ETV Bharat / bharat

पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी : भारत के लिए बड़ा 'झटका', राजनयिकों को करने होंगे अथक प्रयास

भाजपा ने हालांकि, अपने दोनों नेताओं, नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल, को पार्टी से निलंबित कर दिया है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी जिस तरह से प्रतिक्रिया दिखी है, उससे निपटने में भारत को काफी समय लग जाएगा. इससे हमारे आर्थिक, राजनयिक और सांस्कृतिक पहलू प्रभावित हो सकते हैं. मालदीव और ईरान जैसे देश भी 'ताने' मार रहे हैं. मुस्लिम देशों के बीच अलग-थलग पड़ चुका पाकिस्तान को अचानक ही सहानुभूति मिल गई है. पढ़िए ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता संजीब बरूआ की एक रिपोर्ट.

amit shah, Modi, (File Photo)
अमित शाह, मोदी (फाइल फोटो)
author img

By

Published : Jun 6, 2022, 6:52 PM IST

नई दिल्ली : भाजपा नेता नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल के विवादास्पद बयानों पर मुस्लिम देशों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. इससे भारत की राजनयिक छवि को काफी नुकसान पहुंचा है. ईरान, ईजिप्ट, सउदी अरब, कतर, कुवैत और पाकिस्तान समेत इस्लामिक देशों के समूह ओआईसी ने न सिर्फ कड़े शब्दों में निंदा की है, बल्कि कुछ देशों ने भारत के राजनयिकों को समन भी कर लिया.

विवाद की शुरुआत भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल के कमेंट से हुई. नुपूर ने एक टीवी डिबेट में पैगंबर मोहम्मद पर कुछ टिप्पणी की थी. हालांकि, भाजपा ने त्वरित कार्रवाई करते हुए दोनों नेताओं को निलंबित कर दिया. लेकिन पश्चिम एशिया के देशों से जिस तरह से प्रतिक्रिया दी है, उससे लगता है कि भारत के राजनयिकों को स्थिति सामान्य करने में कई गुणा अधिक प्रयास करने होंगे.

आइए सबसे पहले आर्थिक नजरिए से देखिए. पश्चिम एशिया के मुस्लिम देश भारतीय सामानों के आयात पर प्रतिबंध लगा सकते हैं, जबकि भारत ने इन देशों में अपने सामानों की अच्छी पहचान बनाई हुई है. इसी तरह से भारत से भारी संख्या में लोग वहां पर काम की तलाश में जाते हैं. उन लोगों के वर्किंग वीजा पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं. और ऐसा हुआ तो भारत में निवेश का एक नकारात्मक माहौल बन सकता है. खासकर हाल के वर्षों में जिस तरह से सउदी अरब और यूएई ने निवेश को लेकर भारत में काफी रूचि दिखाई है.

दूसरा- भारत 'एक्ट ईस्ट नीति' के रणनीतिक महत्व को नजर अंदाज नहीं कर सकता है. इन देशों से आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंध मजबूत हुए हैं. इन देशों में भी 42 फीसदी मुस्लिम आबादी रहती है. 18 फीसदी बौद्ध और 17 फीसदी ईसाई आबादी है. यहां पर भी गंभीर प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ सकता है.

इसके बाद कुछ विवाद पहले से चले आ रहे हैं. जैसे 2020 में भारत ने मुस्लिम बहुल मलेशिया से खरीदे जाने वाले पाम ऑयल के आयात पर नियंत्रण लगा दिया था. तब मलेशिया ने अनुच्छेद 370 को हटाने और सीएए को कानून बनाने का विरोध किया था.

तीसरी वजह है एशियान देशों से संबंध बिगड़े, तो भारत की हिंद-प्रशांत नीति भी प्रभावित हो सकती है. यहां पर भारत चीन जैसी शक्ति का सामना कर रहा है. मालदीव जैसे मुस्लिम देश, जहां भारत ने बहुत मुश्किल से चीन को पछाड़कर अपनी स्थिति सुधारी है. यहां पर भी एंटी इंडिया सेंटिमेंट उबाल लेने लगा. यहां पर उन्होंने भारत के खिलाफ प्रस्ताव लाने की भी तैयारी कर ली थी, लेकिन वह पारित नहीं हो सका.

