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तमिलनाडु : घोषणापत्र में सीएए और श्रीलंका के तमिलों का मुद्दा छाया

तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में सीएए और श्रीलंका के तमिलों का मुद्दा इस बार छाया हुआ है. पार्टियों ने अपने घोषणापत्र में जिस तरह से इनका जिक्र किया है उसे लेकर चर्चा तो होनी ही है. पढ़िए ईटीवी भारत के तमिल डेस्क प्रभारी प्रिंस जेबाकुमार की रिपोर्ट...

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Published : Mar 15, 2021, 8:16 PM IST

Updated : Mar 15, 2021, 9:45 PM IST

TAMILS AGENDA IN MANIFESTO
घोषणापत्र में सीएए और लंका के तमिलों का मुद्दा छाया

हैदराबाद : तमिलनाडु में सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक (AIADMK) के नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पर अपना रुख बदलने और तमिल ईलम को स्थापित करने का फैसला पार्टी के सिद्धांतों को दर्शाता है.

हालांकि इस मामले को लेकर दोनों कट्टर-प्रतिद्वंद्वियों की शुरुआती टिप्पणी तमिलों की नागरिकता को लेकर पेरियार और अन्ना की मंशा को जाहिर करती है साथ ही यह स्पष्ट करती है कि यह आंदोलन किस तरह फलाफूला.

कुछ दिन पहले जिस तरह मुख्यमंत्री और अन्नाद्रमुक के संयुक्त-संयोजक पलानीसामी पत्रकारों से यह कहते हुए देखा गया था कि भाजपा के साथ हमारा गठबंधन सिर्फ चुनाव तक सीमित है. यह कभी वैचारिक नहीं होगा.

जैसा कि सीएए में संशोधन करने और इसे लागू करने के संबंध में एआईएडीएमके ने संसद में अधिनियम के पक्ष में मतदान किया. लेकिन अब वह चाहता है कि केंद्र सीएए लागू न करे.

सीएए लागू न करने के लिए केंद्र पर दबाव बनाने का असर भाजपा को निश्चित तौर पर प्रभावित करेगा. दूसरी तरफ डीएमके ने संशोधित देशों की सूची प्राप्त करने का वादा किया है ताकि श्रीलंका के लोग अब यहां शरणार्थी शिविरों में रह सकें.

श्रीलंका के तमिलों का मुद्दा

एआईएडीएमके राजीव हत्याकांड के दोषियों की रिहाई, अलग तमिल ईलम के गठन और अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय या अंतरराष्ट्रीय निष्पक्ष स्वतंत्र तंत्र के माध्यम से द्वीप राष्ट्र में तमिल नरसंहार के लिए न्याय की मांग दोहराता है. भारतीय नागरिकता और स्थायी निवास की स्थिति को चुनने के मामले में दोनों पार्टियां एक राय हैं.

भारत में मार्क्सवादियों के एक वर्ग द्वारा गैर-चुनावी मुद्दे के रूप में खारिज किए जाने के बाद, श्रीलंका के तमिलों का मुद्दा हमेशा से द्रविड़ों के मूल में रहा है. यह इस चुनाव में भी अलग नहीं है. उनके चुनावी वादों से भी ये पता चलता है.

तमिल राष्ट्रवाद

दोनों दल चाहते हैं कि तमिल को आधिकारिक राष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिले. डीएमके ने वादा किया था कि वह तमिलनाडु के सरकारी कार्यालयों में तमिलों के लिए 100 प्रतिशत नौकरियां और निजी क्षेत्र में 75 प्रतिशत नौकरियां देने के लिए कानून लाएगा. तमिल राष्ट्रवादी आंदोलनों की भी लंबे समय से यही मांग है.

अन्नाद्रमुक के घोषणा पत्र में मद्रास उच्च न्यायालय का तमिलनाडु उच्च न्यायालय में नाम बदलने और चेन्नई में सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ स्थापित करने के लिए कदम उठाने के अलावा उच्च न्यायालय में जो भी काम होगा उसमें तमिल भाषा का प्रयोग किए जाने का जिक्र है.

साथ ही केंद्रीकृत परीक्षा के बजाय यूपीएससी पदों के लिए राज्य स्तरीय परीक्षा आयोजित करने पर जोर दिया जाएगा. साथ ही एआईएडीएमके ने वादा किया है कि जो लोग अन्य धर्मों में परिवर्तित हो गए थे उनको भी एससी/एसटी का लाभ दिया जाएगा.

दोनों घोषणापत्रों में तमिल राष्ट्रवाद की व्यापकता को अनदेखा करना आसान नहीं था. द्रविड़ राजसत्ता आधी सदी से भी अधिक समय से सत्ता में थी क्योंकि कांग्रेस ने खुद को उन आंदोलनों के रूप में पहचाना था, जिनकी जड़ें जस्टिस पार्टी और द्रविड़ कजगम से थीं.

