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राज्यपाल के खिलाफ टीएमसी का इस हद तक विरोध कितना जायज ?

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Published : Jan 28, 2022, 10:39 PM IST

टीएमसी राज्यसभा में राज्यपाल जगदीप धनखड़ के खिलाफ प्रस्ताव लाएगी. पार्टी ने विधानसभा में भी निंदा प्रस्ताव लाने का फैसला किया है. ऐसे में राजनीतिक गलियारों में चर्चा होने लगी है कि क्या टीएमसी का यह कदम उचित है. क्या विरोध को इस हद तक ले जाना सही होगा. दूसरी ओर लोग राज्यपाल पर भी सवाल उठा रहे हैं. उनसे भी पूछा जा रहा है कि आखिर राज्य सरकार के खिलाफ इस हद तक टिप्पणी करना कहां तक जायज है. पढ़िए राजनीतिक विश्लेषकों की राय.

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डिजाइन फोटो

कोलकाता : पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ और राज्य सरकार के बीच अविश्वास का वातावरण बढ़ता ही जा रहा है. टीएमसी ने राज्यसभा में राज्यपाल के खिलाफ प्रस्ताव लाने का फैसला कर लिया है. पार्टी ने विधानसभा में भी राज्यपाल के कार्यों के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाने का निर्णय किया है. अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या टीएमसी का इस हद तक विरोध करना व्यावहारिक है या नहीं ? क्या इसे सही ठहराया जा सकता है ? ईटीवी भारत ने इस सवाल का जवाब जानने के लिए कुछ राजनीतिक विश्लेषकों के बात की है.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ अमल कुमार मुखोपाध्याय मानते हैं कि राज्यपाल के खिलाफ टीएमसी का इस सीमा तक विरोध करना कहीं से भी न्यायोचित नहीं दिखता है. उन्होंने कहा कि हम सब जानते हैं कि आप उनके खिलाफ ही विधानसभा या संसद में निंदा प्रस्ताव ला सकते हैं, जो उस सदन के सदस्य होते हैं. और राज्यपाल तो न तो विधानसभा और न ही राज्यसभा के सदस्य होते हैं. इसलिए आप अपने इस कदम को किस आधार पर सही ठहराएंगे. दूसरी बात ये भी है कि यह टीएमसी को भी पता है कि उसका प्रस्ताव राज्यसभा में पारित नहीं होने वाला है. उनके पास पर्याप्त संख्या नहीं है. वो चाहे लोकसभा हो या राज्यसभा.

j dhankhar
प. बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़

मुखोपाध्याय ने कहा कि टीएमसी के पास कोर्ट जाने का भी विकल्प नहीं है. क्योंकि संविधान के मुताबिक पद पर बैठे हुए राज्यपाल के खिलाफ कोर्ट जाने की भी इजाजत नहीं है. राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग लगाया जा सकता है, लेकिन यही व्यवस्था राज्यपाल को लेकर नहीं की गई है. इसलिए मुझे लग रहा है कि टीएमसी न सिर्फ समय बर्बाद करेगी, बल्कि अपना ही माखौल उड़ाएगी.

वरिष्ठ राजनीतिक पर्यवेक्षक सुभाशीष मोइत्रा मानते हैं कि राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच खींचतान कोई नया विषय नहीं है. इस वक्त सिर्फ प. बंगाल में ही नहीं, दूसरे राज्यों, जहां विपक्षी दलों की सरकारें हैं, में भी ऐसे ही तनाव चल रहे हैं. उन्होंने कहा, 'देखिए, समस्या की जड़ संविधान में है. राज्यपाल की नियुक्ति की परंपरा ब्रिटिश ने शुरू की थी. आजादी के बाद भी इन प्रावधानों में बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं किया गया है. इसलिए आसानी से इसका समाधान नहीं निकल सकता है. दोनों पक्षों की स्थिति देखने पर इतना तो जरूर कहा जा सकता है कि टीएमसी का यह कदम कहीं से भी उचित नहीं जान पड़ता है. यह व्यावहारिक नहीं है. दोनों सदनों में संख्या की जो स्थिति है, उसके परिप्रेक्ष्य में तो बिल्कुल ही नहीं. हां, आप सुर्खियों में आ सकते हैं. लेकिन कुछ उपलब्धि मिलेगी, ऐसा नहीं होने जा रहा है.'

mamata
प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक इस बात पर सहमत अवश्य हैं कि भी वर्तमान राज्यपाल ने कुछ कदम ऐसे जरूर उठाए हैं, जो किसी भी राज्य सरकार को मंजूर नहीं हो सकता है. इसलिए राज्य सरकार के साथ तनाव जारी है. इसके पहले भी ऐसे उदाहरण मिले हैं, जब कई राज्यों की रूलिंग पार्टी के कार्यकर्ताओं ने राज्यपाल के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन तक किया है. अगर टीएमसी भी यही करती तो बेहतर होता.

