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व्हाट्सअप DP पर SC के जज की फोटो लगाकर गांठता था रौब, ये है मनोज की क्राइम कुंडली

बीते दिनों पुलिस के हत्थे चढ़े मनोज कुमार के गुनाहों और उनको अंजाम देने के तरीकों की फेहरिस्त काफी लंबी है. 22 सालों से मनोज कुमार खुद को सुप्रीम कोर्ट का जज बताकर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली समेत अन्य प्रदेशों के अधिकारियों को उंगलियों पर नचाता था. जानिए मनोज की कैसे हुई जुर्म की दुनियां में एंट्री...

Manoj kumar crime list
व्हाट्सअप DP पर SC के जज की फोटो लगाकर गांठता था रौब.
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Published : Jul 12, 2022, 10:46 AM IST

देहरादूनः व्हाट्सअप पर सुप्रीम कोर्ट के जज की डीपी यानी फोटो लगाकर धोखाधड़ी करने वाले दो शातिर पुलिस के हत्थे चढ़ चुके हैं, लेकिन उनके गुनाहों की फेहरिस्त काफी लंबी है. इतना ही नहीं एक आरोपी तो उत्तर प्रदेश, दिल्ली और उत्तराखंड के सरकारी अधिकारियों को 22 सालों तक अपनी उंगलियों पर नचाता रहा. साथ ही खुद को जज बताकर आला अधिकारियों के आंखों में धूल झोंक कर ठगी करता रहा.

बता दें कि बीते दिनों देहरादून में सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश की फोटो अपने व्हाट्सएप डीपी में लगा कर उत्तराखंड सचिवालय में ठगी करने के आरोप में पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया था. जिसमें आरोपी मनोज कुमार के जुर्म की कहानी तो काफी लंबी है. साल 1999 से ही मनोज ने ठगी करनी शुरू कर दी थी. महज 12वीं पास करने के बाद से ही उसने दिल्ली के चाणक्यपुरी शांति पथ में स्थित अलग-अलग विदेशी दूतावास (Embassy) से अपनी ठगी का गोरखधंधा शुरू किया.

जांच एजेंसियों के मुताबिक, मनोज कुमार ने साल 1999 में विदेशों में वीजा लगाने के नाम पर रुपए कमाने का धंधा चालू किया. जब उसे पता चला कि हाई प्रोफाइल कंपनी और बड़े-बड़े संस्थानों के कर्मचारी व अधिकारी को किसी भी दूतावास से वीजा मिलने में प्राथमिकता मिलती है तो ऐसे में उसने नामी-गिरामी कंपनियों के लेटर हेड छपवाए. इतना ही नहीं आवेदकों से मोटी रकम वसूल कर खुद ही उन पर लेटर तैयार कर एंबेसी में जमा कराए. ऐसा करने से एक के बाद एक लोगों को जल्दी-जल्दी वीजा मिलने लगा.

मनोज कुमार का यह खेल साल 1999 से 2003 तक चलता रहा. हालांकि, उसके बाद कुछेक एंबेसी को इस तरह के विषयों पर शक होने लगा. जिसके बाद इसकी शिकायत चाणक्यपुरी पुलिस स्टेशन और इंटेलिजेंस को लिखित रूप में दस्तावेजों के साथ दी गई. दिल्ली पुलिस की जांच एजेंसियों ने इस मामले की जांच की और मनोज के इस गोरखधंधे का खुलासा किया.

जेल के अंदर से भी कराता रहा फर्जी कामः वहीं, अलग-अलग एंबेसी की शिकायतों पर कई मुकदमे दर्ज किए गए थे. ऐसे में उसे गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया. इसके बावजूद भी वो बाज नहीं आया और कई बार जेल के अंदर होने पर भी नए तरीकों से एंबेसी में फर्जी काम कराए. साल 2005 तक वो इसी फर्जीवाड़े में जेल जाता रहा और बाहर आता रहा.

पान मसाला कंपनी के नाम पर शुरू हुआ ठगी का असली खेलः दिल्ली चाणक्यपुरी एंबेसी में वीजा लगाने के फर्जीवाड़े का काम जगजाहिर होने के बाद मनोज कुमार ने ठगी में इतनी महारत हासिल कर ली थी कि उसने बड़े-बड़े अधिकारियों और जिलाधिकारियों समेत नेताओं के साथ अपने गठजोड़ बढ़ाए. बताया जा रहा है कि साल 2015 में उसने पुरवाई पान मसाला प्राइवेट लिमिटेड कंपनी और पूर्वी प्रोडक्शन कंपनी से नया से फर्जीवाड़े का धंधा शुरू किया.

ये भी पढ़ेंः 12वीं पास शातिर SC का जज बनकर करते थे ठगी, सचिवालय में IAS अधिकारी से भी मिले, गिरफ्तार

इन दोनों कंपनी के संचालन के दौरान उसकी मुलाकात बड़े-बड़े नेताओं और आलाधिकारियों से होती रही. बस फिर क्या था, मनोज ने खुद को न्यायाधीशों और रसूखदार नेताओं का रिश्तेदार बताकर न सिर्फ मोटी रकम वसूल कर सरकारी कॉन्ट्रैक्ट की फाइलें पास कराई, बल्कि उगाही भी शुरू कर दी.

