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हिमालयन ग्लेशियर पिघलने से भारत में खाद्य संकट का खतरा : अध्ययन - ग्लोबल ग्लेशियर रिट्रीट

साल 2000 और 2019 के बीच, दुनिया के ग्लेशियर औसतन प्रतिवर्ष 267 गीगाटन बर्फ खो चुके हैं. इस दौरान ग्लेशियर का घनत्व और द्रव्यमान तेजी से घटा है. एक अध्ययन में कहा गया है कि हिमालय के ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं, इससे अगले कुछ दशकों में भारत और बांग्लादेश में जल या खाद्य संकट पैदा हो सकता है. पढ़ें पूरी खबर...

ग्लोबल ग्लेशियर रिट्रीट
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Published : May 6, 2021, 1:02 PM IST

हैदराबाद : ग्लोबल ग्लेशियर रिट्रीट पर एक नए अध्ययन से पता चलता है कि पिछले दो दशकों में ग्लेशियर का घनत्व और द्रव्यमान तेजी से घटा है. साल 2000 और 2019 के बीच, दुनिया के ग्लेशियर औसतन प्रतिवर्ष 267 गीगाटन (294.3 बिलियन टन) बर्फ खो चुके हैं. अध्ययन में कहा गया है कि हिमालय के ग्लेशियर की स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि इससे भारत और बांग्लादेश जैसे देशों में खाद्य और पानी का संकट पैदा हो सकता है.

  • दुनिया भर में लगभग हर जगह स्थाई बर्फ में गिरावट आई है. वर्ष 2000 और 2019 के बीच, दुनिया के ग्लेशियर ने प्रतिवर्ष औसतन कुल 267 गीगाटन बर्फ खोई है - यह मात्रा हर साल छह मीटर (19 फीट) पानी के नीचे स्विट्जरलैंड के पूरे सतह क्षेत्र को जलमग्न कर सकती है.
  • इस दौरान ग्लेशियर द्रव्यमान का नुकसान भी तेजी से हुआ. साल 2000 और 2004 के बीच, ग्लेशियर ने प्रतिवर्ष 227 गीगाटन बर्फ खो दी, लेकिन 2015 और 2019 के बीच, यह बढ़ कर सालाना 298 गीगाटन हो गया.
  • ग्लेशियर पिघलने के कारण इस अवधि के दौरान समुद्र के स्तर में 21% तक की वृद्धि (सालाना 0.029 इंच) दर्ज की गई.
  • शोधकर्ताओं ने उन क्षेत्रों की भी पहचान की, जहां साल 2000 और 2019 के बीच पिघलने की दर कम थी- जैसे ग्रीनलैंड का पूर्वी तट और आइसलैंड और स्कैंडिनेविया में.
  • वैज्ञानिक उत्तरी अटलांटिक में मौसम की विसंगति के लिए इस भिन्न पैटर्न को जिम्मेदार मानते हैं, जिसके कारण वर्ष 2010 और 2019 के बीच अधिक वर्षा और निम्न तापमान रहा, जिससे बर्फ का नुकसान कम हुआ.
  • शोधकर्ताओं ने यह भी पता लगाया कि काराकोरम विसंगति के रूप में जाने वाली घटना गायब हो रही है. साल 2010 से पहले, काराकोरम पर्वत श्रृंखला में ग्लेशियर स्थिर थे. साथ ही कुछ बढ़ रहे थे. हालांकि, शोधकर्ताओं के विश्लेषण से पता चला है कि काराकोरम ग्लेशियर अब बड़े पैमाने पर पिघल रहे हैं.

हिमालय के ग्लेशियर की स्थिति चिंताजनक

  • समुद्र के जल स्तर में वृद्धि का लगभग आधा हिस्सा पानी के थर्मल विस्तार के लिए जिम्मेदार है, क्योंकि यह गर्म होता है. इससे ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक बर्फ की चादर पिघलती है.
  • सबसे तेजी से पिघलने वाले ग्लेशियर में अलास्का, आइसलैंड और आल्प्स हैं.
  • पामीर पर्वतमाला, हिंदू कुश और हिमालय के पर्वतीय ग्लेशियर पर भी इसका गहरा असर हो रहा है.

ग्लेशियर पिघलने से भारत और बांग्लादेश को खतरा:

ईटीएच ज्यूरिख और टूलूज विश्वविद्यालय के शोधकर्ता के रोमेन ह्यूगनेट का कहना है कि हिमालय की स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है.

शुष्क मौसम के दौरान, ग्लेशियर से पिघला हुआ पानी एक महत्वपूर्ण जल स्रोत है जिससे गंगा, ब्रह्मपुत्र, और सिंधु नदियों में जल का प्रवाह हमेशा बना रहता है.

