रायपुर : तारीख 11 दिसंबर, साल 2018...ये वो दिन था जब 15 साल बाद छत्तीसगढ़ की सत्ता में कांग्रेस ने वापसी की थी. अपनी ही जमीन पर अपने ही पैर जमाने के लिए कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में लंबा संघर्ष किया. आतंरिक विरोध तो जख्म की तरह था ही साल 2013 झीरम घाटी में नक्सली हमले ने शीर्ष नेतृत्व को खत्म कर दिया. लेकिन कांग्रेस लौटी और ऐसे लौटी कि आज न सिर्फ विधानसभा की 90 में से 70 सीटों पर पंजे का कब्जा है बल्कि प्रदेश के नगरीय निकाय चुनावों में भी लोगों ने कांग्रेस पर ही भरोसा जताया. उपचुनाव में भी ये साबित हुआ कि छत्तीसगढ़ के भूपेश बघेल पर भरोसा जता रही हैं. ये कहना गलत नहीं है कि देश के सभी राज्यों की समीक्षा करें तो लंबे वक्त से खराब दौर से गुजर रही कांग्रेस छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा मजबूत है.
ईटीवी भारत ने छत्तीसगढ़ में लगातार कांग्रेस के मजबूत होने कारणों को लेकर एक विशेष रिपोर्ट तैयार की है. राजनीति के जानकारों से चर्चा कर यह जानने की कोशिश की गई है कि आखिर क्यों पूरे देश में कमजोर होती कांग्रेस छत्तीसगढ़ में बेहद मजबूत स्थिति में है.
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क्या कहते हैं एक्सपर्ट ?
प्रदेश में कांग्रेस की मजबूती को लेकर ETV भारत ने पॉलिटिकल एक्सपर्ट और वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध से बात की. बातचीत के दौरान मुक्तिबोध ने कई बिंदुओं पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि, 'छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को हमेशा मजबूत नेतृत्व मिला. जो भी नेतृत्व मिला, अच्छा मिला और पार्टी में एकजुटता रही. दूसरे राज्यों के अपेक्षा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के अंदर वैसी गुटबाजी नहीं है.' मुक्तिबोध कहते हैं कि, 'हर चुनाव में कांग्रेस ने अच्छा परफॉर्म किया, भले ही कांग्रेस सत्ता पर काबिज नहीं हो सकी. लेकिन कांग्रेसी नेताओं की जमीनी स्तर पर मजबूत पकड़ हमेशा बनी रही. आज भी यहां के नेता सीधे लोगों के संपर्क में रहते हैं. इसका फायदा पार्टी को मिल रहा है.'
बीजेपी से खफा थी जनता: मुक्तिबोध
मुक्तिबोध कहते हैं कि, 'भाजपा के शासन से परेशान लोग परिवर्तन चाहते थे इसलिए भी कांग्रेस को इतनी सीटें 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को इतनी सीटें मिली. वे कहते हैं कि पिछले 15 सालों से प्रदेश की सत्ता पर भाजपा का कब्जा रहा था. ऐसे में प्रदेश में जनता के बीच सत्ता विरोधी लहर थी. यही कारण है कि सत्ता विरोधी लहर के चलते इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिला है.'
अजीत जोगी का पार्टी से बाहर होना
एक्सपर्ट बताते हैं कि, 'अजीत जोगी के कांग्रेस से बाहर जाने के बाद पार्टी को मजबूती मिली. जोगी के जाते ही पार्टी के अंदर गुटबाजी की संभावना कम हो गई. उनका कहना है कि अजीत जोगी पार्टी में रहते हुए पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल रहते थे. इसका खामियाजा भी कांग्रेस को कई बार उठाना पड़ा था. लेकिन अजीत जोगी के बाहर जाते हि पार्टी मजबूत स्थिति में आकर खड़ी है. उनके पार्टी से बाहर होने का सीधा फायदा साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिला.'
ETV भारत ने छत्तीसगढ़ की राजनीति को समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार रवि भोई से भी बातचीत की है. वरिष्ठ पत्रकार रवि भोई कहते हैं कि, 'कांग्रेस के संगठन के बड़े नेताओं की अपेक्षा स्थानीय नेताओं की पकड़ प्रदेश में अच्छी है. यही वजह है कि उसका फायदा कांग्रेस को मिला है. विधानसभा चुनाव पर भी नजर डालें तो स्थानीय नेताओं की सक्रियता के चलते कांग्रेस सत्ता पर काबिज हुई है. इसमें पार्टी नेतृत्व का इतना बड़ा योगदान नहीं रहा, यदि पार्टी नेतृत्व का योगदान होता तो कांग्रेस को प्रदेश में लोकसभा चुनाव में भी बेहतर सफलता हासिल होती. लेकिन ऐसा हुआ नहीं.'
