लखनऊ : राजधानी लखनऊ में मानसिक विक्षिप्त व्यक्तियों का सड़कों पर आतंक है. कहीं मार्केट में मानसिक विक्षिप्त राहगीरों पर हमला कर रहे हैं तो कहीं रात में गाड़ियों के शीशे तोड़ रहे हैं. ऐसे में अब सवाल उठता है कि आखिर सड़कों पर बेघर घूम रहे इन मानसिक रूप से विक्षिप्त पुरुषों के विस्थापन के लिए कोई प्रभावी कार्रवाई क्यों नहीं हो पा रही है. हैरान करने वाली बात ये है कि जब ईटीवी भारत ने सड़कों पर घूम रहे मानसिक रूप से विक्षिप्त पुरुषों के विस्थापन को लेकर जिला प्रशासन, पुलिस, दिव्यांग कल्याण विभाग और स्वयं सेवी संस्थाओं से बात की तो सभी एक दूसरे पर जिम्मेदारी सौंपने लगे.
राजधानी की इन तीन घटनाओं की ही तरह रोजाना सड़कों, मोहल्लों में ऐसे मानसिक रूप से विक्षिप्त पुरुषों और महिलाओं से आम लोगों को दो चार होना पड़ता है. ऐसे में अब सवाल उठता है क्या इन विक्षिप्त लोगों को ऐसे ही सड़क पर घूमने से रोकने और उन्हें विस्थापित करने के लिए कोई योजना नहीं है. इसका जवाब है कि बिलकुल है और इसे कई विभाग स्वयं सेवी संस्थाओं के साथ मिलकर करते हैं. सड़कों पर बेघर मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों को शेल्टर होम तक पहुंचाने के लिए एनजीओ प्रशासन के साथ मिलकर कार्यक्रम चलाते हैं.
पांच विभाग संभालते हैं मानसिक विक्षिप्तों के विस्थापन को जिम्मेदारी
ईटीवी भारत ने मंगलवार को राजधानी की सड़कों पर मानसिक रूप से विक्षिप्त खासकर पुरुष विक्षिप्तों के विस्थापन के लिए कौन कौन कार्य कर रहा है. बीते कुछ माह में कितने विक्षप्तों को शेल्टर होम पहुंचाया गया इस पर जानकारी लेने चाही तो एक विभाग दूसरे विभाग पर जिम्मेदारी टालने की कवायद में लग गया. ईटीवी भारत ने सबसे पहले लखनऊ जिला प्रशासन के एडीएम प्रशासन से जानकारी ली. एडीएम प्रशासन सुभी सिंह ने बताया कि जिला प्रशासन द्वारा गठित कमेटी भिक्षा वृत्ति में शामिल लोगों के कल्याण के लिए कार्य करती है. मानसिक विक्षिप्त पुरुषों के लिए जिला कार्यक्रम अधिकारी (डीपीओ) से जानकारी ले लीजिए.
हर विभाग ने जिम्मेदारी से झाड़ा पल्ला
ईटीवी भारत ने जिला कार्यकर्म अधिकारी (डीपीओ) लखनऊ विकास सिंह ने बताया कि वे सिर्फ महिला मानसिक विक्षिप्त का ही विस्थापन कार्यकर्म चलाते हैं. जिला दिव्यांग कल्याण अधिकारी रजनीश किरण ने कहा कि मानसिक रूप से विक्षिप्त पुरुषों के विस्थापन कर उन्हें शेल्टर होम तक पहुंचाने का काम उनका विभाग देखता तो जरूर है, लेकिन ज्यादातर एनजीओ ही उन्हें शेल्टर होम तक पहुंचाते हैं. लिहाजा विभाग के पास पुरुषों का कोई आंकड़ा नहीं है. जिला दिव्यांग कल्याण अधिकारी से जब सड़कों पर बेघर घूम रहे विक्षिप्त पुरुषों पर कार्रवाई या उन्हें शेल्टर होम तक क्यों नहीं ले जाया जा रहा इस पर सवाल किया गया तो उन्होंने फोन पर बताया ये पुलिस जाने, क्योंकि ये जिम्मेदारी पुलिस की होती है. हालांकि पुलिस अधिकारी से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनसे वार्ता नहीं हो सकी.