ये भी पढ़ें : टीएमसी राज्यपाल के खिलाफ 'संकल्प' प्रस्ताव लाने पर कर रही विचार, धनखड़ ने ममता पर लगाए आरोप

कोलकाता : पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ और राज्य सरकार के बीच अविश्वास का वातावरण बढ़ता ही जा रहा है. टीएमसी ने राज्यसभा में राज्यपाल के खिलाफ प्रस्ताव लाने का फैसला कर लिया है. पार्टी ने विधानसभा में भी राज्यपाल के कार्यों के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाने का निर्णय किया है. अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या टीएमसी का इस हद तक विरोध करना व्यावहारिक है या नहीं ? क्या इसे सही ठहराया जा सकता है ? ईटीवी भारत ने इस सवाल का जवाब जानने के लिए कुछ राजनीतिक विश्लेषकों के बात की है.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ अमल कुमार मुखोपाध्याय मानते हैं कि राज्यपाल के खिलाफ टीएमसी का इस सीमा तक विरोध करना कहीं से भी न्यायोचित नहीं दिखता है. उन्होंने कहा कि हम सब जानते हैं कि आप उनके खिलाफ ही विधानसभा या संसद में निंदा प्रस्ताव ला सकते हैं, जो उस सदन के सदस्य होते हैं. और राज्यपाल तो न तो विधानसभा और न ही राज्यसभा के सदस्य होते हैं. इसलिए आप अपने इस कदम को किस आधार पर सही ठहराएंगे. दूसरी बात ये भी है कि यह टीएमसी को भी पता है कि उसका प्रस्ताव राज्यसभा में पारित नहीं होने वाला है. उनके पास पर्याप्त संख्या नहीं है. वो चाहे लोकसभा हो या राज्यसभा.

j dhankhar
प. बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़

मुखोपाध्याय ने कहा कि टीएमसी के पास कोर्ट जाने का भी विकल्प नहीं है. क्योंकि संविधान के मुताबिक पद पर बैठे हुए राज्यपाल के खिलाफ कोर्ट जाने की भी इजाजत नहीं है. राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग लगाया जा सकता है, लेकिन यही व्यवस्था राज्यपाल को लेकर नहीं की गई है. इसलिए मुझे लग रहा है कि टीएमसी न सिर्फ समय बर्बाद करेगी, बल्कि अपना ही माखौल उड़ाएगी.

वरिष्ठ राजनीतिक पर्यवेक्षक सुभाशीष मोइत्रा मानते हैं कि राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच खींचतान कोई नया विषय नहीं है. इस वक्त सिर्फ प. बंगाल में ही नहीं, दूसरे राज्यों, जहां विपक्षी दलों की सरकारें हैं, में भी ऐसे ही तनाव चल रहे हैं. उन्होंने कहा, 'देखिए, समस्या की जड़ संविधान में है. राज्यपाल की नियुक्ति की परंपरा ब्रिटिश ने शुरू की थी. आजादी के बाद भी इन प्रावधानों में बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं किया गया है. इसलिए आसानी से इसका समाधान नहीं निकल सकता है. दोनों पक्षों की स्थिति देखने पर इतना तो जरूर कहा जा सकता है कि टीएमसी का यह कदम कहीं से भी उचित नहीं जान पड़ता है. यह व्यावहारिक नहीं है. दोनों सदनों में संख्या की जो स्थिति है, उसके परिप्रेक्ष्य में तो बिल्कुल ही नहीं. हां, आप सुर्खियों में आ सकते हैं. लेकिन कुछ उपलब्धि मिलेगी, ऐसा नहीं होने जा रहा है.'

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प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक इस बात पर सहमत अवश्य हैं कि भी वर्तमान राज्यपाल ने कुछ कदम ऐसे जरूर उठाए हैं, जो किसी भी राज्य सरकार को मंजूर नहीं हो सकता है. इसलिए राज्य सरकार के साथ तनाव जारी है. इसके पहले भी ऐसे उदाहरण मिले हैं, जब कई राज्यों की रूलिंग पार्टी के कार्यकर्ताओं ने राज्यपाल के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन तक किया है. अगर टीएमसी भी यही करती तो बेहतर होता.

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