लखनऊ : पूरे देश में सोमवार को रंगों का त्योहार होली धूमधाम से मनाया जाएगा. इससे एक दिन पहले होलिका दहन होता है. बता दें, आज रविवार को फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है. आज देश भर में होलिका दहन किया जाएगा. मान्यता है कि होलिका की अग्नि में सभी बुराईयों को जला दिया जाता है. होलिका दहन के साथ ही होलाष्टक भी समाप्त हो जाता है. इस दिन लोग सुख समृद्धि और पारिवारिक उन्नति की प्रार्थना करते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अपने भाई हिरण्यकश्यप की बातों में होलिका ने प्रहलाद को चिता में जलाने की कोशिश की थी.
शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को होलिका दहन
28 मार्च रविवार को फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जायेगा. 29 मार्च सोमवार को रंग की होली खेली जाएगी. वैसे तो होली का त्योहार अगले आठ दिन, चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक माना जाता है, लेकिन अगले दो दिनों तक राजधानी में होली की धूम रहेगी.
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होलिका दहन का मुहूर्त
अलीगंज स्थित स्वस्तिक ज्योतिष केन्द्र के ज्योतिषाचार्य एसएस नागपाल के मुताबिक भद्रा रहित प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिए उत्तम मानी जाती है. लेकिन, भद्रा में होलिका दहन नहीं करना चाहिए. पूर्णिमा तिथि 28 मार्च को प्रातः 3:27 से प्रारम्भ होकर 28 मार्च को रात्रि 12:17 बजे तक रहेगी. इस दौरान भद्रा मुख की अवधि 28 मार्च की दोपहर 1:54 बजे तक रहेगी. होलिका दहन का मुर्हूत शाम 6:21 बजे से रात्रि 8:41 बजे तक करना सर्वोत्तम माना जा रहा है.
होली पर बन रहे कई शुभ योग
ज्योतिषाचार्य नागपाल ने बताया कि इस साल होली पर कई विशेष योग बन रहे हैं, जिससे होली के त्योहार का महत्व और बढ़ गया है. 28 मार्च को होलिका दहन मुहूर्त में चन्द्रमा कन्या राशि में हस्त नक्षत्र में होंगे और वृद्धि योग होगा. 29 मार्च रंगवाली होली के दिन ध्रुव योग का योग बन रहा है. इस दिन चंद्रमा कन्या राशि में गोचर करेगा. इसके अलावा दो सबसे बड़े ग्रह, शनि और गुरु, मकर राशि में होंगे. शुक्र और सूर्य ये दोनों ही मीन राशि में रहेंगे. मंगल और राहु वृषभ राशि में, बुध कुंभ राशि और केतु वृश्चिक राशि में विराजमान होंगे. होली सर्वार्थसिद्धि योग में मनेगी और इसके साथ ही होली पर अमृतसिद्धि योग भी रहेगा.
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होली की पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन दैत्यराज हिरण्यकश्यप की बहन होलिका (जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था) भक्त प्रह्वाद को लेकर अग्नि में बैठ गईं थी. लेकिन, प्रह्वाद को कुछ भी नहीं हुआ और स्वंय होलिका ही उस अग्नि में भस्म हो गईं. होलिका दहन के अगले दिन रंग खेले जाते हैं. जिसे रंगवाली होली या धुरड्डी के नाम से भी जाना जाता है.