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रानीखेत में बना देश का पहला घास संरक्षण केंद्र - Uttarakhand Research Center

वनस्पतियों के संरक्षण में एक और कदम बढ़ाते हुए अनुसंधान केंद्र ने अल्मोड़ा जिले के रानीखेत में एक घास संरक्षण केंद्र स्थापित किया है, जो देश का पहला घास संरक्षण केंद्र है, जहां घास की 90 प्रजातियां को संरक्षि‍त किया गया है.

रानीखेत में बना देश का पहला घास संरक्षण केंद्र
रानीखेत में बना देश का पहला घास संरक्षण केंद्र
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Published : Nov 15, 2021, 3:26 PM IST

हल्द्वानी/अल्मोड़ा: रानीखेत के कालिका वन अनुसंधान केंद्र ने देश का पहला घास संरक्षण केंद्र स्थापित किया है. इसमें लगभग घास की 90 प्रजातियां उगाई गई हैं. इन प्रजातियों के वैज्ञानिक, पारिस्थितिक, औषधीय और सांस्कृतिक महत्व हैं. कैंपा योजना के तहत तीन साल में छह लाख रुपये की लागत से देश का पहला घास संरक्षण केंद्र तैयार किया. इसमें उत्तराखंड के साथ ही अन्य प्रदेशों की घास को भी संरक्षित किया गया है. खास बात कि ये सभी किस्में पेड़ों से ज्यादा कार्बन डाई ऑक्साइड अवशोषित करने में मददगार हैं.

मुख्य वन संरक्षक (वन अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी ने रविवार को कालिका रेंज स्थित घास संरक्षण क्षेत्र का शुभारंभ किया. उन्होंने कहा कि यह अनूठा ग्रास जोन देश में पहला है, जहां औषधीय से लेकर चारा और स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाली प्रजातियां शामिल हैं. 0.75 हेक्टेयर क्षेत्र को सात सेक्शन में बांट गया है, जहां घास की अलग अलग किस्मों को संरक्षित किया गया है. कालिका रेंज में विकसित घास संरक्षण क्षेत्र पूरे उत्तराखंड ही नहीं बल्कि अन्य प्रदेशों के लिए मॉडल बन गया है.

पढ़ें: हल्द्वानी का पोलिनेटर पार्क, तितलियों और पक्षियों की रंग-बिरंगी दुनिया

सीसीएफ संजीव चतुर्वेदी ने कहा कि पूरा मानव और वन्य जीवन घास पर निर्भर है. हालिया एक ताजा शोध का हवाला देते हुए संजीव ने बताया कि पेड़ों की तुलना में घास प्रजातियों के मैदान सर्वाधिक कार्बन अवशोषित करने की ताकत रखते हैं. पर्यावरण के साथ ही यह भूमि और जल संरक्षण में भी मील का पत्थर साबित होते है. उन्होंने कहा कि कालिका का घास संरक्षण क्षेत्र अन्य राज्यों में भी जनचेतना लाने का काम करेगा.

ये घास प्रजातियां हैं खास: लैमन व जीवा ग्रास, खस, कृष्णा, कृष्णा लैमन, कुश, टाइगर ग्रास, नेपियर, कुमेरिया, बिमोसिया, गोडिय़ा, जावा, राई, ब्रोम, गिन्नी, किकूई, दोलनी, बरसीम, स्मट, सिरू, कोगोना, दूब, कांसा, ऑस, फेयरी, आइसोलैप्स, जैबरा ,जौं, मक्का, जई, धान, सरसों, गन्ना ,औंस, किकोई और दूब घास.

