नई दिल्ली: भारत में सिकल सेल रोग सहित 14 दुर्लभ बीमारियों की पहचान करते हुए देश में इन बीमारियों से पीड़ित रोगियों के इलाज के लिए आठ किफायती दवाएं विकसित की हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने शुक्रवार को यहां यह जानकारी देते हुए कहा कि सरकार ने मार्केटिंग के लिए चार दवाओं को मंजूरी दे दी है और शेष चार अनुमोदन के लिए प्रक्रिया में हैं.
भारत दुनिया में सर्वोत्तम किफायती और कुशल दवा निर्माताओं में से एक है. मंडाविया ने कहा, 'हमने ऐसी दुर्लभ बीमारियों के लिए दवाएं विकसित की हैं, जिनका इलाज बहुत महंगा है. उन्होंने कहा कि यह भारत सरकार द्वारा ऐसे कई लोगों की मदद करने के लिए की गई एक विशेष पहल थी, जिन्हें उन बीमारियों का इलाज करना बहुत कठिन लगता है.
मंडाविया ने कहा, 'उन दवाओं को लाने के लिए शिक्षा जगत, फार्मा उद्योगों, संगठनों, सीडीएससीओ, फार्मास्यूटिकल्स विभाग के साथ चर्चा की गई.' इसी विचार को दोहराते हुए, नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. वीके पॉल ने कहा कि दवाएं एक वर्ष की छोटी अवधि में विकसित की गईं. पॉल ने कहा, 'पूरी प्रक्रिया पिछले साल शुरू हुई थी. हम पहले ही चार दवाएं बाजार में लाने में सक्षम थे और शेष चार अनुमोदन की प्रक्रिया में हैं.'
दुर्लभ बीमारी विशेष रूप से कम प्रसार वाली एक स्वास्थ्य स्थिति है जो कम संख्या में लोगों को प्रभावित करती है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार इन दुर्लभ बीमारियों से प्रति 1000 जनसंख्या पर एक से भी कम व्यक्ति प्रभावित होता है. पॉल ने कहा, 'सामूहिक रूप से किसी भी समय किसी भी देश में 6-8 प्रतिशत आबादी प्रभावित होने पर भारत में 8.4 से10 करोड़ मामले हो सकते हैं. 80 प्रतिशत आनुवांशिक स्थितियाँ हैं. अलग-अलग उम्र में बचपन से प्रभावित होता है और आजीवन रहता है.'
पहचानी गई 13 दुर्लभ बीमारियों में टायरोसिनेमिया टाइप-1, गौचर रोग, विल्सन रोग, ड्रेवेट/लेनोक्स गैस्टॉट सिंड्रोम से संबंधित दौरे, फेनिलकेटोनुरिया, हाइपरमोनमिया, सिस्टिक फाइब्रोसिस, स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी, डचेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (डीएमडी), एकोंड्रोप्लासिया, पोम्पे रोग, म्यूकोपॉलीसेकेराइडोसिस, नीमन शामिल हैं.
उदाहरण के लिए टायरोसिनेमिया टाइप 1 जैसी दुर्लभ बीमारियों के लिए नई पहल के साथ प्रति वर्ष दवा की लागत 10-30 किलोग्राम वाले व्यक्ति के लिए 2.2 से 6.5 करोड़ रुपये के मुकाबले घटकर 2.5 लाख रुपये हो गई है. इसी तरह गौचर्स रोग के लिए एलीग्लस्टैट (कैप्सूल) के साथ उपचार की लागत 1.8-3.6 करोड़ रुपये थी जो एक वयस्क के लिए घटकर 3-6 लाख प्रति वर्ष हो गई.
विल्सन की बीमारी के लिए ट्राइएंटीन (कैप्सूल) से उपचार की प्रति वर्ष लागत 2.2 करोड़ रुपये थी जो अब 10 किलोग्राम के बच्चे के लिए घटकर 2.2 लाख प्रति वर्ष हो गई है. पॉल ने कहा कि इन दवाओं और दवा के सभी निर्माता घरेलू हैं. बायोफोर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड जैसे निर्माता शामिल है. पॉल ने कहा, 'कई अन्य निर्माता इन दुर्लभ बीमारियों के लिए दवाएं बनाने की तैयारी में हैं. 11 घरेलू दवा निर्माता हैं जो सिकल सेल रोग के लिए दवाओं का उत्पादन कर रहे हैं.