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'आजादी का अमृत महोत्सव' में सरकार मशगूल, पर अस्तित्व खो रहे 'ओडिशा के दांडी' पर नहीं है किसी की नजर

शोधकर्ता डॉ. अरविंद गिरि कहते हैं कि इंचुड़ी में हुए द्वितीय नमक सत्याग्रह की वजह से इसे ओडिशा का दांडी भी कहा जाता है. इस आंदोलन में शामिल हुए गोपबंधु चौधरी को गिरफ्तार भी किया गया था. जिसकी वजह से आचार्य हरिहर को आंदोलन का नेतृत्व संभालना पड़ा था. इस स्थल की अपनी खास विशेषता है, लेकिन प्रशासनिक अवहेलना के कारण आज यह खत्म होने लगा है.

इंचुड़ी स्थित स्मृति स्तम्भ
इंचुड़ी स्थित स्मृति स्तम्भ
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Published : Aug 21, 2021, 4:03 AM IST

भुवनेश्वर : महात्मा गांधी के आह्वान पर 12 मार्च 1930 से ओडिशा के बालेश्वर जिले में नमक सत्याग्रह का आगाज हुआ था. इस आंदोलन की गूंज पूरे देश में सुनाई दी थी. यह विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की गवाह बनी थी. बालेश्वर जिला स्थित इंचुड़ी से आंदोलन की शुरुआत हुई थी. इसे भारत का दूसरा दांडी भी कहा जाता है. अंग्रेज सरकार के खिलाफ शुरू हुआ यह कानून तोड़ो आंदोलन अंततः नमक सत्याग्रह में तब्दील हो गया था.

कई युवा नमक सत्याग्रह में शामिल होने के लिए आगे आए थे. इंचुड़ी के इतिहास के पन्नों पर लिपिवध यह आंदोलन युवा पीढ़ी को प्रेरित करता है, लेकिन यह आज बदहाल अवस्था में है.

स्मृति स्तम्भ आज जर्जर अवस्था में

स्वतंत्रता सेनानियों की वीरता की गाथा और गरिमा को दर्शाने वाला इंचुड़ी स्थित स्मृति स्तम्भ आज जर्जर अवस्था में है. रखरखाव की कमी के कारण स्वतंत्रता सेनानियों की यादें खत्म होने की कगार पर हैं.

'ओडिशा के दांडी' पर नहीं है किसी की नजर

शोधकर्ता डॉ. अरविंद गिरि कहते हैं कि इंचुड़ी में उस वक्त हुए द्वितीय नमक सत्याग्रह की वजह से इसे ओडिशा का दांडी भी कहा जाता है. इस आंदोलन में शामिल हुए गोपबंधु चौधरी को गिरफ्तार भी किया गया था. जिसकी वजह से आचार्य हरिहर को आंदोलन का नेतृत्व संभालना पड़ा था. इस स्थल की अपनी विशेषता है, लेकिन प्रशासनिक अवहेलना के कारण आज यह विलुप्त होने लगा है.

विकास की धारा से काफी दूर

वर्ष 2003 में इंचुड़ी को पर्यटन स्थल की मान्यता मिलने के बावजूद यह विकास की धारा से काफी दूर है. समुद्र के कटाव और झींगा पालकों के अतिक्रमण के कारण सत्याग्रहियों के ऐतिहासिक स्थल अब लुप्त होने लगे हैं. सरकार की उदासीनता मुख्य रूप से जिम्मेवार है. इनकी वजह से आज यह पर्यटन स्थल एक सामान्य गांव बनकर रह गया है.

इंचुड़ी के स्थानीय निवासी हेमंत कुमार दास के मुताबिक, पहले यहां नमक निकालने की जगह थी, लेकिन अब ये मत्स्यजीवियों के कब्जे में जा चुका है. अतिक्रमण के कारण वह जगह लुप्त हो चुका है. यहां जो भी नेता या मंत्री आते हैं, बस आश्वासन देकर चले जाते हैं. इस स्थान पर प्रशासन की नजर नहीं होने की वजह से अतिक्रमण बढ़ चुका है. यहां तक कि स्वतंत्रता सेनानियों के स्मृति स्तम्भ बदतर हालत में हैं.