मनोज कुमार का यह धंधा दिल्ली, उत्तर प्रदेश, नोएडा में खूब रंग जमाने लगा. बताया जा रहा है कि नोएडा, गाजियाबाद जैसे जिलाधिकारियों को न्यायाधीश का रिश्तेदार बताकर और काफी समय से अपने व्हाट्सएप प्रोफाइल में मुख्य न्यायधीश की फोटो (डीपी) लगा कर डराने व धमकाने का काम करता था. ऐसे में उसने कई फाइलें पास कराईं और कई लोगों से अवैध वसूली भी जमकर की.

न्यायाधीश के नाम से ही खौफ खाते थे अधिकारीः उत्तराखंड एसटीएफ (Uttarakhand STF) के मुताबिक, मनोज कुमार जो पिछले 22 सालों में करोड़ों कमाकर ठगी का बेताज बादशाह बन गया था, वर्तमान समय में वो उत्तराखंड सचिवालय में बड़े-बड़े आईएएस को अपना रसूख दिखा कर आराम से घूमता हुआ देखा जाता था. मनोज की जालसाजी का खेल उसकी गिरफ्तारी के बाद पूरी तरह सामने आया. उसकी गिरफ्तारी के बाद अब उत्तर प्रदेश पुलिस और दिल्ली पुलिस ने भी मनोज कुमार के मामले में उत्तराखंड पुलिस के संपर्क किया है.

एसटीएफ की जांच पड़ताल में यह पता चला कि वो बड़े-बड़े अधिकारियों पर मुख्य न्यायाधीश का नाम ठगी में इस्तेमाल करता था. ऐसे में न्यायाधीश का नाम सामने आने के बाद किसी अधिकारी की हिम्मत उनसे संपर्क कर संबंधित बात को पूछने की नहीं होती थी. इसी का फायदा उठाकर मनोज का ठगी वाला वाला काम सरकारी ऑफिसों में जल्दी व आसानी से हो जाता था.

हाल ही में वो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की फोटो अपने व्हाट्सएप नंबर पर लगा कर अधिकारियों को मैसेज करता था. फिर अपनी या अन्य लोगों की फाइलें पास कराने के लिए उनसे पहले मैसेज पर आदान-प्रदान कर रजामंदी लेता था. उसके बाद खुद काम कराने के लिए उनके ऑफिस पहुंच जाता था. उत्तराखंड एसटीएफ के मुताबिक, इस शातिराना धोखेबाजी में उसके साथ पत्नी व अन्य महिलाएं समेत बड़ा गिरोह भी शामिल है, जिनकी तलाश जारी है.

देहरादूनः व्हाट्सअप पर सुप्रीम कोर्ट के जज की डीपी यानी फोटो लगाकर धोखाधड़ी करने वाले दो शातिर पुलिस के हत्थे चढ़ चुके हैं, लेकिन उनके गुनाहों की फेहरिस्त काफी लंबी है. इतना ही नहीं एक आरोपी तो उत्तर प्रदेश, दिल्ली और उत्तराखंड के सरकारी अधिकारियों को 22 सालों तक अपनी उंगलियों पर नचाता रहा. साथ ही खुद को जज बताकर आला अधिकारियों के आंखों में धूल झोंक कर ठगी करता रहा.

बता दें कि बीते दिनों देहरादून में सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश की फोटो अपने व्हाट्सएप डीपी में लगा कर उत्तराखंड सचिवालय में ठगी करने के आरोप में पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया था. जिसमें आरोपी मनोज कुमार के जुर्म की कहानी तो काफी लंबी है. साल 1999 से ही मनोज ने ठगी करनी शुरू कर दी थी. महज 12वीं पास करने के बाद से ही उसने दिल्ली के चाणक्यपुरी शांति पथ में स्थित अलग-अलग विदेशी दूतावास (Embassy) से अपनी ठगी का गोरखधंधा शुरू किया.

जांच एजेंसियों के मुताबिक, मनोज कुमार ने साल 1999 में विदेशों में वीजा लगाने के नाम पर रुपए कमाने का धंधा चालू किया. जब उसे पता चला कि हाई प्रोफाइल कंपनी और बड़े-बड़े संस्थानों के कर्मचारी व अधिकारी को किसी भी दूतावास से वीजा मिलने में प्राथमिकता मिलती है तो ऐसे में उसने नामी-गिरामी कंपनियों के लेटर हेड छपवाए. इतना ही नहीं आवेदकों से मोटी रकम वसूल कर खुद ही उन पर लेटर तैयार कर एंबेसी में जमा कराए. ऐसा करने से एक के बाद एक लोगों को जल्दी-जल्दी वीजा मिलने लगा.