पांचवां कारण- भारत ने हाल के दिनों में मुस्लिम देशों के बीच पाकिस्तान को बहुत हद तक किनारा करने में सफलता पाई है. भारत अब नहीं चाहेगा कि फिर से पाकिस्तान को कोई सहानुभूति मिले. कई मुस्लिम देशों में फिर से ऐसी भावनाएं उठने भी लगीं हैं.

छठी वजह है - कश्मीरी अलगाववादी आंदोलन के उग्रवादी इस्लामी घटक को बढ़ावा मिलने की संभावना. इसके परिणामस्वरूप घाटी में और अधिक कट्टरता और आतंकी वारदातों में वृद्धि हो सकती है.

रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ संजय सिंह का कहना है, 'लब्बो-लुआब ये है कि भारतीय विदेश नीति के लिए यह बड़ी आपदा जैसी स्थिति होगी. ओआईसी समेत सभी मुस्लिम देश यहां तक कि ईरान भी, भारत में जो कुछ हुआ, उससे नाराज है.'

सिंह ने कहा, 'पैगंबर मोहम्मद को इस्लाम के सभी संप्रदाय मानते हैं. भारत में शिया और सुन्नी की अच्छी आबादी है. इस हेट टिप्पणी को लेकर उम्माह में अंतरराष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर आपसी मतभेदों को भुला देने की क्षमता है.'

वैसे, इस विवाद की पृष्ठभूमि भी बहुत ही दिलचस्प है. अमेरिकी विदेश विभाग की 'अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट 2021', जो गुरुवार (2 जून, 2022) को जारी किया गया था, इसमें भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति पर सवाल उठाए गए हैं. इस रिपोर्ट को लेकर अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकिन ने कहा, 'भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश है, यहां पर अलग-अलग पंथों के मानने वाले लोग रहते हैं, लेकिन हाल के कुछ दिनों में लोगों के पूजा स्थलों पर हमले की घटनाएं बढ़ीं हैं.'

स्टेट डिपार्टमेंट रिपोर्ट 2022 अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) की रिपोर्ट का अनुसरण करती है. यह 25 अप्रैल, 2022 को जारी की गई थी. यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट ने भारत को 'विशेष चिंता वाले देश' (सीपीसी) के रूप में सूचीबद्ध किया और इसे 15 देशों के उस समूह में रखा, जिसमें रूस, चीन, तालिबान-नियंत्रित अफगानिस्तान, बर्मा, इरिट्रिया, ईरान, नाइजीरिया, उत्तर कोरिया, सऊदी अरब, सीरिया, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और वियतनाम जैसे देश शामिल हैं.

ये भी पढ़ें : प्रवक्ताओं को सस्पेंड कर बीजेपी ने क्या संदेश दिया, कहीं 'टैक्टिकल चेंज' की तैयारी तो नहीं !

नई दिल्ली : भाजपा नेता नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल के विवादास्पद बयानों पर मुस्लिम देशों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. इससे भारत की राजनयिक छवि को काफी नुकसान पहुंचा है. ईरान, ईजिप्ट, सउदी अरब, कतर, कुवैत और पाकिस्तान समेत इस्लामिक देशों के समूह ओआईसी ने न सिर्फ कड़े शब्दों में निंदा की है, बल्कि कुछ देशों ने भारत के राजनयिकों को समन भी कर लिया.

विवाद की शुरुआत भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल के कमेंट से हुई. नुपूर ने एक टीवी डिबेट में पैगंबर मोहम्मद पर कुछ टिप्पणी की थी. हालांकि, भाजपा ने त्वरित कार्रवाई करते हुए दोनों नेताओं को निलंबित कर दिया. लेकिन पश्चिम एशिया के देशों से जिस तरह से प्रतिक्रिया दी है, उससे लगता है कि भारत के राजनयिकों को स्थिति सामान्य करने में कई गुणा अधिक प्रयास करने होंगे.

आइए सबसे पहले आर्थिक नजरिए से देखिए. पश्चिम एशिया के मुस्लिम देश भारतीय सामानों के आयात पर प्रतिबंध लगा सकते हैं, जबकि भारत ने इन देशों में अपने सामानों की अच्छी पहचान बनाई हुई है. इसी तरह से भारत से भारी संख्या में लोग वहां पर काम की तलाश में जाते हैं. उन लोगों के वर्किंग वीजा पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं. और ऐसा हुआ तो भारत में निवेश का एक नकारात्मक माहौल बन सकता है. खासकर हाल के वर्षों में जिस तरह से सउदी अरब और यूएई ने निवेश को लेकर भारत में काफी रूचि दिखाई है.

