नई दिल्ली : भारत ने मंगलवार को आगाह किया कि अफगानिस्तान के संकट का असर ना केवल पड़ोस पर बल्कि उससे भी बाहर तक होगा. साथ ही कहा कि बड़े पैमाने पर हिंसा, डराने-धमकाने या छिपे हुए एजेंडे के जरिए 21वीं सदी में वैधता प्राप्त नहीं की जा सकती है.
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) के शैक्षणिक मंच के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि अफगानिस्तान की जंग ने आतंकवाद की चुनौती बढ़ा दी है और सभी हितधारकों को इससे निपटने के लिए स्पष्ट, समन्वित और एक समान रुख अपनाना होगा.
जयशंकर ने कहा कि ढांचागत जड़ता, असमान संसाधन जैसे मुद्दों ने बहुपक्षीय संस्थानों को नुकसान पहुंचाया है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ खाई पैदा होती है. उन्होंने कहा, 'इनमें से कुछ अंतराल में आतंकवाद पनपता है. इसकी नर्सरी संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में है, जो दुर्भावनापूर्ण मंसूबे वाली ताकतों द्वारा कट्टरवाद को प्रश्रय देने से और फलती फूलती है.'
उन्होंने कहा, 'आज अफगानिस्तान में हम संक्रमण काल देख रहे हैं और इस जंग ने फिर से उसके लोगों के लिए चुनौतियां पैदा कर दी है. अगर इसे ऐसे ही छोड़ दिया जाए तो ना केवल अफगानिस्तान के पड़ोस में बल्कि उससे बाहर भी इसके गंभीर असर होंगे,' जयशंकर ने कहा कि सभी पक्षों को इन चुनौतियों से निपटने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
उन्होंने कहा, '21 वीं सदी में बड़े पैमाने पर हिंसा, डराने-धमकाने या छिपे हुए एजेंडा के जरिए वैधता प्राप्त नहीं की जा सकती है. प्रतिनिधित्व, समावेश, शांति और स्थिरता का अटूट संबंध है.'
अमेरिकी सैनिकों की वापसी शुरू होने के बाद से अफगानिस्तान में तालिबान की हिंसा बढ़ गयी है. भारत अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता में बड़ा हितधारक है। देश में सहायता और अन्य कार्यक्रमों में भारत तीन अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश कर चुका है. भारत एक राष्ट्रीय शांति और सुलह प्रक्रिया का समर्थन करता रहा है जो अफगान-नेतृत्व वाली, अफगान-स्वामित्व वाली और अफगान-नियंत्रित हो.
जयशंकर ने बहुपक्षीय निकायों में सुधार का भी आह्वान करते हुए कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार को आगे नहीं टाला जा सकता है. विदेश मंत्री ने कहा कि महामारी और अन्य चुनौतियों ने याद दिलाया है कि 1940 के दशक की समस्याओं से निपटने के लिए बनाए गयी संस्थाओं में सुधार करने और इस सदी के हिसाब से उपयुक्त बनाने की सख्त जरूरत है. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का विस्तार करना जरूरी है, लेकिन यह अपने आप में पर्याप्त नहीं है.
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ब्रिक्स के बारे में उन्होंने कहा कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं को एक नया विकास ढांचा तैयार करने के लिए कदम उठाने की जरूरत थी, जिसके तहत इसकी शुरुआत की गयी.
(पीटीआई- भाषा)