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नंदकुमार और भूपेश की मजबूत संगठनात्मक क्षमता
रवि भोई ने ETV भारत से कहा कि, 'कांग्रेस को पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल ने मजबूती प्रदान की थी. उनके नेतृत्व में पार्टी को एकजुट कर ऊर्जा का संचार किया गया था. जिसे नंदकुमार पटेल के जाने के बाद भूपेश बघेल ने बरकरार रखा. पूरे जोश के साथ पार्टी को आगे बढ़ाते रहे. इस बीच भूपेश बघेल ने कई कठोर निर्णय भी लिए. इसमें कुछ लोगों को पार्टी से बाहर करने सहित विरोधी दल के कुछ लोगों को पार्टी में शामिल करने का निर्णय भी शामिल था.'
रमन सरकार के खिलाफ लोगों का आक्रोश
रवि भोई कहते हैं कि, 'रमन सरकार के 15 सालों में पहले 5 साल ठीक रहे, दूसरे 5 सालों में भी कुछ बेहतर काम हुआ. लेकिन तीसरे 5 साल के दौरान पार्टी के पदाधिकारी कार्यकर्ताओं सहित जनता से भी रमन सिंह की दूरी बन गई थी. सरकार पर अधिकारियों के हावी होने की बात भी सामने आने लगी थी. जिसे लेकर जनता में काफी आक्रोश था. इसका फायदा भी साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिला.'
शहादत की नींव पर खड़ी है कांग्रेस
ETV भारत ने कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रदेश अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी से भी इस पर बात की है. शैलेश नितिन त्रिवेदी कहते हैं कि, 'प्रदेश के संगठन की इमारत विद्याचरण शुक्ला , नंद कुमार पटेल, महेंद्र कर्मा और उदय मुदलियार की शहादत की नींव पर खड़ी है. नंदकुमार पटेल के जाने के बाद भूपेश बघेल ने प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए 6 सालों तक कांग्रेस को एकजुट कर मजबूती प्रदान की है. बघेल को इस दौरान निशाना भी बनाया गया. भूपेश बघेल को इस दौरान जेल भी जाना पड़ा. लेकिन भूपेश बघेल की ही जिद थी कि कांग्रेस को फिर से सत्ता पर काबिज किया जाए और उसमें वे सफल रहे.'
सरकार की योजनाओं की वजह से पार्टी हुई मजबूत: कांग्रेस
शैलेश नितिन त्रिवेदी वर्तमान में कांग्रेस की मजबूती की वजह है पिछले 2 सालों में भूपेश सरकार के किए जा रहे कार्यों को मानते हैं. वे कहते हैं कि भूपेश सरकार ने गरीब, मजदूर और किसान समेत सभी वर्गों को ध्यान में रखते हुए योजनाएं संचालित की हैं. जिसका फायदा पार्टी को मरवाही सहित पूर्व में हुए विधानसभा उप चुनाव में मिला है.
अजीत जोगी का पार्टी से बाहर जाना रहा लाभदायक: कांग्रेस
शैलेश नितिन त्रिवेदी भी कहते हैं कि, 'अजीत जोगी को कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ का प्रथम मुख्यमंत्री बनाया. लेकिन जोगी पार्टी में रहते हुए पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल रहे हैं. वह भाजपा की बी टीम के रूप में काम करते रहे. इसको लेकर कांग्रेस के नेता पूर्व में भी जोगी पर आरोप लगाते रहे हैं. मरवाही विधानसभा उपचुनाव के दौरान जिस तरह से जनता कांग्रेस ने भाजपा को समर्थन दिया. उससे यह बात सामने आ गई कि जोगी भाजपा की B टीम की तरह काम कर रहे थे.'
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एक बार नजर डाल लेते हैं पिछले 4 विधानसभा चुनावों पर-
- साल 2003- भाजपा के पास 52 और कांग्रेस के पास 34 सीटें.
- साल 2008- भाजपा के पास 49 और कांग्रेस के पास 38 सीटें.
- साल 2013- भाजपा के पास 49 और कांग्रेस के पास 38 सीटें.
- साल 2018- कांग्रेस के पास 70 और भाजपा के पास 14 सीटें.
मत प्रतिशत-
- साल 2003- भाजपा को 39.26 फीसदी वोट मिले, कांग्रेस को 38.63 फीसदी मत मिला.
- साल 2008- भाजपा को 40.33 फीसदी वोट मिले, कांग्रेस को 36.71 फीसदी मत मिला.
- साल 2013- भाजपा को 41.04 फीसदी वोट मिले, कांग्रेस को 40.29 फीसदी मत मिला.
- साल 2018- कांग्रेस को 43 फीसदी वोट मिले, भाजपा को 33 फीसदी मत मिला.
देश में कांग्रेस के कमजोर होने के कारण
कांग्रेस छत्तीसगढ़ में मजबूत स्थिति में है तो वहीं दूसरी ओर देश के अन्य राज्यों में कांग्रेस काफी कमजोर स्थिति में है. इसकी मुख्य वजह है को लेकर जब हमने राजनीति के जानकारों से बात की तो उन्होंने एकमत होते हुए सबसे पहले परिवारवाद को जिम्मेदार ठहराया है. उनका कहना है कि गांधी परिवार ही सालों-सालों से पार्टी को संचालित कर रहा है. किसी अन्य को पार्टी की कमान नहीं सौंपी जा रही है. जिसका खामियाजा भी पार्टी को उठाना पड़ रहा है.