उन्होंने कहा कि अभी, ग्लेशियर के पिघलने से क्षेत्र में रहने वाले लोगों को फायदा पहुंचता है, लेकिन अगर हिमालयी ग्लेशियर सिकुड़ता रहता है, तो भारत और बांग्लादेश जैसे आबादी वाले देशों को कुछ दशकों में पानी या खाद्य की कमी का सामना करना पड़ सकता है.

हैदराबाद : ग्लोबल ग्लेशियर रिट्रीट पर एक नए अध्ययन से पता चलता है कि पिछले दो दशकों में ग्लेशियर का घनत्व और द्रव्यमान तेजी से घटा है. साल 2000 और 2019 के बीच, दुनिया के ग्लेशियर औसतन प्रतिवर्ष 267 गीगाटन (294.3 बिलियन टन) बर्फ खो चुके हैं. अध्ययन में कहा गया है कि हिमालय के ग्लेशियर की स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि इससे भारत और बांग्लादेश जैसे देशों में खाद्य और पानी का संकट पैदा हो सकता है.

  • दुनिया भर में लगभग हर जगह स्थाई बर्फ में गिरावट आई है. वर्ष 2000 और 2019 के बीच, दुनिया के ग्लेशियर ने प्रतिवर्ष औसतन कुल 267 गीगाटन बर्फ खोई है - यह मात्रा हर साल छह मीटर (19 फीट) पानी के नीचे स्विट्जरलैंड के पूरे सतह क्षेत्र को जलमग्न कर सकती है.
  • इस दौरान ग्लेशियर द्रव्यमान का नुकसान भी तेजी से हुआ. साल 2000 और 2004 के बीच, ग्लेशियर ने प्रतिवर्ष 227 गीगाटन बर्फ खो दी, लेकिन 2015 और 2019 के बीच, यह बढ़ कर सालाना 298 गीगाटन हो गया.
  • ग्लेशियर पिघलने के कारण इस अवधि के दौरान समुद्र के स्तर में 21% तक की वृद्धि (सालाना 0.029 इंच) दर्ज की गई.
  • शोधकर्ताओं ने उन क्षेत्रों की भी पहचान की, जहां साल 2000 और 2019 के बीच पिघलने की दर कम थी- जैसे ग्रीनलैंड का पूर्वी तट और आइसलैंड और स्कैंडिनेविया में.
  • वैज्ञानिक उत्तरी अटलांटिक में मौसम की विसंगति के लिए इस भिन्न पैटर्न को जिम्मेदार मानते हैं, जिसके कारण वर्ष 2010 और 2019 के बीच अधिक वर्षा और निम्न तापमान रहा, जिससे बर्फ का नुकसान कम हुआ.
  • शोधकर्ताओं ने यह भी पता लगाया कि काराकोरम विसंगति के रूप में जाने वाली घटना गायब हो रही है. साल 2010 से पहले, काराकोरम पर्वत श्रृंखला में ग्लेशियर स्थिर थे. साथ ही कुछ बढ़ रहे थे. हालांकि, शोधकर्ताओं के विश्लेषण से पता चला है कि काराकोरम ग्लेशियर अब बड़े पैमाने पर पिघल रहे हैं.

हिमालय के ग्लेशियर की स्थिति चिंताजनक

  • समुद्र के जल स्तर में वृद्धि का लगभग आधा हिस्सा पानी के थर्मल विस्तार के लिए जिम्मेदार है, क्योंकि यह गर्म होता है. इससे ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक बर्फ की चादर पिघलती है.
  • सबसे तेजी से पिघलने वाले ग्लेशियर में अलास्का, आइसलैंड और आल्प्स हैं.
  • पामीर पर्वतमाला, हिंदू कुश और हिमालय के पर्वतीय ग्लेशियर पर भी इसका गहरा असर हो रहा है.

ग्लेशियर पिघलने से भारत और बांग्लादेश को खतरा:

ईटीएच ज्यूरिख और टूलूज विश्वविद्यालय के शोधकर्ता के रोमेन ह्यूगनेट का कहना है कि हिमालय की स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है.

शुष्क मौसम के दौरान, ग्लेशियर से पिघला हुआ पानी एक महत्वपूर्ण जल स्रोत है जिससे गंगा, ब्रह्मपुत्र, और सिंधु नदियों में जल का प्रवाह हमेशा बना रहता है.

उन्होंने कहा कि अभी, ग्लेशियर के पिघलने से क्षेत्र में रहने वाले लोगों को फायदा पहुंचता है, लेकिन अगर हिमालयी ग्लेशियर सिकुड़ता रहता है, तो भारत और बांग्लादेश जैसे आबादी वाले देशों को कुछ दशकों में पानी या खाद्य की कमी का सामना करना पड़ सकता है.

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