पढ़ें- तमिलनाडु में भाजपा ने खोया 'ट्रंप' कार्ड, AIADMK की 'शर्तों' पर हुई राजी

जहां तक अल्पसंख्यकों और सामाजिक न्याय की बात आती है सैद्धांतिक और वैचारिक रूप से दोनों पार्टियों का रुख एक है और ये उनकी पार्टी का एजेंडा भी है. ऐसे में तमिलनाडु में जो भी जीते चर्चा किए गए एजेंडों को लागू करना होगा. अगर इसे लागू करने में असफल होते हैं तो उनकी प्रतिष्ठा गिरेगी.

हैदराबाद : तमिलनाडु में सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक (AIADMK) के नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पर अपना रुख बदलने और तमिल ईलम को स्थापित करने का फैसला पार्टी के सिद्धांतों को दर्शाता है.

हालांकि इस मामले को लेकर दोनों कट्टर-प्रतिद्वंद्वियों की शुरुआती टिप्पणी तमिलों की नागरिकता को लेकर पेरियार और अन्ना की मंशा को जाहिर करती है साथ ही यह स्पष्ट करती है कि यह आंदोलन किस तरह फलाफूला.

कुछ दिन पहले जिस तरह मुख्यमंत्री और अन्नाद्रमुक के संयुक्त-संयोजक पलानीसामी पत्रकारों से यह कहते हुए देखा गया था कि भाजपा के साथ हमारा गठबंधन सिर्फ चुनाव तक सीमित है. यह कभी वैचारिक नहीं होगा.

जैसा कि सीएए में संशोधन करने और इसे लागू करने के संबंध में एआईएडीएमके ने संसद में अधिनियम के पक्ष में मतदान किया. लेकिन अब वह चाहता है कि केंद्र सीएए लागू न करे.

सीएए लागू न करने के लिए केंद्र पर दबाव बनाने का असर भाजपा को निश्चित तौर पर प्रभावित करेगा. दूसरी तरफ डीएमके ने संशोधित देशों की सूची प्राप्त करने का वादा किया है ताकि श्रीलंका के लोग अब यहां शरणार्थी शिविरों में रह सकें.

श्रीलंका के तमिलों का मुद्दा

एआईएडीएमके राजीव हत्याकांड के दोषियों की रिहाई, अलग तमिल ईलम के गठन और अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय या अंतरराष्ट्रीय निष्पक्ष स्वतंत्र तंत्र के माध्यम से द्वीप राष्ट्र में तमिल नरसंहार के लिए न्याय की मांग दोहराता है. भारतीय नागरिकता और स्थायी निवास की स्थिति को चुनने के मामले में दोनों पार्टियां एक राय हैं.

भारत में मार्क्सवादियों के एक वर्ग द्वारा गैर-चुनावी मुद्दे के रूप में खारिज किए जाने के बाद, श्रीलंका के तमिलों का मुद्दा हमेशा से द्रविड़ों के मूल में रहा है. यह इस चुनाव में भी अलग नहीं है. उनके चुनावी वादों से भी ये पता चलता है.

तमिल राष्ट्रवाद

दोनों दल चाहते हैं कि तमिल को आधिकारिक राष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिले. डीएमके ने वादा किया था कि वह तमिलनाडु के सरकारी कार्यालयों में तमिलों के लिए 100 प्रतिशत नौकरियां और निजी क्षेत्र में 75 प्रतिशत नौकरियां देने के लिए कानून लाएगा. तमिल राष्ट्रवादी आंदोलनों की भी लंबे समय से यही मांग है.

अन्नाद्रमुक के घोषणा पत्र में मद्रास उच्च न्यायालय का तमिलनाडु उच्च न्यायालय में नाम बदलने और चेन्नई में सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ स्थापित करने के लिए कदम उठाने के अलावा उच्च न्यायालय में जो भी काम होगा उसमें तमिल भाषा का प्रयोग किए जाने का जिक्र है.

साथ ही केंद्रीकृत परीक्षा के बजाय यूपीएससी पदों के लिए राज्य स्तरीय परीक्षा आयोजित करने पर जोर दिया जाएगा. साथ ही एआईएडीएमके ने वादा किया है कि जो लोग अन्य धर्मों में परिवर्तित हो गए थे उनको भी एससी/एसटी का लाभ दिया जाएगा.

दोनों घोषणापत्रों में तमिल राष्ट्रवाद की व्यापकता को अनदेखा करना आसान नहीं था. द्रविड़ राजसत्ता आधी सदी से भी अधिक समय से सत्ता में थी क्योंकि कांग्रेस ने खुद को उन आंदोलनों के रूप में पहचाना था, जिनकी जड़ें जस्टिस पार्टी और द्रविड़ कजगम से थीं.

पढ़ें- तमिलनाडु में भाजपा ने खोया 'ट्रंप' कार्ड, AIADMK की 'शर्तों' पर हुई राजी

जहां तक अल्पसंख्यकों और सामाजिक न्याय की बात आती है सैद्धांतिक और वैचारिक रूप से दोनों पार्टियों का रुख एक है और ये उनकी पार्टी का एजेंडा भी है. ऐसे में तमिलनाडु में जो भी जीते चर्चा किए गए एजेंडों को लागू करना होगा. अगर इसे लागू करने में असफल होते हैं तो उनकी प्रतिष्ठा गिरेगी.

Last Updated : Mar 15, 2021, 9:45 PM IST
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