बुजुर्गों का अकेलापन दूर करेगी टाइम बैंक मुहिम, रिटायर्ड अफसरों ने संस्था के साथ उठाया बीड़ा - old man alone at home
देहरादून शहर के बुजुर्गों का अकेलापन दूर करने के लिए टाइम बैंक मुहिम को लागू करने की पहल की जा रही है. इसके लिए देहरादून के कुछ रिटायर्ड अधिकारी और एक संस्था आगे आई हैं. कुछ संशोधन के बाद मुहिम को लागू किया भी जा सकता है. विदेशों में लागू मुहिम भारत में सिर्फ राजस्थान में चल रही है.
देहरादूनः एक जमाने में आबोहवा और रिटायरमेंट के बाद की रिलैक्स भरी जिंदगी के लिए देहरादून शहर एक अलग पहचान रखता था. लेकिन आज आलम है कि शहर के कई पॉश इलाकों में बनी करोड़ों की कोठियों में अकेले बुजुर्ग रह रहे हैं. कारण किसी के बच्चे विदेशों में बस चुके हैं या फिर देश के दूसरे अन्य राज्यों में नौकरी या पढ़ाई कर रहे हैं. इस कारण बुजुर्गों का अकेलापन बढ़ता जा रहा है. हालांकि, इनके अकेलेपन को खत्म करने के लिए कुछ रिटायर्ड अधिकारियों और एक संस्था ने मिलकर एक अनूठी पहल की शुरुआत की है.
देहरादून के पॉश इलाके हो रहे वीरान: पेयजल निगम से 2013 में रिटायर्ड हुए सुपरिटेंडेंट इंजीनियर अवधेश कुमार जोकि देहरादून के मोहित नगर में रहते हैं, वह शहर के वीरान होते इलाकों के बारे में अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि आजकल के इस भागदौड़ भरे दौर में अकेलेपन की समस्या से हर दूसरा व्यक्ति पीड़ित है. लेकिन इसमें सबसे दयनीय स्थिति उन बुजुर्गों की है, जिनके बच्चे अपना भविष्य बनाने के लिए घर से बाहर हैं. उन्होंने आगे कहा कि देहरादून के पॉश इलाके जैसे बसंत विहार, डिफेंस कॉलोनी, मोहित नगर जहां पर करोड़ों की कोठियां हैं, लेकिन वहां सिर्फ बुजुर्ग निवास करते हैं. उनसे बात करने के लिए कोई मौजूद नहीं है. अवधेश कुमार बताते हैं कि इन लोगों के पास रुपयों की कोई कमी नहीं है, लेकिन इसके बावजूद भी यह अकेलापन और डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं.
करोड़ों की कोठी में सिर्फ बुजुर्ग: आज के इस दौर में अकेलेपन के शिकार हो रहे बुजुर्गों के साथ घटनाएं भी सामने आती हैं, ऐसे बुजुर्ग हार्ट अटैक या फिर किसी अन्य घटना के शिकार हो जाते हैं. ऐसे में अकेले रहने के कारण किसी को भनक भी नहीं लगती है. घटना के बारे में काफी दिनों बाद जानकारी मिलती है. अकेलेपन के ऐसे मामले देखने के बाद देहरादून के कुछ रिटायर्ड अधिकारियों और एक समाजसेवी संस्था के माध्यम से शहर के अकेले रह रहे बुजुर्गों का अकेलापन को दूर करने को लेकर अनूठी पहल शुरू की जा रही है.
रिटायर्ड अधिकारी अवधेश कुमार बताते हैं कि उन्होंने कई अलग-अलग माध्यम से यह जानकारी प्राप्त की है कि अकेले घरों में रह रहे बुजुर्गों के अकेलेपन की समस्या को दूर करने के लिए विदेशों में टाइम बैंक की स्थापना की गई है. जहां पर बुजुर्गों के अकेलेपन को दूर करने और उन्हें डिप्रेशन से दूर रखने के लिए टाइम बैंक के रूप में समाज सेवा की जाती है. आज इसकी जरूरत हमारे देश और हमारे शहर देहरादून को भी है. यह अफसोस की बात है कि संयुक्त परिवार वाले भारत में भी इस तरह की स्थिति आ रही है.
बुजुर्गों का अकेलापन दूर करती टाइम बैंक मुहिम: जानकारी के मुताबिक, टाइम बैंक की शुरुआत सबसे पहले स्विट्जरलैंड से की गई थी. जहां पर हैप्पीनेस इंडेक्स को बढ़ाने के लिए और घरों में रह रहे एकल बुजुर्गों के अकेलेपन को दूर करने के लिए टाइम बैंक मुहिम चलाई जाती है. समाज सेवा के रूप में इन बुजुर्गों को डिप्रेशन से दूर रखने के लिए इनके पास जाकर समय बिताया जाता है और जो भी वालंटियर जितना समय एकल बुजुर्गों के साथ बिताता है उतना समय उसके टाइम बैंक में जमा हो जाता है. साथ ही भविष्य में जब उसे किसी तरह की कोई जरूरत होती है या किसी व्यक्ति के साथ की जरूरत होती है तो उसके टाइम बैंक के अनुसार उसे भी सहायता दी जाती है.
भारत में यह योजना राजस्थान में शुरू की गई है. हालांकि, इसके बारे में अभी ज्यादा लोगों को पता नहीं है और ना ही इसके बारे में अभी तक लोगों को जागरूक किया गया है. टाइम बैंक भारत में इसलिए भी ज्यादा प्रचलित नहीं है, क्योंकि भारत एक संयुक्त परिवार वाला देश है. लेकिन धीरे-धीरे हमारे देश में भी इसी तरह के हालात पैदा हो रहे हैं. जहां पर घरों में बुजुर्ग अकेले रह गए हैं और उनके बच्चे किसी दूसरे बड़े शहर या फिर विदेश में अपना भविष्य तलाश रहे हैं. ऐसे लोगों के पास पैसे की कमी नहीं है, लेकिन घरों में अकेले रह रहे बुजुर्ग लगातार डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं.
निरोगी भारत मिशन फाउंडेशन की पहल: निरोगी भारत मिशन समाज सेवी संस्था के रोहित मान और उनके तमाम वालंटियर देहरादून की इस समस्या का संज्ञान ले रहे हैं. कोशिश कर रहे हैं कि टाइम बैंक पद्धति को कुछ संशोधन और बेहतर रिफॉर्म के साथ देहरादून में शुरू किया जाए. इसको लेकर कुछ अनुभवी रिटायर्ड अधिकारियों और समाज सेवा से जुड़े लोगों के साथ लगातार चर्चा की जा रही है. टाइम बैंक मुहिम के साथ जो एक सबसे बड़ा चैलेंज है, वह सुरक्षा का है. इसको लेकर लगातार चर्चा की जा रही है.
टाइम बैंक के कुछ सुधार के साथ इसे देहरादून में ओल्ड एज केयर के नाम से शुरू किया जा सकता है. वहीं इसके प्रतिनिधियों पुलिस के माध्यम से रणनीति तैयार कर सकती है. खासतौर से ऐसे मोहल्ले का डाटा तैयार किया जा रहा है जो कि पॉश कॉलोनियां हैं. जहां पर समृद्धि लोग रहते हैं, जो इन लोगों को सेवाएं देकर इस मुहिम में आर्थिक मदद भी कर सकते हैं. इसकी सहायता से ऐसे लोगों की मदद भी की जा सकती है जो कि आर्थिक रूप से समर्थ नहीं हैं.
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