मनोज कुमार का यह खेल साल 1999 से 2003 तक चलता रहा. हालांकि, उसके बाद कुछेक एंबेसी को इस तरह के विषयों पर शक होने लगा. जिसके बाद इसकी शिकायत चाणक्यपुरी पुलिस स्टेशन और इंटेलिजेंस को लिखित रूप में दस्तावेजों के साथ दी गई. दिल्ली पुलिस की जांच एजेंसियों ने इस मामले की जांच की और मनोज के इस गोरखधंधे का खुलासा किया.

जेल के अंदर से भी कराता रहा फर्जी कामः वहीं, अलग-अलग एंबेसी की शिकायतों पर कई मुकदमे दर्ज किए गए थे. ऐसे में उसे गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया. इसके बावजूद भी वो बाज नहीं आया और कई बार जेल के अंदर होने पर भी नए तरीकों से एंबेसी में फर्जी काम कराए. साल 2005 तक वो इसी फर्जीवाड़े में जेल जाता रहा और बाहर आता रहा.

पान मसाला कंपनी के नाम पर शुरू हुआ ठगी का असली खेलः दिल्ली चाणक्यपुरी एंबेसी में वीजा लगाने के फर्जीवाड़े का काम जगजाहिर होने के बाद मनोज कुमार ने ठगी में इतनी महारत हासिल कर ली थी कि उसने बड़े-बड़े अधिकारियों और जिलाधिकारियों समेत नेताओं के साथ अपने गठजोड़ बढ़ाए. बताया जा रहा है कि साल 2015 में उसने पुरवाई पान मसाला प्राइवेट लिमिटेड कंपनी और पूर्वी प्रोडक्शन कंपनी से नया से फर्जीवाड़े का धंधा शुरू किया.

ये भी पढ़ेंः 12वीं पास शातिर SC का जज बनकर करते थे ठगी, सचिवालय में IAS अधिकारी से भी मिले, गिरफ्तार

इन दोनों कंपनी के संचालन के दौरान उसकी मुलाकात बड़े-बड़े नेताओं और आलाधिकारियों से होती रही. बस फिर क्या था, मनोज ने खुद को न्यायाधीशों और रसूखदार नेताओं का रिश्तेदार बताकर न सिर्फ मोटी रकम वसूल कर सरकारी कॉन्ट्रैक्ट की फाइलें पास कराई, बल्कि उगाही भी शुरू कर दी.

मनोज कुमार का यह धंधा दिल्ली, उत्तर प्रदेश, नोएडा में खूब रंग जमाने लगा. बताया जा रहा है कि नोएडा, गाजियाबाद जैसे जिलाधिकारियों को न्यायाधीश का रिश्तेदार बताकर और काफी समय से अपने व्हाट्सएप प्रोफाइल में मुख्य न्यायधीश की फोटो (डीपी) लगा कर डराने व धमकाने का काम करता था. ऐसे में उसने कई फाइलें पास कराईं और कई लोगों से अवैध वसूली भी जमकर की.

न्यायाधीश के नाम से ही खौफ खाते थे अधिकारीः उत्तराखंड एसटीएफ (Uttarakhand STF) के मुताबिक, मनोज कुमार जो पिछले 22 सालों में करोड़ों कमाकर ठगी का बेताज बादशाह बन गया था, वर्तमान समय में वो उत्तराखंड सचिवालय में बड़े-बड़े आईएएस को अपना रसूख दिखा कर आराम से घूमता हुआ देखा जाता था. मनोज की जालसाजी का खेल उसकी गिरफ्तारी के बाद पूरी तरह सामने आया. उसकी गिरफ्तारी के बाद अब उत्तर प्रदेश पुलिस और दिल्ली पुलिस ने भी मनोज कुमार के मामले में उत्तराखंड पुलिस के संपर्क किया है.

एसटीएफ की जांच पड़ताल में यह पता चला कि वो बड़े-बड़े अधिकारियों पर मुख्य न्यायाधीश का नाम ठगी में इस्तेमाल करता था. ऐसे में न्यायाधीश का नाम सामने आने के बाद किसी अधिकारी की हिम्मत उनसे संपर्क कर संबंधित बात को पूछने की नहीं होती थी. इसी का फायदा उठाकर मनोज का ठगी वाला वाला काम सरकारी ऑफिसों में जल्दी व आसानी से हो जाता था.

हाल ही में वो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की फोटो अपने व्हाट्सएप नंबर पर लगा कर अधिकारियों को मैसेज करता था. फिर अपनी या अन्य लोगों की फाइलें पास कराने के लिए उनसे पहले मैसेज पर आदान-प्रदान कर रजामंदी लेता था. उसके बाद खुद काम कराने के लिए उनके ऑफिस पहुंच जाता था. उत्तराखंड एसटीएफ के मुताबिक, इस शातिराना धोखेबाजी में उसके साथ पत्नी व अन्य महिलाएं समेत बड़ा गिरोह भी शामिल है, जिनकी तलाश जारी है.

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