शिमला : पहली बार मुख्यमंत्री बने जयराम ठाकुर पर विपक्ष अकसर ये आरोप लगाता रहा है कि सीएम का अफसरशाही पर कंट्रोल नहीं है. विपक्ष के आरोप में कितनी सच्चाई है, ये अलग बात है लेकिन चार साल सात महीने के कार्यकाल में जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार अब सातवें मुख्य सचिव का (seven chief secretaries in jairam govt) कार्यकाल देखेगी. आरडी धीमान हिमाचल के नए मुख्य सचिव बन (new chief secretary of himachal) गए हैं, वो जयराम सरकार में 7वें मुख्य सचिव हैं.
जयराम सरकार का फैसला- गुरुवार 14 जुलाई को कैबिनेट मीटिंग के बाद हिमाचल की अफसरशाही में बड़ी हलचल थी. सोशल मीडिया पर बड़ा शोर था कि अफसरशाही की टॉप विकेट गिर सकती है. देर रात ये आशंका सही साबित हुई और मुख्य सचिव राम सुभग सिंह को पद से हटना पड़ा. देर रात ही सरकार ने आदेश जारी कर दिए और रामसुभग सिंह की जगह आरडी धीमान को मुख्य सचिव नियुक्त कर दिया. राम सुभग सिंह को सरकार ने हाशिए पर धकेलते हुए प्रधान सलाहकार (प्रशासनिक सुधार) लगा दिया है.
यही नहीं, रामसुभग सिंह की पत्नी निशा सिंह जो एसीएस रैंक की अफसर हैं, उन्हें भी हाशिए पर धकेल दिया गया. साथ ही 1988 बैच के आईएएस संजय गुप्ता को भी इसी पद पर यानी प्रधान सलाहकार जन शिकायत व निवारण विभाग में भेज दिया गया. इस तरह जयराम सरकार संभवत: हिमाचल प्रदेश की पहली ऐसी सरकार होगी, जिसने अपने कार्यकाल में सातवां मुख्य सचिव ( jairam govt appoints seven chief secrataries) बनाया है. बेशक सात में से दो मुख्य सचिवों ने अपना कार्यकाल पूरा किया, लेकिन चार को जयराम सरकार ने हटाया है या फिर वे अपनी पसंद से केंद्र में चले गए.
जयराम राज में 7वें मुख्य सचिव- गुरुवार 14 जुलाई को जयराम सरकार ने आईएएस आरडी धीमान को नए मुख्य सचिव की जिम्मेदारी (Himachal Pradesh Chief Secretary) सौंपी, इससे पहले जयराम राज में 6 मुख्य सचिव रहे (seven chief secrataries in four years) हैं.
1) वीसी फारका (1 जून 2016 से 31 दिसंबर 2017)- IAS वीसी फारका को वीरभद्र सरकार ने मुख्य सचिव की जिम्मेदारी दी थी. वीरभद्र सिंह ने पांच अफसरों को सुपरसीड करके उन्हें इस पद के लिए तरजीह दी थी. लेकिन जयराम ठाकुर के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के 4 दिन बाद ही उनकी छुट्टी कर दी गई और उन्हें प्रधान सलाहकार नियुक्त कर दिया.
2) विनीत चौधरी (1 जनवरी 2018 से 30 सितंबर 2018)- इसके बाद सीनियर आईएएस अधिकारी विनीत चौधरी को मुख्य सचिव बनाया गया. गौरतलब है कि विनीत चौधरी वीसी फारका से सीनियर थे. विनीत चौधरी का कार्यकाल 30 सितंबर 2018 को पूरा हुआ था.
3) बीके अग्रवाल (30 सितंबर 2018 से 02 सितंबर 2019)- बीके अग्रवाल भी इस कुर्सी पर एक साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. इसके बाद बीके अग्रवाल केंद्र में सेवाएं देने के लिए चले गए थे.
4) श्रीकांत बाल्दी (02 सितंबर 2019 से 31 दिसंबर 2019)- IAS श्रीकांत बाल्दी महज़ 4 महीने मुख्य सचिव रहे और रिटायर हो गए. इसके बाद सरकार ने उन्हें HPRERA (Himachal Pradesh Real Estate Regulatory Authority) का चेयरमैन बना दिया.
5) अनिल खाची (1 जनवरी 2020- 5 अगस्त 2021)- श्रीकांत बाल्दी के बाद अनिल खाची ने मुख्य सचिव की कुर्सी संभाली. वो जयराम ठाकुर की सरकार में सबसे लंबे वक्त तक मुख्य सचिव रहे और करीब 19 महीने बाद एक पावरफुल कैबिनेट मंत्री से विवाद के बाद उनकी विदाई हुई. हालांकि बदले में उन्हें हिमाचल का मुख्य निर्वाचन अधिकारी बनाया गया.
6) राम सुभग सिंह (5 अगस्त 2021 से 14 जुलाई 2022)- आईएएस राम सुभग सिंह 5 अगस्त 2021 को मुख्य सचिव बने और रिटायरमेंट से करीब 3 महीने पहले उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. राम सुभग सिंह भी विवादों में रहे हैं, उनकी शिकायत पीएमओ तक पहुंची थी.
