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हर तीन साल में घर छोड़कर खेत में निवास करता है यह गांव, जानें - होराबीडु

कर्नाटक के शिवमोगा तालुका के मांडघाट गांव के लोग हर तीन साल के अंतराल पर घरों को छोड़कर खेत में दिन बिताते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है इसका निर्वहन लोग आज भी कर रहे हैं.

खेत में निवास करता है यह गांव
खेत में निवास करता है यह गांव
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Published : Feb 11, 2021, 4:07 PM IST

बेंगलुरु : हमारे पूर्वजों ने जिन सभी कर्मकांडों और प्रथाओं को लागू किया है, उनके पीछे कई वैज्ञानिक कारण रहे हैं. होराबीडु भी ऐसा ही एक त्योहार है जिसके पीछे लोग वैज्ञानिक कारण मानते हैं.

पिछले एक साल से विश्व कोरोना महामारी के जूझ रहा है. अतीत में भी कई महामारियां आईं और हजारों लोगों की जान चली गई. होराबीडु महामारी से दूर रहने का एक अभ्यास है.

खेत में निवास करता है यह गांव

शिवमोगा तालुका के मांडघाट गांव के लोग हर तीन साल में एक बार पालतू जानवरों, मवेशियों, भेड़, मुर्गी और कुत्तों के साथ अपना घर खाली करते हैं. गांव में जाने वाली सड़कों को अवरुद्ध करने के लिए बाड़ लगाए जा रहे हैं, ताकि गांव में कोई भी प्रवेश न कर सके. लोग फिर अपने पशुधन के साथ खेत में जाते हैं और एक दिन वहां बिताते हैं.

ऐसा कहा जाता है कि अतीत में, मलेरिया और प्लेग ने हजारों लोगों की जान ले ली थी. उस समय लोग अपने घरों को खाली करके खेत में बस जाते थे. रोग के संक्रामक का खतरा गांव में कोई जानवर न होने से कम होने लगा. यह उत्सव सदियों पहले शुरू हुआ था और अभी भी मांडघाट के लोगों द्वारा अभ्यास किया जाता है.

इस बार भी, लोगों ने अपने घरों को सुबह से खाली कर दिया और खेत में चले गए, जहां उन्होंने खाना बनाया और दोपहर का भोजन किया. उन्होंने खेत पर मरम्मा की एक मूर्ति स्थापित की और उसकी पूजा की. फिर वे अपने घरों में चले गए और उत्सव को समाप्त का समापन हो गया.

बेंगलुरु : हमारे पूर्वजों ने जिन सभी कर्मकांडों और प्रथाओं को लागू किया है, उनके पीछे कई वैज्ञानिक कारण रहे हैं. होराबीडु भी ऐसा ही एक त्योहार है जिसके पीछे लोग वैज्ञानिक कारण मानते हैं.

पिछले एक साल से विश्व कोरोना महामारी के जूझ रहा है. अतीत में भी कई महामारियां आईं और हजारों लोगों की जान चली गई. होराबीडु महामारी से दूर रहने का एक अभ्यास है.

खेत में निवास करता है यह गांव

शिवमोगा तालुका के मांडघाट गांव के लोग हर तीन साल में एक बार पालतू जानवरों, मवेशियों, भेड़, मुर्गी और कुत्तों के साथ अपना घर खाली करते हैं. गांव में जाने वाली सड़कों को अवरुद्ध करने के लिए बाड़ लगाए जा रहे हैं, ताकि गांव में कोई भी प्रवेश न कर सके. लोग फिर अपने पशुधन के साथ खेत में जाते हैं और एक दिन वहां बिताते हैं.

ऐसा कहा जाता है कि अतीत में, मलेरिया और प्लेग ने हजारों लोगों की जान ले ली थी. उस समय लोग अपने घरों को खाली करके खेत में बस जाते थे. रोग के संक्रामक का खतरा गांव में कोई जानवर न होने से कम होने लगा. यह उत्सव सदियों पहले शुरू हुआ था और अभी भी मांडघाट के लोगों द्वारा अभ्यास किया जाता है.

इस बार भी, लोगों ने अपने घरों को सुबह से खाली कर दिया और खेत में चले गए, जहां उन्होंने खाना बनाया और दोपहर का भोजन किया. उन्होंने खेत पर मरम्मा की एक मूर्ति स्थापित की और उसकी पूजा की. फिर वे अपने घरों में चले गए और उत्सव को समाप्त का समापन हो गया.

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