नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी ने सोमवार को केंद्र के इस दृष्टिकोण पर सवाल उठाया कि नागरिकों को चुनावी बांड के वित्तपोषण के स्रोत को जानने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है. एआईसीसी पदाधिकारी मनीष चतरथ ने ईटीवी भारत को बताया कि ऐसा कैसे हो सकता है? लोकतंत्र में नागरिकों को राजनीतिक फंडिंग के स्रोत को जानने का अधिकार है. राजनीतिक दल शून्य में काम नहीं करते. लोकतंत्र में लोग शामिल हैं.
उन्होंने आगे कहा कि हमने शासन में पारदर्शिता और लोगों को सशक्त बनाने के लिए सूचना का अधिकार पारित किया था. आज के युग में, जब सब कुछ डिजिटल हो रहा है और आधार और पैन से जोड़ा जा रहा है, नागरिकों को राजनीतिक फंडिंग के स्रोत को जानने का इतना अधिकार कैसे नहीं हो सकता है.
कांग्रेस नेता केंद्र के उस दृष्टिकोण का जवाब दे रहे थे, जो सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ के समक्ष प्रस्तुतीकरण के रूप में आया था, जो चुनावी बांड योजना में पारदर्शिता की मांग करने वाले गैर सरकारी संगठनों एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और कॉमन कॉज़ की याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है.
पूर्व वित्त मंत्री दिवंगत अरुण जेटली द्वारा 7 जनवरी, 2017 को पेश किए जाने के दिन से ही कांग्रेस चुनावी बांड योजना का विरोध कर रही है. बाद में, केंद्र ने राजनीतिक दलों को रिपोर्ट में चुनावी बांड में योगदान देने वालों के विवरण का खुलासा करने से छूट देने के लिए वित्त अधिनियम में संशोधन किया था, जिसे पार्टियों को हर साल चुनाव आयोग के पास दाखिल करना होगा.
कांग्रेस मीडिया प्रमुख पवन खेड़ा ने कहा कि 'उस दिन से चुनावी फंडिंग अपारदर्शी हो गई है. हमने इसका विरोध किया था, क्योंकि इसे राज्यसभा में बिना चर्चा के धन विधेयक के रूप में पारित किया गया था.' कांग्रेस भाजपा और अन्य राजनीतिक दलों को मिलने वाले धन में पूर्ण पारदर्शिता की मांग करती रही है और कहती रही है कि जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए.
अपने 2019 के लोकसभा घोषणापत्र के साथ-साथ फरवरी में छत्तीसगढ़ के रायपुर में आयोजित 85वें पूर्ण सत्र में, कांग्रेस ने अपारदर्शी चुनावी बांड योजना को खत्म करने का वादा किया था जो सत्तारूढ़ दल के पक्ष में बनाई गई है. खेड़ा ने हालिया एडीआर रिपोर्ट का हवाला देते हुए चुनावी बांड योजना पर सवाल उठाया, जिसमें कहा गया था कि भाजपा ने पिछले दो वित्तीय वर्षों में चुनावी बांड के माध्यम से 5,200 करोड़ रुपये कमाए थे और इस तरह की फंडिंग भाजपा को प्राप्त कुल योगदान का 50 प्रतिशत से अधिक थी.
खेड़ा ने कहा कि 'बीजेपी को मिलने वाली फंडिंग किसी भी अन्य राजनीतिक दल को मिलने वाली फंडिंग से तीन गुना ज्यादा है. यह बिना किसी सवाल के, बिना जवाब के, बिना देश को पता चले हुआ कि बदले में क्या होता है? आपको यह किससे मिला? आपको ये पैसे क्यों मिले? बदले में आपने क्या दिया? कोई उत्तर नहीं हैं.' कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के कार्यालय में काम करने वाले और इस मुद्दे पर जनता की राय जानने वाले एआईसीसी पदाधिकारी गौरव पांधी के अनुसार, चुनावी बांड अधिक पारदर्शी क्यों नहीं हो सकते.
पांधी ने कहा कि 'चुनावी बांड अधिक पारदर्शी क्यों नहीं हो सकते? क्या ऐसा हो सकता है कि भारत विरोधी हितों वाले आतंकवादी संगठन या समूह गुप्त रूप से भाजपा को वित्त पोषण कर रहे हों, और वे नहीं चाहते कि जनता को पता चले? क्या चीन संभवत: घुसपैठ और हमारे क्षेत्र पर अवैध कब्जे के बारे में मोदी को चुप रखने में भाजपा को योगदान दे रहा है? यदि सरकार को लोगों की आय के स्रोतों के बारे में पूछताछ करने का अधिकार है, तो जनता को राजनीतिक दलों के लिए धन के स्रोतों को जानने का अधिकार क्यों नहीं होना चाहिए.'