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भारत ने पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक-2022 को किया खारिज - Environmental Performance Index 2022

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय (Union environment ministry) ने पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2022 को खारिज कर दिया है जिसमें 180 देशों की सूची में भारत को सबसे नीचे के स्थान पर रख दिया गया है.

Union environment ministry
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय (फाइल फोटो)
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Published : Jun 8, 2022, 8:08 PM IST

नई दिल्ली : केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय (Union environment ministry) ने बुधवार को पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक- 2022 को खारिज किया जिसमें भारत को 180 देशों की सूची में सबसे निचले स्थान पर रखा गया है. मंत्रालय ने कहा कि सूचकांक में उपयोग किए गए सूचक अनुमानों व अवैज्ञानिक तरीकों पर आधारित हैं. हाल में येल पर्यावरण कानून व नीति केंद्र और अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान सूचना नेटवर्क केंद्र, कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित सूचकांक में जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन, पर्यावरणीय स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी के महत्व के मामले में देशों की परख के लिए 11 श्रेणियों में 40 प्रदर्शन सूचकों का इस्तेमाल किया गया.

मंत्रालय ने एक बयान में कहा, 'हाल ही में जारी पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI) 2022 में कई सूचक निराधार मान्यताओं पर आधारित हैं. प्रदर्शन का आकलन करने के लिए उपयोग किए गए कुछ सूचक अनुमानों व अवैज्ञानिक तरीकों पर आधारित हैं.' मंत्रालय ने कहा है कि जलवायु नीति के उद्देश्य में एक नया संकेतक '2050 में अनुमानित जीएचजी उत्सर्जन स्तर' है. इसकी गणना मॉडलिंग के बजाय पिछले 10 वर्षों के उत्सर्जन में परिवर्तन की औसत दर के आधार पर की जाती है, जिसमें संबंधित देशों की लंबी अवधि, अक्षय ऊर्जा क्षमता और उपयोग, अतिरिक्त कार्बन सिंक, ऊर्जा दक्षता आदि को ध्यान में रखा जाता है.

वहीं मंत्रालय ने भारत को सबसे निचले पायदान पर रखने वाले अंतरराष्ट्रीय सूचकांक का खंडन करते हुए कहा है कि पानी की गुणवत्ता, जल उपयोग दक्षता और प्रति व्यक्ति अपशिष्ट उत्पादन पर संकेतक जो स्थायी खपत और उत्पादन से निकटता से जुड़े हैं, जिन्हें सूचकांक में शामिल नहीं हैं. साथ ही यह भी कहा गया है कि कृषि जैव विविधता, मृदा स्वास्थ्य, खाद्य हानि और अपशिष्ट इसमें शामिल नहीं हैं, भले ही वे बड़ी कृषि आबादी वाले विकासशील देशों के लिए महत्वपूर्ण हैं. मंत्रालय ने कहा कि रिपोर्ट में कोई संकेतक अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और प्रक्रिया अनुकूलन के बारे में बात नहीं की गई है, जबकि ग्रीनहाउस उत्सर्जन पर, वैश्विक चिंता जताई जा चुकी है.

ध्यान देने योग्य है कि संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने मंगलवार को 10 देशों की ओर से एक मजबूत क्रॉस-रीजनल संयुक्त बयान में जोर देकर कहा है कि विकासशील देशों को गरीबी उन्मूलन के अपने लक्ष्यों की वजह से शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने के लिए 2050 से आगे की अतिरिक्त समय सीमा देने की आवश्यकता है. बता दें कि दस देशों के बयान में चीन भी शामिल था.

ये भी पढ़ें - भारत जलवायु समस्या का हिस्सा नहीं है परंतु समाधान का हिस्सा बनना चाहता है : भूपेंद्र यादव

नई दिल्ली : केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय (Union environment ministry) ने बुधवार को पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक- 2022 को खारिज किया जिसमें भारत को 180 देशों की सूची में सबसे निचले स्थान पर रखा गया है. मंत्रालय ने कहा कि सूचकांक में उपयोग किए गए सूचक अनुमानों व अवैज्ञानिक तरीकों पर आधारित हैं. हाल में येल पर्यावरण कानून व नीति केंद्र और अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी विज्ञान सूचना नेटवर्क केंद्र, कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित सूचकांक में जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन, पर्यावरणीय स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी के महत्व के मामले में देशों की परख के लिए 11 श्रेणियों में 40 प्रदर्शन सूचकों का इस्तेमाल किया गया.

मंत्रालय ने एक बयान में कहा, 'हाल ही में जारी पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (EPI) 2022 में कई सूचक निराधार मान्यताओं पर आधारित हैं. प्रदर्शन का आकलन करने के लिए उपयोग किए गए कुछ सूचक अनुमानों व अवैज्ञानिक तरीकों पर आधारित हैं.' मंत्रालय ने कहा है कि जलवायु नीति के उद्देश्य में एक नया संकेतक '2050 में अनुमानित जीएचजी उत्सर्जन स्तर' है. इसकी गणना मॉडलिंग के बजाय पिछले 10 वर्षों के उत्सर्जन में परिवर्तन की औसत दर के आधार पर की जाती है, जिसमें संबंधित देशों की लंबी अवधि, अक्षय ऊर्जा क्षमता और उपयोग, अतिरिक्त कार्बन सिंक, ऊर्जा दक्षता आदि को ध्यान में रखा जाता है.

वहीं मंत्रालय ने भारत को सबसे निचले पायदान पर रखने वाले अंतरराष्ट्रीय सूचकांक का खंडन करते हुए कहा है कि पानी की गुणवत्ता, जल उपयोग दक्षता और प्रति व्यक्ति अपशिष्ट उत्पादन पर संकेतक जो स्थायी खपत और उत्पादन से निकटता से जुड़े हैं, जिन्हें सूचकांक में शामिल नहीं हैं. साथ ही यह भी कहा गया है कि कृषि जैव विविधता, मृदा स्वास्थ्य, खाद्य हानि और अपशिष्ट इसमें शामिल नहीं हैं, भले ही वे बड़ी कृषि आबादी वाले विकासशील देशों के लिए महत्वपूर्ण हैं. मंत्रालय ने कहा कि रिपोर्ट में कोई संकेतक अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और प्रक्रिया अनुकूलन के बारे में बात नहीं की गई है, जबकि ग्रीनहाउस उत्सर्जन पर, वैश्विक चिंता जताई जा चुकी है.

ध्यान देने योग्य है कि संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने मंगलवार को 10 देशों की ओर से एक मजबूत क्रॉस-रीजनल संयुक्त बयान में जोर देकर कहा है कि विकासशील देशों को गरीबी उन्मूलन के अपने लक्ष्यों की वजह से शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने के लिए 2050 से आगे की अतिरिक्त समय सीमा देने की आवश्यकता है. बता दें कि दस देशों के बयान में चीन भी शामिल था.

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