नई दिल्ली : भारतीय सेना में उल्लेखनीय रूप से चल रहे तकनीकी परिवर्तन और आत्म निर्भर भारत के तौर पर एक और उदाहरण पेश होने वाला है. अभी तक की प्रगति के अनुसार भारतीय सेना एक अप्रैल से अपने स्वयं के सुरक्षित एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड वॉट्सएप जैसे एप का उपयोग करने लगेगी. बुधवार को विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन में बातचीत के दौरान सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने यह बातें कहीं.
यह कदम सैन्य और सुरक्षा कर्मियों के हितों के लिए व अवांछनीय तत्वों को दूर रखने के उद्देश्य से उठाया जा रहा है. जो कि भारत की रक्षा और सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण हैं. क्योंकि वॉट्सएप, टेलीग्राम आदि जैसे लोकप्रिय मंचों गोपनीयता जैसी चिंताएं बढ़ रही हैं जो वैश्विक तकनीकी दिग्गजों के स्वामित्व में हैं.
सुरक्षित मैसेजिंग एप्लिकेशन को SAI (इंटरनेट के लिए सिक्योर एप्लिकेशन) कहा जाता है और इंटरनेट पर एंड्रॉयड प्लेटफॉर्म के लिए सुरक्षित वॉयस, टेक्स्ट और वीडियो कॉलिंग सेवाओं का समर्थन करता है. स्थानीय इन-हाउस सर्वर और कोडिंग के साथ जिन्हें आवश्यकता के अनुसार ट्विक किया जा सकता है. SAI में ऐसी मजबूत सुरक्षा विशेषताएं हैं. दिलचस्प बात यह है कि SAI को उसका नाम कर्नल साई शंकर द्वारा विकसित करने पर दिया गया है. इसे सेना साइबर ग्रुप और CERT-IN (कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम- इंडिया) दोनों द्वारा टेस्ट पास किया है. साथ ही यह साइबर सुरक्षा सहित अन्य परीक्षाओं से गुजर रहा है.
हाल के समय में भारतीय सेना ने अत्याधुनिक तकनीक पर ध्यान केंद्रित किया है और सैन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इसका उपयोग किया जा रहा है. यह दिलचस्प कार्य जो पूरा हो चुका है वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) पर आधारित है. यह एक ऐसी योजना है जो मंदारिन का अंग्रेजी में अनुवाद करती है. यह आसान नहीं है क्योंकि मंदारिन एक अलग तरह की भाषा है. इतना ही नहीं यह योजना शरीर की भाषा और इशारों को भी समझ सकती है जिसके परिणामस्वरूप बहुत सटीक अनुवाद होता है.
जनरल नरवणे ने अन्य प्रौद्योगिकी-आधारित विकास कार्यक्रमों का संदर्भ दिया, जिसमें भारत की जवाबी ड्रोन युद्ध में प्रगति भी शामिल है. इसके अलावा हाइपरसोनिक, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक हथियार, रोबोटिक्स, लेजर, लोटर मूनिशन, बिग डेटा एनालिसिस, एल्गोरिदमिक वारफेयर और क्वांटम टेक्नोलॉजी शामिल हैं. ईटीवी भारत ने पहले बताया है कि कैसे 35 वर्ष से कम आयु के लगभग 50 वैज्ञानिकों का एक समूह सशस्त्र बलों के लिए भविष्य के हथियार प्रणालियों, प्लेटफॉर्मों और उपकरणों को विकसित करने के लिए आरएंडडी में ओवरटाइम काम कर रहा है.
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वरिष्ठ अनुभवी वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों की एक सर्वोच्च समिति द्वारा निर्देशित इन 50 युवा वैज्ञानिकों को पांच रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) प्रयोगशालाओं में विभाजित किया गया है. जो प्रत्येक एक विशिष्ट विशेषज्ञता के साथ काम कर रहे हैं. डीआरडीओ की ये पांच प्रयोगशालाएं कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), क्वांटम प्रौद्योगिकियां, संज्ञानात्मक प्रौद्योगिकियां, असममित प्रौद्योगिकियां और स्मार्ट सामग्री का अनुसंधान कर रही हैं. ये प्रयोगशालाएं बेंगलुरु, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और हैदराबाद में हैं.