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IIT रुड़की के वैज्ञानिकों ने किया कमाल, न्यूरोलॉजिकल रोगों का पता लगाएगी डोपामाइन सेंसर डिवाइस

मस्तिष्क से जुड़ी सिजोफ्रेनिया और पार्किंसंस जैसे घातक बीमारियों का अब प्रारंभिक चरण में प्रभावी ढंग से पता लग सकेगा. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की के वैज्ञानिकों ने मेडिकल साइंस में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है. उन्होंने सिजोफ्रेनिया और पार्किंसंस जैसे रोगों के प्रारंभिक चरण का पता लगाने के लिए सेंसर डोपामाइन विकसित किया है.

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Published : Jun 21, 2022, 8:08 PM IST

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IIT रुड़की के वैज्ञानिकों ने किया कमाल

रुड़की: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की के वैज्ञानिकों की टीम ने एक सेंसर विकसित किया है, जो सिजोफ्रेनिया और पार्किंसंस जैसी तंत्रिका संबंधी बीमारियों का प्रारंभिक चरण में प्रभावी ढंग से पता लगाएंगी. दरअसल, जब भी कोई व्यक्ति इन बीमारियों (सिजोफ्रेनिया और पार्किंसंस) से पीड़ित होता है, तो उसके मस्तिष्क में डोपामाइन नामक रसायन का स्तर बदल जाता है. आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया सेंसर मस्तिष्क में इस रसायन के स्तर में छोटे से भी बदलाव का भी पता लगा सकता है और इस प्रकार सिजोफ्रेनिया और पार्किंसंस जैसे रोगों का पता लग सकता है.

इनमें से अधिकांश बीमारियों का पूरी तरह से इलाज नहीं किया जा सकता है. बीमारियों का जल्द पता लगाने से रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है. ऐसे में आईआईटी रुड़की में विकसित सेंसर में चिकित्सा क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है. आईआईटीआर टीम ने इन सेंसरों को बनाने के लिए ग्रेफीन क्वांटम डॉट नामक सामग्री का इस्तेमाल किया है. जिसे सल्फर और बोरॉन के साथ मिलाया गया है. बहुत कम मात्रा में डोपामाइन की उपस्थिति में यह सेंसर प्रकाश की तीव्रता को बदलता है, जिसे आसानी से मापा जा सकता है. इस प्रकार मस्तिष्क में डोपामाइन की मात्रा का अनुमान लगाया जाता है.

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सेंसर डेवलप करने वाली टीम.

पढ़ें- आईआईटी रुड़की में सेमिनार का आयोजन, GLOF से होने वाली तबाही को रोकने पर चर्चा

शोध का नेतृत्व भौतिकी विभाग के प्रो सौमित्र सतपति ने किया और टीम में आईआईटी रुड़की की बायोसाइंस और बायोइंजीनियरिंग विभाग की डॉ मनीषा चटर्जी, प्रो पार्थ रॉय, प्रथुल नाथ, अंशु कुमार, विशाल कुमार, भौतिकी विभाग के सचिन कादियान और पॉलिमर एवं प्रोसेस इंजीनियरिंग विभाग के प्रो गौरव माणिक शामिल थे. इसके शोध को हाल ही में प्रतिष्ठित नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया था.

प्रो सौमित्र सतपति ने कहा कि 'हमारा वर्तमान अध्ययन पॉइंट-ऑफ-केयर डिवाइस को डिजाइन करने की संभावना को खोलता है, जो वास्तविक नमूनों में डोपामाइन की मात्रा का पता लगाने के लिए उपयुक्त होगा. वहीं, आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो अजीत कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि मानसिक बीमारियां हमारी आबादी के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करती है. वे इस तरह की एक महत्वपूर्ण समस्या पर काम करने और मानसिक बीमारियों के निदान में योगदान देने के लिए शोध दल को बधाई देते हैं.

क्या है सिजोफ्रेनिया: सिजोफ्रेनिया के बारे में बहुत ज़्यादा जानकारी या लोगों में अधिक जागरूकता नहीं है. यह मनोविकार के प्रकार के अंतर्गत आता है, जिसका अर्थ है कि व्यक्ति वास्तविकता से संबंध खो देता है. जिसके बाद मरीज ये अंतर नहीं कर पाता कि उसके कौन से विचार वास्तविक हैं और कौन से विचार काल्पनिक. यह एक गंभीर और पुरानी मानसिक बीमारी है और इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है.
पढ़ें- IIT रुड़की ने उच्च शिक्षा संस्थानों के साथ साइन किया एमओयू, छात्रों को मिलेगा लाभ

पार्किंसंस बीमारी क्या है? यह बीमारी पुरुष और महिलाएं, दोनों को हो सकती है. हालांकि यह महिलाओं की तुलना में लगभग 50 फीसदी अधिक पुरुषों को प्रभावित करती है. यह बीमारी बुजुर्गों को अधिक प्रभावित करती है. विशेषज्ञ कहते हैं कि इसकी शुरुआत धीरे-धीरे होती है. ऐसे में मरीज को पता भी नहीं चलता कि इसके लक्षण कब दिखने शुरू हुए. कई हफ्तों या महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है, तब अहसास होता है कि कुछ तो गड़बड़ है.

यह बीमारी तब होती है जब मस्तिष्क के एक क्षेत्र में तंत्रिका कोशिकाएं या न्यूरॉन्स नष्ट होने लगते हैं. आमतौर पर ये न्यूरॉन्स डोपामाइन नामक एक महत्वपूर्ण मस्तिष्क रसायन का उत्पादन करते हैं. लेकिन जब ये न्यूरॉन्स मर जाते हैं या कम हो जाते हैं तो वे कम डोपामाइन का उत्पादन करते हैं, जो पार्किंसंस रोग का कारण बनता है.

