देहरादून (उत्तराखंड): आज पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव (77वां स्वतंत्रता दिवस) मना रहा है. देश की आजादी के लिए देश के स्वतंत्रता सैनानियों ने काफी संघर्ष किया. इसकी कुछ बानगी आज भी देहरादून की एक ऐतिहासिक इमारत में मौजूद है. देहरादून में आज भी देश की आजादी के लिए संघर्ष और त्याग से जुड़ी तमाम यादों को विरासत के रूप में संजोकर रखा गया है. दरअसल, देहरादून में पुरानी जेल आज भी मौजूद है, जहां देश के पहले प्रधानमंत्री स्व. जवाहरलाल नेहरू को चार बार बंदी बनाया था. चलिए जानते हैं इस पुरानी जेल का इतिहास...
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने के चलते ब्रिटिश हुकूमत ने जवाहरलाल नेहरू को चार बार देहरादून के पुरानी जेल में बंद किया था. पहली बार 1932 इसके बाद 1933, 1934 और फिर 1941 में जवाहरलाल नेहरू को बंदी बनाया गया था. नेहरू को जिस वार्ड में रखा गया, उसे अब नेहरू वार्ड के नाम से जाना जाता है. नेहरू वार्ड में आज भी नेहरू के शयनकक्ष, भंडारण घर, पाठशाला, स्नानघर और शौचालय मौजूद है. इसके अलावा नेहरू वार्ड के मुख्य गेट पर लगा दरवाजा, आज भी सुरक्षित है जिसकी खास बात यह है कि उसे बिना वेल्डिंग के जोड़ा गया है. दरवाजा आज भी मजबूती से खड़ा है.
शुरू हुई हेरिटेज सेंटर बनाने की कवायद: देहरादून में मौजूद नेहरू वार्ड इसलिए भी बेहद खास है क्योंकि नेहरू ने अपनी विश्व विख्यात पुस्तक 'भारत की खोज' का अंश भी इसी जेल में रहकर लिखा था. लेकिन आज इस नेहरू वार्ड की स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है. यही वजह है कि समय-समय पर इस ऐतिहासिक धरोहर को सुरक्षित और संजोए रखने के लिए जीर्णोद्धार की मांग उठती रही है. इसी क्रम में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे (2002 से 2007 के बीच) एनडी तिवारी ने नेहरू वार्ड को हेरिटेज सेंटर बनाने की कवायद शुरू की थी. फिर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने नेहरू हेरिटेज सेंटर का लोकार्पण किया था. लेकिन अभी तक स्थिति जस की तस बनी हुई है.
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नेहरू का उत्तराखंड से लगाव: देहरादून के इस पुरानी जेल में जब नेहरू को बंदी बनाया गया था. उस दौरान नेहरू की बेटी एवं देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इसी वार्ड में नेहरू से मिलने आती थी. नेहरू का उत्तराखंड से काफी लगाव रहा है. दरअसल, नेहरू देहरादून की पुरानी जेल में बंदी होने से पहले भी मसूरी आते रहते थे. इससे पहले भी 1906 में अपने पिता मोतीलाल नेहरू और मां स्वरूप के साथ मसूरी घूमने आए थे. यह भी कहा जाता है कि 27 मई 1964 को जब नेहरू की मृत्यु हुई थी, उससे एक दिन पहले नेहरू देहरादून से दिल्ली रवाना हुए थे.
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