ब्यूरोक्रेसी और जयराम सरकार- आखिर ऐसा क्या है कि जयराम सरकार इस मोर्चे पर कमजोर प्रतीत हो (jairam govt and bureaucracy) रही है. भाजपा दिसंबर 2017 में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई थी. प्रेम कुमार धूमल सीएम फेस थे, लेकिन वे चुनाव हार गए और जयराम ठाकुर की ताजपोशी हो गई. ये निर्विवाद सत्य है कि प्रेम कुमार धूमल की अफसरशाही पर जोरदार पकड़ थी और वीरभद्र सिंह तो इसी के लिए पहचान रखते थे. उनकी धमक का आलम ये था कि अपने कार्यकाल में वीरभद्र सिंह ने पांच अफसरों को सुपरसीड कर वीसी फारका को मुख्य सचिव बनाया. लेकिन जयराम सरकार अपने सभी ईमानदार दावों और वादों के बावजूद अफसरशाही के मोर्चे पर कमजोर साबित हुई है.
साढ़े चार साल में 7 मुख्य सचिव- 2017 में सत्ता बदली तो जाहिर है कि ढर्रा भी बदलना था. सबसे पहले वीरभद्र सरकार के दौरान मुख्य सचिव बनाए गए वीसी फारका को बदला गया. उनकी जगह विनीत चौधरी आए, जो वीसी फारका से सीनियर थे लेकिन वीरभद्र सिंह सरकार ने उनकी अनदेखी की थी. विनीत चौधरी ने अपना कार्यकाल पूरा किया और रिटायर हो गए. इसके बाद जो सिलसिला शुरू हुआ वो अब तक जारी है. अब तक साढ़े चार साल में 7 मुख्य सचिव देख चुके हैं. सिर्फ श्रीकांत बाल्दी और विनीत चौधरी ने मुख्य सचिव के रूप में अपना कार्यकाल पूरा किया.
सवालों में सीएम जयराम- राजनीतिक विश्लेषक डॉ. मोहिंद्र राणा का कहना है कि कोई भी मुख्यमंत्री अपना पूरा कार्यकाल एक विश्वस्त मुख्य सचिव के साथ पूरा करना चाहता है ताकि उसकी नीतियों का सही से क्रियान्वयन हो सके. जयराम सरकार करीब साढ़े चार साल के कार्यकाल में 7वां मुख्य सचिव देख रही है. ऐसे में अफसरशाही के कामकाज पर असर पड़ता है और सरकार की छवि भी प्रभावित होती है. वहीं, विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री व कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह सहित अन्य नेता ये आरोप लगाते रहे हैं कि सीएम जयराम ठाकुर की अफसरशाही पर पकड़ नहीं है. उधर बीजेपी इसे मुख्यमंत्री का अधिकार क्षेत्र बताती है.
कहां हो रही है चूक- मुख्यमंत्री किसी भरोसेमंद अधिकारी को ही मुख्य सचिव की कुर्सी पर बिठाते हैं, कई बार मुख्यमंत्री अपने मनपसंद अधिकारियों को एक्सटेंशन देकर भी कुर्सी पर बनाए रखते हैं, तो कई बार मनपसंद जूनियर अधिकारी को सीनियर्स पर तरजीह देकर पर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जाती हैं. लेकिन सवाल है कि जयराम ठाकुर कहां चूक कर रहे है. क्या अधिकारियों के साथ वो तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं ? या फिर अधिकारी उनका भरोसा नहीं जीत पा रहे हैं ? ये दोनों सवाल इसलिये क्योंकि राज्य और केंद्र सरकारों में ऐसे तमाम उदाहरण हैं जहां ब्यूरोक्रेसी के सबसे बड़े पद अनुभवी अधिकारी से ज्यादा भरोसेमंद अधिकारी को सौंपे जाते रहे हैं.
क्या ये मुख्यमंत्री की नाकामी है ?- अधिकारियों के तबादले सरकार के लिए कोई नई बात नहीं है लेकिन राज्य में ब्यूरोक्रेसी की सबसे बड़ी कुर्सी पर साढ़े चार साल में 7वां चेहरा बैठ जाए तो सवाल उठना लाजमी है. ज्यादातर जानकार कम से कम ब्यूरोक्रेसी के मोर्चे पर तो इसे नाकामी ही मानते हैं. सवाल है कि इस नाकामी की वजह योग्यता की कमी है या फिर पावर सेंटर ज्यादा होना है. राजनीतिक विश्लेषक और विपक्ष तो यही दो वजहें गिनाते हैं, जिससे मुख्यमंत्री और सरकार सवालों के कटघरे में खड़ी दिखती है. जयराम ठाकुर भले पहली बार मुख्यमंत्री बने हों लेकिन उनकी सरकार अब कार्यकाल पूरा करने वाली है. विपक्ष मुख्यमंत्री को इस मामले में नौसिखिया और नाकाम बताता है और सरकार में एक से ज्यादा पावर सेंटर से भी इनकार नहीं करते हैं. कुल मिलाकर ये तय है कि इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव में अफसरशाही पर सरकार की पकड़ और खासकर साढ़े चार साल में 7 मुख्य सचिव बनाने का मुद्दा चुनावी रैलियों में गूंजता दिखेगा.
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