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जो 20 साल से अनुशासित बल में न हो उससे दायित्व प्रदर्शन की उम्मीद नहीं : कोर्ट - केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल

उच्च न्यायालय ने बर्खास्तगी के खिलाफ सीआईएसएफ कांस्टेबल की याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने टिप्पणी की कि जो 20 साल से अधिक समय से अनुशासित बल में नहीं है और अब उससे दायित्व प्रदर्शन की उम्मीद नहीं की जा सकती.

दिल्ली उच्च न्यायालय
दिल्ली उच्च न्यायालय
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Published : Aug 10, 2021, 8:52 PM IST

नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के एक कांस्टेबल की याचिका खारिज कर दी है, जिसमें उसने खुद को साल 2000 में सेवा से बर्खास्त किए जाने को चुनौती दी थी.

न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ और न्यायमूर्ति अमित बंसल की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता 20 साल से अधिक समय से अनुशासित बल में नहीं है और अब उससे दायित्व प्रदर्शन की उम्मीद नहीं की जा सकती तथा उसकी बहाली से बकाया के रूप में सरकार पर वित्तीय भार पड़ेगा.

अदालत ने कहा कि 2001 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका वापस लिए जाने के बाद कांस्टेबल द्वारा 2021 में फिर से दायर की गई याचिका में 'लंबा विलंब' हुआ है और किसी सेवा कर्मी को समान याचिका को वापस लेने के बाद गलत तरीके से कार्यवाही दायर कर अपना दावा बरकरार रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती.

इसने कहा कि मामले के गुण-दोष पर विचार किए बिना याचिका खारिज की जाती है. याचिकाकर्ता को अपने वरिष्ठ अधिकारी को गाली देने के आरोप में नवंबर 2000 में सीआईएसएफ ने कांस्टेबल के पद से बर्खास्त कर दिया था.

पढ़ें- हाईकोर्ट ने पूछा, 'जॉब का सवाल है तो वैक्सीन की तीसरी डोज क्यों नहीं', सरकार ने दिया ऐसा जवाब

कांस्टेबल ने अपनी बर्खास्तगी को 2001 में पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी और फिर वैकल्पिक सांविधिक समाधान के लिए 2019 में इसे वापस ले लिया. बाद में, याचिकाकर्ता ने समीक्षा याचिका और विभागीय अपील दायर की, जो खारिज कर दी गईं. याचिकाकर्ता ने इसके बाद वर्तमान याचिका दायर की थी.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के एक कांस्टेबल की याचिका खारिज कर दी है, जिसमें उसने खुद को साल 2000 में सेवा से बर्खास्त किए जाने को चुनौती दी थी.

न्यायमूर्ति राजीव सहाय एंडलॉ और न्यायमूर्ति अमित बंसल की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता 20 साल से अधिक समय से अनुशासित बल में नहीं है और अब उससे दायित्व प्रदर्शन की उम्मीद नहीं की जा सकती तथा उसकी बहाली से बकाया के रूप में सरकार पर वित्तीय भार पड़ेगा.

अदालत ने कहा कि 2001 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका वापस लिए जाने के बाद कांस्टेबल द्वारा 2021 में फिर से दायर की गई याचिका में 'लंबा विलंब' हुआ है और किसी सेवा कर्मी को समान याचिका को वापस लेने के बाद गलत तरीके से कार्यवाही दायर कर अपना दावा बरकरार रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती.

इसने कहा कि मामले के गुण-दोष पर विचार किए बिना याचिका खारिज की जाती है. याचिकाकर्ता को अपने वरिष्ठ अधिकारी को गाली देने के आरोप में नवंबर 2000 में सीआईएसएफ ने कांस्टेबल के पद से बर्खास्त कर दिया था.

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कांस्टेबल ने अपनी बर्खास्तगी को 2001 में पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी और फिर वैकल्पिक सांविधिक समाधान के लिए 2019 में इसे वापस ले लिया. बाद में, याचिकाकर्ता ने समीक्षा याचिका और विभागीय अपील दायर की, जो खारिज कर दी गईं. याचिकाकर्ता ने इसके बाद वर्तमान याचिका दायर की थी.

(पीटीआई-भाषा)

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