इस बीमारी के चार मुख्य लक्षण हैं:

  • हाथ, बांह, पैर, जबड़े या सिर में कंपन.
  • अंगों की कठोरता.
  • अंगों की गतिविधियों का धीमा हो जाना.
  • शरीर का संतुलन बिगड़ जाना यानी चलने-फिरने में कठिनाई होना.

रुड़की: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की के वैज्ञानिकों की टीम ने एक सेंसर विकसित किया है, जो सिजोफ्रेनिया और पार्किंसंस जैसी तंत्रिका संबंधी बीमारियों का प्रारंभिक चरण में प्रभावी ढंग से पता लगाएंगी. दरअसल, जब भी कोई व्यक्ति इन बीमारियों (सिजोफ्रेनिया और पार्किंसंस) से पीड़ित होता है, तो उसके मस्तिष्क में डोपामाइन नामक रसायन का स्तर बदल जाता है. आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया सेंसर मस्तिष्क में इस रसायन के स्तर में छोटे से भी बदलाव का भी पता लगा सकता है और इस प्रकार सिजोफ्रेनिया और पार्किंसंस जैसे रोगों का पता लग सकता है.

इनमें से अधिकांश बीमारियों का पूरी तरह से इलाज नहीं किया जा सकता है. बीमारियों का जल्द पता लगाने से रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है. ऐसे में आईआईटी रुड़की में विकसित सेंसर में चिकित्सा क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है. आईआईटीआर टीम ने इन सेंसरों को बनाने के लिए ग्रेफीन क्वांटम डॉट नामक सामग्री का इस्तेमाल किया है. जिसे सल्फर और बोरॉन के साथ मिलाया गया है. बहुत कम मात्रा में डोपामाइन की उपस्थिति में यह सेंसर प्रकाश की तीव्रता को बदलता है, जिसे आसानी से मापा जा सकता है. इस प्रकार मस्तिष्क में डोपामाइन की मात्रा का अनुमान लगाया जाता है.

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सेंसर डेवलप करने वाली टीम.

पढ़ें- आईआईटी रुड़की में सेमिनार का आयोजन, GLOF से होने वाली तबाही को रोकने पर चर्चा

शोध का नेतृत्व भौतिकी विभाग के प्रो सौमित्र सतपति ने किया और टीम में आईआईटी रुड़की की बायोसाइंस और बायोइंजीनियरिंग विभाग की डॉ मनीषा चटर्जी, प्रो पार्थ रॉय, प्रथुल नाथ, अंशु कुमार, विशाल कुमार, भौतिकी विभाग के सचिन कादियान और पॉलिमर एवं प्रोसेस इंजीनियरिंग विभाग के प्रो गौरव माणिक शामिल थे. इसके शोध को हाल ही में प्रतिष्ठित नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया था.

प्रो सौमित्र सतपति ने कहा कि 'हमारा वर्तमान अध्ययन पॉइंट-ऑफ-केयर डिवाइस को डिजाइन करने की संभावना को खोलता है, जो वास्तविक नमूनों में डोपामाइन की मात्रा का पता लगाने के लिए उपयुक्त होगा. वहीं, आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रो अजीत कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि मानसिक बीमारियां हमारी आबादी के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करती है. वे इस तरह की एक महत्वपूर्ण समस्या पर काम करने और मानसिक बीमारियों के निदान में योगदान देने के लिए शोध दल को बधाई देते हैं.

क्या है सिजोफ्रेनिया: सिजोफ्रेनिया के बारे में बहुत ज़्यादा जानकारी या लोगों में अधिक जागरूकता नहीं है. यह मनोविकार के प्रकार के अंतर्गत आता है, जिसका अर्थ है कि व्यक्ति वास्तविकता से संबंध खो देता है. जिसके बाद मरीज ये अंतर नहीं कर पाता कि उसके कौन से विचार वास्तविक हैं और कौन से विचार काल्पनिक. यह एक गंभीर और पुरानी मानसिक बीमारी है और इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है.
पढ़ें- IIT रुड़की ने उच्च शिक्षा संस्थानों के साथ साइन किया एमओयू, छात्रों को मिलेगा लाभ

पार्किंसंस बीमारी क्या है? यह बीमारी पुरुष और महिलाएं, दोनों को हो सकती है. हालांकि यह महिलाओं की तुलना में लगभग 50 फीसदी अधिक पुरुषों को प्रभावित करती है. यह बीमारी बुजुर्गों को अधिक प्रभावित करती है. विशेषज्ञ कहते हैं कि इसकी शुरुआत धीरे-धीरे होती है. ऐसे में मरीज को पता भी नहीं चलता कि इसके लक्षण कब दिखने शुरू हुए. कई हफ्तों या महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है, तब अहसास होता है कि कुछ तो गड़बड़ है.

यह बीमारी तब होती है जब मस्तिष्क के एक क्षेत्र में तंत्रिका कोशिकाएं या न्यूरॉन्स नष्ट होने लगते हैं. आमतौर पर ये न्यूरॉन्स डोपामाइन नामक एक महत्वपूर्ण मस्तिष्क रसायन का उत्पादन करते हैं. लेकिन जब ये न्यूरॉन्स मर जाते हैं या कम हो जाते हैं तो वे कम डोपामाइन का उत्पादन करते हैं, जो पार्किंसंस रोग का कारण बनता है.

इस बीमारी के चार मुख्य लक्षण हैं:

  • हाथ, बांह, पैर, जबड़े या सिर में कंपन.
  • अंगों की कठोरता.
  • अंगों की गतिविधियों का धीमा हो जाना.
  • शरीर का संतुलन बिगड़ जाना यानी चलने-फिरने में कठिनाई होना.
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