नई दिल्ली : धान की फसल में इन दिनों एक वायरस के प्रकोप ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है. बहरहाल ये वायरस पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में फसलों को प्रभावित कर रहा है. जानकारी मिलने के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों की टीम ने प्रभावित खेतों का दौरा किया. इस टीम में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के निदेशक डॉ. एके सिंह (IARI Director DR AK SINGH) भी शामिल थे.
इस संबंध में ईटीवी भारत ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ एके सिंह से विशेष बातचीत की. इस पर उन्होंने किसानों के सामने आई इस नई समस्या के बारे में न केवल विस्तार से बताया बल्कि फसल के बचाव के लिए जरूरी उपाय भी बताए. उन्होंने बताया कि ये समस्या करीब एक महीने से पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड से आ रही है कि धान की लगभग सभी किस्मों में कुछ पौधे छोटे रह जा रहे हैं और उनकी वृद्धि बिल्कुल नहीं हो रही है. ऐसे प्रभावित पौधों की संख्या फसल में पांच से पन्द्रह प्रतिशत तक देखी जा रही है. इसको लेकर आईएआरआई जहां चितित है वहीं कृषि मंत्रालय ने भी इस पर एक कमेटी का गठन किया है.
पंजाब और हरियाणा का दौरा करने के बाद आईसीएआर की टीम ने प्रभावित खेतों से नमूने लिए और उसका परिक्षण किया. शुरुआत में यह विषाणु के लक्षण लगे, या फिर वैज्ञानिकों को आशंका हुई कि ये माइकोप्लाज़्मा के कारण या फिर किसी अन्य कारण से भी हो सकता है. इस बात का पता लगाने में वैज्ञानिकों की टीम को थोड़ा समय लगा और उसके बाद प्रभावित पौधों के डीएनए सैंपल निकाल कर, उनमें से आरएनए अलग कर के सभी कारणों का पता लगाने का प्रयास किया गया. तमाम परीक्षण करने के बाद वैज्ञानिकों की टीम इस नतीजे पर पहुंची कि यह बीमारी एक विषाणु के कारण पौधों में आ रही है जिसे फिजी वायरस के नाम से जाना जाता है.
इसे सदर्न राइस ब्लैक स्ट्रीक्ड ड्वार्फ वायरस (SRBSDV) भी कहा जाता है. इस वायरस की वजह से पौधों का एक अंग होता है जिसे फ्लोएम कहा जाता है वह प्रभावित हो जाता है. इसकी वजह से पौधे नहीं बढ़ते हैं और उनमें दाने भी नहीं भरते हैं. ऐसा भी पाया गया कि इन धान के पौधों में या तो बालियां बिल्कुल नहीं निकलेंगी या फिर निकलने के बाद भी बहुत छोटी ही रहेंगी. आईएआरआई के सामने यह एक बड़ी चिंता का विषय था और इसका समाधान निकालना बहुत महत्वपूर्ण था.
डॉ. एके सिंह ने किसानों की जानकारी के लिए बताया कि यह एक बहुत ही छोटा विषाणु होता है जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में लोग तेला या चेपा के नाम से जानते हैं. वैज्ञानिक इसे हॉपर के समूह में रखते हैं जिसमें कई कीट आते हैं. इस समूह में कई कीट आते हैं जैसे कि ग्रीन लीफ़ हॉपर, व्हाइट बैक प्लांट हॉपर, और ब्राउन प्लांट हॉपर होता है. इसमें जो व्हाइट बैक प्लांट हॉपर विषाणु के लिए वेक्टर का काम करता है. वह रोग ग्रसित पौधों से विषाणु को लेकर स्वस्थ पौधे तक पहुंचाने का और उसको प्रभावित करने का काम करता है. इस तरह से फसल में विषाणु ओके फैलने की संभावना बनी रहती है. इस वायरस को फैलने से रोकने के लिए यह जरूरी हो जाता है कि जैसे ही किसान अपने खेतों में ब्राउन प्लांट हॉपर या फाइट बैक प्लांट हॉपर देखें तो बिना इंतजार किए दवाओं का छिड़काव करें. वायरस से बचने के लिए उपयोगी दवाओं के बारे में बताते हुए आईएआरआई के निदेशक ने कहा कि इसमें बेक्सालोन, चेस, ओसीन और टोकेन इत्यादि कारगर हैं. इनमें से किसी भी दवाओं का उपयोग करके किसान व्यक्ति को फसलों में फैलने से रोक सकते हैं.
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि जब वैज्ञानिकों ने वायरस प्रभावित पौधों उनके बीजों को लेकर उनके दूधिया दानों के आरएनए अलग करके उसका विश्लेषण किया तो यह पाया कि उन दानों के अंदर किसी भी तरह का वायरस मौजूद नहीं था. इसका मतलब है की इन फसलों से जो आगे बीज बनेगा उसकी अगली पीढ़ी में इस तरह के रोग फैलने की संभावना नहीं दिखती है. किसानों को इसलिए विशेष चिंता करने की जरूरत नहीं है, वह जहां भी प्रभावित पौधे देखें उसे मिट्टी समेत बाहर निकाल कर किसी अन्य स्थान पर गड्ढा खोदकर उसके अंदर दबा सकते हैं. फसलों के वायरस से प्रभावित होने के बाद आने वाले समय में धान की पैदावार प्रभावित होने की भी आशंका किसानों के बीच बनी हुई है. हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रभावित पौधों की संख्या अभी बहुत कम है और इसमें बचाव के साथ किसानों को कोई विशेष चिंता करने की जरूरत नहीं है.
वैज्ञानिक और किसानों की आपस में चर्चा के बाद यह भी बात सामने आई है कि जिन किसानों ने धान के फसल की बुवाई पहले की थी उनमें इस वायरस का प्रकोप ज्यादा हुआ है और जहां फसल की जुलाई के महीने में बुवाई हुई है उसमें इस वायरस का प्रकोप नहीं हुआ है. इस तरह से जिन खेतों में विषाणु लगा है उसमें केवल 5 से 15 प्रतिशत तक पौधे ही इससे प्रभावित हुए हैं. इस तरह से कुल मिलाकर प्रभावित क्षेत्रों में एक से 2 प्रतिशत तक फसल का नुकसान हो सकता है. वायरस के अन्य राज्यों में फैलने की आशंका के सवाल पर डॉ एके सिंह ने कहा कि इसके फैलने की एक अवस्था होती है और इसलिए जरूरी है कि किसान खेतों में व्हाइट बैक प्लांट (हॉपर कीट) को न आने दें.
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