दूसरा- भारत 'एक्ट ईस्ट नीति' के रणनीतिक महत्व को नजर अंदाज नहीं कर सकता है. इन देशों से आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंध मजबूत हुए हैं. इन देशों में भी 42 फीसदी मुस्लिम आबादी रहती है. 18 फीसदी बौद्ध और 17 फीसदी ईसाई आबादी है. यहां पर भी गंभीर प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ सकता है.

इसके बाद कुछ विवाद पहले से चले आ रहे हैं. जैसे 2020 में भारत ने मुस्लिम बहुल मलेशिया से खरीदे जाने वाले पाम ऑयल के आयात पर नियंत्रण लगा दिया था. तब मलेशिया ने अनुच्छेद 370 को हटाने और सीएए को कानून बनाने का विरोध किया था.

तीसरी वजह है एशियान देशों से संबंध बिगड़े, तो भारत की हिंद-प्रशांत नीति भी प्रभावित हो सकती है. यहां पर भारत चीन जैसी शक्ति का सामना कर रहा है. मालदीव जैसे मुस्लिम देश, जहां भारत ने बहुत मुश्किल से चीन को पछाड़कर अपनी स्थिति सुधारी है. यहां पर भी एंटी इंडिया सेंटिमेंट उबाल लेने लगा. यहां पर उन्होंने भारत के खिलाफ प्रस्ताव लाने की भी तैयारी कर ली थी, लेकिन वह पारित नहीं हो सका.

पांचवां कारण- भारत ने हाल के दिनों में मुस्लिम देशों के बीच पाकिस्तान को बहुत हद तक किनारा करने में सफलता पाई है. भारत अब नहीं चाहेगा कि फिर से पाकिस्तान को कोई सहानुभूति मिले. कई मुस्लिम देशों में फिर से ऐसी भावनाएं उठने भी लगीं हैं.

छठी वजह है - कश्मीरी अलगाववादी आंदोलन के उग्रवादी इस्लामी घटक को बढ़ावा मिलने की संभावना. इसके परिणामस्वरूप घाटी में और अधिक कट्टरता और आतंकी वारदातों में वृद्धि हो सकती है.

रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ संजय सिंह का कहना है, 'लब्बो-लुआब ये है कि भारतीय विदेश नीति के लिए यह बड़ी आपदा जैसी स्थिति होगी. ओआईसी समेत सभी मुस्लिम देश यहां तक कि ईरान भी, भारत में जो कुछ हुआ, उससे नाराज है.'

सिंह ने कहा, 'पैगंबर मोहम्मद को इस्लाम के सभी संप्रदाय मानते हैं. भारत में शिया और सुन्नी की अच्छी आबादी है. इस हेट टिप्पणी को लेकर उम्माह में अंतरराष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर आपसी मतभेदों को भुला देने की क्षमता है.'

वैसे, इस विवाद की पृष्ठभूमि भी बहुत ही दिलचस्प है. अमेरिकी विदेश विभाग की 'अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट 2021', जो गुरुवार (2 जून, 2022) को जारी किया गया था, इसमें भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति पर सवाल उठाए गए हैं. इस रिपोर्ट को लेकर अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकिन ने कहा, 'भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश है, यहां पर अलग-अलग पंथों के मानने वाले लोग रहते हैं, लेकिन हाल के कुछ दिनों में लोगों के पूजा स्थलों पर हमले की घटनाएं बढ़ीं हैं.'

स्टेट डिपार्टमेंट रिपोर्ट 2022 अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) की रिपोर्ट का अनुसरण करती है. यह 25 अप्रैल, 2022 को जारी की गई थी. यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट ने भारत को 'विशेष चिंता वाले देश' (सीपीसी) के रूप में सूचीबद्ध किया और इसे 15 देशों के उस समूह में रखा, जिसमें रूस, चीन, तालिबान-नियंत्रित अफगानिस्तान, बर्मा, इरिट्रिया, ईरान, नाइजीरिया, उत्तर कोरिया, सऊदी अरब, सीरिया, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और वियतनाम जैसे देश शामिल हैं.

ये भी पढ़ें : प्रवक्ताओं को सस्पेंड कर बीजेपी ने क्या संदेश दिया, कहीं 'टैक्टिकल चेंज' की तैयारी तो नहीं !

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.