरी लत के उपचार की उपलब्धता के आंकड़े भी स्पष्ट रूप से एक बड़ा अंतर दिखाते हैं. नशा छोड़ने की कोशिश करने वाले 75 प्रतिशत लोगों को कोई इलाज नहीं मिल पाता और जिन्हें मिलता है वो सरकारी नशा मुक्ति केंद्रों के ही भरोसे होते हैं.
नशे का कारोबार
नशीली दवाओं की तस्करी और नशीली दवाओं की बरामदगी को ध्यान में रखते हुए. कुछ अनुमानों के अनुसार, दुनिया में मादक पदार्थों की तस्करी का व्यापार 650 बिलियन डॉलर तक का है.
भारत की के पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, थाईलैंड, म्यांमार, भूटान की सीमाएं आपस में मिलती हैं. इन देशों में नशे का कारोबार अच्छी तरह से फल फूल रहा है और भारत से मिली इनकी सीमाएं हमारे देश में भी नशे के कारोबार को फैलाने में मददगार साबित होती हैं. ईरान, नेपाल, अफगानिस्तान जैसे कई देश नशे के उत्पादक हैं जहां से हेरोइन, हशीश जैसे नशे भारत में गुजरात, राजस्थान, पंजाब और जम्मू कश्मीर राज्यों से देश में पहुंच जाती है, इन राज्यों की सीमाएं पाकिस्तान से लगती है जहां नशे के तस्कर सक्रिय रहते हैं.
पंजाब ने नशे की समस्या को विकराल होते हुए देखा है और इसके लिए पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश सबसे बड़े जिम्मेदार हैं जहां से नशे की अवैध तस्करी होती है और फिर यहीं से देश के दूसरे इलाकों तक नशे का जाल फैलता है. पंजाब और राजस्थान के माध्यम से तस्करी की गई हेरोइन को मुंबई और तमिलनाडु भेज दिया जाता है, जहां से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इसकी तस्करी की जाती है.
संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स एंड क्राइम के कार्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक अकेले भारत में साल 2016 में दुनिया की भांग जड़ी बूटी (गांजा) बरामदगी का छह प्रतिशत (लगभग 300 टन) मिली. 2017 में और भी अधिक मात्रा (353 टन) में ये बरामद किया गया. 2016 के मुकाबले 20 प्रतिशत की वृद्धि,
2018 में 1,258 किलोग्राम और 2019 में कुल 2,448 किलोग्राम हेरोइन जब्त की गई थी. इसी तरह 2019 में 7,317 किलोग्राम अफीम जब्त की गई और जबकि 2018 में ये आंकड़ा 4307 किलोग्राम था. 2019 में, अधिकारियों ने 58 किलो कोकीन जब्त किया जबकि 2018 में यह 35 किलो था.
नशे के जाल से निपटना सबसे बड़ी चुनौती
भारत समेत दुनिया के कई देशों के लिए नशे का ये फैलता कारोबार परेशानी का सबब बन चुका है. हर साल बढ़ता नशे का कारोबार बताता है कि तस्करों के हौसले कितने बुलंद हैं. जिन्हें नियम कायदों या कानून की कोई परवाह नहीं है. ऐसे में सरकारों को नशे के काले कारोबार के खिलाफ सख्त कदम उठाने होंगे, साथ ही लोगों को इसके लिए जागरूक भी करना होगा. क्योंकि जागरुकता और सख्ती की जुगलबंदी ही इस नशे के सौदगरों पर नकेल कस सकती है.