अपना अस्तित्व खो रही इंचुड़ी

12 मार्च 1930 में गुजरात के साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा निकली थी. इसलिए इस साल 12 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 75वें स्वतंत्रता दिवस के लिए 'आजादी के अमृत महोत्सव' का शुभारंभ किया. प्रधानमंत्री ने जनता से इस आयोजन में व्यापक रूप से भाग लेने का आग्रह किया, जिसे भारत सरकार द्वारा 'जन आंदोलन' के रूप में मनाया जा रहा है. लेकिन इन सब के बीच इंचुड़ी अपना अस्तित्व खो रही है, जिसपर किसी की निगाह तक नहीं.

भुवनेश्वर : महात्मा गांधी के आह्वान पर 12 मार्च 1930 से ओडिशा के बालेश्वर जिले में नमक सत्याग्रह का आगाज हुआ था. इस आंदोलन की गूंज पूरे देश में सुनाई दी थी. यह विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की गवाह बनी थी. बालेश्वर जिला स्थित इंचुड़ी से आंदोलन की शुरुआत हुई थी. इसे भारत का दूसरा दांडी भी कहा जाता है. अंग्रेज सरकार के खिलाफ शुरू हुआ यह कानून तोड़ो आंदोलन अंततः नमक सत्याग्रह में तब्दील हो गया था.

कई युवा नमक सत्याग्रह में शामिल होने के लिए आगे आए थे. इंचुड़ी के इतिहास के पन्नों पर लिपिवध यह आंदोलन युवा पीढ़ी को प्रेरित करता है, लेकिन यह आज बदहाल अवस्था में है.

स्मृति स्तम्भ आज जर्जर अवस्था में

स्वतंत्रता सेनानियों की वीरता की गाथा और गरिमा को दर्शाने वाला इंचुड़ी स्थित स्मृति स्तम्भ आज जर्जर अवस्था में है. रखरखाव की कमी के कारण स्वतंत्रता सेनानियों की यादें खत्म होने की कगार पर हैं.

'ओडिशा के दांडी' पर नहीं है किसी की नजर

शोधकर्ता डॉ. अरविंद गिरि कहते हैं कि इंचुड़ी में उस वक्त हुए द्वितीय नमक सत्याग्रह की वजह से इसे ओडिशा का दांडी भी कहा जाता है. इस आंदोलन में शामिल हुए गोपबंधु चौधरी को गिरफ्तार भी किया गया था. जिसकी वजह से आचार्य हरिहर को आंदोलन का नेतृत्व संभालना पड़ा था. इस स्थल की अपनी विशेषता है, लेकिन प्रशासनिक अवहेलना के कारण आज यह विलुप्त होने लगा है.

विकास की धारा से काफी दूर

वर्ष 2003 में इंचुड़ी को पर्यटन स्थल की मान्यता मिलने के बावजूद यह विकास की धारा से काफी दूर है. समुद्र के कटाव और झींगा पालकों के अतिक्रमण के कारण सत्याग्रहियों के ऐतिहासिक स्थल अब लुप्त होने लगे हैं. सरकार की उदासीनता मुख्य रूप से जिम्मेवार है. इनकी वजह से आज यह पर्यटन स्थल एक सामान्य गांव बनकर रह गया है.

इंचुड़ी के स्थानीय निवासी हेमंत कुमार दास के मुताबिक, पहले यहां नमक निकालने की जगह थी, लेकिन अब ये मत्स्यजीवियों के कब्जे में जा चुका है. अतिक्रमण के कारण वह जगह लुप्त हो चुका है. यहां जो भी नेता या मंत्री आते हैं, बस आश्वासन देकर चले जाते हैं. इस स्थान पर प्रशासन की नजर नहीं होने की वजह से अतिक्रमण बढ़ चुका है. यहां तक कि स्वतंत्रता सेनानियों के स्मृति स्तम्भ बदतर हालत में हैं.

अपना अस्तित्व खो रही इंचुड़ी

12 मार्च 1930 में गुजरात के साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा निकली थी. इसलिए इस साल 12 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 75वें स्वतंत्रता दिवस के लिए 'आजादी के अमृत महोत्सव' का शुभारंभ किया. प्रधानमंत्री ने जनता से इस आयोजन में व्यापक रूप से भाग लेने का आग्रह किया, जिसे भारत सरकार द्वारा 'जन आंदोलन' के रूप में मनाया जा रहा है. लेकिन इन सब के बीच इंचुड़ी अपना अस्तित्व खो रही है, जिसपर किसी की निगाह तक नहीं.

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