ये भी पढ़ें- बाबा विश्वनाथ के आंगन में स्थापित हुईं मां अन्नपूर्णा, CM योगी ने की प्राण-प्रतिष्ठा

मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि घास संरक्षण क्षेत्र स्थापित करने का मकसद विभिन्न प्रजातियों को बचाना है. घास की पर्यावरण और जीवन में खासी अहमियत है. ये सभी प्रजातियां ऑर्गेनिक व खनिज पदार्थों को रिसाइकिल कर जंगल विकसित करने के लिए जमीन तैयार करती हैं, जहां ग्रासलैंड अच्छा होगा, वहां मित्र कीटों की विभिन्न प्रजातियां भी होती हैं. कह सकते हैं कि घास क्षेत्र जितने ज्यादा होंगे वहां का पर्यावरणीय माहौल उतना ही बेहतर होगा. भू-कटाव रोक वर्षाजल के संग्रहण में भी अहम भूमिका होती है. .

हल्द्वानी/अल्मोड़ा: रानीखेत के कालिका वन अनुसंधान केंद्र ने देश का पहला घास संरक्षण केंद्र स्थापित किया है. इसमें लगभग घास की 90 प्रजातियां उगाई गई हैं. इन प्रजातियों के वैज्ञानिक, पारिस्थितिक, औषधीय और सांस्कृतिक महत्व हैं. कैंपा योजना के तहत तीन साल में छह लाख रुपये की लागत से देश का पहला घास संरक्षण केंद्र तैयार किया. इसमें उत्तराखंड के साथ ही अन्य प्रदेशों की घास को भी संरक्षित किया गया है. खास बात कि ये सभी किस्में पेड़ों से ज्यादा कार्बन डाई ऑक्साइड अवशोषित करने में मददगार हैं.

मुख्य वन संरक्षक (वन अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी ने रविवार को कालिका रेंज स्थित घास संरक्षण क्षेत्र का शुभारंभ किया. उन्होंने कहा कि यह अनूठा ग्रास जोन देश में पहला है, जहां औषधीय से लेकर चारा और स्वरोजगार को बढ़ावा देने वाली प्रजातियां शामिल हैं. 0.75 हेक्टेयर क्षेत्र को सात सेक्शन में बांट गया है, जहां घास की अलग अलग किस्मों को संरक्षित किया गया है. कालिका रेंज में विकसित घास संरक्षण क्षेत्र पूरे उत्तराखंड ही नहीं बल्कि अन्य प्रदेशों के लिए मॉडल बन गया है.

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सीसीएफ संजीव चतुर्वेदी ने कहा कि पूरा मानव और वन्य जीवन घास पर निर्भर है. हालिया एक ताजा शोध का हवाला देते हुए संजीव ने बताया कि पेड़ों की तुलना में घास प्रजातियों के मैदान सर्वाधिक कार्बन अवशोषित करने की ताकत रखते हैं. पर्यावरण के साथ ही यह भूमि और जल संरक्षण में भी मील का पत्थर साबित होते है. उन्होंने कहा कि कालिका का घास संरक्षण क्षेत्र अन्य राज्यों में भी जनचेतना लाने का काम करेगा.

ये घास प्रजातियां हैं खास: लैमन व जीवा ग्रास, खस, कृष्णा, कृष्णा लैमन, कुश, टाइगर ग्रास, नेपियर, कुमेरिया, बिमोसिया, गोडिय़ा, जावा, राई, ब्रोम, गिन्नी, किकूई, दोलनी, बरसीम, स्मट, सिरू, कोगोना, दूब, कांसा, ऑस, फेयरी, आइसोलैप्स, जैबरा ,जौं, मक्का, जई, धान, सरसों, गन्ना ,औंस, किकोई और दूब घास.

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मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि घास संरक्षण क्षेत्र स्थापित करने का मकसद विभिन्न प्रजातियों को बचाना है. घास की पर्यावरण और जीवन में खासी अहमियत है. ये सभी प्रजातियां ऑर्गेनिक व खनिज पदार्थों को रिसाइकिल कर जंगल विकसित करने के लिए जमीन तैयार करती हैं, जहां ग्रासलैंड अच्छा होगा, वहां मित्र कीटों की विभिन्न प्रजातियां भी होती हैं. कह सकते हैं कि घास क्षेत्र जितने ज्यादा होंगे वहां का पर्यावरणीय माहौल उतना ही बेहतर होगा. भू-कटाव रोक वर्षाजल के संग्रहण में भी अहम भूमिका होती है. .

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