देहरादून: केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने बाघों के नए आंकड़े जारी किए, जिससे इस खूंखार वन्यजीव को लेकर उत्तराखंड में कुछ चिंता भी पैदा होने लगी हैं. दरअसल उत्तराखंड देश का ऐसा तीसरा राज्य है, जहां सबसे ज्यादा बाघ हैं. यही नहीं संरक्षित वन्यजीव क्षेत्र के रूप में भी उत्तराखंड का कॉर्बेट पहले पायदान पर है. लिहाजा बाघों की नई संख्या आने के बाद मानव वन्यजीव संघर्ष को लेकर खतरा और भी ज्यादा बढ़ने की संभावना है. इसके साथ ही अब बाघों के बीच ही संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ने का अंदेशा जताया जा रहा है.
उत्तराखंड में इस बार बाघों की सबसे ज्यादा संख्या रिकॉर्ड: हाल ही में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से देशभर में बाघों की गणना के बाद के आंकड़े जारी किए गए. देश में हर 4 साल में होने वाली गणना में इस बार आंकड़े पिछले सालों के मुकाबले काफी ज्यादा सुखद हैं. खास तौर पर उत्तराखंड में इस बार बाघों की सबसे ज्यादा संख्या रिकॉर्ड की गई है. सबसे बड़ी बात यह है कि 50 से ज्यादा टाइगर वाले 5 टॉप वन क्षेत्रों में उत्तराखंड के 3 वन क्षेत्र दर्ज किए गए हैं. रामनगर वन प्रभाग में 67 टाइगर हैं, जिनका क्षेत्रफल 824.3 वर्ग किलोमीटर है. पूर्वी तराई वन क्षेत्र में 53 टाइगर है, जिनका क्षेत्रफल क्षेत्रफल 661.62 वर्ग किलोमीटर है. पश्चिमी तराई वन क्षेत्र में 52 टाइगर हैं, जिनका क्षेत्रफल 384.07 वर्ग किलोमीटर है. एक बाघ के लिए करीब 100 से 150 किलोमीटर क्षेत्र मुफीद माना जाता है, जबकि एक बाघिन के लिए 60 किलोमीटर की जरूरत होती है.
कुमाऊं में बाघों की संख्या सबसे ज्यादा: उत्तराखंड में बाघों की सबसे ज्यादा संख्या कुमाऊं क्षेत्र में है. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और इसके आसपास के क्षेत्रों में सबसे ज्यादा बाघ गणना के दौरान रिकॉर्ड किए गए हैं. उत्तराखंड में इस बार बाघों की अब तक सबसे ज्यादा संख्या बढ़ी है. साल 2018 में हुई गणना के दौरान 442 बाघ थे, जो अब 118 बढ़कर 560 हो गए हैं. राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की गणना के बाद उत्तराखंड से यह सुखद आंकड़े सभी के चेहरों को खिलाने वाले हैं, लेकिन इससे ज्यादा गंभीर बात यह है कि नए आंकड़ों ने वन विभाग के साथ ही आम लोगों की भी चिंताएं बढ़ा दी हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और इसके आसपास के क्षेत्र में बाघों की संख्या काफी ज्यादा रिकॉर्ड की गई है. राज्य में 560 बाघों की संख्या में से कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में ही अकेले 260 बाघ मौजूद हैं, जबकि यह बात सामने आती रही है कि कॉर्बेट टाइगर रिजर्व क्षेत्रफल के लिहाज से इतने बाघों का वहन करने में सक्षम नहीं रह गया है. हालांकि इसको लेकर वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया अध्ययन कर रहा है.
मानव वन्यजीव संघर्ष और बाघों के आपसी संघर्ष का बढ़ा खतरा: कुमाऊं क्षेत्र के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के आसपास बाघों की सबसे ज्यादा संख्या होने के कारण इंसानों पर हमले भी यहीं से सबसे ज्यादा रिकॉर्ड किए जा रहे हैं. माना गया है कि कॉर्बेट में बाघों की संख्या अधिक होने के कारण कई टाइगर खाने की तलाश में जंगलों से बाहर इंसानी बस्तियों की तरफ भी बढ़ रहे हैं. इसके कारण मानव वन्यजीव संघर्ष की आशंका भी ज्यादा हो गई है. उधर कम क्षेत्र में ज्यादा बाघ होने से इनके आपस में भी टकराव बढ़ रहे हैं. खुद चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन भी मानते हैं कि वन विभाग के सामने अब चुनौतियां बढ़ गई हैं. मानव वन्यजीव संघर्ष और बाघों के आपसी संघर्ष के खतरे बढ़ने से इन्हें रोकने के लिए वन विभाग को और अधिक प्रयास करने होंगे.
520.82 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है कॉर्बेट टाइगर रिजर्व: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व 520.82 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व पौड़ी और नैनीताल जिलों में आता है. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और आसपास संरक्षित वन क्षेत्रों के नजदीक ही कई इंसानी बस्तियां भी मौजूद हैं. कई बार तो कुछ क्षेत्रों में बाघ के आतंक और खतरे को देखते हुए कर्फ्यू जैसे हालात भी हुए हैं और स्कूलों में छुट्टियां करने के भी आदेश दिए गए. वैसे इस क्षेत्र में बाघ के आतंक कि यह कोई नई बात नहीं है. 19वीं सदी के अंत के दौरान भी कई बार बाघों का आतंक इस क्षेत्र में हुआ करता था. अब जिस तरह से बाघों की संख्या बढ़ी है, उसके बाद बाघों के विचरण कर भोजन तलाशने की प्रवृत्ति के कारण इंसानी बस्तियां भी इसकी जद में आ रही हैं.
माना जाता है कि 50 से 60 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक बाघिन विचरण कर भोजन तलाशने का काम करती है. इसी तरह एक बाघ के लिए भी खुले वर्चस्व के रूप में डेढ़ सौ किलोमीटर का क्षेत्र मुफीद माना जाता है. इस लिहाज से कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या काफी ज्यादा हो चुकी है और इसके कारण यहां दोहरा खतरा पैदा हो गया है. पहला खतरा इंसानों से बाघों के टकराव का है. दूसरा खतरा बाघों के आपसी संघर्ष में जान गंवाने का भी है.
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